एग्जिट पोल का इस्तेमाल चुनाव के सिलसिले में
होता है. इसके मतलब है चुनाव देकर बाहर आ रहे व्यक्ति की राय लेना. सामान्यतः
चुनाव पूर्व सर्वे में मतदाताओं से यह जानने का प्रयास किया जाता है कि वे किसे
वोट देने का मन बना रहे हैं, जबकि एग्जिट पोल में यह जानने की कोशिश की जाती
है कि वे किसे वोट देकर आए हैं. सामान्यतः अखबारों और मीडिया-हाउसों के लिए रिसर्च
से जुड़ी कम्पनियाँ यह काम करती हैं. ये कम्पनियाँ उपभोक्ता सामग्री तथा अन्य
कारोबारी वस्तुओं के बारे में सर्वेक्षण वगैरह करती हैं. इसके अलावा वोटरों तथा
उपभोक्ताओं के बारे में दूसरी जानकारियाँ भी ये एजेंसियाँ एकत्र करती हैं. मसलन
किस उम्र के व्यक्ति क्या सोचते हैं, महिलाओं की धारणा क्या है, किस
आय वर्ग के लोगों की पसंद क्या हैं,
किस विचार को सबसे ज्यादा समर्थन हासिल
है या किस बात को लोग सबसे ज्यादा नापसंद करते हैं. मतदाता का वोटिंग व्यवहार और
जनमत के प्रभाव का अध्ययन राजनीति शास्त्र का विषय है. इसमें कुल मतदाताओं के
अनुपात से एक छोटे नमूने से राय ली जाती है. मसलन दस लाख मतदाता हैं, तो
दो-तीन सौ ऐसे मतदाताओं के विचार दर्ज किए जाते हैं, जिनमें
हर वर्ग, हर आयु समूह और स्त्री-पुरुष सभी तरह के व्यक्तियों का प्रतिनिधित्व
हो.
इनकी शुरुआत कैसे हुई?
कई मत हैं कि इनकी शुरुआत कैसे हुई. शुरुआती
वर्षों में पत्रकार जनता की राय लेने के लिए ऐसे पोल का सहारा लेते थे. इन्हें शुरू
करने का श्रेय सर्वे-सैम्पलिंग के अमेरिकी विशेषज्ञ जॉर्ज गैलप और क्लॉड रॉबिनसन
को जाता है. काफी लोग मानते हैं कि डच समाज-शास्त्री और पूर्व राजनीतिक नेता
मार्सेल वैन डैम (Marcel van
Dam) ने 15 फरवरी, 1967
को पहली बार एग्जिट पोल के रूप में इनका इस्तेमाल किया. कुछ दूसरे स्रोत कहते हैं
कि अमेरिकी चुनाव-विशेषज्ञ वॉरेन मितोफस्की (Warren Mitofsky) ने इनका इस्तेमाल पहली बार किया. सन 1967 में ही नवम्बर के महीने में
अमेरिका के केंटकी राज्य के गवर्नर के चुनाव के दौरान सीबीएस न्यूज के लिए
उन्होंने पहला एग्जिट पोल आयोजित किया. पर इतना जरूर है कि जनमत संग्रह करने का
काम पिछली सदी के तीसरे-चौथे दशक में शुरू हो चुका था.
भारत में ये कब शुरू हुए?
देश में चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों का चलन नब्बे
के दशक से बढ़ा. यों जनमत सर्वेक्षणों की योजना साठ के दशक में सेंटर फॉर द स्टडी
ऑफ डेवलपिंग सोसायटीज़ (सीएसडीएस) ने बनाई थी. अस्सी के दशक के उत्तरार्ध में
अर्थशास्त्री से पत्रकार बने प्रणय रॉय ने इंडिया टुडे पत्रिका में इनकी शुरुआत
की. फिर 1996 के लोकसभा चुनाव के दौरान दूरदर्शन ने देश भर में एग्जिट पोल की
अनुमति दी. देखा-देखी कई पोल शुरू हो गए.
इनके दुरुपयोग की शिकायतें मिलने पर 1999 में चुनाव आयोग ने इनपर रोक लगा दी.
अंततः मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया. सन 2009 में सरकार ने जन-प्रतिनिधित्व कानून, 1951
में संशोधन करके व्यवस्था की कि जबतक मतदान की प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती इनका
प्रसारण नहीं किया जा सकता.
रोचक जानकारी।
ReplyDeleteसही कहा विकास जी।
Deleteअच्छी जानकारी ,ज्ञानवर्धक!!👌
ReplyDelete