Monday, October 26, 2015

बन रहे हैं रात में रोशनी देने वाले या चमकने वाले पेड़-पौधे

कुछ समय पहले अमेरिका और हॉलैंड के कुछ वैज्ञानिकों ने चमकदार पौधे बनाने का अभियान शुरू किया है। वे कामयाब रहे तो जल्द ही दुनिया की सड़कों पर बिजली के खंभों के स्थान पर रोशनी देने वाले पेड़ नजर आएंगे। वैज्ञानिकों ने जुगनू और इस तरह के रात में चमकने वाले जीव-जंतुओं के जीन पौधों में डाल दिए हैं। वैज्ञानिकों टीम ने पहले जीनोम कंप्लायर सॉफ्टवेयर से पौधे के डीएनए की पहचान की। इसके बाद आर्बीडोपसिस पौधे में जीन मिलाए गए। पौधों में जगमग उत्पन्न करने वाले जीन सिमेंस को 'लुसिफेरास' कहते हैं। जुगनू में इसी जीन सिमेंस से रोशनी पैदा होती है। जुगनुओं, जेली फिश व कुछ बैक्टीरिया के जीन में 'लुसिफेरास' नामक प्रोटीन एन्जाइम होता है। वैज्ञानिकों ने पहले इन जीवों से तकनीक की सहायता से खास किस्म का प्रोटीन एन्जाइम हासिल किया। फिर जेनोम कम्पाइलर नामक सॉफ्टवेयर बनाकर यह जांचा गया कि पौधे इस जीन को ग्रहण कर पाएंगे या नहीं। इसके बाद कई पौधों पर प्रयोग कर किया। अंतत: कुछ ऐसे पौधे बनाने में सफलता मिली है जो रात में चमकते हैं। पेड़-पौधों के बाद वैज्ञानिक चमकने वाले पक्षी बनाने का प्रयास भी कर रहे हैं।

इसके बारे में कुछ और जानकारी यहाँ से हासिल करें http://www.iflscience.com/plants-and-animals/bioluminscent-trees-could-light-our-streets

ओलंपिक के झंडे में कितने रिंग होते हैं और क्यों होते हैं?
इन पुराने खेलों की परम्परा में आधुनिक खेलों को जन्म देने का श्रेय फ्रांस के शिक्षाशास्त्री पियरे द कूबर्तिन को जाता है। आज चार तरीके के ओलिम्पिक खेल होते हैं। एक गर्मियों के ओलिम्पिक, दूसरे सर्दियों के ओलिम्पिक, एक पैरालिम्पिक, यानी शारीरिक रूप विकल खिलाड़ियों के ओलिम्पिक और एक यूथ ओलिम्पिक। ओलिम्पिक खेलों का सूत्रवाक्य है सिटियस, एल्टियस, फोर्टियस। इन लैटिन शब्दों का अंग्रेजी में अर्थ है फास्टर, हायर एंड स्ट्रांगर। माने तीव्रतर, उच्चतर और दृढ़तर। यानी नई से नई सीमाएं पार करो।

ओलिम्पिक खेलों का प्रतीक चिह्न है पाँच रंगों के पाँच वृत्त जो एक-दूसरे से जुड़े हैं। सफेद पृष्ठभूमि पर नीले, पीले, काले, हरे और लाल रंग के पाँच वृत्त दुनिया के पाँच महाद्वीपों प्रतिनिधित्व भी करते हैं। इन वृत्तों की रचना स्वयं कूर्बतिन ने 1912 में की थी, पर इन्हें आधिकारिक रूप से ओलिम्पिक चिह्न बनाने में समय लगा और पहली बार 1920 के एंटवर्प खेलों में इन्हें ओलिम्पिक ध्वज में जगह मिली। इस झंडे को आज भी एंटवर्प फ्लैग कहा जाता है।

जंतर-मंतर का निर्माण क्यों किया गया? क्या दिल्ली के अलावा यह कहीं और भी है?
जंतर-मंतर वेधशाला है। यानी अंतिरिक्षीय घटनाओं के निरीक्षण का स्थान। दिल्ली में इसका निर्माण सवाई जय सिंह द्वितीय ने 1724 में करवाया था। यह इमारत प्राचीन भारतीय अंतरिक्षीय ज्ञान और आधुनिक विज्ञान के समन्वय का अच्छा उदाहरण है। जय सिंह ने ऐसी वेधशालाओं का निर्माण जयपुर, उज्जैन, मथुरा और वाराणसी में भी किया था। ग्रहों की गति नापने के लिए यहां विभिन्न प्रकार के उपकरण लगाए गए हैं। सम्राट यंत्र सूर्य की सहायता से वक्त और ग्रहों की स्थिति की जानकारी देता है। मिस्र यंत्र वर्ष के सबसे छोटे ओर सबसे बड़े दिन को नाप सकता है। राम यंत्र और जय प्रकाश यंत्र खगोलीय पिंडों की गति के बारे में बताता है।

रेलगाड़ी या बस में चलते हुए हमें बिजली के तार ऊपर-नीचे होते हुए क्यों नजर आते हैं?
तार तो अपनी जगह पर ही होते हैं, पर धरती की सतह पर वे समान ऊँचाई पर नहीं होते। सामान्य स्थिति में या धीरे-धीरे चलने पर हमें उनके उतार-चढ़ाव का ज्ञान नहीं हो पाता। हम तेज गति से चलते हैं तो उन तारों का ऊँच नीच हमें तेजी से दिखाई पड़ता है।
राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में प्रकाशित

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