अगस्त क्रांति कब और क्यों हुई थी?
दिव्या कौशिक, द्वारा: आई.जे. कौशिक, चंदन सागर वैल, के.ई.एम. रोड, बीकानेर-334001 (राज.)
महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारत के स्वतंत्रता आंदोलन का एक निर्णायक दौर सन 1942 के अगस्त महीने में शुरू हुआ। इसे ‘अंग्रेजो भारत छोड़ो आंदोलन’ भी कहते हैं। भारत छोड़ो आन्दोलन 9 अगस्त, 1942 को पूरे देश में शुरू हुआ। भारत को फौरन आज़ादी दिलाने के लिए अंग्रेज़ शासन के विरुद्ध यह बड़ा 'नागरिक अवज्ञा आन्दोलन' था। द्वितीय महायुद्ध के दौरान ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल ने भारत के राजनीतिक नेताओं के साथ परामर्श करने और उनका समर्थन प्राप्त करने के उद्देश्य से इंग्लैंड के प्रसिद्ध समाजवादी नेता सर स्टिफ़र्ड क्रिप्स को भारत भेजा। 23 मार्च 1942 को सर स्टिफ़र्ड क्रिप्स दिल्ली आए। उन्होंने कांग्रेस की ओर से मौलाना आजाद और जवाहर लाल नेहरू, मुस्लिम लीग की ओर से मुहम्मद अली जिन्ना और हिंदू महासभा की ओर से विनायक दामोदर सावरकर ने बात की। क्रिप्स ने भारतीय स्वतंत्रता को लेकर कुछ सुझाव भी दिए, किन्तु अंत में उनके सुझाव को सभी भारतीय नेताओं ने नामंजूर कर दिया। कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज की मांग की थी परंतु ब्रिटिश सरकार भारत को औपनिवेशिक व्यवस्था के तहत सीमित स्वायत्तता देने पर सहमत थी, उसके लिए भी कोई समय सीमा नहीं थी। इस सुझाव के संदर्भ में महात्मा गांधी ने कहा कि एक ऐसा चेक है जिस पर आगे की तारीख पड़ी हुई है और वह भी ऐसे बैंक के नाम जिसके दिवालिया होने मे कोई संदेह नहीं।
क्रिप्स मिशन की विफलता के बाद गाँधी जी ने और बड़ा आन्दोलन प्रारम्भ करने का निश्चय ले लिया। इस आन्दोलन को 'भारत छोड़ो आन्दोलन' का नाम दिया गया। 8 अगस्त 1942 को अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के मुम्बई सत्र में भारत छोड़ो आंदोलन का प्रस्ताव पारित किया गया। आंदोलन की शुरूआत 9 अगस्त को हुई, इसलिए 9 अगस्त के दिन को अगस्त क्रांति दिवस के रूप में जाना जाता है। मुम्बई के जिस पार्क से इस आंदोलन की घोषणा हुई, उसे अगस्त क्रांति मैदान नाम दिया गया है।
संयोग से इस आंदोलन के 17 साल पहले 9 अगस्त को ही भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष के इतिहास की एक और घटना लखनऊ के पास काकोरी रेलवे स्टेशन पर हुई थी। उसे हम काकोरी कांड के नाम से जानते हैं। 9 अगस्त 1925 को क्रांतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में क्रांतिकारियों के एक दल ने रेलगाड़ी से सरकारी खजाना लूटा था।
दिव्या कौशिक, द्वारा: आई.जे. कौशिक, चंदन सागर वैल, के.ई.एम. रोड, बीकानेर-334001 (राज.)
महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारत के स्वतंत्रता आंदोलन का एक निर्णायक दौर सन 1942 के अगस्त महीने में शुरू हुआ। इसे ‘अंग्रेजो भारत छोड़ो आंदोलन’ भी कहते हैं। भारत छोड़ो आन्दोलन 9 अगस्त, 1942 को पूरे देश में शुरू हुआ। भारत को फौरन आज़ादी दिलाने के लिए अंग्रेज़ शासन के विरुद्ध यह बड़ा 'नागरिक अवज्ञा आन्दोलन' था। द्वितीय महायुद्ध के दौरान ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल ने भारत के राजनीतिक नेताओं के साथ परामर्श करने और उनका समर्थन प्राप्त करने के उद्देश्य से इंग्लैंड के प्रसिद्ध समाजवादी नेता सर स्टिफ़र्ड क्रिप्स को भारत भेजा। 23 मार्च 1942 को सर स्टिफ़र्ड क्रिप्स दिल्ली आए। उन्होंने कांग्रेस की ओर से मौलाना आजाद और जवाहर लाल नेहरू, मुस्लिम लीग की ओर से मुहम्मद अली जिन्ना और हिंदू महासभा की ओर से विनायक दामोदर सावरकर ने बात की। क्रिप्स ने भारतीय स्वतंत्रता को लेकर कुछ सुझाव भी दिए, किन्तु अंत में उनके सुझाव को सभी भारतीय नेताओं ने नामंजूर कर दिया। कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज की मांग की थी परंतु ब्रिटिश सरकार भारत को औपनिवेशिक व्यवस्था के तहत सीमित स्वायत्तता देने पर सहमत थी, उसके लिए भी कोई समय सीमा नहीं थी। इस सुझाव के संदर्भ में महात्मा गांधी ने कहा कि एक ऐसा चेक है जिस पर आगे की तारीख पड़ी हुई है और वह भी ऐसे बैंक के नाम जिसके दिवालिया होने मे कोई संदेह नहीं।
क्रिप्स मिशन की विफलता के बाद गाँधी जी ने और बड़ा आन्दोलन प्रारम्भ करने का निश्चय ले लिया। इस आन्दोलन को 'भारत छोड़ो आन्दोलन' का नाम दिया गया। 8 अगस्त 1942 को अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के मुम्बई सत्र में भारत छोड़ो आंदोलन का प्रस्ताव पारित किया गया। आंदोलन की शुरूआत 9 अगस्त को हुई, इसलिए 9 अगस्त के दिन को अगस्त क्रांति दिवस के रूप में जाना जाता है। मुम्बई के जिस पार्क से इस आंदोलन की घोषणा हुई, उसे अगस्त क्रांति मैदान नाम दिया गया है।
संयोग से इस आंदोलन के 17 साल पहले 9 अगस्त को ही भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष के इतिहास की एक और घटना लखनऊ के पास काकोरी रेलवे स्टेशन पर हुई थी। उसे हम काकोरी कांड के नाम से जानते हैं। 9 अगस्त 1925 को क्रांतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में क्रांतिकारियों के एक दल ने रेलगाड़ी से सरकारी खजाना लूटा था।
‘हाइवे’ पर टोल-टैक्स देने की शुरुआत कब और क्यों हुई? क्या यह विदेशों में भी प्रचलित है?
मुकेश जैन ‘पारस’ 19, प्रथम मंजिल, अबुल फजल रोड, बंगाली मार्केट, नई दिल्ली-110001
दुनिया भर में राज-व्यवस्था सार्वजनिक सेवा के काम करती रहीं हैं। सड़कें बनवाना, परिवहन की व्यवस्था करना, चिकित्सालय और विद्यालय बनवाना रात-कार्य हैं। इन कार्यों के लिए धन की व्यवस्था टैक्स से होती है। सामान्यतः टोल-टैक्स राजमार्गों, पुलों, टनल या नगर सीमा में प्रवेश करने पर लिए जाते हैं। नगरपालिकाएं और स्थानीय निकाय बाहर से आने वाले लोगों से टोल वसूलते हैं। प्रायः पर्यटन स्थलों में टोल वसूला जाता है। कम से कम तीन हजार साल से यह व्यवस्था चल रही है। चाणक्य के अर्थशास्त्र के भाग-2 के अध्याय 21 में नगर के मुख्य द्वार पर बाहर से आने वाले व्यापारियों से शुल्क वसूलने की व्यवस्था का जिक्र है। इसके लिए बाकायदा कर्मचारी नियुक्त किए जाते थे। पर अब हाइवे पर जो टोल वसूला जाता है उसका उद्देश्य सड़क बनाने पर हुए खर्च की भरपाई करना है। अकसर इसकी समय सीमा होती है।
ज्यादातर प्राचीन सभ्यताओं में इस किस्म के टैक्स का जिक्र मिलता है। यूनानी विचारक अरिस्तू और रोमन लेखक प्लिनी ने पथकर का विवरण दिया है। अलबत्ता आधुनिक यूरोप में औद्योगीकरण के साथ टोलरोड का बिजनेस मॉडल बना। इसमें सड़क बनाने के पहले अनुमान लगा लिया जाता है कि इसकी कीमत किस प्रकार निकल पाएगी। सड़क के व्यावसायिक इस्तेमाल से उसके एक कारोबारी मॉडल बन जाता है। ब्रिटेन में सत्रहवीं सदी के बाद तकरीबन टर्नपाइक ट्रस्ट बनाए गए जो करीब 30,000 मील लम्बी सड़कों का संचालन करते थे। इसका नियमन संसद से बनाए गए कानूनों के तहत होता था। बीसवीं सदी में जाकर इस अवधारणा ने ज़ोर पकड़ा कि इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास आर्थिक विकास के लिए जरूरी है। यह बात हाल के वर्षों में चीन में देखी गई। इंफ्रास्ट्रक्चर में हालांकि रेलवे, बिजली वगैरह की भूमिका है, पर सड़कों का विकास प्राथमिक है।
श्वेत-पत्र क्या होता है तथा यह कब जारी किया जाता है?
प्रेमलता कुंभार, पत्नी: मंजुल मुकुल वर्मा, पुलिस थाने के पीछे, पुरानी लाइन, पो. ऑ.: गंगाशहर-334401 जिला: बीकानेर (राजस्थान)
श्वेत पत्र का मतलब होता है ऐसा दस्तावेज जिसमें सम्बद्ध विषय से जुड़ी व्यापक जानकारी दी जाती है। इस शब्द की शुरुआत ब्रिटेन से हुई है। सन 1922 में ‘चर्चिल ह्वाइट पेपर’ सम्भवतः पहला श्वेत पत्र था। यह दस्तावेज इस बात की सफाई देने के लिए था कि ब्रिटिश सरकार यहूदियों के लिए फलस्तीन में एक नया देश इसरायल बनाने के लिए 1917 की बालफोर घोषणा को किस तरह अमली जामा पहनाने जा रही है। कनाडा तथा दूसरे अन्य देशों में भी ऐसी परम्परा है। यह जारी करना परिस्थितियों पर निर्भर करता है। सन 1947 में जब कश्मीर पर पाकिस्तानी हमला हुआ था उसके बाद 1948 में भारत सरकार ने एक दस्तावेज जारी करके अपनी तरफ से पूरी स्थिति को स्पष्ट किया था। मई 2012 में भारत सरकार ने काले धन पर और हाल में रेलवे को लेकर श्वेत पत्र जारी किया है। इस बीच अनेक विषयों पर श्वेत पत्र जारी हुए हैं।
‘डिज़ाइनर बेबी’ क्या है? आईवीएफ तकनीक से यह किस प्रकार भिन्न है?
कुनिका शर्मा, द्वारा: सुरेश कुमार, सी-201, मुरलीधर व्यास कॉलोनी, बीकानेर-334003 (राज.)
डिज़ाइनर बेबी शब्द इन दिनों प्रजनन तकनीक के इस्तेमाल से जन्म लेने वाले शिशु के रंग-रूप, गुण तथा स्वास्थ्य आदि में बदलाव या सुधार के संदर्भ में किया जाता है। चिकित्सा विज्ञान अब इतना विकसित हो रहा है कि चिकित्सक भ्रूण की स्थिति का न केवल अध्ययन कर सकते हैं बल्कि जेनेटिक डिसॉर्डर को रोक पाने में भी समर्थ हो रहे हैं। यह शब्द मीडिया का दिया हुआ है, इसमें कई प्रकार के नकारात्मक भाव भी छिपे हैं। प्रकारांतर से यह आईवीएफ तकनीक ही है।
कादम्बिनी के अगस्त 2015 अंक में प्रकाशित
अगस्त क्रांति के बारे में बहुत अच्छी जानकारी प्रस्तुति हेतु आभार!
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