विश्व बैंक के अनुसार 2022 में जिस व्यक्ति की आय 2.15 डॉलर (लगभग 180 रुपये) प्रतिदिन से कम थी, वह गरीबी-रेखा के नीचे था। यह दुनिया का औसत है। यह परिभाषा समय और स्थान के साथ बदलती है। इसमें अब स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन-स्तर को भी शामिल किया जाता है। भारत की औसत गरीबी-रेखा गाँवों में प्रतिव्यक्ति 1,059.42 रुपये प्रतिमाह और शहरों में 1,286 रुपये है। यह राष्ट्रीय औसत है, जो राज्यों में अलग-अलग है। 2011-2012 में पुदुच्चेरी के गाँवों में यह 1,301 रुपये और शहरों में 1,309 रुपये थी, जबकि ओडिशा में क्रमशः 695 और 861 रुपये थी। स्वतंत्रता के बाद से अबतक छह समितियों ने इसपर विचार किया है। योजना आयोग कार्य समूह (1962), वी एम दांडेकर और एन रथ (1971), अलघ समिति (1979), लकड़ावाला समिति (1993), तेंदुलकर समिति (2009) और रंगराजन समिति (2014)। इस वर्ष फरवरी में नीति आयोग के मुख्य कार्याधिकारी बीवीआर सुब्रह्मण्यम ने 2022-23 के घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण (एचसीईएस) के आधार पर कहा कि अब पाँच प्रतिशत से भी कम भारतीय गरीबी रेखा से नीचे हैं।
राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में
21 सितंबर, 2024 को प्रकाशित
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