नाम से स्पष्ट है कि युद्ध के दौरान दूसरे देश में पकड़े गए सैनिक को
युद्धबंदी कहते हैं. इनमें सेना से सम्बद्ध असैनिक कर्मी भी हो सकते हैं. प्राचीन
काल में इन बंदियों के जीवन और रिहाई की सम्भावनाएं बहुत कम होती थीं, उन्हें या
तो मार दिया जाता था या गुलाम बनाकर रखा जाता था. पर बीसवीं सदी आते-आते इस
सिलसिले में काफी बदलाव आए हैं. खासतौर से दूसरे विश्व युद्ध के बाद. अलबत्ता उन्नीसवीं सदी में इस विषय पर वैश्विक
सहमति बनाने के प्रयास शुरू हो गए थे. सन 1874 में रूस के ज़ार अलेक्जेंडर द्वितीय
की पहल पर यूरोप के 15 देशों के प्रतिनिधि ब्रसेल्स में एकत्र हुए और उन्होंने
युद्धों से जुड़े नियमों पर एक अंतरराष्ट्रीय संधि का प्रारूप तैयार किया.
अंतरराष्ट्रीय कानूनों का एक संस्थान बना, जिसके तहत 1880 में ऑक्सफोर्ड में इस
सिलसिले में एक मैनुअल तैयार किया गया. इसके बाद 1899 और 1907 में हेग में हुए दो
सम्मेलनों में नियमों को स्पष्ट किया गया.
जिनीवा संधि क्या है?
इन व्यवस्थाओं को और
दुरुस्त किया गया सन 1929 के जिनीवा सम्मेलन में. वस्तुतः चार महत्वपूर्ण जिनीवा
संधियों में युद्ध के ज्यादातर नियमों को स्वीकार किया गया था, इनमें भी 1949 की
तीसरी संधि सबसे महत्वपूर्ण है. तीसरी संधि के अनुच्छेद 4 में व्यवस्था है कि
गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को टॉर्चर नहीं किया जा सकता. साथ ही उस व्यक्ति को अपना
नाम, जन्मतिथि, रैंक और सर्विस नम्बर (यदि हो तो) से ज्यादा जानकारी देने के लिए
बाध्य नहीं किया जा सकता. ऐसे मौकों पर इंटरनेशनल कमेटी ऑफ द रेडक्रॉस मानवीय
प्रश्नों को देखती है और सहायता पहुँचाती है. पहले विश्वयुद्ध की समाप्ति होने तक
करीब 80 लाख सैनिकों ने समर्पण किया था. उस समय हेग सम्मेलनों के नियम ही लागू
होते थे. इनमें बड़ी संख्या में सैनिक मर गए. दूसरे विश्वयुद्ध में इससे भी बड़ी
संख्या में सैनिक युद्धबंदी बनाए गए. सन 1971 के युद्ध के बाद भारत ने पाकिस्तान
के 90,368 सैनिकों को युद्धबंदी बनाया था.
भारत-पाक संधि?
चूंकि भारत और पाकिस्तान के बीच इस वक्त कोई घोषित युद्ध नहीं था, इसलिए
उन्हें युद्धबंदी कहना भी ठीक नहीं होगा. भारत और पाकिस्तान की सीमा पर अक्सर इधर
या उधर के लोग भटक कर आ जाते हैं. इनमें औसतन तीन-चार सैनिक होते हैं. दोनों देशों
में जिनीवा संधि के अलावा अनौपचारिक सहमति है और ऐसे व्यक्ति ज्यादा से ज्यादा एक
हफ्ते में वापस अपने देश में भेज दिए जाते हैं. यों जिनीवा संधि के तहत इसकी कोई
समय सीमा तय नहीं है. सन 1999 में हुए
करगिल कांड के समय भारतीय वायुसेना के पायलट के नचिकेता इसी तरह पाकिस्तानी
क्षेत्र में पकड़े गए थे. उनकी वापसी आठ दिन में हो गई थी.
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 15/03/2019 की बुलेटिन, " गैरजिम्मेदार लोग और होली - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteसुंदर जानकारी दी है आपने ,धन्यवाद
ReplyDeleteबहुत सुंदर जानकारी विस्तार से दी आपने ।
ReplyDeleteसाभार।