स्पेस स्टेशन उपग्रह हैं जो अंतरिक्ष में अनुसंधान के लिए बनाए गए हैं। पहला स्पेस स्टेशन सैल्यूत-1 था जिसे 1971 में सोवियत संघ ने छोड़ा था। इसे पहले धरती पर बनाया गया, फिर छोड़ा गया। अमेरिका का पहला स्टेशन ‘स्काईलैब’ था, जिसे ‘नासा’ ने 14 मई, 1973 को अंतरिक्ष में भेजा। 1977-78 में सौर लपटों से इसे नुकसान पहुँचा और जुलाई, 1979 में जलकर इसके अवशेष समुद्र में गिर गए। 1986 में सोवियत संघ ने ‘मीर’ स्टेशन भेजा, जिसने सन 2001 तक काम किया। वह मॉड्यूलर था, यानी कि इसका एक हिस्सा पहले भेजा गया, फिर धीरे-धीरे अंतरिक्ष में छोटे हिस्से सैटेलाइटों में रखकर भेजे गए और उन्हें जोड़कर बड़ा बनाया गया। अमेरिका ने 80 के दशक में ‘फ्रीडम’ नाम से मॉड्यूलर स्पेस स्टेशन भेजने की योजना बनाई थी, जो फलीभूत नहीं हुई। इसके बाद ‘इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन’ भेजा गया, जिसमें ‘नासा’ के साथ रूसी, जापानी, कनाडा और यूरोपियन स्पेस एजेंसियों ने मिलकर काम किया। इस समय चीन का स्टेशन ‘तियांगोंग’ भी कक्षा में है, जिसका पहला मॉड्यूल 29 अप्रैल 2021 को भेजा गया था। भारत ने भी 2035 तक स्पेस स्टेशन स्थापित करने की तैयारी की है।
राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में 22 मार्च, 2025 को प्रकाशित
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अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स के नौ महीने बाद धरती पर वापस लौट आने के साथ ही इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (आईएसएस) भी चर्चा में बना हुआ है. इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन का मिशन 2031 में ख़त्म हो जाएगा. आईएसएस 1998 में अपने प्रक्षेपण के बाद से स्पेस इंडस्ट्री की तरक्की का प्रतीक रहा है. पृथ्वी से लगभग 400-415 किलोमीटर की ऊँचाई पर मौजूद इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन 109 मीटर लंबा (एक फुटबॉल मैदान के आकार का) है और इसका वजन चार लाख किलोग्राम (400 टन और लगभग 80 अफ्रीकी हाथियों के बराबर) से अधिक है.
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