सुनीता वार्ष्णेय, पत्नी: राजीव वार्ष्णेय, पुरानी पैंठ, चंदौसी (उ.प्र.)
अंग्रेजी में टिप का मतलब है ग्रैच्युटी यानी अनुग्रह राशि। किसी की सेवा से खुश होकर दिया गया उपहार। जैसे पुराने बादशाह किसी कलाकार को दिया करते थे। ऑक्सफोर्ड इंग्लिश डिक्शनरी के अनुसार टिप शब्द की व्युत्पत्ति स्पष्ट नहीं है और यह बोलचाल से निकला है। इसका इस्तेमाल सन 1600 के आसपास शुरू हुआ होगा। अकसर घर में आने वाले मेहमान जाते वक्त घर के सेवकों को कुछ नजराना देते थे। यही टिप है। हमारे देश में मुग़लकाल से भी पहले से नजराने, इनाम-इकराम, बख्शीश या पुरस्कार का चलन चला आ रहा है। सत्रहवीं सदी में लंदन के कॉफी हाउसों से इसका प्रचलन बढ़ा। धीरे-धीरे साहित्य में भी इसका इस्तेमाल होने लगा।
हींग कहां से और कैसे प्राप्त होती है? असली हींग की क्या कोई खास पहचान होती है?
-मधुलिका राठौर, अजमेर (राज.)
हींग एशिया में पाए जाने वाले सौंफ की प्रजाति के फेरूला फोइटिस नामक पौधे का चिकना रस है। ये पौधे-ईरान, अफगानिस्तान, तुर्की, बलूचिस्तान, अफगानिस्तान के पहाड़ी इलाकों में अधिक होते हैं। भारत में हींग की खेती बहुत कम मात्रा में होती है। इस पौधे की टहनियाँ 6 से 10 फ़ुट ऊँची हो जाती हैं और इसपर हरापन लिए पीले रंग के फूल निकलते हैं। इसकी जड़ों को काटा जाता है जहाँ से एक दूधिया रस निकलता है। फिर इसे इकट्ठा कर लिया जाता है। सूखने पर ये भूरे रंग के गोंद जैसा हो जाता है जिसे हींग कहा जाता है। ईरान में लगभग हर तरह के भोजन में इसका प्रयोग किया जाता है। भारत में भी हींग का भरपूर इस्तेमाल होता है। इसे संस्कृत में 'हिंगु' कहा जाता है। इसमें ओषधीय गुण भी अनेक हैं। हाजमे के लिए हींग बहुत अच्छी है। यह खाँसी भी दूर करती है। अगर कोई अफ़ीम खा ले तो हींग उसके असर को ख़त्म कर सकती है।
हींग अब ज्यादातर पाउडर के रूप में मिलती है, जिसे आटे या आरारोट में हींग को मिलाकर बनाया जाता है। ऐसे में उसकी पहचान करना काफी मुश्किल है। अलबत्ता टुकड़े वाली हींग भी बाजार में उपलब्ध है। मिलावटी हींग की पहचान के कुछ तरीके यहाँ बताए गए हैं, जो अनुभव से प्राप्त किए गए हैं। माचिस की जलती तीली हींग के करीब ले जाने पर उस की लौ चमकदार हो जाती है। हींग नकली होगी तो ऐसा नहीं होगा। इसी तरह शुद्ध हींग पर पानी डाल कर रगड़ने से पानी का रंग दूधिया हो जाता है, जबकि नकली हींग से पानी का रंग दूधिया यानी सफेद नहीं होता। चूंकि यह पौधे की जड़ के दूध से बनी होती है इसलिए इसका दूधिया होना सम्भव है।
‘पीत-पत्रकारिता’ क्या होती है? इसका आरंभ कब और कैसे हुआ?
-महेंद्र प्रसाद सिंगला, शिव कॉलोनी, रेलवे रोड, शांति पब्लिक स्कूल के पास, पलवल-121102
पीत पत्रकारिता (Yellow journalism) उस पत्रकारिता को कहते हैं जिसमें सही समाचारों की उपेक्षा करके सनसनी फैलाने वाले समाचार या ध्यान-खींचने वाले शीर्षकों का बहुतायत में प्रयोग किया जाता है। इससे समाचारपत्रों की बिक्री बढ़ाने का घटिया तरीका माना जाता है। पीत पत्रकारिता में समाचारों को बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत किया जाता है; घोटाले खोदने का काम किया जाता है; सनसनी फैलाई जाती है; या पत्रकारों द्वारा अव्यावसायिक तरीके अपनाए जाते हैं। मूलतः अब इससे आशय अनैतिक और भ्रष्ट पत्रकारिता है।
जिन दिनों यह शब्द चला था तब इसका मतलब लोकप्रिय पत्रकारिता था। इसका इस्तेमाल अमेरिका में 1890 के आसपास शुरू हुआ था। उन दिनों जोज़फ पुलिट्जर के अख़बार ‘न्यूयॉर्क वर्ल्ड’ और विलियम रैंडॉल्फ हर्स्ट के ‘न्यूयॉर्क जर्नल’ के बीच जबर्दस्त गलाकाट प्रतियोगिता चली थी। दोनों अखबारों पर ‘सर्कुलेशन वॉर’ का आरोप लगा। हालांकि उन्हें अखबारों को उबाऊ बनने से रोकने का श्रेय भी मिलना चाहिए। इस पत्रकारिता को यलो कहने के बीच प्रमुख रूप से पीले रंग का इस्तेमाल है, जो दोनों अखबारों के कार्टूनों का प्रभाव बढ़ाता था। दोनों अखबारों का हीरो पीले रंग का कुत्ता था। अलबत्ता यलो जर्नलिज्म शब्द का सबसे पहले इस्तेमाल उन्हीं दिनों न्यूयॉर्क प्रेस के सम्पादक एरविन वार्डमैन ने किया।
वॉट्सएप के सिक्योरिटी फीचर के बारे में बताएं?
-रजनी गुप्ता, 9-एमआईजी ममफोर्ड गंज, त्रिपाठी चौराहे के पास, इलाहाबाद-211002
वॉट्सएप मैसेंजर स्मार्ट फोनों पर चलने वाली तत्क्षण मैसेजिंग सेवा है। इसकी सहायता से इन्टरनेट के द्वारा दूसरे वॉट्सएप उपयोगकर्ता के स्मार्टफोन पर टेक्स्ट संदेश के अलावा ऑडियो, छवि, वीडियो तथा अपनी स्थिति (लोकेशन) की जानकारी भी भेजी जा सकती है। वॉट्सएप ने हाल में चैट्स के लिए 256 बिट सिक्योरिटी से एंड टु एंड एनक्रिप्शन की घोषणा की है। हालांकि भारत सरकार ने अभी इस विषय पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की है, पर कानूनी जानकार बताते हैं कि देश में अभी ऐसा कानून नहीं है जो इसे रोक सके। पिछले साल सरकार ने राष्ट्रीय एनक्रिप्शन (कूटलेखन) नीति का मसौदा तैयार करके उसे कानून की शक्ल देने की योजना बनाई थी। इसके अनुसार एनक्रिप्टेड डेटा को 90 दिन तक सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी नागरिक पर डाली गई थी। पर भारी विरोध के कारण वह मसौदा वापस ले लिया गया।
दुनियाभर में इन दिनों एनक्रिप्शन को लेकर विचार-विमर्श चल रहा है। एक तरफ लोगों की निजता का सवाल है और दूसरी तरफ अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा का, क्योंकि इस्लामी स्टेट जैसे संगठन अब अपने संदेशों के लिए एनक्रिप्शन का इस्तेमाल करने लगे हैं। भारत सरकार की नीति का उद्देश्य इंटरनेट पर कूटभाषा में भेजे जाने वाले संदेशों पर निगरानी रखने का था। इनमें वॉट्सएप, फेसबुक जैसे संदेश भी आते हैं, जिन्हें कूटभाषा के माध्यम से भेजा जाता है। सारी दुनिया में इन दिनों ऐसे संदेशों पर निगरानी बढ़ाई जा रही है, क्योंकि सुरक्षा के लिहाज से यह जरूरी है। आतंकवादी और संगठित अपराधी भी इसका इस्तेमाल कर रहे हैं। पश्चिम एशिया में इस्लामी स्टेट के उदय में ट्विटर हैंडल का इस्तेमाल किया गया। इसी तरह तालिबान जैसे संगठन इसका इस्तेमाल कर रहे हैं। साइबर आतंकी ऐसे एनक्रिप्शन टूल्स का इस्तेमाल कर रहे हैं जो पहले केवल सरकारी एजेंसियों को ही उपलब्ध थे।
एपल भी अपने आई-मैसेज के लिए एंड टू एंड एनक्रिप्शन का इस्तेमाल करता है। हाल में एपल और अमेरिका की खुफिया एजेंसी एफबीआई के बीच कानूनी लड़ाई चल चुकी है। वॉट्सएप के यूजर्स की संख्या एपल के यूजर्स की तुलना में बहुत अधिक है। खबर है कि इस बारे में सुरक्षा एजेंसियां दूरसंचार मंत्रालय से बात करेंगी। वे चाहती हैं कि इस फीचर को ध्यान में रखते हुए कुछ एहतियाती कदम उठाए जाएं।
अंग्रेजी में टिप का मतलब है ग्रैच्युटी यानी अनुग्रह राशि। किसी की सेवा से खुश होकर दिया गया उपहार। जैसे पुराने बादशाह किसी कलाकार को दिया करते थे। ऑक्सफोर्ड इंग्लिश डिक्शनरी के अनुसार टिप शब्द की व्युत्पत्ति स्पष्ट नहीं है और यह बोलचाल से निकला है। इसका इस्तेमाल सन 1600 के आसपास शुरू हुआ होगा। अकसर घर में आने वाले मेहमान जाते वक्त घर के सेवकों को कुछ नजराना देते थे। यही टिप है। हमारे देश में मुग़लकाल से भी पहले से नजराने, इनाम-इकराम, बख्शीश या पुरस्कार का चलन चला आ रहा है। सत्रहवीं सदी में लंदन के कॉफी हाउसों से इसका प्रचलन बढ़ा। धीरे-धीरे साहित्य में भी इसका इस्तेमाल होने लगा।
हींग कहां से और कैसे प्राप्त होती है? असली हींग की क्या कोई खास पहचान होती है?
-मधुलिका राठौर, अजमेर (राज.)
हींग एशिया में पाए जाने वाले सौंफ की प्रजाति के फेरूला फोइटिस नामक पौधे का चिकना रस है। ये पौधे-ईरान, अफगानिस्तान, तुर्की, बलूचिस्तान, अफगानिस्तान के पहाड़ी इलाकों में अधिक होते हैं। भारत में हींग की खेती बहुत कम मात्रा में होती है। इस पौधे की टहनियाँ 6 से 10 फ़ुट ऊँची हो जाती हैं और इसपर हरापन लिए पीले रंग के फूल निकलते हैं। इसकी जड़ों को काटा जाता है जहाँ से एक दूधिया रस निकलता है। फिर इसे इकट्ठा कर लिया जाता है। सूखने पर ये भूरे रंग के गोंद जैसा हो जाता है जिसे हींग कहा जाता है। ईरान में लगभग हर तरह के भोजन में इसका प्रयोग किया जाता है। भारत में भी हींग का भरपूर इस्तेमाल होता है। इसे संस्कृत में 'हिंगु' कहा जाता है। इसमें ओषधीय गुण भी अनेक हैं। हाजमे के लिए हींग बहुत अच्छी है। यह खाँसी भी दूर करती है। अगर कोई अफ़ीम खा ले तो हींग उसके असर को ख़त्म कर सकती है।
हींग अब ज्यादातर पाउडर के रूप में मिलती है, जिसे आटे या आरारोट में हींग को मिलाकर बनाया जाता है। ऐसे में उसकी पहचान करना काफी मुश्किल है। अलबत्ता टुकड़े वाली हींग भी बाजार में उपलब्ध है। मिलावटी हींग की पहचान के कुछ तरीके यहाँ बताए गए हैं, जो अनुभव से प्राप्त किए गए हैं। माचिस की जलती तीली हींग के करीब ले जाने पर उस की लौ चमकदार हो जाती है। हींग नकली होगी तो ऐसा नहीं होगा। इसी तरह शुद्ध हींग पर पानी डाल कर रगड़ने से पानी का रंग दूधिया हो जाता है, जबकि नकली हींग से पानी का रंग दूधिया यानी सफेद नहीं होता। चूंकि यह पौधे की जड़ के दूध से बनी होती है इसलिए इसका दूधिया होना सम्भव है।
‘पीत-पत्रकारिता’ क्या होती है? इसका आरंभ कब और कैसे हुआ?
-महेंद्र प्रसाद सिंगला, शिव कॉलोनी, रेलवे रोड, शांति पब्लिक स्कूल के पास, पलवल-121102
पीत पत्रकारिता (Yellow journalism) उस पत्रकारिता को कहते हैं जिसमें सही समाचारों की उपेक्षा करके सनसनी फैलाने वाले समाचार या ध्यान-खींचने वाले शीर्षकों का बहुतायत में प्रयोग किया जाता है। इससे समाचारपत्रों की बिक्री बढ़ाने का घटिया तरीका माना जाता है। पीत पत्रकारिता में समाचारों को बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत किया जाता है; घोटाले खोदने का काम किया जाता है; सनसनी फैलाई जाती है; या पत्रकारों द्वारा अव्यावसायिक तरीके अपनाए जाते हैं। मूलतः अब इससे आशय अनैतिक और भ्रष्ट पत्रकारिता है।
जिन दिनों यह शब्द चला था तब इसका मतलब लोकप्रिय पत्रकारिता था। इसका इस्तेमाल अमेरिका में 1890 के आसपास शुरू हुआ था। उन दिनों जोज़फ पुलिट्जर के अख़बार ‘न्यूयॉर्क वर्ल्ड’ और विलियम रैंडॉल्फ हर्स्ट के ‘न्यूयॉर्क जर्नल’ के बीच जबर्दस्त गलाकाट प्रतियोगिता चली थी। दोनों अखबारों पर ‘सर्कुलेशन वॉर’ का आरोप लगा। हालांकि उन्हें अखबारों को उबाऊ बनने से रोकने का श्रेय भी मिलना चाहिए। इस पत्रकारिता को यलो कहने के बीच प्रमुख रूप से पीले रंग का इस्तेमाल है, जो दोनों अखबारों के कार्टूनों का प्रभाव बढ़ाता था। दोनों अखबारों का हीरो पीले रंग का कुत्ता था। अलबत्ता यलो जर्नलिज्म शब्द का सबसे पहले इस्तेमाल उन्हीं दिनों न्यूयॉर्क प्रेस के सम्पादक एरविन वार्डमैन ने किया।
वॉट्सएप के सिक्योरिटी फीचर के बारे में बताएं?
-रजनी गुप्ता, 9-एमआईजी ममफोर्ड गंज, त्रिपाठी चौराहे के पास, इलाहाबाद-211002
वॉट्सएप मैसेंजर स्मार्ट फोनों पर चलने वाली तत्क्षण मैसेजिंग सेवा है। इसकी सहायता से इन्टरनेट के द्वारा दूसरे वॉट्सएप उपयोगकर्ता के स्मार्टफोन पर टेक्स्ट संदेश के अलावा ऑडियो, छवि, वीडियो तथा अपनी स्थिति (लोकेशन) की जानकारी भी भेजी जा सकती है। वॉट्सएप ने हाल में चैट्स के लिए 256 बिट सिक्योरिटी से एंड टु एंड एनक्रिप्शन की घोषणा की है। हालांकि भारत सरकार ने अभी इस विषय पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की है, पर कानूनी जानकार बताते हैं कि देश में अभी ऐसा कानून नहीं है जो इसे रोक सके। पिछले साल सरकार ने राष्ट्रीय एनक्रिप्शन (कूटलेखन) नीति का मसौदा तैयार करके उसे कानून की शक्ल देने की योजना बनाई थी। इसके अनुसार एनक्रिप्टेड डेटा को 90 दिन तक सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी नागरिक पर डाली गई थी। पर भारी विरोध के कारण वह मसौदा वापस ले लिया गया।
दुनियाभर में इन दिनों एनक्रिप्शन को लेकर विचार-विमर्श चल रहा है। एक तरफ लोगों की निजता का सवाल है और दूसरी तरफ अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा का, क्योंकि इस्लामी स्टेट जैसे संगठन अब अपने संदेशों के लिए एनक्रिप्शन का इस्तेमाल करने लगे हैं। भारत सरकार की नीति का उद्देश्य इंटरनेट पर कूटभाषा में भेजे जाने वाले संदेशों पर निगरानी रखने का था। इनमें वॉट्सएप, फेसबुक जैसे संदेश भी आते हैं, जिन्हें कूटभाषा के माध्यम से भेजा जाता है। सारी दुनिया में इन दिनों ऐसे संदेशों पर निगरानी बढ़ाई जा रही है, क्योंकि सुरक्षा के लिहाज से यह जरूरी है। आतंकवादी और संगठित अपराधी भी इसका इस्तेमाल कर रहे हैं। पश्चिम एशिया में इस्लामी स्टेट के उदय में ट्विटर हैंडल का इस्तेमाल किया गया। इसी तरह तालिबान जैसे संगठन इसका इस्तेमाल कर रहे हैं। साइबर आतंकी ऐसे एनक्रिप्शन टूल्स का इस्तेमाल कर रहे हैं जो पहले केवल सरकारी एजेंसियों को ही उपलब्ध थे।
एपल भी अपने आई-मैसेज के लिए एंड टू एंड एनक्रिप्शन का इस्तेमाल करता है। हाल में एपल और अमेरिका की खुफिया एजेंसी एफबीआई के बीच कानूनी लड़ाई चल चुकी है। वॉट्सएप के यूजर्स की संख्या एपल के यूजर्स की तुलना में बहुत अधिक है। खबर है कि इस बारे में सुरक्षा एजेंसियां दूरसंचार मंत्रालय से बात करेंगी। वे चाहती हैं कि इस फीचर को ध्यान में रखते हुए कुछ एहतियाती कदम उठाए जाएं।
कादम्बिनी के जून 2016 अंक में प्रकाशित
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