Thursday, December 26, 2019

सीडीएस क्या है?


इस साल स्वतंत्रता दिवस के अपने उद्बोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की थी कि देश की सेनाओं के नेतृत्व को प्रभावशाली बनाने और उनके बीच बेहतर समन्वय के लिए शीघ्र ही चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) की नियुक्ति की जाएगी. सेना के सभी अंगों के बीच समन्वय की महत्वपूर्ण भूमिका होती है. माना जाता है कि जिन देशों में यह पद होता है, वहाँ की सेनाओं के बीच आपसी प्रतिद्वंद्विता नहीं होती है. खासतौर से युद्ध के समय उसकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है. अमेरिका में चेयरमैन जॉइंट चीफ्स ऑफ स्टाफ कमेटी (सीजेसीएससी) ऐसा ही पद है. इस पद पर नियुक्त अधिकारी को वरिष्ठतम सेनाधिकारी माना जाता है और वह राष्ट्रपति का सलाहकार होता है. अमेरिका में सेना की सर्वोच्च संस्था जॉइंट चीफ्स ऑफ स्टाफ कमेटी (जेसीएससी) होती है, जिसमें थलसेना, वायुसेना, नौसेना, मैरीन कोर और नेशनल गार्ड के अध्यक्ष इस कमेटी के सदस्य होते हैं. सीजेसीएससी इसके प्रमुख होने के नाते मुख्य सैनिक सलाहकार होते हैं, पर वे विभिन्न थिएटरों के ऑपरेशनल प्राधिकारी नहीं होते. सेनाओं को निर्देश देने का अधिकार राष्ट्रपति के पास ही होता है. भारत में उसके समतुल्य चेयरमैन चीफ्स ऑफ स्टाफ कमेटी (सीओएससी) का पद है, पर वह पर्याप्त अधिकार संपन्न नहीं है.
इसकी जरूरत क्यों?
सन 1999 में करगिल युद्ध के बाद रक्षा विशेषज्ञ के सुब्रह्मण्यम की अध्यक्षता में एक समीक्षा समिति बनाई गई थी, जिसने 2000 में दाखिल अपनी रिपोर्ट में पाँच सितारा अधिकारी के रूप में सीडीएस की नियुक्ति का सुझाव दिया गया था. हालांकि तब उसकी नियुक्ति तो नहीं हुई थी, पर 23 नवंबर, 2001 को इंटीग्रेटेड डिफेंस स्टाफ (आईडीएस) की स्थापना हो गई थी, पर सीडीएस की नियुक्ति का मामला टलता रहा. प्रधानमंत्री और रक्षामंत्री तक सीधे संपर्क में रहने वाले सैनिक अधिकारी की नियुक्ति को लेकर देश के नागरिक प्रशासन के मन में झिझक थी. इसके अलावा भी कई और संदेह थे. सन 2011 में तत्कालीन सरकार ने सुरक्षा मामलों को लेकर नरेश चंद्रा कमेटी का गठन किया. इस कमेटी ने भी 2012 की अपनी रिपोर्ट में सीडीएस की नियुक्ति का सुझाव दिया. फिर लेफ्टिनेंट जनरल डीबी शेकतकर कमेटी (2016) ने भी इसी आशय की सलाह दी.
कब होगी नियुक्ति?
भारतीय सेना के सह-प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल मनोज मुकुंद नरवाने इस महीने के अंत में जनरल बिपिन रावत से सेनाध्यक्ष का कार्यभार संभालेंगे, जो 31 दिसंबर को सेवानिवृत्त हो रहे हैं. इस नियुक्ति के बाद संभावना है कि सीडीएस की नियुक्ति होगी। इस पद के लिए निवृत्तमान सेनाध्यक्ष जनरल बिपिन रावत का नाम लिया जा रहा है। उपयुक्त पात्र का चयन करने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल की अध्यक्षता में एक कार्यान्वयन समिति का गठन किया था, जिसे सीडीएस पद की भूमिका, उसकी नियुक्ति और उससे जुड़ी अन्य बातों को परिभाषित करने का काम दिया गया था. इस समिति ने अपनी सिफारिशें रक्षा मामलों से संबद्ध कैबिनेट कमेटी (सीसीएस) को सौंप दी हैं.



Saturday, December 21, 2019

चंद्रमा पर कितने व्यक्ति पैर रख चुके हैं?


काफी लोगों को यह पता है कि चंद्रमा पर पैर रखने वाले पहले व्यक्ति थे अमेरिका के नील आर्मस्ट्रांग, पर यह बात कम लोग जानते हैं कि अब तक कुल 12 लोग चंद्रमा की सतह पर पैर रख चुके हैं। ये सभी लोग अमेरिकी हैं और उनकी ये यात्राएं अपोलो कार्यक्रम के अंतर्गत जुलाई 1969 से दिसंबर 1972 तक हुईं थीं। चंद्रमा पर उतरते वक्त इन अंतरिक्ष-यात्रियों में एलन शेपर्ड सबसे ज्यादा उम्रदार थे, जो 47 साल की उम्र में चंद्रमा पर उतरे थे। चार्ल्स ड्यूक 36 साल 221 दिन के थे, जब वे चंद्रमा पर उतरे। चंद्रमा की यात्रा करने वाले 12 यात्रियों में से चार्ल्स ड्यूक, बज एल्ड्रिन, डेविड स्कॉट और हैरिसन श्मिट अभी जीवित हैं। इन 12 यात्रियों की पूरी सूची इस प्रकार हैः-
1.नील आर्मस्ट्रांग, 2.बज एल्ड्रिन. 3.चार्ल्स पीट, 4.एलन बीन, 5.एलन शेपर्ड, 6.एडगर मिशेल, 7.डेविड स्कॉट, 8.जेम्स इरविन, 9.जॉन यंग, 10.चार्ल्स ड्यूक, 11.जीन सर्नन, 12.हैरिसन श्मिट।

संरा सदस्य देशों की संख्या कितनी है?
संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों की संख्या इस समय 193 है। इन सभी देशों को संरा महासभा में बराबरी का दर्जा मला हुआ है। किसी भी नए उस देश को सदस्यता दी जा सकती है, जो सम्प्रभुता सम्पन्न हो। इस सदस्यता के लिए संरा महासभा के अलावा सुरक्षा परिषद की अनुमति की जरूरत भी होती है। सदस्य देशों के अलावा संरा महासभा में पर्यवेक्षक के रूप में देशों को आमंत्रित किया जा सकता है। इस समय होली सी (वैटिकन) और फलस्तीन दो संरा पर्यवेक्षक हैं। पर्यवेक्षक महासभा की बैठकों में भाग लेने के अलावा अपने विचार व्यक्त कर सकते हैं, पर मतदान में भाग नहीं ले सकते।
ऑक्सीजन की खोज किसने की?
ऑक्सीजन का किसी ने आविष्कार नहीं किया है, बल्कि यह वातावरण में उपस्थित महत्वपूर्ण गैस है। अलबत्ता इसे रासायनिक तरीके से प्राप्त करने का काम सबसे पहले 1772 में स्वीडन के वैज्ञानिक कार्ल विल्हेम शीले ने किया था। इसे हिंदी में प्राणवायु भी कहते हैं। वायु में क़रीब 21% मात्रा ऑक्सीजन की होती है। हवा के अलावा ऑक्सीजन पृथ्वी के अनेक दूसरे पदार्थों में भी रहती है। जैसे पानी में। कई प्रकार के ऑक्साइडों जैसे पारा, चाँदी आदि अथवा डाई ऑक्साइडों लैड, मैंगनीज में। फ्रांसीसी वैज्ञानिक अंतों लैवोइजियर ने सन 1777 में इसे ऑक्सीजन नाम दिया।
रेफ्रिजरेटर में कौन सी गैस डाली जाती है?
रेफ्रिजरेशन यानी फ्रिज और एयरकंडीशनरों में आमतौर पर फ्लुओरोकार्बंस, खासतौर से क्लोरोफ्लुओरोकार्बंस का इस्तेमाल होता था इन्हें सीएफसी गैस कहा जाता है। इनका इस्तेमाल बंद हो गया है ये गैसें ओज़ोन परत को नुकसान पहुँचाती हैं अब हाइड्रोफ्लुओरोकार्बंस या एचएफसी का इस्तेमाल होने लगा है, जो शायद कम नुकसान पहुँचाती हैं पर ज्यादातर ग्रीनहाउस गैसें जलवायु में परिवर्तन और धरती को गरम बनाती हैं इन गैसों का उत्सर्जन एयरकंडीशनर, फ्रिज, कंप्यूटर, स्कूटर, कार आदि से है
सौरमंडल के ग्रहों और सूर्य के द्रव्यमान का अनुपात क्या है?
पूरे सौरमंडल का 99.86 प्रतिशत द्रव्यमान सूर्य में है यानी शेष सभी ग्रह और उनके चन्द्रमा और उल्का पिंड मिलाकर 0.14 प्रतिशत हैं उसके इसी द्रव्यमान के कारण उसकी गुरुत्व शक्ति है कि सारे ग्रह उसके चारों ओर घूमते हैं












Thursday, December 19, 2019

फास्टैग क्या है?


फास्टैग भारत का इलेक्ट्रॉनिक टोल कलेक्शन सिस्टम है. दुनिया के अलग-अलग देशों में टोल कलेक्शन की इलेक्ट्रॉनिक प्रणालियाँ हैं. फास्टैग का संचालन राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) करता है. यह सिस्टम इस साल 15 दिसंबर से पूरे देश में लागू हो गया है. इस प्रकार एनएचएआई के अधीन काम करने वाले सभी 560 टोल प्लाजा इसके अंतर्गत आ गए हैं. इसकी शुरुआत 4 नवम्बर 2014 में अहमदाबाद और मुम्बई के बीच स्वर्ण चतुर्भुज राजमार्ग पर हुई थी. जुलाई 2015 में चेन्नई-बेंगलुरु राजमार्ग के टोल प्लाजा इसके सहारे भुगतान को स्वीकार करने लगे. इसके कारण अब राजमार्गों पर बने टोल प्लाजा काउंटरों के सामने लाइनें लगना बंद हो जाएगा. सरकार ने सभी वाहन स्वामियों के लिए फास्टैग अनिवार्य कर दिया है. फास्टैग को अमेज़न डॉट इन के अलावा बैंकों से खरीदा जा सकता है. पिछले कुछ समय से देश में बिकने वाले नए वाहनों में फास्टैग पहले से लगा होता है. शुरुआत में टोल प्लाजा पर एक लेन ऐसी भी होगी, जिसमें नकद भुगतान स्वीकार किया जा सकेगा. फास्टैग वाहन पर नहीं लगाएंगे, तो ऐसे वाहनों को टोल प्लाजा पर सिर्फ एक लेन से गुजरने की अनुमति मिलेगी और उन्हें जाम से जूझना पड़ सकता है.  
यह कैसे काम करता है?
यह रेडियो फ्रीक्वेंसी आइडैंटिफ़िकेशन (आरएफआईडी) तकनीक पर काम करने वाली प्रणाली है. यह वैसी ही प्रणाली है, जो मेट्रो ट्रेन के स्मार्ट यात्रा-कार्ड में होती है. यह ऐसी व्यवस्था है, जिसमें वाहन स्वामी टोल प्लाजा पर या तो अपने किसी प्रीपेड या सेविंग्स बैंक खाते से भुगतान करता है. यह वाहन के विंड स्क्रीन पर लगा होता है, जिसके कारण टोल प्लाजा पर उसे रुककर भुगतान नहीं करना होता है और इलेक्ट्रॉनिक भुगतान हो जाता है. जनवरी 2019 में इंडियन ऑयल, भारत पेट्रोलियम और हिंदुस्तान पेट्रोलियम जैसी कंपनियों ने पेट्रोल पम्पों पर फास्टैग के मार्फत पेट्रोल खरीदने की व्यवस्था भी कर दी थी.
पैसा कहाँ से आएगा?
फास्टैग पेटीएम या ऐसे ही किसी वॉलेट से या डैबिट/क्रेडिट कार्ड से जुड़ा होता है. वाहन के स्वामी को रिचार्ज या टॉप अप करना पड़ता है. यदि यह एकाउंट किसी बचत खाते से जुड़ा है, तो उसके खाते से पैसा खुद ब खुद कट जाएगा, पर खाते में इतना पैसा होना चाहिए कि वह कम न पड़े. जैसे ही वाहन टोल प्लाजा पर करेगा वाहन स्वामी के पास पैसा कटने का एसएमएस आएगा. बैंकों के अलावा राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण की ओर से जारी फास्टैग भी उपलब्ध हैं. शुरुआती दिनों में फास्टैग कई तरह के कैशबैक और छूट भी दे रहे हैं. फास्टैग खरीदने के लिए वाहन के रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट की एक कॉपी और वाहन स्वामी के पासपोर्ट साइज के फोटो की जरूरत होती है. इसके अलावा केवाईसी दस्तावेज के रूप में आईडी और एड्रेस प्रूफ की जरूरत होगी. इसके लिए पैन कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस, पासपोर्ट, वोटर आईडी, आधार काम करेंगे.

Saturday, December 14, 2019

डेटा संरक्षण बिल क्या है?


केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार 4 दिसम्बर को व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक-2019 को अपनी मंजूरी दे दी. यह विधेयक संसद में पेश किया जाएगा. संभव है कि इन पंक्तियों के प्रकाशित होने तक पेश कर दिया गया हो. विधेयक के पास हो जाने के बाद भारतीय विदेशी कंपनियों को व्यक्तियों के बारे में प्राप्त व्यक्तिगत जानकारियों के इस्तेमाल को लेकर कुछ मर्यादाओं का पालन करना होगा. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने 2017 में प्राइवेसी को मौलिक अधिकार घोषित किया था, पर अभी तक देश में व्यक्तिगत सूचनाओं के बारे में कोई नियम नहीं है. यह विधेयक एक उच्चस्तरीय समिति की सिफारिशों के आधार पर तैयार किया गया था. इस समिति की अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस बीएन श्रीकृष्ण ने की थी. विधेयक के महत्व को समझने के पहले सूचनाओं के महत्व को समझना भी जरूरी होगा. जैसे-जैसे इंटरनेट का विस्तार हो रहा है और जीवन में उसकी भूमिका बढ़ रही है, वैसे-वैसे जीवन में सुविधाओं और सहूलियतों के साथ-साथ कई तरह की पेचीदगियाँ भी बढ़ रही हैं. हालांकि देशों ने इंटरनेट के इस्तेमाल को अपने-अपने तरीके से नियंत्रित किया है, पर इसपर हम विश्व-नागरिक के रूप में भ्रमण करते हैं, इसलिए इसकी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय परिधियों पर भी विचार करना होगा. साथ ही हमें गूगल जैसे सर्च इंजनों की दुविधाओं को भी समझना होगा, जिनका कार्यक्षेत्र पूरा विश्व है.
कानून में क्या है?
यह कानून पास हो जाने के बाद कम्पनियों को कुछ समय इसके लिए दिया जाएगा, ताकि वे अपनी व्यवस्थाएं कर सकें. इस विधेयक में संवेदनशील डेटा, वित्तीय डेटा, स्वास्थ्य डेटा, आधिकारिक पहचान, लैंगिक रुझान, धार्मिक या जातीय डेटा, बायोमीट्रिक डेटा तथा अनुवांशिकी डेटा जैसी जानकारियों को परिभाषित किया गया है. कंपनियों के लिए ये जरूरी नहीं होगा कि वे तमाम तरह के निजी डेटा को भारत में ही स्टोर और प्रोसेस करें. संवेदनशील और क्रिटिकल निजी डेटा को लेकर भौगोलिक बंदिशों का प्रावधान बिल में है. यानी किस प्रकार की सूचनाओं को देश के बाहर भी प्रोसेस किया जा सकता है और किस प्रकार के बेहद महत्वपूर्ण डेटा को केवल देश में ही प्रोसेस किया जा सकता है.
सोशल मीडिया पर असर?
देश के टेक्नोलॉजी उद्योग ने इस विधेयक पर खुशी भी जाहिर की है और अपने अंदेशे भी जाहिर किए हैं. विधेयक में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों पर यूजर्स के स्वैच्छिक वैरीफिकेशन का प्रस्ताव किया है. साथ ही कंपनियों से कहा है कि वे अपने गोपनीय डेटा की जानकारी सरकार को दें. वैरीफिकेशन की जरूरत सोशल मीडिया को और ज्यादा जिम्मेदार बनाने के लिए है. उससे जुड़ी कंपनियों से कहा जाएगा कि वे ऐसी व्यवस्थाएं बनाएं, जिसमें यूजर्स खुद ही वैरीफाई करें और जो खुद को वैरीफाई नहीं करें, उनकी पहचान अलग कर दी जाए. इससे फेक एकाउंटों का पहचान हो सकेगी.


Sunday, December 8, 2019

कंप्यूटर डिवाइस को माउस क्यों कहते हैं?


माउस का आविष्कार अमेरिकी वैज्ञानिक डगलस एंजेलबार्ट (Douglas Engelbart)  ने 1963 में किया था। यह आविष्कार की-बोर्ड युक्त पर्सनल कंप्यूटर के 1977 में हुए आविष्कार के काफी पहले हो गया। शुरू में एंजेलबार्ट ने इसके साथ लगा कॉर्ड इसके पीछे लगायाजिसके कारण वह दुमदार चूहे जैसा लगने लगा। हालांकि बाद में कॉर्ड को आगे लगा दिया गया और अब तो बगैर कॉर्ड वाले माउस आ रहे हैंपर इसे माउस कहना शुरू हुआ तो चलता ही रहा।

भारतीय सिनेमा में पहला डबल रोल?
भारतीय सिनेमा में डबल रोल वाली फिल्म थी सन 1917 में बनी दादा साहेब फाल्के की लंका दहन। इसे इस साल सौ साल पूरे हो गए हैं। अन्ना सालुंके ने इस फिल्म में राम और सीता दोनों के रोल किए थे। दादा साहेब फ़िल्म में सीता के किरदार के लिए किसी महिला कलाकार की तलाश कर रहे थे, लेकिन उस ज़माने में महिलाओं का फ़िल्मों में काम करना बुरा समझा जाता था। सालुंके इससे पहले उनकी फिल्म राजा हरिश्चंद्र में तारामती का किरदार निभा चुके थे। उस किरदार से उनकी लोकप्रियता इतनी बढ़ गई थी कि फाल्के साहब को उन्हें सीता के रूप में कास्ट करना ही पड़ा।
नैनो टेक्नोलॉजी क्या है?
नैनो टेक्नोलॉजी का मतलब है पदार्थ की संरचना के एटॉमिकमॉलीक्यूलर और सुपर मॉलीक्यूलर जैसे बारीक स्तर पर काम करके मैक्रो यानी बड़े स्तर की संरचनाओं को तैयार करना। यानी कि 1 से 100 नैनोमीटर तक की संरचना पर काम करना। पहले आपको एक नैनोमीटर के आकार को समझना होगा। एक नैनोमीटर एक मीटर का एक अरबवाँ अंश यानी कि 0।000000001 मीटर होता है।
शीशे के एक कंचे या गोली को एक नैनोमीटर मानें तो उसके मुकाबले पृथ्वी एक मीटर होगी। डीएनए की चौड़ाई करीबन 2 एनएम होती है। जीव जगत की सबसे छोटी कोशिकाओंमैकोप्लास्मा जीवाणु का आकार करीब 200 एनएम है। प्रकृति के सूक्ष्मतम परिवेश में जाने के लिए और चिकित्सा, रसायन, भौतिकी और खगोल विज्ञान में आगे बढ़ने के लिए प्रकृति के इतने सूक्ष्म स्वरूप में हस्तक्षेप करने की जरूरत है।
नेल पॉलिश नाखून में लगते ही क्यों सूख जाती है?
यह गुण नेल पॉलिश के तरल सॉल्वेंट का है। जब यह शीशी के भीतर होती है, तब यह सॉल्वेंट बाहरी दबाव के कारण उड़ता नहीं है। नाखून में लगते ही यह सॉल्वेंट उड़ जाता है।
नारियल के भीतर पानी कहाँ से आता है?
आपने देखा होगा कि नारियल के पेड़ सागर तट से कुछ दूर ज्वार-भाटा क्षेत्र के बाहर होते हैं। ऐसे इलाकों में जमीन के नीचे काफी पानी होता है। यह पानी खारा नहीं होता। ऑस्मॉसिस की क्रिया के माध्यम से पेड़ की जड़ों से यह पानी शिखर तक जाता है। पानी में यदि नमक होता भी है तो वह इस प्रक्रिया में फिल्टर हो जाता है। नारियल के फल में पानी पहुँचने की इस प्रक्रिया को भ्रूणपोष (एंडोस्पर्म) कहते हैं। प्रकृति ने यह व्यवस्था हर तरह के फलों में की है।
माँस-पेशियों में खिंचाव क्यों?
आपने फुटबॉल, क्रिकेट और हॉकी के मैदान में अकसर खिलाड़ियों को माँस-पेशियों के खिंचाव से परेशान देखा होगा। इसकी वजह है माँस-पेशियों की सहन-सीमा का खत्म होना। यह खिंचाव मसल या उसे हड्डी से जोड़ने वाले टेंडंस में होता है। इसके कई स्तर होते हैं। अक्सर मसल के फाइबर को पहुँची क्षति काफी जल्दी दूर हो जाती है, पर कई बार उसे ठीक होने में कई दिन भी लगते हैं। 





Friday, December 6, 2019

विश्व की सबसे पुरानी मैगज़ीन कौन सी है?


जनवरी सन 1731 में लंदन से प्रकाशित जेंटलमैंस मैगज़ीन को दुनिया की सबसे पुरानी मैगजीन मान सकते हैं। मैगज़ीन शब्द की शुरूआत ही इसने की। यह पत्रिका सन 1922 तक चली। अलबत्ता सन 1939 में प्रकाशित स्कॉट्स मैगज़ीन को दुनिया की ऐसी सबसे पुरानी मैगजीन कह सकते हैं जो आज भी प्रकाशित हो रही है। यह ग्लैसगो से प्रकाशित होती है।
मिट्टी का तेल क्या है?
केरोसीन को मिट्टी का तेल कहने के पीछे एकमात्र कारण यह समझ में आता है कि यह ज़मीन के नीचे से निकाला जाता है। यह एक तरल खनिज है जिसका मुख्य उपयोग दीप, स्टोव और ट्रैक्टरों में जलाने में होता है। औषधियों में घोल के रूप में, उद्योग धंधों में, प्राकृतिक गैस से पैट्रोल निकालने में तथा अवशोषक तेल के रूप में भी इसका व्यवहार होता है। केरोसीन कच्चे पेट्रोलियम का ही अंश है। इसमें पैराफिन, नैफ्थीन और सौरभिक हाइड्रोकार्बन रहता है। इसका भौतिक और रासायनिक गुण उपस्थित हाइड्रोकार्बनों के अनुपात, संघटन और क्वथनांक पर निर्भर करता है। कच्चे केरोसीन में सौरभिक हाइड्रोकार्बन (40 प्रतिशत तक) ऑक्सीजन, गंधक और नाइट्रोजन के कुछ यौगिक रहते हैं।
दिल्ली एनसीआर क्या है?
दिल्ली को कई तरह से जाना जाता है। एक है दिल्ली का केन्द्र शासित क्षेत्र। दूसरा है एनसीटी यानी नेशनल कैपिटल टेरीटरी। यह दिल्ली शहर की भौगोलिक सीमा है। तीसरा है एनसीआर नेशनल कैपिटल रीज़न। इसके अंतर्गत पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और राजस्थान के कुछ इलाके एनसीआर में शामिल किए गए हैं। सन 1962 में जब दिल्ली का पहला मास्टर प्लान जारी हो रहा था तब इसकी अवधारणा तैयार की गई थी। इसका उद्देश्य था कि दिल्ली के इर्द-गिर्द शहरीकरण किया जाए ताकि दिल्ली पर दबाव न पड़े। इस समय एनसीआर क्षेत्र की आबादी 2करोड़ 21 लाख के ऊपर है। सन 1985 में नेशनल कैपिटल रीजन प्लानिंग बोर्ड अधिनियम पास किया गया, जिसके तहत इसे कानूनी रूप दिया गया।
दुनिया की सबसे बड़ी जेल?
अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर की जेल रिकर्स आयलैंड दुनिया की सबसे बड़ी जेल है। वस्तुतः यह एक अलग द्वीप ही है।  इसमें 14,000 कैदियों के रहने की व्यवस्था है, जिनकी देख-रेख के लिए 9000 अधिकारी और 1500 सिविलियन कर्मचारी काम करते हैं। इसकी तुलना आप दिल्ली की तिहाड़ जेल से कर सकते हैं, जहाँ 6000 कैदियों के रहने की व्यवस्था है, पर मजबूरी में 12000 के आसपास रहते हैं। जहाँ तक भारत की जेलों का सवाल है, सबसे पुरानी जेल प्राचीन राजाओं के काल में रहीं होंगी। अलबत्ता आज मौजूदा जेलों में सबसे पुरानी चेन्नई की केन्द्रीय जेल है जो सन 1837 में शुरू हुई थी।





विश्व रेडियो दिवस कब मनाते हैं?


3 नवंबर, 2011 को स्पेन के प्रस्ताव पर यूनेस्को ने 13 फरवरी को विश्व रेडियो दिवस घोषित किया। 13 फरवरी 2012 को दुनियाभर में प्रथम विश्व रेडियो दिवस मनाया गया। यूनेस्को ने सबसे पहले विश्व-स्तर पर रेडियो दिवस मनाने की शुरुआत की थी। यूनेस्को के पेरिस स्थित मुख्यालय में इस अवसर पर विशेष समारोह का आयोजन किया गया है। दुनिया की प्रमुख रेडियो प्रसारण कम्पनियों को इस समारोह में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया है। शिक्षा के प्रसार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सार्वजनिक बहस में रेडियो की भूमिका को रेखांकित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र शैक्षणिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) ने पहली बार 13 फरवरी 2012 को विश्व रेडियो दिवस के रूप में मनाया। दरअसल 13 फरवरी 1946 को संयुक्त राष्ट्र रेडियो का प्रसारण शुरू हुआ था। उसी आधार पर यूनेस्को ने विश्व रेडियो दिवस मनाने का फैसला किया।
रेडियो शब्द का क्या अर्थ है?
रेडियो की उत्पत्ति लैटिन शब्द ‘रेडियस’ से हुई है, जिसका मतलब यानी अर्थ ‘रे’ यानी तरंग है। इस शब्द को 20वीं शताब्दी में अन्य वायरलेस तकनीक से रेडियो को अलग करने के लिए उपयोग में लाया गया। शुरू में इसे रेडियो कंडक्टर कहा गया। इस शब्द का प्रयोग फ्रांसीसी भौतिक शास्त्री एडुवार ब्रैनली ने सबसे पहले 1897 में किया। इसे क्रिया रेडिएट से लिया गया। लैटिन में रेडियस का मतलब होता है पहिए की तीली, रोशनी की लहर, तरंग यानी रे।
एफएम और एएम रेडियो में क्या अंतर है?
एफएम का अर्थ है फ्रीक्वेंसी मॉड्यूलेशन और एएम का मतलब है एम्प्लीट्यूड मॉड्यूलेशन। एएम तकनीक उन्नीसवीं सदी में तैयार की गई थी, जबकि एफएम तकनीक का विकास 1930 के दशक में हुआ। एएम में बाहरी असर से आवाज में फर्क पड़ सकता है। इसमें बैकग्राउंड का शोर काफी होता है। एफएम में ऐसा नहीं होता। अलबत्ता एफएम सिग्नल को भौतिक रुकावट प्रभावित करती है। 
आँसू गैस क्या है?
टियर गैस या आँसू गैस ऐसे रसायनों से बनती है जो आँखों की कॉर्नियल नर्व को उत्तेजित करते हैं जिससे आँखों में तेजी से पानी बहने लगे। इन तत्वों को ओसी, सीएस, सीआर, और सीएन यानी फिनेसाइल क्लोराइट कहते हैं। यह आँखों की म्यूकस मैम्ब्रेन को उत्तेजित करने के अलावा, नाक, मुँह और फेफड़ों पर भी असर करती है। इसका उद्देश्य होता है थोड़ी देर के लिए व्यक्ति को परेशान कर देना। आप जानते ही हैं कि इसका इस्तेमाल दंगे-फसाद को नियंत्रण में लाने के लिए होता है। ये तत्व हमारी आंखों, नाक, मुँह और फेफड़ों की झिल्लियों को उत्तेजित करती हैं जिसकी वजह से आंसू निकलने लगते हैं और हम छींकने और खांसने पर मजबूर कर देते हैं।
सबसे लंबी उम्र और सबसे कम उम्र वाले जीव?
जापानी मछली कोई 250 साल तक, विशाल कछुआ (जाइंट टर्टल) पौने दो सौ से दो सौ साल तक, ह्वेल मछली दो सौ साल तक जीती है। मे फ्लाई नाम की मक्खी की उम्र 24 घंटे होती है। इसी तरह जल में रहने वाले एक नन्हें प्राणी गैस्ट्रोटिच की उम्र होती है तीन दिन।





दुनिया का चक्कर लगाने वाला पहला व्यक्ति?


पुर्तगाली नाविक फर्दिनांद मैगलन को पहली बार दुनिया का चक्कर लगाने का श्रेय दिया जाता है। हालांकि उसके साथ कुछ और लोग भी थे, पर टीम लीडर के रूप में उसका नाम ही लिया जाता है। यों उसने यह चक्कर भी पूरा नहीं किया और रास्ते में उसकी हत्या कर दी गई। पर उसने मुख्य यात्रा-पथ पूरा कर लिया था। मैगलन और उनकी टीम 20 सितंबर 1519 को स्पेन के राजा के आदेश से 'मसाला द्वीप' (मलेशिया का मलुकु द्वीप) का पश्चिम से होकर रास्ता खोजने के लिए निकली थी। इस टीम में 250 नाविक थे। ये लोग यूरोप से अमेरिका होकर प्रशांत महासागर पार करके पूर्वी एशिया में आए थे।
पैसिफिक महासागर नाम मैगलन ने ही रखा था। गंतव्य तक पहुँचने के पहले इस दल का संघर्ष फिलीपाइंस में स्थानीय लोगों से हुआ, जिसमें 27 अप्रैल 1521 को मैगलन मारा गया। उसकी मौत के बावजूद यह टीम यात्रा पूरी करके मसाला द्वीप तक पहुँची। 6 सितंबर 1522 को इस टीम के बचे-खुचे 17 सदस्य स्पेन पहुँचे। इन्होंने दुनिया का पहला चक्कर लगाया, हालांकि उनका इरादा ऐसा रिकॉर्ड बनाने का नहीं था।
संख्याओं को अरेबिक न्यूमरल क्यों कहते हैं?
इन्हें गलती से अरबी अंक कहा गया और यह परंपरा चली आ रही है। वस्तुतः इन्हें भारतीय अंक कहा जा सकता है, क्योंकि इन अंकों का निर्धारण प्राचीन भारत में हुआ था। चूंकि नौवीं सदी तक ज्यादातर भारतीय ज्ञान दुनिया को अरब देशों के मार्फत था, इसलिए यह मान लिया गया कि ये संख्याएं अरबी हैं। ईसवी सन 830 के आसपास फारसी गणितज्ञ अल-ख्वारिज्मी ने इस अंक पद्धति का इस्तेमाल किया। उन्हें यह जानकारी अरब देशों से मिली थी, इसलिए उन्होंने इन्हें अरबी अंक लिखा।
अरब लोग इन अंकों को ‘हिंदसा’ यानी भारतीय कहते थे। धीरे-धीरे इस पद्धति ने रोमन पद्धति की जगह ली। रोमन अंक पद्धति होती है VI, VII, IX, X, L,C वगैरह। ऐसे में संख्याएं लिखने के लिए बहुत ज्यादा जगह चाहिए और उन्हें पढ़ना भी बहुत कठिन होता है। प्राचीन भारतीय गणितज्ञों ने करीब 2000 साल पहले दाशमिक पद्धति का आविष्कार कर दिया था।
सागर कितना गहरा होता है?
समुद्रों की गहराई अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग होती है। सारी दुनिया के सागरों की औसत गहराई 12,100 फुट है। इसकी तुलना सबसे ऊँचे पर्वत शिखर से करें जिसकी ऊँचाई 29,029 फुट है। दुनिया में सबसे गहरा सागर पश्चिमी प्रशांत महासागर के मैरियाना ट्रेंच में है, जिसे चैलेंजर डीप कहा जाता है। इसकी गहराई को सबसे पहले 1875 में ब्रिटिश पोत एचएमएस चैलेंजर के नाविकों ने नापा था। यह गहराई 35,755 से लेकर 35,814 फुट (10,898 से लेकर 10,916 मीटर) के बीच है।


जेपीजी और पीएनजी इमेज में क्या फर्क है?


बुनियादी फर्क उनके फॉर्मेट का है, जिसके कारण पीएनजी (पोर्टेबल नेटवर्क ग्राफिक्स) को जब कॉम्प्रेस करते हैं तो डेटा लॉस नहीं होता। यानी चित्र में कुछ फर्क आ जाता है, भले ही उसे आप आसानी से देख न पाएं। इसके विपरीत जेपीजी (जॉइंट फोटोग्राफिक एक्सपर्ट ग्रुप) में कुछ फर्क आ जाता है, पर जटिल चित्रों को भी कॉम्प्रेस करने में जेपीजी ज्यादा कुशल है। 

द्रोणाचार्य पुरस्कार कब शुरू हुए? 

खेल के मैदान में प्रशिक्षकों का यह सबसे बड़ा भारतीय पुरस्कार है। यह हर साल दिया जाता है। पहले द्रोणाचार्य पुरस्कार सन 1985 में भालचंद्र भास्कर भागवत (कुश्ती), ओम प्रकाश भारद्वाज (बॉक्सिंग) और ओएम नाम्बियार (एथलेटिक्स) को दिए गए।

शिक्षक दिवस 5 सितंबर को मनाना कब से शुरू हुआ? 

सन 1962 में डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन राष्ट्रपति बने। उस साल उनके कुछ छात्र और मित्र 5 सितम्बर को उनके जन्मदिन का समारोह मनाने के बाबत गए। इस पर डॉ राधाकृष्णन ने कहा, मेरा जन्मदिन यदि शिक्षक दिवस के रूप में मनाओ तो बेहतर होगा। मैं शिक्षकों के योगदान की ओर समाज का ध्यान खींचना चाहता हूँ। और तब से 5 सितम्बर शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। इस भारतीय परंपरा के अलावा संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन युनेस्को ने सन 1994 में निर्णय किया कि हर साल 5 अक्टूबर को विश्व अध्यापक दिवस मनाया जाएगा। तबसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विश्व अध्यापक दिवस मनाया जा रहा है।

दुनिया के पहले एटम बम का कोड नाम क्या था?

पहला एटम बम यानी जिस बम का पहला परीक्षण किया गया। उसका नाम था ‘ट्रिनिटी।’ इसका विस्फोट 16 जुलाई 1945 को अमेरिका की सेना ने सुबह 5.29 बजे किया। 6 अगस्त 1945 को जापान के हिरोशिमा शहर पर जो पहला बम गिराया गया था उसका नाम था ‘लिटिल बॉय।’ हिरोशिमा पर बमबारी के तीन दिन बाद 9 अगस्त को जापान के दूसरे शहर नगासाकी पर जो बम गिराया गया उसका नाम था ‘फैट मैन।’ इस बमबारी के बाद जापान ने 15 अगस्त 1945 को समर्पण की घोषणा कर दी।

शक संवत क्या है?

राष्ट्रीय शाके अथवा शक संवत भारत का राष्ट्रीय कैलेंडर है। इसका प्रारम्भ यह 78 वर्ष ईसा पूर्व माना जाता है। यह संवत भारतीय गणतंत्र का सरकारी तौर पर स्वीकृत अपना राष्ट्रीय संवत है। ईसवी सन 1957 (चैत्र 1, 1879 शक) को भारत सरकार ने इसे देश के राष्ट्रीय पंचांग के रूप में मान्यता प्रदान की थी। इसमें सौर गणना होती है। यानी महीना 30 दिन का होता है। इसे शालिवाहन संवत भी कहा जाता है। इसमें महीनों के नाम विक्रमी संवत जैसे ही हैं। इसके प्रथम माह (चैत्र) में 30 दिन हैं, जो अंग्रेजी लीप ईयर में 31 दिन हो जाते हैं। वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण एवं भाद्रपद में 31-31 दिन एवं शेष 6 मास में यानी आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ तथा फाल्गुन में 30-30 दिन होते हैं। 


संसद का ‘शून्यकाल’ क्या होता है? 

शून्यकाल भारतीय संसदीय व्यवस्था की देन है। आमतौर पर सदन में प्रश्न प्रहर खत्म होने के बाद शुरू होता है। इसमें कोई भी मामला उठाया जा सकता है। साठ के दशक से शुरू हुई यह व्यवस्था अब हमारी संसदीय व्यवस्था का महत्वपूर्ण अंग बन गई है। 













Thursday, December 5, 2019

जीडीपी और जीवीए क्या हैं?


ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट यानी सकल राष्ट्रीय उत्पाद का सूचकांक आर्थिक उत्पादन की जानकारी देता है. इसमें निजी खपत, अर्थव्यवस्था में सकल निवेश, सरकारी निवेश, सरकारी खर्च और शुद्ध विदेशी व्यापार (निर्यात और आयात का फर्क) शामिल होता है. पिछले कुछ वर्षों से आर्थिक विकास की दर के आकलन के लिए ग्रॉस वैल्यू एडेड (जीवीए) का इस्तेमाल होने लगा है. जीवीए से अर्थ-व्यवस्था के किसी खास अवधि में सकल आउटपुट और उससे होने वाली आय का पता लगता है. यानी इनपुट लागत और कच्चे माल का दाम निकालने के बाद कितने के सामान और सर्विसेज का उत्पादन हुआ. मोटे तौर पर जीडीपी में सब्सिडी और टैक्स निकालने के बाद जो आंकड़ा मिलता है, वह जीवीए होता है. जीवीए से उत्पादक यानी सप्लाई साइड से होने वाली आर्थिक गतिविधियों का पता चलता है जबकि जीडीपी में डिमांड या उपभोक्ता की नजर से तस्वीर नजर आती है. जरूरी नहीं कि दोनों ही आंकड़े एक से हों क्योंकि इन दोनों में नेट टैक्स के ट्रीटमेंट का फर्क होता है. उपादान लागत या स्थायी लागत (फैक्टर कॉस्ट) के आधार पर जीडीपी का मतलब होता है कि औद्योगिक गतिविधि में-वेतन, मुनाफे, किराए और पूँजी-यानी विभिन्न उपादान के मार्फत सकल प्राप्ति. इस लागत के अलावा उत्पादक अपने माल की बिक्री के पहले सम्पत्ति कर, स्टाम्प ड्यूटी और पंजीकरण शुल्क वगैरह भी देता है. जीडीपी में ये सब शामिल होते हैं, जीवीए में नहीं. जीवीए में वह लागत शामिल होती है, जो उत्पाद को बेचने के पहले लगी थी.
जीडीपी स्लोडाउन क्या है?
जीडीपी संवृद्धि दर में लगातार गिरावट को स्लोडाउन माना जा रहा है. गत 30 अगस्त को घोषित आंकड़ों के अनुसार इस वित्त वर्ष की पहली तिमाही यानी अप्रेल से जून के दौरान जीडीपी की दर घटकर 5 फीसदी हो गई थी. अब 29 नवम्बर को घोषित आँकड़ों के अनुसार दूसरी तिमाही (जुलाई, अगस्त, सितम्बर) में यह दर कम होकर 4.5 प्रतिशत हो गई है. दूसरी तिमाही में जीवीए की दर 4.3 फीसदी रही. इन दोनों तिमाहियों के आधार पर इस साल के पहले छह महीनों की औसत जीडीपी संवृद्धि दर 4.8 प्रतिशत है, जबकि पिछले वित्त वर्ष यानी 2018-19 में पहले छह महीनों की औसत दर 7.5 फीसदी थी.
इसे लेकर चिंता क्यों?
पिछली 26 तिमाहियों में यह सबसे कम दर है. इससे पहले जनवरी-मार्च 2012-13 की तिमाही में जीडीपी संवृद्धि की दर 4.3 प्रतिशत थी. देश की जीडीपी की औसत सालाना दर को 5.00 फीसदी बनाए रखने के लिए अगली दो तिमाहियों यानी छह महीने में औसत विकास दर 5.2 प्रतिशत रखनी होगी. अर्थशास्त्रियों के नजरिए से इस धीमी संवृद्धि की बड़ी वजह है ग्रामीण क्षेत्र की घटती माँग. कृषि उत्पादों की कम कीमतों और खेती के लगातार अलाभकारी होते जाने के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में उपभोक्ता सामग्री की माँग कम हुई है.



रेपो रेट क्या होता है?


रेपो रेट रिजर्व बैंक और अन्य बैंकों के बीच धनराशि के आदान-प्रदान पर दिए जाने वाले ब्याज की दर है। रिजर्व बैंक जब धनराशि देता है, वह दर रेपो और जब वह दूसरे बैंकों से लेता है तब रिवर्स रेपो दर कहलाती है। बाजार में मुद्रा की स्थिति को संतुलित बनाए रखने के लिए अक्सर रिजर्व बैंक और अन्य बैंकों के बीच यह आदान-प्रदान होता है।
स्विस बैंकों की क्या खास बात है?
मध्य युग से ही स्विस बैंक सूचनाओं को गोपनीय रखने के लिए प्रसिद्ध हैं। सन 1934 में इसके लिए यहाँ की संसद ने विशेष कानून भी बनाया। स्विट्ज़रलैंड पूरी तरह तटस्थ देश है। उसकी साख के कारण बैंकिंग कारोबार यहाँ अच्छा है। शुरुआत में बैंकिंग के बाबत स्विस कानून बनाते वक्त गोपनीयता पर जोर नहीं था, पर उस दिनों नाज़ी जर्मनी यहूदियों के बारे में जानकारियाँ लेकर उन्हें प्रताड़ित करते थे। इसी गोपनीयता के कारण दुनियाभर का काला पैसा भी यहाँ के बैंकों में जमा होने लगा है। अब वहाँ भी नियमों में बदलाव हो रहा है और काले धन की जानकारी वहाँ का बैंकिंग उद्योग देने को तैयार है।  
आंगनबाड़ी क्या हैं?
आंगनबाड़ी भारत में मातृ-शिशु स्वास्थ्य से जुड़ा एक सरकारी कार्यक्रम है। इसमें नवजात से लेकर छह साल तक के बच्चों की स्वास्थ्य-रक्षा के कार्य किए जाते हैं। यह कार्यक्रम 1975 में शुरू किया था। यह कार्यक्रम गाँवों में आंगनबाड़ी कार्यकर्ता की मदद से चलाया जाता है। कार्यकर्ताओं को चार महीने की ट्रेनिंग दी जाती है। अनुमान है कि देश में इस समय दस लाख से ज्यादा आंगनबाड़ी कार्यकर्ता काम कर रहीं हैं। 
चवन्नी किसे कहते हैं?
एक गणना पद्धति के अंतर्गत संख्याएं चार-आठ और सोलह में गिनी जाती थीं। हमारे देश में 1957 में दाशमिक पद्धति यानी सौ की पद्धति लागू हुई। तब रुपए में सौ पैसे और किलो में हजार ग्राम का चलन शुरू हुआ। उसके पहले रुपया सोलह आने का होता था। चौथाई रुपया चार आने का था। चार आने को बोलचाल की भाषा में चवन्नी कहते थे। चूंकि रुपए के मुकाबले चवन्नी छोटी होती थी, इसलिए क्षुद्रता के लिए मुहावरा बन गया, चवन्नी छाप।

बर्फ का टुकड़ा पानी में क्यों तैरता है?

आर्किमीडीज सिद्घांत के अनुसार कोई चीज पानी पर तब तैरती जब वह अपने वजन के बराबर पानी हटा देती है, लेकिन आपको जानकर आश्‍चर्य हाेेगा कि बर्फ पानी से हल्‍की होती है, इसे दूूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि जमने के बाद बर्फ ज्‍यादा जगह घेरती है, जिस कारण उसका बर्फ का घनत्‍व पानी के घनत्‍व से कम होता है, और यही वजह है कि बर्फ पानी पर तैरती रहती है।
भारत के सेंसर बोर्ड की स्थापना कब हुई?
केन्द्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड भारत सरकार की एक नियामक संस्था है। इसका कार्य फिल्मों, टीवी कार्यक्रमों तथा उनकी प्रचार सामग्री की समीक्षा करना है। देश के सिनेमाटोग्राफिक एक्ट 1952 के तहत यह संस्था काम करती है और फिल्मों के सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए प्रमाण पत्र देती है। बोर्ड का मुख्यालय मुम्बई में है, पर इसके नौ क्षेत्रीय कार्यालय भी हैं। सेंसर बोर्ड के पहले अध्यक्ष सीएस अग्रवाल थे, जो इस पद पर 15 जनवरी 1951 से 14 जून 1954 तक रहे। इन दिनों इसके अध्यक्ष प्रसून जोशी हैं।









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