चुनावी बॉण्ड एक प्रकार की हुंडी हैं, जिन्हें वित्त विधेयक, 2017 के मार्फत देशी कम्पनियों द्वारा राजनीतिक दलों को चंदा देने के उद्देश्य से शुरू किया गया है. यह योजना 2 जनवरी, 2018 से लागू है. केवल वही राजनीतिक दल चुनावी बॉण्ड प्राप्त कर सकते हैं, जो जन प्रतिनिधित्व कानून, 1951 के अनुच्छेद 29ए के तहत पंजीकृत हों और जिन्होंने लोकसभा चुनाव या राज्य विधानसभा चुनाव में डाले गए वोटों के कम से कम एक प्रतिशत या ज्यादा वोट हासिल किए हों. इन्हें किसी राजनीतिक पार्टी द्वारा किसी अधिकृत बैंक खाते के माध्यम से ही भुनाया जा सकेगा. इन्हें हरेक वित्त वर्ष की हरेक तिमाही में दस दिन के एक खास निर्धारित समय में ही खरीदा जा सकता है. ये बॉण्ड 1,000, 10,000, एक लाख, दस लाख, एक करोड़ रुपये या इनकी गुणक राशि के रूप में खरीदे जा सकते हैं. राजनीतिक दलों को इन्हें प्राप्ति के 15 दिन के भीतर भुनाना होता है. इन बॉण्डों को खरीदारों को अपना पूरा परिचय देना होता है, पर राजनीतिक दलों को इस बात की जानकारी देने की जरूरत नहीं कि उन्हें किसने ये बॉण्ड दिए हैं.
इन्हें किसने चुनौती दी है?
सुप्रीम कोर्ट में सितम्बर, 2017 में पहली चुनौती एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स (एडीआर) ने चुनौती दी थी, फिर इसके बाद जनवरी, 2018 में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने भी इन्हें चुनौती दी. इनका कहना है कि इन बॉण्डों के साथ राजनीतिक दलों को कॉरपोरेट हाउसों से असीमित मात्रा में पैसा प्राप्त करने का रास्ता खुल गया है. इससे हमारे लोकतंत्र पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा. इन्होंने चार मुख्य आधारों पर चुनौती दी है. 1.सामान्य नागरिक को इस बात की जानकारी नहीं होगी कि किसने किस पार्टी को कितना धन दिया. 2.कम्पनियों के लाभ-हानि खाते में उन राजनीतिक दलों का नाम नहीं होगा, जिन्हें चंदा दिया गया है. 3.पहले कम्पनियों पर पिछले तीन वर्षों के शुद्ध लाभ के 7.5 फीसदी तक के चंदे की सीमा थी. अब कोई सीमा नहीं है. 4.ये बॉण्ड आयकर कानून की धारा 13ए के तहत आयकर से मुक्त हैं. देश के चुनाव आयोग ने भी इन बॉण्डों पर आपत्ति व्यक्त की है.
अदालत का फैसला क्या है?
सुप्रीम कोर्ट ने इन बॉण्डों पर स्थगनादेश नहीं दिया है. अलबत्ता गत 12 अप्रैल को इस मामले में सुनवाई पूरी होने के बाद अपने अंतरिम आदेश में सभी दलों से कहा है कि वे सीलबंद लिफाफे में इन बॉण्डों की पूरी जानकारी चुनाव आयोग को दें. कोर्ट ने कहा है कि सभी दलों को 15 मई तक मिले चुनावी चंदे की जानकारी देनी होगी. जानकारी सौंपने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 30 मई तक का समय निर्धारित किया है. अदालत के अनुसार इस महत्वपूर्ण विषय पर गहराई से जाकर विचार करना होगा.
प्रभात खबर अवसर में प्रकाशित
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