एफ़एम, मोबाइल और वायरलेस तथा अन्य तरंगों का
इंसानों और पशु पक्षियों पर क्या प्रभाव पड़ता है?
आपने जो बातें
पूछी हैं उनके अलावा कॉर्डलेस हैडफोन, वाइ-फाई, माइक्रोवेव अवन और ऑप्टिक फाइबर तक
से स्वास्थ्य के लिए पैदा होने वाले खतरों को लेकर चिंता व्यक्त की जाती है।
मोबाइल टावरों से रेडिएशन हो सकता है, पर उनके लिए सीमा निर्धारित है। वस्तुतः
ज्यादा धूप, गर्मी, सर्दी, पानी से भी स्वास्थ्य के लिए खतरा होता है, पर सीमा के
भीतर रहें तो नहीं होता।
पानी में भँवर
कैसे बनते हैं? और चक्रवात किसे
कहते हैं?
भँवर आमतौर पर एक-दूसरे से विपरीत दिशाओं से आ रही लहरों के टकराने से
बनते हैं। इसके कई रूप हैं। जब आप किसी पानी के बर्तन में ऊपर से पानी गिराएं तो
दबाव के कारण पानी नीचे जाता है और इसके चारों ओर गोल घेरा बन जाता है यह भी एक
प्रकार का भँवर है। आप किसी पानी की भरी बोतल की तली में छेद कर दें और उसे देखें
तो पता लगेगा कि पानी के बीचोबीच घूमते चक्रवात जैसा एक खड़ा स्तम्भ बन जाता है और
सबसे ऊपर पानी की सतह पर भँवर जैसा बन जाता है। सागर के ऊपर या धरती की सतह पर जब
हवाएं टकराकर गोल- गोल घूमने लगती हैं तब उसे हम चक्रवात कहते हैं।
ट्रैफिक सिग्नल की शुरुआत सबसे
पहले कहां हुई?
ट्रैफिक सिग्नल की शुरूआत रेलवे से
हुई है। रेलगाड़ियों को एक ही ट्रैक पर चलाने के लिए बहुत ज़रूरी था कि उनके लिए
सिग्नलिंग की व्यवस्था की जाए। 10 दिसम्बर 1868 को लंदन में ब्रिटिश संसद भवन के
सामने रेलवे इंजीनियर जेपी नाइट ने ट्रैफिक लाइट लगाई। पर यह व्यवस्था चली नहीं।
सड़कों पर व्यवस्थित रूप से ट्रैफिक सिग्नल सन 1912 में अमेरिका के सॉल्ट लेक सिटी
यूटा में शुरू किए गए। सड़कों पर बढ़ते यातायात के साथ यह व्यवस्था दूसरे शहरों
में भी शुरू होती गई।
दुनिया में सबसे पहले कपड़े कहाँ
पहने गए?
पुरातत्ववेत्ताओं और मानव-विज्ञानियों के अनुसार सबसे पहले परिधान के रूप में पत्तियों, घास-फूस,जानवरों की खाल और चमड़े का इस्तेमाल हुआ
था। दिक्कत यह है कि इस प्रकार की पुरातत्व सामग्री मिलती नहीं है। पत्थर, हड्डियाँ और धातुओं के अवशेष मिल जाते हैं, जिनसे
निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं, पर परिधान बचे नहीं हैं।
पुरातत्ववेत्ताओं को रूस की गुफाओं में हड्डियों और हाथी दांत से बनी सिलाई करने
वाली सूइयाँ मिली हैं, जो तकरीबन 30,000 साल ईपू की हैं। मानव विज्ञानियों ने कपड़ों में मिलने वाली जुओं का
जेनेटिक विश्लेषण भी किया है, जिसके अनुसार इंसान ने
करीब एक लाख सात हजार साल पहले बदन ढकना शुरू किया होगा। इसकी ज़रूरत इसलिए हुई
होगी क्योंकि अफ्रीका के गर्म इलाकों से उत्तर की ओर गए इंसान को सर्द इलाकों में
बदन ढकने की ज़रूरत हुई होगी। कुछ वैज्ञानिक परिधानों का इतिहास पाँच लाख साल पीछे
तक ले जाते हैं। बहरहाल अभी इस विषय पर अनुसंधान चल ही रहा है।
राष्ट्रपति भवन और संसद भवन का
निर्माण कब हुआ?
सन 1911 में घोषणा की गई कि भारत की राजधानी कलकत्ता से दिल्ली ले जाई जाएगी।
मशहूर ब्रिटिश आर्किटेक्ट सर एडविन लैंडसीयर लुट्यन्स ने दिल्ली की ज्यादातर नई
इमारतों की रूपरेखा तैयार की। इसके लिए उन्होंने सर हरबर्ट बेकर की मदद ली। जिसे
आज हम राष्ट्रपति भवन कहते हैं उसे तब वाइसरॉयस हाउस कहा जाता था। इसके नक्शे 1912 में बन गए थे, पर यह बिल्डिंग 1931में पूरी हो पाई। संसद भवन की इमारत 1927 में
तैयार हुई।
अच्छी जानकारी
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