लोकपाल विधेयक क्या है? लोकसभा में अब तक आठ बार आने के बाद भी यह पारित क्यों नहीं हो सका? इसके पास होने से सरकार और राजनैतिक दलों को क्या परेशानी हो सकती है? देश में इससे क्या महत्वपूर्ण बदलाव आ सकते हैं?
बाबूलाल बगरानियाँ, ग्राम परसराम पुराना, जिला झुंझनु(राजस्थान)
लोकपाल शब्द से स्पष्ट है इसका रिश्ता जनता के हितों के संरक्षण से है। इसकी अवधारणा स्कैंडिनेवियाई देशों के ओम्बुड्समैन से आई है। ओम्हुड्समैन सरकारी काम-काज पर नज़र रखते हैं और शासन के खिलाफ जनता की ओर से आई शिकायतों की जाँच करते हैं। स्वीडन की संसद ने सन 1809 में ओम्बड्समैन की नियुक्ति की थी। फिनलैंड में 1919 इसकी नियुक्ति हुई। ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस, ब्रिटेन और कनाडा समेत अनेक देशों में इस तरह की शिकायतें सुनने और उनपर कार्रवाई करने की व्यवस्था है। भारत में जनवरी 1966 में मोरारजी देसाई की अध्यक्षता में पहले प्रशासनिक सुधार आयोग ने सलाह दी कि देश में दो स्तर पर इस प्रकार की व्यवस्था होनी चाहे। केन्द्र में लोकपाल और राज्यों में लोकायुक्त। देश के 18 राज्यों ने अपने यहाँ लोकायुक्त तैनात किए हैं। केन्द्र में लोकपाल की नियुक्ति के लिए 1968 में पहली बार यह बिल लोकसभा में पेश किया गया। 1969 में बिल पास भी हो गया और राज्यसभा में बिल था कि लोकसभा भंग हो गई। इसके बाद 1971, 77, 85, 87, 96, 98, 2001, 2005 और 2008 में इसे प्राण देने के प्रयास हुए और सफलता नहीं मिली। यह बिल कभी इस कमेटी में पड़ा रहता है और कभी उस में और लोकसभा भंग हो जाती है।
सरकारी सेवाओं में भ्रष्टाचार-निरोधी व्यवस्था सीवीसी के दफ्तर से संचालित होती है। सीवीसी का छोटा सा दफ्तर देश के विशाल सरकारी ढाँचे के भ्रष्टाचार को रोक पाने में समर्थ है ही नहीं। सितम्बर 2004 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था कि हमारी सरकार लोकपाल विधेयक को पास करने में तनिक देरी नहीं लगाएगी। पर ऐसा नहीं हो पाया। सन 2010 में लोकपाल विधेयक का एक प्रारूप तैयार किया गया, पर वह भी संसद में नहीं आ पाया। 18 राज्यों में लोकायुक्त काम कर रहे हैं, पर ज्यादातर प्रभावहीन हैं।
हाल में अन्ना हजारे के नेतृत्व में चले आंदोलन में जन-लोकपाल विधेयक की जर्जा हुई। इसका प्रारूप अन्ना से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ताओं और न्यायविदों ने बनाया है। इनके अनुसार सरकार दो बिल लाना चाहती है वह अपनी मूल भावना में कमजोर है। प्रधानमंत्री, किसी मंत्री या सांसद के विरुद्ध तभी जाँच शुरू की जा सकेगी जब लोकसभा या राज्यसभा के पीठसीन अधिकारी लोकपाल के पास शिकायत भेजेंगे। साथ ही लोकपाल की सिफारिशें होंगी, वह स्वयंमेव किसी के खिलाफ शिकायत या एफआईआर दर्ज नहीं करा पाएगा। सीबीआई और लोकपाल एक-दूसरे से जुड़े नहीं होंगे। भ्रष्टाचार के आरोप में छह महीने से सात साल तक की सजा हो सकेगी। इस विधेयक में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है कि उस राशि को वापस लाया जाय जो भ्रष्टाचार के कारण डूब गई है। अन्ना हजारे के सहयोगी जिस बिल का सुझाव दे रहे हैं उसमें प्रधानमंत्री, मंत्रियों और सांसदों के अलावा नोकरशाहों और न्यायपालिका से जुड़े व्यक्तियों को भी शामिल करने का प्रस्ताव है। उनके द्वारा प्रस्तावित जन-लोकपाल अपने तईं कार्रवाई कर सकेगा, भ्रष्टाचार की कम से कम सजा पाँच साल होगी। सीबीआई और केन्द्रीय सतर्कता आयोग लोकपाल के अधीन होंगे। लोकपाल की नियुक्ति के पीछे उद्देश्य है भ्रष्टाचार के खिलाफ प्रभावशाली संगठन बनाना, ताकि कठोर कार्रवाई हो सके। अब यह बिल तैयार करने के लिए एक समिति बनाई गई है, इसलिए हमें इंतजार करना चाहे कि किस प्रकार के विधेयक पर सहमति हो पाई है।
राजस्थान में केन्द्र द्वारा घोषित नेशनल पार्क कौन से हैं?
विकास सैनी, मकराना
राजस्थान में राष्ट्रीय पार्कों के नाम हैं 3162 वर्ग किलोमीटर में बना डेज़र्ट नेशनल पार्क(1980), 273.80 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में बना सरिस्का नेशनल पार्क(1982), 28.73 वर्ग कीलोमीटर क्षेत्र पर बना केवलादेव नेशनल पार्क(1981), 392 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर बना रणथम्बौर नेशनल पार्क(1980) और 250 वर्ग किलोमीटर पर बना दर्रा नेशनल पार्क(2004)।
राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में प्रकाशित
p joshi jee
ReplyDeletethanks for the messege avilebul