सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार का मतलब है, प्रत्येक वयस्क नागरिक को बिना किसी भेदभाव के वोट देने का अधिकार। अंग्रेजी में इसे कहते हैं यूनिवर्सल एडल्ट फ्रेंचाइज़। आज हालांकि दुनिया के ज्यादातर देशों में नागरिकों को यह अधिकार प्राप्त है, पर पिछले सौ-डेढ़ सौ साल का इतिहास देखें, तो पाएंगे कि लोकतंत्र के लिहाज से तमाम विकसित देशों में भी इस अधिकार को प्राप्त करने में समय लगा। इस इसका मतलब है कि एक तय उम्र के बाद सभी नागरिकों को समान रूप से वोट डालने का अधिकार।
अतीत में अनेक देशों में केवल समृद्ध लोगों तक
ही वोट देने का अधिकार सीमित था। 18वीं और 19वीं सदी में ब्रिटेन में आय या संपदा
के आधार पर मताधिकार प्राप्त होता था। इतना ही नहीं, महिलाओं को इस अधिकार से
वंचित रखा जाता था।19वीं सदी में ‘सार्वभौमिक (पुरुष) मताधिकार’ के आंदोलन भी चले। यूरोप और अमेरिका
में भी महिला मताधिकार को बड़े पैमाने पर नजरंदाज किया गया। 1918 में ब्रिटेन में
21 वर्ष से ऊपर के पुरुषों संपदा की शर्त से मुक्त कर दिया गया और 30 वर्ष से ऊपर
की स्त्रियों को यह अधिकार मिला, पर उनपर संपत्ति की शर्त लगाई गई। स्त्रियों पर
शर्त 1928 में जाकर हटी।
स्त्रियों को मताधिकार देने वाला पहला देश न्यूज़ीलैंड
था, जिसने 1893 में सभी वयस्क महिलाओं को वोट देने
का अधिकार दिया, पर स्त्रियों को संसदीय चुनाव लड़ने का
अधिकार 1919 में मिला। अलबत्ता 1793 में
फ्रांस के जैकोबियन संविधान में सभी वयस्क पुरुषों को मताधिकार देने की बात थी, पर
यह सिद्धांत भी लागू नहीं हुआ। फ्रांस में
वयस्क पुरुषों को मताधिकार का अधिकार 1848 में मिला। 1945 तक फ्रांस में
सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार का विरोध होता रहा। अंततः दूसरे विश्वयुद्ध के बाद 1945
में स्त्रियों को भी यह अधिकार मिला। आपको
हैरत होगी कि स्विट्ज़रलैंड की स्त्रियों को यह अधिकार 1971 में मिला।
इस लिहाज से भारतीय लोकतंत्र को आप प्रगतिशील
कह सकते हैं, जहाँ 1950 में संविधान लागू होते ही सभी नागरिकों को यह अधिकार मिल
गया। संविधान बनने के काफी पहले स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान ही 1928 में राष्ट्रीय
आंदोलन के दौरान मोतीलाल नेहरू रिपोर्ट में सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार का प्रस्ताव
किया था, जिसमें स्त्रियों को समान अधिकार प्राप्त होंगे। भारतीय संविधान के
अनुच्छेद 326 के अनुसार लोकसभा और राज्यों की विधान सभाओं के लिए चुनाव वयस्क
मताधिकार के आधार पर होंगे। शुरू में मतदान की उम्र 21 वर्ष थी, जिसे 1989 से 18
वर्ष कर दिया गया। इसके लिए 1988 में संविधान का 61वाँ संशोधन किया गया था।
राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में
4 मई, 2024 को प्रकाशित
सुन्दर जानकारी
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