Sunday, June 30, 2019

एक देश, एक चुनाव?


नई लोकसभा बनने के बाद संसद के संयुक्त अधिवेशन में अपने पहले अभिभाषण में राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘आज समय की मांग है कि ‘एक राष्ट्र-एक साथ चुनाव’ की व्यवस्था लाई जाए.’’ पिछले तीन साल में कई बार यह बात कही गई है कि देश को ‘आम चुनाव’ की अवधारणा पर लौटना चाहिए. संसद की एक संयुक्त स्थायी समिति ने इसका रास्ता बताया है. एक मंत्रिसमूह ने भी इस पर चर्चा की. विधि आयोग ने अपनी 170वीं रिपोर्ट में इसका सुझाव दिया था. चुनाव सुधार के सिलसिले में चुनाव आयोग की भी यही राय है. चुनाव एक साथ कराने के पीछे प्रशासनिक और राजनीतिक दोनों प्रकार के दृष्टिकोणों पर विचार किया जाना चाहिए. इससे समय की बचत होगी, खर्चा भी कम होगा. आचार संहिता के कारण सरकारें बड़े फैसले नहीं कर पाती हैं. कई काम रुकते हैं. केंद्रीय बलों एवं निर्वाचन कर्मियों की तैनाती और बंदोबस्त में होने वाला खर्च कम होगा. वोटर को भी अतिशय चुनावबाजी से मुक्ति मिलनी चाहिए. सन 1952 से 1967 तक एकसाथ चुनाव होते भी रहे हैं.
विरोध क्यों? 
इस सलाह के विरोध में कुछ पार्टियों और विशेषज्ञों ने कहा है कि यह भारतीय लोकतंत्र की विविधता के विपरीत बात होगी. उनका तर्क है कि लोकसभा और विधानसभा चुनाव के मुद्दे अलग होते हैं. एकसाथ चुनाव कराने पर केन्द्रीय मुद्दा चुनाव पर हावी हो जाता है, स्थानीय मुद्दे पीछे चले जाते हैं. इससे क्षेत्रीय दलों को नुकसान होगा. क्षेत्रीय भावनाओं की अवहेलना होगी. 73वें और 74वें संविधान संशोधनों के बाद लोकतंत्र की एक तीसरी सतह भी तैयार हो गई है. स्थानीय निकायों के मुद्दे और भी अलग होते हैं. तीनों सतहों पर चुनाव कराना और भी मुश्किल होगा. भारत में 4120 विधायकों और 543 लोकसभा सीटों के लिए चुनाव होता है. ढाई लाख के आसपास ग्राम सभाएं हैं शहरी निकाय भी है. इसकी व्यावहारिकता पर विचार करना चाहिए.
दुनिया में व्यवस्थाएं कैसी हैं?
मेरिका में संविधान ने चुनावों के दिन तक तय कर रखे हैं, पर वहाँ की संघीय व्यवस्था में राज्य बहुत शक्तिशाली हैं. मतदान से जुड़ी राज्यों की व्यवस्थाएं अलग-अलग हैं. यूके में चुनाव का दिन गुरुवार को मुकर्रर है. सन 2011 में यहाँ फिक्स्ड टर्म पार्लियामेंट एक्ट पास हुआ और हर पाँच साल में मई के महीने में पहले गुरुवार को आम चुनाव कराने की व्यवस्था की गई है. विशेष परिस्थितियों में चुनाव समय से पहले कराने की छूट है. संयोग से 2017 में ऐसा हो भी गया. मई 2015 को पहले चुनाव हुए और अगले चुनाव की तिथि 7 मई 2020 तय कर दी गई थी. इस बीच ब्रेक्जिट के कारण अप्रैल, 2017 में संसद ने एक विशेष प्रस्ताव पास करके जल्दी चुनाव कराने का फैसला किया. बहरहाल 2022 के चुनावों की तिथियाँ तय हैं. इटली, बेल्जियम और स्वीडन में भी संसद और स्थानीय निकायों के चुनाव एकसाथ होते हैं. कनाडा में पालिका चुनावों का समय मुकर्रर है, पर प्रांतों और संघीय चुनावों का समय मुकर्रर नहीं है. दक्षिण अफ्रीका में राष्ट्रीय और प्रादेशिक प्रतिनिधि सदनों के चुनाव एकसाथ पाँच साल के लिए होते हैं. इनके अलावा हर दो साल बाद नगर पालिकाओं के चुनाव होते हैं.


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