अफ़ग़ानिस्तान और
पाकिस्तान के पश्तून इलाकों में पश्तूनवाली नाम से एक अलिखित विधान चलता है, जिसका
सभी कबीले आदर करते हैं. हाल में सोमवार 29 अप्रैल से शुक्रवार 3 मई तक लोया जिरगा
का अधिवेशन हुआ, जिसमें अफगानिस्तान में तालिबान के साथ मिलकर सरकार चलाने से
जुड़े मसलों पर विचार किया गया. यह
नियमों की एक व्यवस्था है. इसके अंतर्गत कबायली परिषद को लोया जिरगा नाम से जाना
जाता है. तालिबान के शासन के दौरान पश्तूनवाली के साथ-साथ शरिया कानून भी लागू किए
गए थे. करीब एक सदी पुरानी इस संस्था का उपयोग अंतर्विरोधी कबायली गुटों
और जातीय समूहों के बीच सहमति बनाने के लिए किया जाता है. 2001 में तालिबान शासन
के पतन के बाद भी इस परिषद का उपयोग किया गया था. लोया जिरगा की बैठक अंतिम बार
2013 में हुई थी. सन
2013 के लोया जिरगा में अमेरिका के साथ किए गए द्विपक्षीय सुरक्षा समझौते को
स्वीकृति दी गई थी. अब
अफ़ग़ानिस्तान के संविधान में लोया जिरगा की व्यवस्था शामिल है. सन 2004 में
बने वर्तमान अफ़ग़ान संविधान में लोया जिरगा का उल्लेख है. यह एक प्रकार से जनमत
संग्रह का प्रतीक है और इसे असाधारण स्थितियों में ही बुलाया जाता है.
इसकी शुरूआत
कैसे हुई?
यों तो यह
सैकड़ों साल पुरानी व्यवस्था है, जो परम्परा से चलती थी, पर सौ साल पहले बादशाह
अमानुल्ला (1919-29) ने आधुनिक युग में इसकी शुरूआत की. उन्होंने अपने शासन के
संचालन के लिए लोया जिरगा का सहारा लिया. इसका मतलब है कि वे तमाम महत्वपूर्ण
सवालों पर जनता की राय लेते रहते थे. वर्तमान संविधान के अनुसार इसमें संसद के
दोनों सदनों के सदस्यों के अलावा सभी प्रांतों और जिलों के प्रतिनिधि सदनों के
सभापतियों की भागीदारी होती है. लोया जिरगा मूलतः सलाह और राय देने वाली प्रक्रिया
है. इसमें आमराय बनती है. हालांकि इसका महत्व देश की संसद से भी ज्यादा है, पर
निर्भर करता है कि इसमें प्रतिनिधित्व किस प्रकार का है.
कितनी बार हुआ?
सन 2001 के बाद
की व्यवस्था में अबतक छह बार लोया जिरगा के अधिवेशन हो चुके हैं. पिछले हफ्ते छठा
अधिवेशन हुआ. पहला अधिवेशन 2002 में हुआ था, जिसमें 1600 प्रतिनिधि शामिल हुए थे.
तबतक देश का वर्तमान संविधान बना नहीं था. दिसम्बर 2003 के अंत और जनवरी 2004 के
शुरुआती दिनों में बुलाए गए लोया जिरगा में देश के वर्तमान संविधान को स्वीकृति दी
गई थी. इसके बाद जून 2010 में इसका एक अधिवेशन हुआ था. नवम्बर 2011 में एक
परम्परागत लोया जिरगा भी हुआ. इसके बाद नवम्बर 2013 में इसका एक अधिवेशन हुआ. इस
बार लोया जिरगा में आमंत्रित तीन हजार से
ज्यादा लोगों को संबोधित करते हुए अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ ग़नी ने कहा, 'हम
तालिबान के साथ वार्ताओं के लिए मुख्य बातों को स्पष्ट करना चाहते हैं. इसके लिए
हम आप सभी से स्पष्ट सलाह चाहते हैं.' इस बैठक के लिए तालिबान को भी आमंत्रित किया था, लेकिन
तालिबान ने इसमें शामिल होने से इनकार कर दिया.
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन 122वीं जयंती - राम प्रसाद 'बिस्मिल' और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
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