यों तो विश्व साहित्य की शुरुआत किस्सों-कहानियों से हुई और वे महाकाव्यों के युग से आज तक के साहित्य की बुनियाद रही हैं. उपन्यास को आधुनिक युग की देन कहना बेहतर होगा. साहित्य में गद्य का प्रयोग जीवन के यथार्थ चित्रण की कोशिश है. आमतौर पर गेंजी मोनोगतारी या ‘द टेल ऑफ गेंजी’ को दुनिया का पहला आधुनिक उपन्यास मानते हैं. जापानी लेखिका मुरासाकी शिकिबु ने इसे सन 1000 से सन 1008 के बीच कभी लिखा था. बेशक यह दुनिया के श्रेष्ठतम ग्रंथों में से एक है, पर इस बात पर एक राय नहीं है कि यह पहला उपन्यास था या नहीं. इसमें 54 अध्याय और करीब 1000 पृष्ठ हैं. इसमें प्रेम और विवेक की खोज में निकले एक राजकुमार की कहानी है. अलबत्ता हमें पहले यह समझना चाहिए कि उपन्यास होता क्या है. उपन्यास गद्य में लिखा गया लम्बा आख्यान है, जिसकी एक कथावस्तु होती है और चरित्र-चित्रण होता है. कथावस्तु को देखें तो महाभारत, रामायण और तमाम भाषाओं में महाग्रंथ हैं. पर वे सब प्रायः महाकाव्य हैं. अलबत्ता संस्कृत में दंडी के ‘दशकुमार चरित्र’ और वाणभट्ट के ‘कादम्बरी’ को भी दुनिया का पहला उपन्यास माना जा सकता है. यूरोप का प्रथम उपन्यास सेर्वैन्टिस का ‘डॉन क्विक्ज़ोट’ माना जाता है जो स्पेनी भाषा का उपन्यास है. इसे 1605 में लिखा गया था. अनेक विद्वान 1678 में जोन बुन्यान द्वारा लिखे गए “द पिल्ग्रिम्स प्रोग्रेस” को पहला अंग्रेजी उपन्यास मानते हैं. आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार ‘परीक्षा गुरु’ हिन्दी का पहला उपन्यास है, जो 1882 में प्रकाशित हुआ. इसके लेखक लाला श्रीनिवास दास हैं. हालांकि इसके पहले सन 1870 में 'देवरानी जेठानी की कहानी' (लेखक -पंडित गौरीदत्त) और श्रद्धाराम फिल्लौरी के ‘भाग्यवती’ को भी हिन्दी के प्रथम उपन्यास होने का श्रेय दिया जाता है. पर ये पुस्तकें मुख्यतः शिक्षात्मक और अपरिपक्व हैं.
खबर है कि इस साल मॉनसून सामान्य से कम होगा. यह मॉनसून क्या होता है?
अंग्रेज़ी शब्द मॉनसून पुर्तगाली शब्द ‘मॉन्सैओ’ से निकला है। यह शब्द भी मूल अरबी शब्द मॉवसिम (मौसम) से बना है. यह शब्द हिन्दी एवं उर्दू एवं विभिन्न उत्तर भारतीय भाषाओं में भी प्रयोग किया जाता है. आधुनिक डच शब्द मॉनसून से भी मिलता है. मानसून मूलतः हिन्द महासागर एवं अरब सागर की ओर से भारत के दक्षिण-पश्चिम तट पर आनी वाली हवाओं को कहते हैं जो भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश आदि में भारी वर्षा करातीं हैं. यह ऐसी मौसमी पवन होती हैं, जो दक्षिणी एशिया क्षेत्र में जून से सितंबर तक, प्रायः चार महीने तक सक्रिय रहती है.
इस शब्द का पहला इस्तेमाल अंग्रेजों के भारत आने के बाद बंगाल की खाड़ी और अरब सागर से चलने वाली बड़ी मौसमी हवाओं के लिए हुआ था. हाइड्रोलॉजी में मानसून का व्यापक अर्थ है- कोई भी ऐसी पवन जो किसी क्षेत्र में किसी ऋतु-विशेष में ही वर्षा कराती है. मॉनसून हवाओं का अर्थ अधिकांश समय वर्षा कराने से नहीं लिया जाना चाहिए. इस परिभाषा को देखते हुए संसार के अन्य क्षेत्र, जैसे- उत्तरी अमेरिका, दक्षिणी अमेरिका, उप-सहारा अफ़्रीका, आस्ट्रेलिया एवं पूर्वी एशिया को भी मॉनसून क्षेत्र की श्रेणी में रखा जा सकता है.
बादल क्यों और कैसे फटता है?
बादल फटना, बारिश का एक चरम रूप है। इस घटना में बारिश के साथ कभी-कभी गरज के साथ ओले भी पड़ते हैं. सामान्यत: बादल फटने के कारण सिर्फ कुछ मिनट तक मूसलधार बारिश होती है लेकिन इस दौरान इतना पानी बरसता है कि क्षेत्र में बाढ़ जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है. बादल फटने की घटना अमूमन पृथ्वी से 15 किलोमीटर की ऊंचाई पर घटती है. इसके कारण होने वाली वर्षा लगभग 100 मिलीमीटर प्रति घंटा की दर से होती है. कुछ ही मिनट में 2 सेंटी मीटर से अधिक वर्षा हो जाती है, जिस कारण भारी तबाही होती है.
मौसम विज्ञान के अनुसार जब बादल भारी मात्रा में पानी लेकर आसमान में चलते हैं और उनकी राह में कोई बाधा आ जाती है, तब वे अचानक फट पड़ते हैं, यानी संघनन बहुत तेजी से होता है. इस स्थिति में एक सीमित इलाके में कई लाख लीटर पानी एक साथ पृथ्वी पर गिरता है, जिसके कारण उस क्षेत्र में तेज बहाव वाली बाढ़ आ जाती है. भारत के संदर्भ में देखें तो हर साल मॉनसून के समय नमी को लिए हुए बादल उत्तर की ओर बढ़ते हैं. हिमालय पर्वत एक बड़े अवरोधक के रूप में इसके सामने पड़ता है. इसके कारण बादल फटता है.
पहाड़ ही नहीं कभी गर्म हवा का झोंका ऐसे बादल से टकराता है तब भी उसके फटने की आशंका बढ़ जाती है. उदाहरण के तौर पर 26 जुलाई 2005 को मुंबई में बादल फटे थे, तब वहां बादल किसी ठोस वस्तु से नहीं बल्कि गर्म हवा से टकराए थे.
अंटार्कटिका की खोज किसने और कब की?
अंटार्कटिका के होने की संभावना करीब दो हजार साल पहले से थी. इसे ‘टेरा ऑस्ट्रेलिस’ यानी दक्षिणी प्रदेश के नाम के एक काल्पनिक इलाके के रूप में जानते थे. यह भी माना जाता था कि ऑस्ट्रेलिया का दक्षिणी इलाका दक्षिण अमेरिका से जुड़ा है. यूरोपीय नक्शों में इस काल्पनिक भूमि का दर्शाना लगातार तब तक जारी रहा जब तक कि 1773 में ब्रिटिश अन्वेषक कैप्टेन जेम्स कुक ने अपने दो जहाजों के साथ अंटार्कटिक सर्किल को पार करके उस सम्भावना को खारिज कर दिया. पर जबर्दस्त ठंड के कारण कैप्टेन कुक को अंटार्कटिक के सागर तट से 121 किलोमीटर दूर से वापस लौटना पड़ा. इसके बाद सन 1820 में रूसी नाविकों और ने अंटार्कटिक को पहली बार देखा. उसके बाद कई नाविकों को इस बर्फानी ज़मीन को देखने का मौका मिला. 27 जनवरी 1820 को रूसी वॉन फेबियन गॉतिलेब वॉन बेलिंगशॉसेन और मिखाइल पेत्रोविच लजारोव जो दो-पोत अभियान की कप्तानी कर रहे थे, अंटार्कटिका की मुख्य भूमि के अन्दर पानी पर 32 किलोमीटर तक गए थे और उन्होंने वहाँ बर्फीले मैदान देखे थे. प्राप्त दस्तावेजों के अनुसार अंटार्कटिका की मुख्य भूमि पर पहली बार पश्चिम अंटार्कटिका में अमेरिकी सील शिकारी जॉन डेविस 7 फ़रवरी 1821 को उतरा था, हालांकि कुछ इतिहासकार इस दावे को सही नहीं मानते.
प्रभात खबर के सप्लीमेंट अवसर में प्रकाशित
खबर है कि इस साल मॉनसून सामान्य से कम होगा. यह मॉनसून क्या होता है?
अंग्रेज़ी शब्द मॉनसून पुर्तगाली शब्द ‘मॉन्सैओ’ से निकला है। यह शब्द भी मूल अरबी शब्द मॉवसिम (मौसम) से बना है. यह शब्द हिन्दी एवं उर्दू एवं विभिन्न उत्तर भारतीय भाषाओं में भी प्रयोग किया जाता है. आधुनिक डच शब्द मॉनसून से भी मिलता है. मानसून मूलतः हिन्द महासागर एवं अरब सागर की ओर से भारत के दक्षिण-पश्चिम तट पर आनी वाली हवाओं को कहते हैं जो भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश आदि में भारी वर्षा करातीं हैं. यह ऐसी मौसमी पवन होती हैं, जो दक्षिणी एशिया क्षेत्र में जून से सितंबर तक, प्रायः चार महीने तक सक्रिय रहती है.
इस शब्द का पहला इस्तेमाल अंग्रेजों के भारत आने के बाद बंगाल की खाड़ी और अरब सागर से चलने वाली बड़ी मौसमी हवाओं के लिए हुआ था. हाइड्रोलॉजी में मानसून का व्यापक अर्थ है- कोई भी ऐसी पवन जो किसी क्षेत्र में किसी ऋतु-विशेष में ही वर्षा कराती है. मॉनसून हवाओं का अर्थ अधिकांश समय वर्षा कराने से नहीं लिया जाना चाहिए. इस परिभाषा को देखते हुए संसार के अन्य क्षेत्र, जैसे- उत्तरी अमेरिका, दक्षिणी अमेरिका, उप-सहारा अफ़्रीका, आस्ट्रेलिया एवं पूर्वी एशिया को भी मॉनसून क्षेत्र की श्रेणी में रखा जा सकता है.
बादल क्यों और कैसे फटता है?
बादल फटना, बारिश का एक चरम रूप है। इस घटना में बारिश के साथ कभी-कभी गरज के साथ ओले भी पड़ते हैं. सामान्यत: बादल फटने के कारण सिर्फ कुछ मिनट तक मूसलधार बारिश होती है लेकिन इस दौरान इतना पानी बरसता है कि क्षेत्र में बाढ़ जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है. बादल फटने की घटना अमूमन पृथ्वी से 15 किलोमीटर की ऊंचाई पर घटती है. इसके कारण होने वाली वर्षा लगभग 100 मिलीमीटर प्रति घंटा की दर से होती है. कुछ ही मिनट में 2 सेंटी मीटर से अधिक वर्षा हो जाती है, जिस कारण भारी तबाही होती है.
मौसम विज्ञान के अनुसार जब बादल भारी मात्रा में पानी लेकर आसमान में चलते हैं और उनकी राह में कोई बाधा आ जाती है, तब वे अचानक फट पड़ते हैं, यानी संघनन बहुत तेजी से होता है. इस स्थिति में एक सीमित इलाके में कई लाख लीटर पानी एक साथ पृथ्वी पर गिरता है, जिसके कारण उस क्षेत्र में तेज बहाव वाली बाढ़ आ जाती है. भारत के संदर्भ में देखें तो हर साल मॉनसून के समय नमी को लिए हुए बादल उत्तर की ओर बढ़ते हैं. हिमालय पर्वत एक बड़े अवरोधक के रूप में इसके सामने पड़ता है. इसके कारण बादल फटता है.
पहाड़ ही नहीं कभी गर्म हवा का झोंका ऐसे बादल से टकराता है तब भी उसके फटने की आशंका बढ़ जाती है. उदाहरण के तौर पर 26 जुलाई 2005 को मुंबई में बादल फटे थे, तब वहां बादल किसी ठोस वस्तु से नहीं बल्कि गर्म हवा से टकराए थे.
अंटार्कटिका की खोज किसने और कब की?
अंटार्कटिका के होने की संभावना करीब दो हजार साल पहले से थी. इसे ‘टेरा ऑस्ट्रेलिस’ यानी दक्षिणी प्रदेश के नाम के एक काल्पनिक इलाके के रूप में जानते थे. यह भी माना जाता था कि ऑस्ट्रेलिया का दक्षिणी इलाका दक्षिण अमेरिका से जुड़ा है. यूरोपीय नक्शों में इस काल्पनिक भूमि का दर्शाना लगातार तब तक जारी रहा जब तक कि 1773 में ब्रिटिश अन्वेषक कैप्टेन जेम्स कुक ने अपने दो जहाजों के साथ अंटार्कटिक सर्किल को पार करके उस सम्भावना को खारिज कर दिया. पर जबर्दस्त ठंड के कारण कैप्टेन कुक को अंटार्कटिक के सागर तट से 121 किलोमीटर दूर से वापस लौटना पड़ा. इसके बाद सन 1820 में रूसी नाविकों और ने अंटार्कटिक को पहली बार देखा. उसके बाद कई नाविकों को इस बर्फानी ज़मीन को देखने का मौका मिला. 27 जनवरी 1820 को रूसी वॉन फेबियन गॉतिलेब वॉन बेलिंगशॉसेन और मिखाइल पेत्रोविच लजारोव जो दो-पोत अभियान की कप्तानी कर रहे थे, अंटार्कटिका की मुख्य भूमि के अन्दर पानी पर 32 किलोमीटर तक गए थे और उन्होंने वहाँ बर्फीले मैदान देखे थे. प्राप्त दस्तावेजों के अनुसार अंटार्कटिका की मुख्य भूमि पर पहली बार पश्चिम अंटार्कटिका में अमेरिकी सील शिकारी जॉन डेविस 7 फ़रवरी 1821 को उतरा था, हालांकि कुछ इतिहासकार इस दावे को सही नहीं मानते.
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