यह घोषणा अब क्यों?
डब्लूएचओ के महानिदेशक ने कहा, चूंकि शुरू में इसका प्रभाव केवल चीन तक सीमित था, इसलिए हमने ऐसी घोषणा नहीं
की. पिछले दो हफ्तों में चीन के बाहर इससे प्रभावित लोगों की संख्या तेरह गुना और
प्रभावित देशों की संख्या तिगुनी हुई है. उदाहरण के लिए 29 फरवरी को इटली में 888
केस थे, जो एक हफ्ते में 4,636 हो गए. वस्तुतः
यह शब्द बीमारी की भयावहता से ज्यादा उसके प्रसार क्षेत्र को बताता है. जब कोई
बीमारी काफी बड़े भौगोलिक क्षेत्र में फैलती है और बड़ी संख्या के लोगों के शरीर
में उस बीमारी से लड़ने की क्षमता नहीं होती है, तब पैंडेमिक की घोषणा की जाती है.
बीमारी से होने वाली मौतों से पैंडेमिक की घोषणा नहीं होती, बल्कि उसके प्रसार
क्षेत्र से तय होती है.
पहले भी कभी बीमारियाँ फैलीं?
सबसे बड़ा उदाहरण है सन 1918 में फैला स्पेनिश फ्लू. इसमें दो से पाँच करोड़ लोगों की मौत हुई थी. यों सन 1817 से 1975 के बीच
कॉलरा को कई बार पैंडेमिक घोषित किया गया है. डब्लूएचओ ने पिछली बार सन 2009 में
एच1एन1 के प्रसार को पैंडेमिक घोषित किया था. एबोला वायरस, जिसके कारण पश्चिमी अफ्रीका में हजारों मौतें हो चुकी हैं,
महामारी (एपिडेमिक) है. उसे पैंडेमिक नहीं माना गया. मिडिल ईस्ट रेस्पिरेटरी
सिंड्रोम (2012) मर्स और एक्यूट रेस्पिरेटरी
सिंड्रोम (2002) सार्स जैसी
बीमारियाँ क्रमशः 27 और 26 देशों में फैलीं, पर उन्हें पैंडेमिक घोषित नहीं किया
गया, क्योंकि उनका प्रसार जल्द रोक लिया गया.
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