देश में अस्सी के दशक में आतंकी गतिविधियाँ बढ़ने के बाद टैररिस्ट एंड डिसरप्टिव एक्टिविटीज़ एक्ट (टाडा)-1987 बनाया गया। इसके दुरुपयोग की शिकायतें मिलने के बाद 1995 में इसे लैप्स होने दिया गया। इस कानून में पुलिस के सामने कबूल की गई बातों को प्रमाण मान लिया जाता था। सन 1999 में इंडियन एयरलाइंस के विमान के अपहरण और 2001 में संसद भवन पर हुए हमले के बाद प्रिवेंशन ऑफ टैररिज्म एक्ट (पोटा)-2002 बना। इसके दुरुपयोग की शिकायतों के बाद 2004 में इसे रद्द कर दिया गया। इन दोनों कानूनों के पहले देश में अनलॉफुल एक्टिविटीज़ (प्रिवेंशन) एक्ट (यूएपीए)-1967 का कानून भी था। सन 2008 में मुंबई हमले के बाद इस कानून में संशोधन करके इसका इस्तेमाल होने लगा। सन 2012 और 2019 में इसमें और संशोधन किया गया। इसमें आतंकवाद की परिभाषा में बड़े बदलाव किए गए। देश की अर्थव्यवस्था को धक्का पहुँचाने, जाली नोटों का प्रसार करने जैसी बातें भी इसमें शामिल की गईं। इसके अलावा राज्य स्तर के कानून भी हैं, जिनमें सबसे महत्वपूर्ण है महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (मकोका)। इनके अलावा राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (एनएसए) (1980) का प्रयोग निवारक निरोध के लिए किया जाता है।
राजस्थान पत्रिका में 13
दिसंबर, 2025 को प्रकाशित

No comments:
Post a Comment