आर्थिक समीक्षा भारत सरकार के
वित्त मंत्रालय का फ्लैगशिप वार्षिक दस्तावेज होता है. इसे देश की अर्थव्यवस्था पर
बजट पूर्व रिपोर्ट कार्ड भी कहा जा सकता है. देश की पहली आर्थिक समीक्षा सन 1950
में पेश की गई थी. सन 1964 के पहले तक इसे बजट के साथ ही रखा जाता था. सन 1964 से इसे
हर साल आम बजट से एक दिन रखे जाने की परंपरा शुरू हुई. इसे केंद्रीय वित्तमंत्री
संसद में पेश करते हैं.
इसमें गुजरे 12 महीनों में भारतीय
अर्थव्यवस्था में आए घटनाक्रमों की समीक्षा होती है, प्रमुख विकास कार्यक्रमों के
निष्पादन का सार होता है और सरकार की नीतिगत पहलों तथा अल्पावधि से मध्यावधि में
अर्थव्यवस्था की संभावनाओं पर रोशनी डाली जाती है. यह रिपोर्ट निम्नांकित मामलों
का सिंहावलोकन करती है: आर्थिक दृष्टिकोण, संभावनाएं और नीतिगत चुनौतियां और
राजकोषीय रूपरेखा. यह दस्तावेज नीति निर्धारकों, अर्थशास्त्रियों, नीति विश्लेषकों, व्यवसायियों, सरकारी एजेंसियों, छात्रों, अनुसंधानकर्ताओं, मीडिया तथा भारतीय
अर्थव्यवस्था के विकास में रुचि रखने वालों के लिए उपयोगी होता है.
बजट को बजट क्यों कहते हैं?
'बजट' शब्द ब्रिटिश संसद से आया है. सन 1733 में जब ब्रिटिश प्रधानमंत्री एवं वित्त मंत्री (चांसलर ऑफ एक्सचेकर) रॉबर्ट वॉलपोल संसद में देश की माली हालत का लेखा-जोखा पेश करने आए, तो अपना भाषण और उससे संबद्ध दस्तावेज चमड़े के
एक बैग (थैले) में रखकर लाए. चमड़े के बैग को फ्रेंच भाषा में
बुजेट कहा जाता है. बस, इसीलिए इस परंपरा को पहले
बुजेट और फिर कालांतर में बजट कहा जाने लगा. जब वित्त मंत्री चमड़े के बैग में
दस्तावेज लेकर वार्षिक लेखा-जोखा पेश करने सदन में पहुंचते तो सांसद कहते-'बजट खोलिए,
देखें इसमें क्या है.' या 'अब वित्त मंत्री जी अपना बजट खोलें.' इस तरह 'बजट' नामकरण साल दर साल मजबूत होता गया
भारत का पहला बजट कब और
किसने पेश किया?
देश का पहला बजट 26 नवंबर 1947 को
आरके शण्मुगम चेट्टी ने पेश किया था. वे देश के पहले वित्तमंत्री थे और इस पद पर
सन 1949 तक रहे.
बजट का हलवा समारोह
क्या होता है?
यह बजट दस्तावेजों की छपाई से पहले
की एक रस्म है. भारत में हर शुभ काम मीठे के साथ शुरू होता है, वैसा ही इसके साथ
है. परंपरा के मुताबिक हलवा खुद वित्त मंत्री बजट से जुड़े सभी लोगों को बांटते
हैं. इस रस्म के तहत एक बड़ी सी कढ़ाई में हलवा तैयार किया जाता है जिसे मंत्रालय
के सभी कर्मचारियों के बीच बांटा जाता है. हलवा बांटे जाने के बाद मंत्रालय के
ज्यादातर अधिकारियों और कर्मचारियों को मंत्रालय में ही पूरी दुनिया से कट कर रहना
होता है. हलवा समारोह के बाद ‘लॉक इन’ बजट तैयार करने की प्रक्रिया को गोपनीय रखने
के लिए ऐसा किया जाता है. ये वे कर्मचारी बजट बनाने से लेकर उसकी छपाई तक की
प्रक्रिया से जुड़े होते हैं. लोकसभा में बजट पेश किए जाने तक ये कर्मचारी अपने
परिवार से फोन पर भी संपर्क नहीं कर सकते. इस रस्म के बाद मंत्रालय के केवल
वरिष्ठतम अधिकारी ही अपने घर जा पाते हैं. इस साल हलवा समारोह 19 जनवरी को हुआ.
मिर्च से मुँह क्यों जलता है?
वैज्ञानिकों का मानना है कि इसके तीखेपन के पीछे ‘कैपसाईपिनोइड’ पदार्थ है जो मिर्च
को फफूंद से बचाता है. मिर्च में अमीनो एसिड, एस्कॉर्बिक एसिड, फॉलिक एसिड, सिट्रिक एसिड, ग्लीसरिक एसिड, मैलिक एसिड जैसे कई
तत्व होते हैं जो हमारे स्वास्थ्य के साथ–साथ शरीर की त्वचा के लिए
भी काफी फायदेमंद होते हैं.
रेलगाड़ी या बस में चलते हुए बिजली के तार
ऊपर-नीचे होते क्यों लगते है?
तार अपनी जगह पर ही होते हैं. पर धरती की सतह पर वे समान
ऊँचाई पर नहीं होते. सामान्य स्थिति में या धीरे-धीरे चलने पर हमें उनके उतार-चढ़ाव
का ज्ञान नहीं हो पाता. हम तेज गति से चलते हैं तो उन तारों का ऊँच नीच हमें तेजी
से दिखाई पड़ता है.
जानवरों के कलर ब्लाइंड होने का मतलब क्या है?
जो देखता है उसे कोई न कोई रंग तो दीखता ही है. इसलिए कलर
ब्लाइंड का मतलब है कुछ जानवरों को सारी चीजें एक रंग में या दो रंगों में नजर आती
हैं. चमगादड़ को ध्वनि की तरंगे बेहतर तरीके से समझ आती है. पर वे कलर ब्लाइंड
होते हैं. बंदरों में तीन रंग देखने की क्षमता होती है. इंसान एक करोड़ तक रंगों
को अलग-अलग पहचान सकता है. कुछ तो इससे ज्यादा रंगों का भेद कर पाते हैं. कुछ
पक्षियों में रंग देखने की बेहतरीन क्षमता होती है वे अल्ट्रा वॉयलेट रंग भी देख
लेते हैं.
क्या चीटियाँ अंधी और साँप बहरे होते हैं?
चींटियों की कई प्रजातियाँ होती हैं. सभी पूरी तरह दृष्टिहीन
नहीं होतीं. उनकी आँख होती है, पर ज्यादातर की नजर कमजोर होती है. ऑस्ट्रेलिया में
मिलने वाली बुलडॉग चींटी की नजर खासी अच्छी होती है. जमीन के नीचे ही रहने वाली
कुछ चींटियाँ पूरी तरह अंधी भी होती हैं. दरअसल उनका काम देखे बगैर चल जाता है.
साँप के बाहरी कान नहीं होते. पर वे जमीन पर पैदा होने वाली तरंगों को ग्रहण करते
हैं. पानी के अंदर रहने वाले साँप पानी के मार्फत तरंगों को ग्रहण करते हैं.
प्रभात खबर अवसर में प्रकाशित
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ब्लॉग बुलेटिन - भारत कोकिला से हिन्दी ब्लॉग कोकिला और विश्व रेडियो दिवस में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 16-02-2017 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2594 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद