Saturday, May 24, 2025

स्त्रियों-पुरुषों की आवाज में फर्क क्यों?

 हमारी आवाज़ के तीन मुख्य कारक होते हैं। फेफड़े जो हवा तैयार करते हैं, लैरिंक्स में स्थित वोकल कॉर्ड जहाँ आवाज़ बनती है और तीसरे ज़ुबान, गाल, होंठ और मुँह का वह हिस्सा जो स्वर को दिशा देता है। जहाँ से गला शुरु होता है वह दो भागों में बँटता है। एक से भोजन पेट में जाता है और दूसरे से हवा फेफड़ों में। हवा जाने वाले रास्ते के ऊपरी सिरे को कंठ कहते हैं, दो वाकतंतु होते हैं। जब हम बोलते हैं तो हमारी माँसपेशियाँ इन वाकतंतुओं को खींचती हैं और इनमें से गुज़रने वाली हवा कंपन पैदा करती है जो ध्वनि के रूप में सुनाई देती है। बच्चा जब बोलना शुरू करता है तब लड़का हो या लड़की उसकी आवाज एक जैसी होती है। किशोरावस्था में लड़कों का कंठ बड़ा हो जाता है जिसकी वजह से उनकी आवाज़ भारी हो जाती है जबकि लड़कियों के कंठ में उतना विकास नहीं होता। लड़कों में टेस्टोस्टेरोन नामक हार्मोन कंठ नली पर भी प्रभाव डालता है। यह हार्मोन लड़कियों में नहीं बनता, फिर भी हार्मोन या अनुवांशिकी के कारण बहुत सी लड़कियों की आवाज़ भारी और लड़कों की पतली होती है।

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में 24 मई, 2025 को प्रकाशित


 

Sunday, May 18, 2025

भारत में पेपर करेंसी

 

भारतीय करेंसी रुपया, संस्कृत रूप्यकम् से बना है, जिसका अर्थ है चाँदी का सिक्का। यह भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका, नेपाल, मॉरीशस और सेशेल्स की मुद्रा का नाम है। इंडोनेशिया में मुद्रा को रुपिया और मालदीव में रुफियाह कहते हैं, जो रुपया के ही बदले हुए रूप हैं। भारत में 1861 में पेपर करेंसी एक्ट बनने के बाद, 1862 में महारानी विक्टोरिया के चित्र के साथ नोटों और सिक्कों की एक श्रृंखला जारी की गई। 1 अप्रैल 1935 को भारतीय रिज़र्व बैंक की स्थापना तक, भारत सरकार ने बैंक नोट छापना जारी रखा। 1917 में ढाई रु का नोट भी आया, जिसे 1926 में वापस ले लिया गया। रिजर्व बैंक ने 1938 से बैंकनोट शुरू किए जो 2,5,10,50,100,1000 और 10,000 मूल्य के थे। स्वतंत्रता के बाद नए डिजाइन के नोट आए और 1959 में रिजर्व बैंक ने 5,000 और 10,000 तक के नोट छापे। 1978 में 100 रुपए से ऊपर के नोट बंद कर दिए गए। 1987 में 500 रु का नोट फिर से शुरू किया गया और 2000 में 1,000 का। 2016 में 500 और 1000 के पुराने नोट बंद करके 500 और 2000 के नए नोट जारी किए गए।

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में प्रकाशित


 

 

Tuesday, May 13, 2025

सबसे बड़े करेंसी नोट

इतिहास में सबसे ऊँचे मूल्य की मुद्रा हंगरी की 100 मिलियन बिलियन पेंगो थी। 1946 में जारी इस नोट का मूल्य 100 क्विंटिलियन पेंगो था, जिससे दूसरे विश्वयुद्ध के बाद हंगरी में अत्यधिक मुद्रास्फीति का पता लगता है। पहले इस संख्या को समझें। एक हजार ट्रिलियन से एक क्वॉड्रिलियन और एक हजार क्वॉड्रिलियन से एक क्विंटिलियन बनता है। ऐसा ही एक करेंसी नोट जिंबाब्वे का सौ ट्रिलियन जिंबाब्वे डॉलर था, जिसका चलन 2009 में खत्म हुआ। अमेरिका में चालीस के दशक तक 10,000 डॉलर का नोट चलता था। वह भी अमेरिका का सबसे बड़ा करेंसी नोट नहीं था। वहाँ सबसे बड़ा नोट था एक लाख डॉलर का गोल्ड सर्टिफिकेट, जिसपर राष्ट्रपति वुडरो विल्सन का पोर्ट्रेट छपा था। तीस के दशक में ऐसे 42,000 नोट छापे गए थे। 1969 में अमेरिका सरकार ने 100 डॉलर से ऊपर के नोटों का चलन बंद कर दिया। यूरोपीय यूनियन का 500 यूरो का नोट इस वक्त बड़ा नोट माना जाता है, पर 2019 के बाद से उसे जारी नहीं किया गया है। 10,000 जापानी येन, 10,000 सिंगापुर डॉलर,10,000 ब्रूनेई डॉलर, 1,00,000 इंडोनेशिया रुपिया और वियतनाम का 5,00,000 डोंग भी कुछ बड़े नोट हैं।

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में 10 मई, 2025 को प्रकाशित




Saturday, May 3, 2025

संसदीय विशेषाधिकार क्या होते हैं?

भारत में संसद सदस्यों और समितियों को दिए गए विशेष अधिकार, उन्मुक्ति और छूट हैं जिन्हें संसदीय विशेषाधिकार कहा जाता है। इनका उद्देश्य संसदीय कार्यों के दौरान सदस्यों को बाहरी दबावों और विधिक दायित्वों से संरक्षण देना है। इनकी व्यवस्था संविधान के अनुच्छेद 105 में और राज्य विधानमंडलों के संदर्भ में अनुच्छेद 194 में निहित हैं। सबसे महत्‍वपूर्ण विशेषाधिकार है सदन और समितियों में स्वतंत्रता के साथ विचार रखने की छूट। सदस्य द्वारा कही गई किसी बात के संबंध में उसके विरूद्ध किसी न्यायालय में कार्रवाई नहीं की जा सकती। कोई सदस्य उस समय गिरफ्तार नहीं किया जा सकता जबकि उस सदन या समिति की बैठक चल रही हो, जिसका वह सदस्य है। अधिवेशन से 40 दिन पहले और उसकी समाप्ति से 40 दिन बाद भी उसे गिरफ्तार नहीं किया जा सकता। संसद परिसर में केवल अध्‍यक्ष/सभापति के आदेशों का पालन होता है। विशेषाधिकार भंग करने या सदन की अवमानना करने वाले को भर्त्सना, ताड़ना या कारावास की सज़ा दी जा सकती है। सदस्यों के मामले में सदस्यता से निलंबन या बर्खास्तगी भी की जा सकती है। ये दंड सदनों के सामने किए गए अपराधों तक सीमित न होकर सदन की सभी अवमाननाओं पर लागू होते हैं। 

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में 3 मई, 2025 को प्रकाशित



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