Wednesday, September 11, 2013

उल्का पिंड के कारण बनी थी महाराष्ट्र की लोनार झील



लोनार झील कहाँ है और इसकी विशेषता क्या है?

महाराष्ट्र के बुलढाणा जिले के लोनार शहर में समुद्र तल से 1,200 मीटर ऊँची सतह पर लगभग 100 मीटर के वृत्त में फैली हुई है। इस झील का व्यास दस लाख वर्ग मीटर है। इस झील का मुहाना गोलाई लिए एकदम गहरा है, जो 100 मीटर की गहराई तक है। 50 मीटर की गहराई गर्द से भरी है। यह 5 से 8 मीटर तक खारे पानी से भरी हुई है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि आकाशीय उल्का पिंड की टक्कर से के कारण यह झील बनी है। अनुमान है कि क़रीब दस लाख टन का उल्का पिंड यहाण गिरा था। क़रीब 1.8 किलोमीटर व्यास की इस झील की गहराई लगभग पांच सौ मीटर है। आज भी इस विषय पर शोध जारी है कि लोनार में जो टक्कर हुई, वो उल्का पिंड और पृथ्वी के बीच हुई या फिर कोई ग्रह पृथ्वी से टकराया था। बहरहाल वह शिलाखंड तीन हिस्सों में टूट चुका था और उसने लोनार के अलावा अन्य दो जगहों पर भी झील बना दी। पूरी तरह सूख चुकी अम्बर और गणेश नामक इन झीलों का अब विशेष महत्व नहीं है। स्मिथसोनियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ वाशिंगटन, भारत और अमेरिका के भूगर्भ सर्वक्षण विभागों को प्रमाण मिले थे कि लोनर का निर्माण पृथ्वी पर उल्का पिंड के टकराने से ही हुआ था।

ऑटोग्राफ देने का रिवाज़ कैसे शुरू हुआ?

ऑटोग्राफ शब्द का अर्थ है हस्तलेख। ऑटोस यानी स्व और ग्राफो यानी लिखना। यानी जो आपने स्वयं लिखा है। पुराने वक्त में टाइपिंग या छपाई होती नहीं थी। केवल हाथ से लिखा जाता था, पर जो जो पत्र, दस्तावेज़ या लेख व्यक्ति स्वयं लिखता उसे ऑटोग्राफ कहते। ऐसा भी होता कि दस्तावेज़ कोई और लिखता और उसके नीचे उसे अधिकृत करने वाला अपने हाथ से अपना नाम लिख देता। यह नाम उसकी पहचान था। ऑटोग्राफ इस अर्थ में दस्तखत हो गया। किसी को याद रखने का सबसे अच्छा तरीका उसके हस्तलेख या ऑटोग्राफ हासिल करना भी हो गया। राजाओं, राष्ट्रपतियों, जनरलों, कलाकारों, गायकों वगैरह के दस्तखत अपने पास जमा करके रखने का चलन बीसवीं सदी में बढ़ा है। इस शौक को फिलोग्राफी कहते हैं।

पेटेंट क्या है और यह किस प्रकार दिया जाता है? बासमती चावल के पेटेंट का विवाद क्या था कृपया बताएं।

बौद्धिक सम्पदा अधिकार मस्तिष्क की उपज हैं और इनमे सबसे महत्वपूर्ण हैं - पेटेंट। पेटेंटी, पेटेंट का उल्लंघन करने वाले तरीके या उत्पाद के निर्माण को न्यायालय द्वारा रुकवा सकता है। ‘पेटेंट’ शब्द लैटिन से आया है। पुराने जमाने में शासको या सरकारों के द्वारा पदवी‚ हक‚ विशेष अधिकार पत्र के द्वारा दिया जाता है। आजकल पेटेंट शब्द का प्रयोग आविष्कारों के संबंध में होता है। इस तरह का प्रयोग पहली बार 15वीं शताब्दी के आस-पास आया। सर्वप्रथम, पेटेंट कानून जैसा इसे आज समझा जाता हैं, 14 मार्च, 1474 को वियाना सिनेट के द्वारा को पारित किया गया। भारत में पहला पेटेंट सम्बन्धित कानून, 1856 में पारित अधिनियम था। तब से अब तक यह कई तरीके के बदलावों से गुजर चुका है। राइस टेक एक अमेरिकन कम्पनी है यह बासमती और टैक्समती के नाम से चावल बेच रही थी। 1994 में राइस टेक ने 20 तरह के बासमती चावल के लिए पेटेंट प्राप्त करने के लिए यूएस पेटेंट एण्ड ट्रेड आर्गेनाइजेशन (यूएसपीटीओ) में एक आवेदन पत्र दाखिल किया। यूएसपीटीओ ने 1997 में सभी पेटेंटों को मंजूर कर दिया। भारत ने अप्रैल 2000 में तीन पेटेंटों की पुन: परीक्षा के लिए एक आवेदन पत्र प्रस्तुत किया। राइसटेक ने इन तीन के साथ एक और पेटेंट को वापस ले लिया। बाद में राइसटेक से 11 अन्य पेटेंटों को भी वापस लेने के लिए भी कहा गया जो कि उसने वापस ले लिया। राइसटेक को पेटेंट का नाम भी बासमती राइस लाइन्स एंड ग्रेन्स से बदल कर बीएएस 867 आरटी 1121 और आरटी 117 करना पड़ा।

शेयरों की कीमत कैसे घटती-बढती है? स्टॉक इंडेक्स या शेयर सूचकांक क्या है?

शेयर का सीधा सा अर्थ होता है हिस्सा। शेयर बाजार की भाषा में बात करें तो शेयर का अर्थ है कंपनियों में हिस्सा। उदाहरण के लिए एक कंपनी ने कुल 10 लाख शेयर जारी किए हैं। आप कंपनी के प्रस्ताव के अनुसार जितने अंश खरीद लेते हैं आपका उस कंपनी में उतने का मालिकाना हक हो गया जिसे आप किसी अन्य खरीददार को जब भी चाहें बेच सकते हैं। इस खरीद फरोख्त में शेयर के भाव बढ़ते और घटते हैं। 10 रु के शेयर की कीमत चार-पाँच सौ तक हो जाती है। इन कंपनियों के शेयरों का मूल्य शेयर बाजार में दर्ज होता है। सभी कंपनियों का मूल्य उनकी लाभदायक क्षमता के अनुसार कम-ज्यादा होता है। भारत में इस पूरे बाजार में नियंत्रण भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) का होता है। इसकी अनुमति के बाद ही कोई कंपनी अपना प्रारंभिक निर्गम इश्यू (आईपीओ) जारी कर सकती है। शेयर बाजार में लिस्टेड होने के लिए कंपनी को बाजार से लिखित समझौता करना पडता है, जिसके तहत कंपनी अपने हर काम की जानकारी बाजार को समय-समय पर देती रहती है, खासकर ऐसी जानकारियां, जिससे निवेशकों के हित प्रभावित होते हों। इन्हीं जानकारियों के आधार पर कंपनी का मूल्यांकन होता है और इस मूल्यांकन के आधार पर मांग घटने-बढ़ने से उसके शेयरों की कीमतों में उतार-चढाव आता है। अगर कोई कंपनी लिस्टिंग समझौते के नियमों का पालन नहीं करती, तो उसे डीलिस्ट करने की कार्रवाई सेबी करता है।

ब्लूचिप कंपनी क्या होती है ?

ब्लू चिप शब्द पोकर के खेल से आया है जिसमें कई रंग के बाज़ी लगाने वाले डिस्क होते है, जिन्हें चिप कहते हैं। पोकर के खेल में और कसीनो में नकदी की जगह इस्तेमाल होने वाले टोकनों में सबसे ज्यादा कीमत नीले डिस्क की होती है। मान लें सफेद चिप की कीमत 1 रुपया है, लाल का पाँच रुपया तो नीले की होगी 10 रुपया। यह शब्द शेयर बाजार में इस्तेमाल होता है तब माना जाता है श्रेष्ठ-मजबूत कंपनियों के शेयर। किसी कंपनी का ब्लू चिप होने का अभिप्राय यह है कि उसके शेयर निवेशकों के लिए पसंदीदा शेयर हैं। इस प्रकार की कंपनियों में सौदे भी काफी होते हैं, उतार-चढ़ाव भी काफी होता है और उनमें निवेशकों का आकर्षण भी खूब बना रहता है।ब्लू चिप का मतलब है राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त, सर्वसम्पन्न और स्थिर अर्थव्यवस्था वाली कंपनी। यह एक तरह से मापदंड होता है जिसमें किसी कंपनी को हम ब्लू चिप तभी कहते हैं जब वह ढलती अर्थव्यवस्था में भी सामान्य ढंग से व्यापार कर सके और मुनाफ़ा कमा सके।

1 comment:

  1. आज बुलेटिन टीम के सबसे युवा ब्लॉग रिपोर्टर हर्षवर्धन जी का जन्मदिवस है , उन्हें अपना स्नेह और आशीष दीजिये साथ ही साथ पढिए उनके द्वारा तैयार की गई आज की ब्लॉग बुलेटिन ........
    ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन जन्मदिन और ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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