पिछली 13 और 14 जून को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी किर्गिस्तान की राजधानी बिश्केक में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के शिखर सम्मेलन में शामिल हुए थे. इस वजह से यह संगठन हाल में खबरों में रहा. इसकी शिखर वार्ता में 19 देशों के राष्ट्राध्यक्ष और तीन बड़ी बहुराष्ट्रीय संस्थानों के प्रतिनिधि शामिल होते हैं. इसके आठ सदस्य चीन, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, रूस, ताजिकिस्तान, उज्बेकिस्तान, भारत और पाकिस्तान हैं. इसके अलावा चार पर्यवेक्षक देश अफ़ग़ानिस्तान, बेलारूस, ईरान और मंगोलिया हैं. तुर्कमेनिस्तान को विशेष अतिथि के रूप में बुलाया जाता है. छह डायलॉग पार्टनर आर्मेनिया, अजरबैजान, कंबोडिया, नेपाल, श्रीलंका और तुर्की हैं. शिखर सम्मेलन में इनके अलावा आसियान, संयुक्त राष्ट्र और सीआईएस के प्रतिनिधियों को भी बुलाया जाता है. मूलतः यह राजनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा सहयोग का संगठन है, जिसकी शुरुआत चीन और रूस के नेतृत्व में यूरेशियाई देशों ने की थी. अप्रैल 1996 में शंघाई में हुई एक बैठक में चीन, रूस, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान जातीय और धार्मिक तनावों को दूर करने के इरादे से आपसी सहयोग पर राज़ी हुए थे. इसे शंघाई फाइव कहा गया था. इसमें उज्बेकिस्तान के शामिल हो जाने के बाद जून 2001 में शंघाई सहयोग संगठन की स्थापना हुई. 2005 में कजाकिस्तान के अस्ताना में हुए सम्मेलन में भारत, ईरान, मंगोलिया और पाकिस्तान के प्रतिनिधियों ने पहली बार इसमें हिस्सा लिया. अब भारत और पाकिस्तान भी इसके सदस्य हैं.
संगठन का विस्तार?
इस संगठन का मुख्य उद्देश्य मध्य एशिया में सुरक्षा सहयोग बढ़ाना है. पश्चिमी मीडिया मानता है कि एससीओ का मुख्य उद्देश्य नेटो के बराबर खड़े होना है. सन 1996 में जब इसकी शुरुआत हुई थी, तब उद्देश्य था सोवियत संघ के विघटन के बाद नए आज़ाद देशों से लगी रूस और चीन की सीमाओं पर तनाव रोकना और इन सीमाओं का पुनर्निर्धारण. यह काम तीन साल में पूरा हो गया. उज्बेकिस्तान को संगठन में जोड़ने के बाद 2001 में यह एक नए संगठन के रूप में सामने आया. अब इसका उद्देश्य ऊर्जा आपूर्ति से जुड़े मुद्दों पर ध्यान देना और आतंकवाद से लड़ना भी है. जून, 2010 में एससीओ ने नए सदस्य बनाने की प्रक्रिया को तय किया. अभी ईरान पर्यवेक्षक देश है, पर उसे पूर्ण सदस्य बनाने पर भी विचार किया जा रहा है. मिस्र और सीरिया ने पर्यवेक्षक देश बनने की अर्जी दी है. इसरायल, मालदीव और यूक्रेन ने डायलॉग पार्टनर बनने के लिए आवेदन किया है. इराक ने भी डायलॉग पार्टनर बनने का संकेत किया है. बहरीन और कतर भी इससे जुड़ना चाहते हैं.
भारत की भूमिका?
चीन और रूस के बाद इस संगठन में भारत तीसरा सबसे बड़ा देश है. भारत का कद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ रहा है. एससीओ धीरे-धीरे दुनिया का सबसे बड़ा क्षेत्रीय संगठन बनता जा रहा है. भारत की दिलचस्पी अपनी ऊर्जा की जरूरतों को पूरा करने और प्रवासी भारतीयों के हितों की रक्षा करने के अलावा आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई में है. आतंकवाद के विरोध में अपनी नीतियों के कारण ही इसबार के शिखर सम्मेलन में नरेन्द्र मोदी ने सम्मेलन के हाशिए पर पाकिस्तानी प्रधानमंत्री से मुलाकात नहीं की.
प्रभात खबर अवसर में प्रकाशित
संगठन का विस्तार?
इस संगठन का मुख्य उद्देश्य मध्य एशिया में सुरक्षा सहयोग बढ़ाना है. पश्चिमी मीडिया मानता है कि एससीओ का मुख्य उद्देश्य नेटो के बराबर खड़े होना है. सन 1996 में जब इसकी शुरुआत हुई थी, तब उद्देश्य था सोवियत संघ के विघटन के बाद नए आज़ाद देशों से लगी रूस और चीन की सीमाओं पर तनाव रोकना और इन सीमाओं का पुनर्निर्धारण. यह काम तीन साल में पूरा हो गया. उज्बेकिस्तान को संगठन में जोड़ने के बाद 2001 में यह एक नए संगठन के रूप में सामने आया. अब इसका उद्देश्य ऊर्जा आपूर्ति से जुड़े मुद्दों पर ध्यान देना और आतंकवाद से लड़ना भी है. जून, 2010 में एससीओ ने नए सदस्य बनाने की प्रक्रिया को तय किया. अभी ईरान पर्यवेक्षक देश है, पर उसे पूर्ण सदस्य बनाने पर भी विचार किया जा रहा है. मिस्र और सीरिया ने पर्यवेक्षक देश बनने की अर्जी दी है. इसरायल, मालदीव और यूक्रेन ने डायलॉग पार्टनर बनने के लिए आवेदन किया है. इराक ने भी डायलॉग पार्टनर बनने का संकेत किया है. बहरीन और कतर भी इससे जुड़ना चाहते हैं.
भारत की भूमिका?
चीन और रूस के बाद इस संगठन में भारत तीसरा सबसे बड़ा देश है. भारत का कद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ रहा है. एससीओ धीरे-धीरे दुनिया का सबसे बड़ा क्षेत्रीय संगठन बनता जा रहा है. भारत की दिलचस्पी अपनी ऊर्जा की जरूरतों को पूरा करने और प्रवासी भारतीयों के हितों की रक्षा करने के अलावा आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई में है. आतंकवाद के विरोध में अपनी नीतियों के कारण ही इसबार के शिखर सम्मेलन में नरेन्द्र मोदी ने सम्मेलन के हाशिए पर पाकिस्तानी प्रधानमंत्री से मुलाकात नहीं की.
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