अक्षय मायने जिसका अंत नहीं है। अक्षय-ऊर्जा ऐसे स्रोत से प्राप्त ऊर्जा है, जिसका बार-बार इस्तेमाल होता रहे। मसलन पेट्रोल या लकड़ी जल जाने के बाद उसका दूसरी बार इस्तेमाल नहीं हो सकता। अक्षय-ऊर्जा का इस्तेमाल बिजली बनाने, वाहनों को चलाने, गर्मी पैदा करने या कूलिंग के लिए किया जाता है। ज्यादातर ऐसी ऊर्जा प्रदूषण भी पैदा नहीं करती या कम से कम करती है। इनमें प्राकृतिक प्रक्रिया के तहत सौर, पवन, सागर, पनबिजली, बायोमास, भूतापीय संसाधनों और जैव ईंधन और हाइड्रोजन वगैरह शामिल हैं। दुनिया में इसका इस्तेमाल लगातार बढ़ता जा रहा है। सन 2011 में ऊर्जा के वैश्विक इस्तेमाल में इसका प्रतिशत 20 था, जो 2021 में बढ़कर 28 हो गया।
इंटरनेशनल इनर्जी एजेंसी के अनुसार 2022 में
केवल सौर, पवन, जल और भूतापीय ऊर्जा में 8 फीसदी की वृद्धि हुई। इस प्रकार वैश्विक
ऊर्जा में इनकी हिस्सेदारी 5.5 प्रतिशत हो गई। इसी तरह आधुनिक जैव-ऊर्जा की
हिस्सेदारी 6.8 प्रतिशत हो गई। 2022 का वर्ष वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए ढीला
रहा, क्योंकि कोविड-19 के कारण ऊर्जा की माँग घट रही थी, पर अक्षय-ऊर्जा में तेजी
से वृद्धि हो रही थी।
भारत में फरवरी 2023 तक 122 गीगावॉट अक्षय-ऊर्जा की क्षमता का निर्माण हो चुका था। इसमें पनबिजली और नाभिकीय ऊर्जा शामिल नहीं है। यह लक्ष्य से कम है, क्योंकि सरकार ने 2022 के अंत तक 175 गीगावॉट क्षमता के निर्माण का लक्ष्य रखा था। भारत ने 2030 तक देश में गैर-जीवाश्म (गैर-पेट्रोलियम) ऊर्जा का स्तर 50 प्रतिशत तक लाने का लक्ष्य रखा है। फरवरी 2023 तक देश में कोयले से चलने वाले ताप-बिजलीघर कुल बिजली का 78.2 प्रतिशत बना रहे थे।
ह्वाइट कॉलर जॉब?
ह्वाइट
कॉलर शब्द एक अमेरिकी लेखक अपटॉन सिंक्लेयर ने 1930 के दशक में गढ़ा. औद्योगीकरण
के साथ शारीरिक श्रम करने वाले फैक्ट्री मजदूरों की यूनीफॉर्म डेनिम के मोटे कपड़े
की ड्रेस हो गई। शारीरिक श्रम न करने वाले कर्मचारी सफेद कमीज़ पहनते। इसी तरह
खदानों में काम करने वाले ब्लैक कॉलर कहलाते। सूचना प्रौद्योगिकी से जुड़े
कर्मियों के लिए अब ग्रे कॉलर शब्द चलने लगा है।
राजस्थान पत्रिका के 12 अगस्त, 2023 के नॉलेज कॉर्नर में प्रकाशित
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