‘खेलो इंडिया’ देश में खेल प्रतिभाओं
को सामने लाने की दीर्घकालीन योजना के रूप में यह कार्यक्रम सामने आया है. यह
कार्यक्रम चालू वित्त वर्ष में ही शुरू हुआ है. इसके पहले चला आ रहा ‘राजीव गांधी खेल अभियान’ भी इसमें शामिल कर लिया
गया है, जो 2008 में पहले ‘पंचायत युवा क्रीड़ा और खेल
अभियान’ के नाम से शुरू हुआ था. बाद में उसका नाम राजीव गांधी के नाम पर रखा गया था.
उस कार्यक्रम का उद्देश्य ग्रामीण स्तर पर खेल सुविधाओं का विकास करना था. अब भारत
सरकार स्कूल खेलों की तर्ज पर ‘खेलो इंडिया कॉलेज गेम्स’ के आयोजन पर भी विचार कर
रही है.
अब खेलो इंडिया कार्यक्रम
का उद्देश्य खेल प्रतिभा को खोजने के अलावा देश में खेल के इंफ्रास्ट्रक्चर की
स्थापना करना भी है. यानी कि सिंथैटिक एथलीटिक्स ट्रैक्स, सिंथैटिक हॉकी टर्फ,
सिंथैटिक फुटबॉल टर्फ, स्टेडियम और मल्टी-पर्पज हॉलों का निर्माण वगैरह भी इसमें
शामिल हैं. सन 2017-18 से 2019-20 के लिए इस कार्यक्रम पर 1,756 करोड़ रुपये खर्च
आने की आशा है. इस महत्वपूर्ण कदम से ओलिंपिक में भी भारत की रैंकिंग सुधारने का
लक्ष्य है. अलबत्ता इस योजना का मुख्य उद्देश्य ग्रामीण इलाकों के खिलाड़ियों को
प्रोत्साहन एवं सुविधाओं की कमी को पूरा करना है. 20 सितम्बर 2017 को खेलमंत्री
राज्यवर्धन सिंह राठौर ने इस कार्यक्रम की घोषणा की थी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
इस कार्यक्रम के अध्यक्ष हैं.
इस कार्यक्रम के लिए हर
साल 1000 खिलाड़ियों का चुनाव
किया जाएगा. इस साल चुने गए खिलाड़ियों ने हाल में दिल्ली में हुए खेलो-इंडिया में
हिस्सा लिया. इस योजना के तहत चुने गए खिलाड़ियों को आठ साल तक स्कॉलरशिप दी
जाएगी, ताकि वे अपनी शिक्षा के साथ खेलों को भी समय दे सकें. इसके अंतर्गत 5 लाख रुपये तक की राशि हर
वर्ष एक खिलाड़ी पर खर्च की जाएगी. खेल मंत्रालय खेल प्रशिक्षण के लिए 20 विश्वविद्यालयों का चयन
करेगा, जो खेल प्रशिक्षण के साथ
साथ शिक्षा सम्बन्धी पाठ्यक्रम भी चलाएंगे. स्कॉलरशिप पाने के लिए आवेदक की उम्र 8 वर्ष से लेकर 18 वर्ष के बीच होनी चाहिए.
इस स्कीम के अंतर्गत केवल वही आवेदक चुने जाएंगे जो खेलों से जुड़े होने के साथ
अपनी प्रतिभा को सुधारना चाहते है. एक आवेदक खिलाड़ी केवल एक ही खेल का चुनाव कर
सकता है.
वीडियोबॉम्बिंग किसे कहते हैं?
यह शब्द टीवी पत्रकारिता के विकास के साथ एक नई
तरह की संस्कृति को व्यक्त करता है. अक्सर टीवी पत्रकार किसी विशिष्ट व्यक्ति से
कैमरा पर बात करते हैं तो आसपास लोग जमा हो जाते हैं और कैमरा में अपनी शक्ल
दिखाने की कोशिश करते हैं. कोशिश ही नहीं हाथों से इशारे वगैरह भी करते हैं, ताकि
उनकी तरफ ध्यान जाए. किसी बड़े खिलाड़ी, नेता, अभिनेता या सेलीब्रिटी के साथ खुद
को जोड़ने की कोशिश करना वीडियोबॉम्बिंग है. हाल के वर्षों में खेल के जीवंत
प्रसारण के साथ ऐसे दर्शकों की तस्वीरें भी दिखाई जाने लगी है, जो अपने पहनावे,
रंगत या हरकतों की वजह से अलग पहचाने जाते हैं. भारतीय क्रिकेट टीम के साथ कुछ
दर्शक दुनियाभर की यात्रा करते हैं और हरेक मैच में नदर आते हैं. अमेरिका के रॉलेन
फ्रेडिक स्टीवार्ट ने सत्तर के दशक में अमेरिकी खेल के मैदानों में इंद्रधनुषी
रंगों के एफ्रो-स्टाइल विग पहनकर इसकी शुरुआत की थी, जिसके कारण उन्हें ‘रेनबो मैन’ कहा जाता था.
फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स
दुनिया में मनी लाउंडरिंग रोकने के लिए ग्रुप-7
की पहल है जिसे उसके संक्षेप नाम FATF से पहचाना जाता है. सन 1989 में शुरू हुए इस अंतर-शासन संगठन के
जिम्मे सन 2001 में आतंकवादी संगठनों को मिल रही वित्तीय मदद पर रोक लगाने का काम
भी आ गया. यह संगठन दुनिया के देशों पर नजर रखता है कि वे इस दिशा में क्या कर रहे
हैं. इन दिनों यहाँ पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट में डालने पर विचार किया जा रहा है. इस
संगठन का सचिवालय पेरिस में है. इस संगठन में सन 1989 में 16 सदस्य थे, जो सन 2016
तक बढ़कर 37 हो गए. भारत भी इसका सदस्य है.
नीम कड़वा क्यों होता है?
नीम के तीन कड़वे तत्वों
को वैज्ञानिकों ने अलग किया है, जिन्हें निम्बिन, निम्बिडिन और निम्बिनिन नाम दिए हैं. सबसे पहले 1942 में
भारतीय वैज्ञानिक सलीमुज़्ज़मा सिद्दीकी ने यह काम किया. वे बाद में पाकिस्तान चले
गए थे. यह कड़वा तत्व ही एंटी बैक्टीरियल, एंटी वायरल होता है और कई
तरह के ज़हरों को ठीक करने का काम करता है.
प्रभात खबर अवसर में प्रकाशित