‘पेसमेकर’ क्या होता है और कैसे काम करता है?पेसमेकर के बारे में जानने के पहले यह समझना चाहिए कि हमारे हृदय का एक प्राकृतिक पेसमेकर होता है। इसका काम दिल की धड़कनों को सामान्य गति से बनाए रखना है। मांसपेशियाँ हमारे दिल के संकुचन और फैलाने का काम करती हैं। मांसपेशियों को मस्तिष्क से शिराओं के मार्फत करेंट मिलता है। किसी कारण से यह प्राकृतिक काम कम होने लगता है तब कृत्रिम पेसमेकर लगाकर दिल की धड़कनों को सामान्य किया जाता है। यह भी मांसपेशियों को सक्रिय रखता है।
किसी बीमारी से बचाव के लिए लगाया जाने वाला टीका (वैक्सीन) किस प्रकार कार्य करता है? क्या हर रोग के लिए यह कारगर है?
किसी बीमारी से बचाव के लिए टीका लगता है तो यह शरीर में प्रविष्ट होते ही उस विशिष्ट बीमारी की एंटीबॉडी यानी प्रतिरोधक क्षमता को बनाने के लिए शरीर को प्रेरित करता है जो उस बीमारी के कीटाणु को नष्ट कर देती है। जिन रोगों की रोकथाम के लिए टीका लगता है। (जैसे- डिप्थीरिया, टॉयफाइड, कॉलरा, टी.बी. आदि) सभी की अपनी अलग एंटीबॉडी शरीर में पैदा होती है जो संक्रमित बीमारियों के इलाज में ही कारगर होती है, न कि अन्य बीमारियों में।
ग्रीन टी क्या है? और कैसे उपलब्ध हो?काली चाय और हरी चाय एक ही पौधे की उपज हैं। दोनों ही कैमेलिया साइनेंसिस प्लांट से हासिल होती हैं। हम जिस चाय को आमतौर पर पीते हैं वह प्रोसेस्ड सीटीसी चाय है, जिसका मतलब है कट, टीर एंड कर्ल। इसमें चाय की पत्तियों को तोड़कर मशीन में डालकर सुखाया जाता है। इसे छलनियों की मदद से छानकर अलग-अलग साइज़ में एकत्र कर लिया जाता है, जिसके पैकेट बनाए जाते हैं। चाय की पत्ती को हलका सा क्रश करने और हवा में सूखने के लिए छोड़ने के कारण उनमें ऑक्सीकरण के कारण काला रंग आ जाता है जैसा सेबों को काटने के बाद हो जाता है। ग्रीन टी को इस ऑक्सीकरण से बचाने के लिए एक तो इसे कुचला नहीं जाता बल्कि साबुत पत्ती को हल्की भाप दी जाती है जिससे इनमें मौज़ूद वे एंजाइम खत्म हो जाते हैं, जिनके कारण पत्ती काली होती है। इसके बाद इन पत्तियों को सुखा लिया जाता है, जिससे वे हरे रंग की रह जाती है। काली चाय में कैफीन होती है, हरी चाय में वह नहीं होती। इन दो किस्मों के अलावा एक ऊलांग और एक सफेद चाय भी होती है। यों तो हर प्रकार की चाय शरीर के लिए लाभकर है, पर ग्रीन टी हृदय, दिमाग और पूरे शरीर के लिए लाभकर है। खासतौर से कैंसर को रोकती है। इसमें एंटी ऑक्सीडेंट होते हैं जो शरीर के क्षय को रोकते हैं, कोलेस्ट्रॉल कम करती है और शरीर के वज़न को संतुलित रखती है। इसमें फ्लुओराइड हड्डियों को स्वस्थ रखता है। हरी चाय आसानी से उपलब्ध है।
फिटकरी किस चीज से बनती है, क्या यह भी नमक की तरह समंदर से प्राप्त होती है?
फिटकरी एक प्रकार का खनिज है जो प्राकृतिक रूप में पत्थर की शक्ल में मिलता है। इस पत्थर को एल्युनाइट कहते हैं। इससे परिष्कृत फिटकरी तैयार की जाती है। नमक की तरह है, पर यह सेंधा नमक की तरह चट्टानों से मिलती है। यह एक रंगहीन क्रिस्टलीय पदार्थ है। इसका रासायनिक नाम है पोटेशियम एल्युमिनियम सल्फेट। संसार को इसका ज्ञान तकरीबन पाँच सौ से ज्यादा वर्षों से है। इसे एलम भी कहते हैं। पोटाश एलम का इस्तेमाल रक्त में थक्का बनाने के लिए किया जाता है। इसीलिए दाढ़ी बनाने के बाद इसे चेहरे पर रगड़ते हैं ताकि छिले-कटे भाग ठीक हो जाएं। इसके कई तरह के औषधीय उपयोग हैं।
दूध की अपेक्षा दही खाना अधिक स्वास्थ्यवर्धक कहा जाता है। ऐसा क्यों?
दूध और दही दोनों कैल्शियम के प्रमुख स्रोत हैं। कैल्शियम दांतों और हड्डियों के लिए खासतौर से ज़रूरी है। दही में दूध के मुकाबले कई गुना ज्यादा कैल्शियम होता है। दूध में लैक्टोबैसीलियस होते हैं जो दही जमाते हैं और कई गुना ज्यादा हो जाते हैं। इससे दही में पाचन की शक्ति बढ़ जाती है। दही में प्रोटीन, लैक्टोज़, आयरन और फॉस्फोरस पाया जाता है, जो दूध की तुलना में ज्यादा होता है। इसमें विटैमिन बी6 और बी 12 और प्रोटीन ज्यादा होता है। दही बनने पर दूध की शर्करा एसिड का रूप ले लेती है। इससे भोजन को पचाने में मदद मिलती है। त्वचा को कोमल और स्वस्थ बनाने में भी दही का उपयोग बेहतर है। कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करने के लिहाज से भी दही बेहतर है।
राजस्थान पत्रिका में 22 मार्च 2015 को प्रकाशित
ज्ञानवर्धक आलेख.
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