सबसे पहला परमाणु
परीक्षण अमेरिका ने 16 जुलाई 1945 को किया था. तब से 1992
तक अमेरिका 1032 परमाणु परीक्षण कर चुका है. सोवियत संघ में 727
परीक्षण हुए,
लेकिन 1992 में उसके विघटन के बाद से कोई परीक्षण नहीं
हुआ. ब्रिटेन ने 88 परीक्षण किए और अंतिम
परीक्षण 1991 में किया गया. फ़्रांस 217 परीक्षण कर चुका है,
चीन 47, भारत छह, पाकिस्तान छह और उत्तर कोरिया ने चार परीक्षण किए हैं. इसके अलावा यह
माना जाता है कि जापान, इसराइल, दक्षिण अफ़्रीका और जर्मनी ने भी परमाणु परीक्षण किए हैं.
अमेरिका का नाम
कैसे पड़ा?
अमेरिकी महाद्वीप
की खोज क्रिस्टोफर कोलम्बस ने 1492 में की थी, पर इसका नाम रखने में उनकी कोई भूमिका नहीं है. कोलम्बस तो
समझते थे कि उन्होंने जिस जमीन को खोजा है,
वह भारत है.
अमेरिका का नाम इतालवी यात्री अमेरिगो वेसपुच्ची के नाम पर पड़ा है. अमेरिगो
वेसपुच्ची भी कोलम्बस का दोस्त था. वह व्यापारी था और कोलम्बस की यात्रा के सात
साल बाद 1499 में वह चार पोतों के एक यात्री दल के साथ
अटलांटिक पार करके दक्षिणी अमेरिका के पूर्वी तट पर पहुँचा. कुछ साल बाद जब वह
वापस आया तो उसने अपनी यात्रा के बारे में लिखा. इन नई जगह को उसने नाम दिया ‘नोवस
मुंडस’ यानी नई दुनिया. उसने यह साबित किया कि जिस इलाके की यात्रा करके वह आया है, वह भारत नहीं है. उसकी यात्रा का वृत्तांत 1502 में प्रकाशित हुआ.
सन 1507 में जर्मन कार्टोग्राफर (नक्शानबीस) मार्टिन वॉल्डसीम्यूलर
और उनके सहयोगी मठायस रिंगमान भूगोल पर टोलमी के ग्रंथ का पुनर्प्रकाशन कर रहे थे.
इसमें उन्होंने दुनिया का नया नक्शा पेश किया,
जिसमें इस ‘नई दुनिया’ को दिखाया, जिसका नाम उन्होंने लिखा
अमेरिका. यह नाम अमेरिगो के नाम से प्रेरित था. शुरू में उनके नक्शे में दक्षिण
अमेरिका ही था. बाद में उत्तरी अमेरिका भी इसमें शामिल किया गया. प्रसिद्ध
भूगोलवेत्ता जेराल्ड मर्केटर ने 1958 में दोनों भूखंडों को एक
नाम अमेरिका कहा.
यह भी कहा जाता
है कि यह नाम ब्रिस्टल के व्यापारी रिचर्ड अमेरिके के नाम पर है. कहा जाता है कि
ब्रिस्टल के व्यापारियों ने इस महाद्वीप की खोज कोलम्बस को पहले कर ली थी और
उन्होंने अपने प्रायोजक के नाम पर इसका नाम रखा. पर आमतौर पर अमेरिगो वेसपुच्ची
वाली बात पर ही भरोसा किया जाता है.
ई-बुक्स क्या हैं?
ई-बुक्स (इलेक्ट्रॉनिक
पुस्तक) का अर्थ है डिजिटल रुप में पुस्तक. ई-पुस्तकें और पत्रिकाएं कागज पर छपी
होने के बजाय डिजिटल फाइल के रुप में होती हैं. इन्हें पढ़ने के लिए ई-बुक रीडर्स
या ई-बुक डिवाइसेज़ भी उपलब्ध हैं. इन्हें कम्प्यूटर, मोबाइल एवं अन्य डिजिटल यंत्रों पर भी पढ़ा जा सकता है.
इन्हें इन्टरनेट पर भी छापा, बांटा या पढ़ा जा सकता
है. इंटरनेट के मार्फत ई-बुक्स पढ़ने की सुविधा देने वाली व्यवस्थाओं में 1971 से चल रहा प्रोजेक्ट गुटेनबर्ग सबसे अग्रणी है. ये
पुस्तकें कई फाइल फॉर्मेट में होती हैं जिनमें पीडीऍफ (पोर्टेबल डॉक्यूमेण्ट
फॉर्मेट), ऍक्सपीऍस आदि शामिल हैं, इनमें पीडीऍफ सर्वाधिक प्रचलित फॉर्मेट है. धीरे-धीरे
पारंपरिक किताबों और पुस्तकालयों के स्थान पर पुस्तकों के नए रूप जैसे ऑडियो
पुस्तकें, मोबाइल टेलीफोन पुस्तकें, ई-पुस्तकें आदि उपलब्ध हों रही हैं.
ई-पुस्तकों को
पढ़ने के लिए उपकरण अलग से भी उपलब्ध हैं. इनमें अमेजन.कॉम का किण्डल तथा ऐपल का आईपैड
शामिल है. पाइ एक अन्य उपकरण है. नई-पुरानी किताबों सहित कई तरह की सामग्री इसमें
ऑनलाइन स्टोर कर सकते हैं. मोबाइल के लिए एडोबी रीडर लाइट उपलब्ध है.
मीडियम वेव और
शॉर्ट वेव रेडियो तरंगे क्या होती हैं?
रेडियो तरंगें एक
प्रकार का इलेक्ट्रो-मैग्नेटिक रेडिएशन है. ये तरंगें पूरे ब्रह्मांड की यात्रा
करती हैं. आप जिन रेडियो तरंगों की बात कर रहे हैं वे कृत्रिम रूप से तैयार की गई
तरंगें हैं. इनका इस्तेमाल रेडियो-टीवी प्रसारण, मोबाइल फोन, नेवीगेशन, उपग्रह संचार, कम्प्यूटर नेटवर्क, सर्जरी और अन्य चिकित्सा
से लेकर माइक्रोवेव अवन तक में होता है. इन तरंगों को कई तरह की फ्रीक्वेंसी में
इस्तेमाल किया जाता है. मीडियम वेव आमतौर पर 526.5 से 1606.5 किलोहर्ट्ज़ की फ्रीक्वेंसी में होती हैं. ये तरंगें धरती
की गोलाई के साथ घूम जाती हैं और अयन मंडल से गुज़र सकती हैं. इस लिहाज़ से ये
स्थानीय से लेकर एक महाद्वीपीय प्रसारण तक के लिए उपयोगी हैं. शॉर्ट वेव इनसे काफी
ऊँची फ्रीक्वेंसी पर काम करती हैं. 3000 से 30000 किलोहर्ट्ज़ तक. मीडियम वेव के मुकाबले ये काफी लम्बी दूरी
तक प्रसारण में उपयोगी हैं. लांग वेव प्रसारण भी सम्भव है. अमेरिका और यूरोप में
होता भी है. मोटे तौर पर 535 किलोहर्ट्ज़ से नीची
फ्रीक्वेंसी प्रसारण को लांग वेव प्रसारण कहते हैं. कई देशों की नौसेनाएं
पनडुब्बियों से सम्पर्क के लिए 50 किलोहर्ट्ज़ से नीचे की
फ्रीक्वेंसी का इस्तेमाल करती हैं.
आपकी ब्लॉग पोस्ट को आज की ब्लॉग बुलेटिन प्रस्तुति विश्व जनसंख्या दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। सादर ... अभिनन्दन।।
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