मैराथन दुनिया में सबसे लम्बी दूरी की दौड़ है.
आधिकारिक रूप से इसकी लम्बाई 42.195 किलोमीटर (26 मील 385 गज) होती है. सामान्यतः
यह सड़क पर होने वाली दौड़ है, जिसका छोटा सा हिस्सा ही स्टेडियम के भीतर होता है.
सन 1896 में जब आधुनिक ओलिम्पिक खेल शुरू हुए तब मैराथन दौड़ भी उसका हिस्सा थी.
पर उस वक्त इसकी लम्बाई का मानकीकरण नहीं हुआ था. इसकी लम्बाई का निर्धारण सन 1921
में हुआ.
दुनिया में आज 800 से ज्यादा ऐसी मैराथन
प्रतियोगिताएं होती हैं, जो किसी न किसी रूप में खेल संघों से सम्बद्ध होती हैं.
इन्हें स्वास्थ्य तथा अन्य सामाजिक जागरूकता कार्यक्रमों से भी जोड़ा जाता है. इनमें
सैकड़ों और कई बार हजारों शौकिया धावक भी हिस्सा लेते हैं. तमाम लोग इस दौड़ के
छोटे से हिस्से को ही पूरा करते हैं. कई जगह हाफ मैराथन भी होती हैं.
आधुनिक युग में मैराथन दौड़ यूनान की एक दंतकथा
से प्रेरित है. इसकी कहानी फ़ेडिप्पिडिस नामक यूनानी धावक से जुड़ी है. दंतकथा के
अनुसार फ़ेडिप्पिडिस एक हरकारा था, जिसे मैराथन से एथेंस यह घोषित करने के लिए
भेजा गया था कि मैराथन के युद्ध में (जिसमें वह खुद भी लड़ रहा था) फारसियों की
पराजय हो गई है. यह ई.पू. 490 के अगस्त या सितंबर की घटना है. कहा जाता है कि फ़ेडिप्पिडिस
पूरे रास्ते पर बिना रुके दौड़ा और फिर सभा में प्रवेश करके बोला नेनिकेकामेन, ‘हम जीत गए.’ और
फिर वह गिर पड़ा और मर गया.
मैराथन से एथेंस की दौड़ का पहला वृत्तांत
प्लूटार्क की एथेंस कीर्ति में मिलता है, जो
पहली सदी में लिखी गई थी और हेराक्लाइडस पॉण्टिकस की लुप्त कृति को संदर्भित करते
हुए धावक का नाम एर्चियस या यूक्लस का थेर्सिपस बताया गया था. एक और लेखक समोसाता
के लूशियन (दूसरी सदी) ने भी इस कथा को लिखा है, पर धावक का नाम फ़ेलिप्पिडिस बताया
है, फ़ेडिप्पिडिस नहीं। बहरहाल यह किंवदंती है. इसका ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है. यूनानी-फ़ारसी
युद्धों के प्रमुख स्रोत, यूनानी इतिहासकार हैरोडोटस, फ़ेडिप्पिडिस को एक हरकारे के रूप में वर्णित करते हैं जो मदद का
संदेश लेकर एथेंस से स्पार्टा और वापस गए, एक
तरफ से यह दूरी 240 किलोमीटर (150 मील) से भी ज़्यादा है.
भारोत्तोलन की दो तकनीकें
भारोत्तोलन प्रतियोगिता में ताक़त और तकनीक की
परीक्षा होती है. इसमें प्रतियोगियों के भार के हिसाब से कई वर्ग बनाए जाते हैं. मुक्केबाज़ी, कुश्ती
और जूडो, कराते और भारोत्तोलन जैसी प्रतियोगिताओं में खिलाड़ियों के शरीर का
वज़न भी महत्वपूर्ण होता है. इसलिए इनमें खिलाड़ियों को अलग-अलग वज़न के आधार पर
वर्गीकृत करते हैं. ऊँचे दर्जे के भारोत्तोलक अपने वज़न से तीन गुना ज़्यादा तक
भार उठा लेते हैं.
इन दिनों हो रहे कॉमनवैल्थ खेल में भारत की
मीराबाई चानू ने 48 किलो वर्ग में भाग लेते हुए कुल 196 किलोग्राम भार उठाया. यह
भार दो बार में अलग-अलग तकनीकों के तहत उठाया गया था. भारोत्तोलन में प्रतियोगी को
दो तरह की तकनीकों से भार उठाने के लिए कहा जाता है. पहली तकनीक है स्नैच, जिसमें भार को सीधे एकबारगी सिर के ऊपर तक उठाना होता है. दूसरी
तकनीक क्लीन एंड जर्क कहलाती है. इसमें भार को दो चरणों में सिर के ऊपर तक उठाना
होता है. सफलतापूर्वक भार उठाने के लिए भारोत्तोलक के हाथ सिर के ऊपर तक जाने
चाहिए और शरीर का सीधा रहना जरूरी होता है. हर भारोत्तोलक को भार उठाने के लिए तीन
अवसर मिलते हैं.
कहाँ और कब बनी पहली कार?
हालांकि शुरू में भाप से चलने वाली गाड़ियाँ
बनी थीं, पर इंटरनल कॉम्बुशन इंजन से चलने वाली पहली कार सन 1870 में
ऑस्ट्रिया के वियना शहर में सिग्फ्राइड मार्कस ने तैयार की. वह गैसोलीन से चलती थी.
इसे फर्स्ट मार्कस कार कहते हैं. मार्कस ने ही 1888 में सेकंड मार्कस कार तैयार की
जिसमें कई तरह के सुधार किए गए थे. इस बीच जर्मनी के मैनहाइम में कार्ल बेंज ने सन
1885 में तैयार की.
नॉटिकल मील क्या होता है?
नॉटिकल मील का इस्तेमाल आमतौर पर समुद्री और
हवाई नेवीगेशन में होता है. लम्बाई के हिसाब से यह करीब 1852 मीटर या 6076 फुट होता
है. सागर और आकाश के नेवीगेशन में आमतौर पर अक्षांश-देशांतर का इस्तेमाल होता है.
भूमध्य रेखा और उससे उत्तर या दक्षिण में इसकी दूरी में मामूली फर्क भी आता रहता
है.
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन डॉ. भीमराव अंबेडकर और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
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