Saturday, April 2, 2011

केन्द्र द्वारा राज्यों को धन देने का क्या सिद्धांत है?


केन्द्र सरकार द्वारा राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों को धन देने के क्या सिद्धांत निर्धारित हैं? राज्यों में इसके खर्च और सही उपयोग के लिए केन्द्र कैसे नियंत्रण कर सकता है?

भारत में संघीय राज्यव्वस्था तीन सतह पर काम करती है। केन्द्र, राज्य और केन्द्र शासित क्षेत्र। 1992 में 73 वें और 74 वें संविधान संशोधन के बाद पंचायती राज भी इस व्यवस्था में शामिल हो गया है। संविधान के अनुच्चेद 268 से 281 तक राज्यों और केन्द्र के बीच राजस्व संग्रहण और वितरण की व्यवस्था परिभाषित की गई है। देश की अर्थव्यवस्था पंचवर्षीय योजनाओं और वार्षिक बजटों के आधार पर चलतीं हैं। दोश का योजना आयोग इस योजना-व्यवस्था का नियामक है। आर्थिक संसाधनों के संग्रहण और वितरण की व्यवस्था जटिल है। इसके साथ तमाम राजनैतिक, क्षेत्रीय और सांस्कृतिक भावनात्मक मसले भी जुड़ते हैं। इसलिए यह स्थिर नहीं है। इसमें निरंतर बदलाव चल रहे हैं।

चौथी पंचवर्षीय योजना के पहले हमारे यहाँ साधनों के वितरण की पारदर्शी व्यवस्था नहीं थी। 1969 में प्रसिद्ध समाजशास्त्री डीआर गाडगिल ने क फॉर्मूला बनाया जिसके तहत राज्यों को दी जाने वाली 60 प्रतिशत राशि जनसंख्या के आधार पर 10 प्रतिशत प्रतिव्यक्ति आय पर, 10 प्रतिशत टैक्स वसूली के प्रयत्नों पर, 10 प्रतिशत सिंचाई और बिजली परियोजनाओं पर और 10 प्रतिशत विशिष्ट समस्याओं के आधार पर तय की गई। 1980 में इस फॉर्मूले में संशोधन हुआ। इसके अंतर्त 60 प्रतिशत राशि जनसंख्या पर, 25 प्रतिशत प्रति व्यक्ति आय पर, 7.5 प्रतिशत प्रदर्शन पर और 7.5 प्रतिशत विशिष्ट समस्याओं पर तय किया गया।

संविधान के अनुच्छेद 280 के तहत भारत के राष्ट्रपति वित्त आयोग का गठन करते हैं। इसका उद्देश्य राज्यों और केन्द्र के बीच राजस्व वितरण की व्यवस्था पर विचार करना है। इस समय 13 वां वित्त आयोग काम कर रहा है। इसका प्रभावी कार्यकाल 2010-2015 है। इसके अध्यक्ष विजय केलकर हैं। केन्द्र-राज्य रिश्तों की बागडोर केन्द्र के हाथ में रहती है। संविधान के अनुच्छेद 360 के तहत आर्थिक आपतकाल घोषित करने का अधिकार केन्द्र के पास है। इस अधिकार का इस्तेमाल आज तक कभी हुआ नहीं है। 

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