नेट न्यूट्रैलिटी क्या है?
नेट न्यूट्रैलिटी तकनीकी जटिलताओं से घिरी वैश्विक-अवधारणा
है. इसका वास्ता इंटरनेट के सेवा शुल्क से है. टेलीकॉम ऑपरेटर, फोन कम्पनियाँ और
इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर इस स्थिति में होते हैं कि वे उपभोक्ता को प्राप्त सेवा
को नियंत्रित कर सकें. मसलन आपकी पहुँच किस साइट तक हो, किस स्पीड से हो और आप से
किस सेवा का क्या शुल्क वसूला जाए. नेट न्यूट्रैलिटी उस अवधारणा का नाम है जो यह
कहती है कि दुनिया को सूचना और जानकारी देने तथा अभिव्यक्ति की निर्बाध स्वतंत्रता
तथा ऑनलाइन कारोबार को सहूलियत के साथ चलाने के लिए जरूरी है कि नेट तक यह पहुँच
निर्बाध और तटस्थ हो. सभी साइटों तक समान रूप से उपभोक्ता की पहुँच हो. सबकी स्पीड
समान हो और प्रति किलोबाइट-मेगाबाइट डेटा-मूल्य समान हो. इंटरनेट कम्पनियों की न
तो लाइसेंसिंग जैसी कोई व्यवस्था हो और न गेटवे हों. इसी तरह किसी साइट को
निःशुल्क बनाने जैसी विशिष्ट सुविधा भी नहीं हो. उन्हें किसी सेवा को न तो ब्लॉक
करना चाहिए और न ही उसकी स्पीड स्लो करनी चाहिए. वैसे ही जैसे सड़क पर हर तरह के
ट्रैफिक के साथ समान बर्ताव किया जाए. यह विचार उतना ही पुराना है जितना कि
इंटरनेट लेकिन 'इंटरनेट निरपेक्षता' शब्द दस साल पहले चलन में आया.
भारत में यह मामला तब उठा है जब इंटरनेट पर की जाने
वाली फोन कॉल्स के लिए टेलीकॉम कंपनियों ने अलग कीमत तय करने की कोशिशें की हैं. कंपनियां
इसके लिए वेब सर्फिंग से ज़्यादा दर पर कीमतें वसूलना चाहती हैं. इसके बाद टेलीकॉम सेक्टर की नियामक एजेंसी 'ट्राई' ने आम लोगों से 'नेट
न्यूट्रैलिटी' या 'इंटरनेट तटस्थता'
पर राय मांगी . सवाल है कि टेलीकॉम कंपनियां इस तटस्थता को भंग
क्यों करना चाहती हैं?
नई तकनीकी ने उनके व्यवसाय को चोट पहुँचाई है. मसलन एसएमएस
को व्हॉट्सऐप जैसी लगभग मुफ़्त सेवा ने परास्त कर दिया है. स्काइप जैसी इंटरनेट
कॉलिंग सेवा से फोन कॉलों पर असर पड़ सकता है क्योंकि लंबी दूरी की फोन कॉल्स के
लिहाज से वे कहीं अधिक सस्ती हैं. इन बातों से टेलीकॉम कम्पनियों के राजस्व को
नुकसान हो रहा था. दिसम्बर में एयरटेल ने कहा कि वह इंटरनेट कॉल के लिए थ्री-जी
यूजर से शुल्क वसूलेगा. इसकी आलोचना हुई, जिसके कारण कम्पनी ने अपनी योजना वापस ले
ली. इसके बाद ‘ट्राई’ ने इसकी
पड़ताल शुरू की. सवाल यह है कि नियामक संस्था को इसमें हस्तक्षेप करना चाहिए या
नहीं. माना जाता है कि खुले बाज़ार में जो सबसे कम कीमतों पर सबसे अच्छी सेवाएं
देगा, उसे जीतना चाहिए. खतरा इस बात का भी है कि टेलीकॉम
कम्पनियाँ एकाधिकार बनाए रखने के लिए गठजोड़ कर सकती हैं. उनका कहना है कि हमने
अपना नेटवर्क खड़ा करने में हज़ारों करोड़ रुपये खर्च किए हैं जबकि व्हॉट्सऐप जैसी
सेवाएं मुफ्त में वॉइस कॉल की सर्विस देकर उनके उन्हीं नेटवर्क का फायदा उठा रही
हैं.
ट्राई ने स्काइप, वाइबर,
व्हॉट्सऐप, स्नैपचैट, फेसबुक
मैसेंजर जैसी सेवाओं से जुड़े 20 सवालों पर जनता से फीडबैक मांगा है. ऑपरेटरों की
बात मानी गई तो वे इंटरनेट कॉलिंग सर्विस के एवज में डाटा कीमतों के अलावा इसके
लिए ज्यादा पैसे वसूल सकते हैं. या फिर इन सेवाओं के लिए अलग से डाटा कीमतें तय की
जा सकती हैं. वे कुछ सेवाओं को ब्लॉक कर सकते हैं या उनकी स्पीड को सुस्त कर सकते
हैं ताकि यूजर के लिए इनका इस्तेमाल मुश्किल हो जाए.
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