देश में लम्बे समय से एक ऐसे प्राधिकार की
माँग की जा रही थी, जो भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों की जाँच करे. गत 17 मार्च को राष्ट्रपति
ने देश के पहले लोकपाल के रूप में पिनाकी चन्द्र घोष की नियुक्ति की है. सन 2011
में अन्ना हजारे के नेतृत्व में चले आंदोलन के बाद संसद ने सन 2013 में लोकपाल और
लोकायुक्त अधिनियम पास किया था. लोकपाल राष्ट्रीय स्तर के और लोकायुक्त की
नियुक्ति राज्य स्तर के मामलों के लिए की जानी है. सुप्रीम कोर्ट के पूर्व
न्यायाधीश पीसी घोष की नियुक्ति का निर्णय एक समिति ने किया, जिसमें प्रधानमंत्री
नरेन्द्र मोदी, भारत के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई और लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा
महाजन सदस्य थे. लोकपाल अधिनियम के अनुसार लोकपाल के अंतर्गत एक अध्यक्ष और अधिकतम
आठ सदस्यों की एक व्यवस्था होगी. इनमें आधे यानी चार न्यायिक सदस्य होंगे. इनके
अलावा एक सचिव, एक जाँच निदेशक और एक अभियोजन निदेशक होंगे.
अब इसके बाद क्या होगा?
अब सबसे पहले लोकपाल संगठन की स्थापना होगी.
इसकी दो मुख्य शाखाएं हैं. एक, जाँच शाखा और दूसरी अभियोजन शाखा. इनका
कार्यक्षेत्र भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 के तहत लोक-सेवकों पर लगे आरोपों की
जाँच करना और उनपर मुकदमा चलाना है. इन लोक-सेवकों में प्रधानमंत्री, मंत्री,
सांसद तथा केन्द्र सरकार के ए, बी, सी और डी वर्ग के कर्मचारी आते हैं. लोकपाल
अधिनियम ने कुछ मामलों में सीमाएं भी तय की हैं. मसलन प्रधानमंत्री के खिलाफ उन
मामलों की जाँच नहीं की जा सकेगी, जो अंतरराष्ट्रीय सम्बन्धों, आंतरिक और बाहरी
सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था, नाभिकीय ऊर्जा और अंतरिक्ष कार्यक्रम से जुड़े हैं.
प्रधानमंत्री के खिलाफ जाँच तबतक नहीं हो सकेगी, जबतक लोकपाल की पूरी बेंच उसकी
सुनवाई न करे और उसके कम से कम दो तिहाई सदस्यों की स्वीकृति न हो. प्रधानमंत्री
के खिलाफ जाँच (यदि हो तो) बंद कमरे में होगी और यदि लोकपाल शिकायत को खारिज करें,
तो जाँच से जुड़े रिकॉर्डों का न तो प्रकाशन होगा और न वे किसी को उपलब्ध होंगे. अधिनियम
के अनुसार लोकपाल के अपने सदस्य भी लोक-सेवक की परिभाषा में आएंगे.
राज्यों की व्यवस्था?
भारत में संघीय व्यवस्था है. लोकायुक्तों की
नियुक्ति राज्यों के अधीन होगी. अधिनियम के अनुसार राज्य विधानसभाएं इसके लिए कानून
बनाएंगी. कई राज्यों में लोकायुक्तों की नियुक्तियाँ हुईं हैं, पर बड़ी संख्या में
राज्यों ने अपने अधिनियम नहीं बनाए हैं. पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि
जम्मू-कश्मीर, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नगालैंड, पुदुच्चेरी, तमिलनाडु, तेलंगाना,
त्रिपुरा, पश्चिम बंगाल और अरुणाचल प्रदेश ने लोकायुक्तों की नियुक्ति नहीं की है.
अदालत ने इन राज्यों के मुख्य सचिवों से कहा था कि वे अदालत के सामने स्थिति की
जानकारी रखें. अरुणाचल प्रदेश और मिजोरम विधानसभाओं ने 2014 में लोकायुक्त विधेयक
पास कर दिए थे. पिछले साल सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और
पुदुच्चेरी विधानसभाओं ने भी अपने अधिनियम पास कर दिए. धीरे-धीरे नियुक्तियाँ की
जा रहीं हैं.
No comments:
Post a Comment