Monday, February 6, 2017

‘ज्ञ’ का सही उच्चारण क्या है?

‘ज्ञ’ का सही उच्चारण क्या है? (ज्ञान/ग्यान/ज्यान)

अमर परमार, त-14, अंबेडकर कॉलोनी, कुन्हाड़ी, कोटा-324008 (राज.)

हिन्दी व्याकरण के शुरुआती विद्वान कामता प्रसाद गुरु के अनुसार हिन्दी में ‘ज्ञ’ का उच्चारण बहुधा ‘ग्यँ’ के सदृश होता है। मराठी लोग इसका उच्चारण ‘द्न्यँ’ के समान करते हैं। पर इसका उच्चारण प्रायः ‘ज्यँ’ के समान है। श्याम सुन्दर दास के ‘हिंदी शब्दसागर’ में ‘ज्ञ’ की परिभाषा में कहा गया है, ज और ञ के संयोग से बना हुआ संयुक्त अक्षर। केंद्रीय हिंदी निदेशालय ने जो मानक वर्तनी तैयार की है उसमें देवनागरी वर्णमाला के लिए उच्चारणों को स्पष्ट करते हुए कहा है, “क्ष, त्र, ज्ञ और श्र भले ही वर्णमाला में दिए जाते हैं किंतु ये एकल व्यंजन नहीं हैं। वस्तुत : ये क्रमशः: क् + ष, त् + र, ज् + ञ और श् + र के व्यंजन – संयोग हैं।” इसके अनुसार ‘ज्ञ’ को ज् + ञ का संयोग माना जाए।

इंटरनेट पर इस विषय पर बहस चलती रहती है। विज्ञान के साथ हिंदी और संस्कृत के विदवान योगेन्द्र जोशी के अनुसार, आम तौर पर हिंदीभाषी इसे ‘ग्य’ बोलते हैं, जो अशुद्ध किंतु सर्वस्वीकृत है। तदनुसार इसे रोमन में gya लिखा जाएगा जैसा आम तौर पर देखने को मिलता है। दक्षिण भारत (jna) तथा महाराष्ट्र (dnya) में स्थिति कुछ भिन्न है। संस्कृत के अनुसार होना क्या चाहिए यदि इसका उत्तर दिया जाना हो तो किंचित् गंभीर विचारणा की आवश्यकता होगी। उन्होंने लिखा है, मेरी टिप्पणी वरदाचार्यरचित ‘लघुसिद्धांतकौमुदी’ और स्वतः अर्जित संस्कृत ज्ञान पर आधारित है। मेरी जानकारी के अनुसार ‘ज्ञ’ केवल संस्कृत मूल के शब्दों/पदों में प्रयुक्त होता है। मेरे अनुमान से ऐसे शब्द/पद शायद हैं ही नहीं, जिनमें ‘ञ’ स्वतंत्र रूप से प्रयुक्त हो।...‘ज्ञ’ वस्तुतः ‘ज’ एवं ‘ञ’ का संयुक्ताक्षर है। ये दोनों संस्कृत व्यंजन वर्णमाला के ‘चवर्ग’ के क्रमशः तृतीय एवं पंचम वर्ण हैं। जानकारी होने के बावजूद मेरे मुख से ‘ज्ञ’ का सही उच्चारण नहीं निकल पाता है। पिछले पांच दशकों से ‘ग्य’ का जो उच्चारण जबान से चिपक चुका है उससे छुटकारा नहीं मिल पा रहा है। आपको हिंदी शब्दकोशों में ‘ज्ञ’ से बनने वाले शब्द प्रायः ‘ज’ के बाद मिलेंगे।

हिन्दी भाषा के विवेचन पर लिखने वाले अजित वडनेरकर के अनुसार देवनागरी के ‘ज्ञ’ वर्ण ने अपने उच्चारण का महत्व खो दिया है। मराठी में यह ग+न+य का योग हो कर ग्न्य सुनाई पड़ती है तो महाराष्ट्र के ही कई हिस्सों में इसका उच्चारण द+न+य अर्थात् द्न्य भी है। गुजराती में ग+न यानी ग्न है तो संस्कृत में ज+ञ के मेल से बनने वाली ध्वनि है। दरअसल इसी ध्वनि के लिए मनीषियों ने देवनागरी लिपि में ज्ञ संकेताक्षर बनाया मगर सही उच्चारण बिना समूचे हिन्दी क्षेत्र में इसे ग+य अर्थात ग्य के रूप में बोला जाता है। ज+ञ के उच्चार के आधार पर ज्ञान शब्द से जान अर्थात जानकारी, जानना जैसे शब्दों की व्युत्पत्ति हुई। अनजान शब्द उर्दू का जान पड़ता है मगर वहां भी यह हिन्दी के प्रभाव में चलने लगा है। मूलतः यह हिन्दी के जान यानी ज्ञान से ही बना है जिसमें संस्कृत का अन् उपसर्ग लगा है। प्राचीन भारोपीय भाषा परिवार की धातु gno का ग्रीक रूप भी ग्नो ही रहा मगर लैटिन में बना gnoscere और फिर अंग्रेजी में ‘ग’ की जगह ‘क’ ने ले और gno का रूप हो गया know हो गया। बाद में नॉलेज जैसे कई अन्य शब्द भी बने। रूसी का ज्नान (जानना), अंग्रेजी का नोन (ज्ञात) और ग्रीक भाषा के गिग्नोस्को (जानना),ग्नोतॉस(ज्ञान) और ग्नोसिस (ज्ञान) एक ही समूह के सदस्य हैं। गौर करें हिन्दी-संस्कृत के ज्ञान शब्द से इन विजातीय शब्दों के अर्थ और ध्वनि साम्य पर।

विश्व हिन्दी सम्मेलन एवं अंतरराष्ट्रीय हिन्दी सम्मेलन में क्या अंतर है तथा इनका संचालन किस प्रकार होता है?

ऊषा गुप्ता, महाराजा रेजीडेंसी, फ्लैट नं.-102, बिचूरकर की गोठ, चावड़ी बाजार, ग्वालियर-474001 (म.प्र.)

विश्व हिन्दी सम्मेलन हिन्दी भाषा का सबसे बड़ा अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन है, जिसे भारत सरकार का समर्थन भी प्राप्त है। अंतरराष्ट्रीय हिन्दी सम्मेलन के दो अर्थ हैं। एक अर्थ में कोई भी सम्मेलन जो हिन्दी के संदर्भ में हो और उसका स्वरूप अंतरराष्ट्रीय हो तो उसे अंतरराष्ट्रीय हिन्दी सम्मेलन कहा जा सकता है। पर संगठनात्मक दृष्टि से पिछले तीन साल से अमेरिका में एक अंतरराष्ट्रीय हिन्दी सम्मेलन हो रहा है, जिसने स्थायी रूप ग्रहण कर लिया है। यह सम्मेलन सबसे पहले अप्रैल 2014 न्यूयॉर्क विवि में हुआ था। उसके बाद अप्रैल 2015 और मई 2016 में रटजर्स विवि, न्यूजर्सी में दूसरे और तीसरे सम्मेलन का आयोजन हुआ।

विश्व भर से हिन्दी विद्वान, साहित्यकार, पत्रकार, भाषा विज्ञानी, विषय विशेषज्ञ तथा हिन्दी प्रेमी विश्व हिन्दी सम्मेलन में जुटते हैं। आचार्य विनोबा भावे की प्रेरणा से शुरू हुए इस सम्मेलन को कई राज्य सरकारों और भारत सरकार का सहयोग प्राप्त है। सन 1975 में विश्व हिन्दी सम्मेलनों की शृंखला शुरू हुई। इस बारे में पूर्व प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गांधी ने पहल की थी। पहला विश्व हिन्दी सम्मेलन राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के सहयोग से नागपुर में हुआ जिसमें विनोबा भावे ने अपना सन्देश भेजा। शुरू में इस सम्मेलन की समयावधि स्थिर नहीं थी। कुछ समय बाद इसे हरेक चौथे साल में आयोजित करने की कोशिश की गई। अब हर तीन साल बाद आयोजित करने का प्रयास है। सितम्बर 2015 में दसवाँ विश्व हिन्दी सम्मेलन भोपाल में हुआ था। ये सम्मेलन मॉरिशस, नई दिल्ली, फिर मॉरिशस, त्रिनिडाड व टोबेगो, लन्दन, सूरीनाम, न्यूयॉर्क और जोहानेसबर्ग और भोपाल में हो चुके हैं।

1975 में नागपुर में आयोजित प्रथम विश्व हिन्दी सम्मेलन के दौरान मॉरिशस के तत्कालीन प्रधानमंत्री सर शिवसागर रामगुलाम ने विश्व स्तर पर हिन्दी सम्बद्ध गतिविधियों के समन्वयन के लिए एक संस्था की स्थापना का विचार रखा। विचार ने मंतव्य का रूप धारण किया और लगातार कई विश्व हिन्दी सम्मेलनों में मंथन के बाद मॉरिशस में विश्व हिंदी सचिवालय स्थापित करने पर भारत और मॉरिशस सरकारों के बीच सहमति हुई। दोनों सरकारों के बीच समझौते पर हस्ताक्षर किए गए तथा मॉरिशस की विधान सभा में अधिनियम पारित किया गया। 11 फ़रवरी, 2008 को विश्व हिंदी सचिवालय ने आधिकारिक रूप से काम शुरू किया। सचिवालय का मुख्य उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय भाषा के रूप में हिन्दी का प्रचार करना तथा हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषा बनाने के लिए एक वैश्विक मंच तैयार करना है।

(कादम्बिनी के सितम्बर 2016 के अंक में उपरोक्त उत्तर छपने के बाद मुझे श्री जयप्रकाश मानस का यह फेसबुक संदेश मिलाः-
जोशी जी नमस्कार. आपका उत्तर पढ़ा अंतरराष्ट्रीय हिन्दी सम्मेलन के बारे में ....इसके अलावा 'अंतरराष्ट्रीय हिन्दी सम्मेलन' 13 देशों में हो चुका है, इस सम्मेलन के पहले मनोनीत अध्यक्ष डॉ. सुप्रसिद्ध गीतकार बुद्धिनाथ मिश्र थे, वर्तमान अध्यक्ष हैं सुप्रसिद्ध आलोचक डॉ. खगेन्द्र ठाकुर, उपाध्यक्ष द्वय अशोक माहेश्वरी (दिल्ली) व डॉ. रंजना अरगड़े (गुजरात विवि) मैं समन्वयक. देश विदेश के हज़ारों रचनाकार, प्रोफेसर, शोधार्थी, हिन्दी सेवी आदि सदस्य हैं . आपकी सहज जानकारी के लिए :अगला यानी 13 वाँ सम्मेलन बाली/इंडोनेशिया में 2 से 9 फरवरी 2017 तक हो रहा है... आप भी सहभागिता हेतु आमंत्रित हैं.) यह अतिरिक्त जानकारी मैं यहाँ दे रहा हूँ।

Rx (आरएक्स) यह चिह्न-निशान किस बात का है, इसका क्या आशय है? यह निशान अक्सर डॉक्टर क्यों बनाते हैं?

मुहम्मद आसिफ सिद्दीकी, शिक्षामित्र, मलेसेमऊ, गोमती नगर, लखनऊ-226010

दरअसल यह निशान Rx (आरएक्स) नहीं होता बल्कि R की अंतिम रेखा को आगे बढ़ाते हुए उसपर क्रॉस लगाकर ℞ बनता है। आमतौर पर माना जाता है कि यह लैटिन शब्द रेसिपी का निशान है। यानी डॉक्टरी हिदायत की इलाज के लिए इस तरह लें। कुछ लोग इसे यूनानी जुपिटर के चिह्न जियस के रूप में लेते हैं।

कादम्बिनी के सितम्बर 2016 के अंक में प्रकाशित

3 comments:

  1. बहुत अच्छी जानकारी ..

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  2. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन http://bulletinofblog.blogspot.in/2017/02/kavi-pradeep-102th-birthannversary.html में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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  3. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन जन्मदिवस : कवि प्रदीप और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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