अंग्रेज़ी शब्द मॉनसून पुर्तगाली शब्द 'मॉन्सैओ' से निकला है. यह शब्द भी मूल अरबी शब्द मॉवसिम (मौसम) से बना है. यह शब्द हिन्दी एवं उर्दू एवं विभिन्न उत्तर भारतीय भाषाओं में भी प्रयोग किया जाता है. आधुनिक डच शब्द मॉनसून से भी मिलता है. मॉनसून मूलतः हिन्द महासागर एवं अरब सागर की ओर से भारत के दक्षिण-पश्चिम तट पर आनी वाली हवाओं को कहते हैं जो भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश आदि में भारी वर्षा करातीं हैं. यह ऐसी मौसमी पवन होती हैं, जो दक्षिणी एशिया क्षेत्र में जून से सितंबर तक, प्रायः चार महीने तक सक्रिय रहती है. इस शब्द का पहला इस्तेमाल अंग्रेजों के भारत आने के बाद बंगाल की खाड़ी और अरब सागर से चलने वाली बड़ी मौसमी हवाओं के लिए हुआ था.
मार्शमैलो क्या होता है?एंड्रॉयड मार्शमैलो या ‘एम’ मोबाइल फोन का ऑपरेटिंग सिस्टम है, जो 28 मई 2015 को जारी किया गया था. मूल रूप से यह फिंगरप्रिंट पहचान का समर्थन प्रदान करता है जिससे स्मार्टफोन को लॉक-अनलॉक किया जा सके और प्ले स्टोर पर सत्यापन के लिए उंगलियों के निशान के उपयोग से अनुमति दी जा सके. मूलतः मार्शमैलो भी एक प्रकार की मिठाई है. एंड्रॉयड के हर वर्ज़न का नाम मिठाई पर होता है. और यह भी कि यह नाम अल्फाबैटिक ऑर्डर में आगे बढ़ रहा है. कपकेक, डोनट, एक्लेयर, फ्रॉयो, जिंजरब्रैड, हनीकॉम्ब, आइसक्रीम सैंडविच, जैलीबीन और किटकैट से होते हुए यह मार्शमैलो को बाद यह सिलसिला नूगट तक जा पहुँचा है, जो मेवों और चीनी के मेल से बनती है. इसका अगला वर्ज़न ‘ओ’ होगा। क्या मिठाई बनेगी इस ‘ओ’ से, इसके बारे में सोचें। गूगल ने कभी यह स्पष्ट नहीं किया कि नामों का यह मिठास क्यों है.
जीएसएलवी और पीएसएलवी का अंतर?
दोनों भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के रॉकेट हैं. एक का नाम है पोलर सैटेलाइट लांच वेहिकल और दूसरे का नाम है जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लांच वेहिकल। दोनों में बुनियादी फर्क है भारवहन क्षमता का. पोलर सैटेलाइट लांच वेहिकल का संक्षिप्त नाम है पीएसएलवी. मूल रूप में पीएसएलवी को भारत के दूर संवेदन (रिमोट सेंसिंग) सैटेलाइट को सौर समकालिक कक्षा (सन-सिंक्रोनस ऑर्बिट) में प्रक्षेपण के लिए बनाया गया था. इसे केरल में तिरुवनंतपुर के पास स्थित विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर में नब्बे के दशक में डिजाइन किया गया था. इसका पहला प्रक्षेपण 20 सितम्बर 1993 को हुआ. पीएसएलवी डेढ़ टन के आसपास का वज़न जीटीओ (जियोस्टेशनरी ट्रांसफर ऑर्बिट) तक पहुँचा सकता है. इसमें बूस्टर लगाकर इसकी क्षमता बढ़ाई जाती है. मंगलयान को इसी रॉकेट ने पृथ्वी की कक्षा में भेजा था. जीएसएलवी को इस प्रकार डिजाइन किया जा रहा है कि उसके इंजन बदल कर उसकी क्षमता बढ़ाई जा सके. उसमें क्रायोजेनिक इंजन भी लगा है. भविष्य में जीएसएलवी का स्थान यूनिफाइड लांच वेहिकल (यूएलवी) जो मॉड्यूलर लांचर होगा. यानी उसके इंजन और बूस्टर बदल कर अलग-अलग वज़न का भार अंतरिक्ष में भेजा जा सके. बहरहाल जीएसएलवी हमारे पहले अंतरिक्ष यात्री को लेकर जाएगा.
दोनों भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के रॉकेट हैं. एक का नाम है पोलर सैटेलाइट लांच वेहिकल और दूसरे का नाम है जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लांच वेहिकल। दोनों में बुनियादी फर्क है भारवहन क्षमता का. पोलर सैटेलाइट लांच वेहिकल का संक्षिप्त नाम है पीएसएलवी. मूल रूप में पीएसएलवी को भारत के दूर संवेदन (रिमोट सेंसिंग) सैटेलाइट को सौर समकालिक कक्षा (सन-सिंक्रोनस ऑर्बिट) में प्रक्षेपण के लिए बनाया गया था. इसे केरल में तिरुवनंतपुर के पास स्थित विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर में नब्बे के दशक में डिजाइन किया गया था. इसका पहला प्रक्षेपण 20 सितम्बर 1993 को हुआ. पीएसएलवी डेढ़ टन के आसपास का वज़न जीटीओ (जियोस्टेशनरी ट्रांसफर ऑर्बिट) तक पहुँचा सकता है. इसमें बूस्टर लगाकर इसकी क्षमता बढ़ाई जाती है. मंगलयान को इसी रॉकेट ने पृथ्वी की कक्षा में भेजा था. जीएसएलवी को इस प्रकार डिजाइन किया जा रहा है कि उसके इंजन बदल कर उसकी क्षमता बढ़ाई जा सके. उसमें क्रायोजेनिक इंजन भी लगा है. भविष्य में जीएसएलवी का स्थान यूनिफाइड लांच वेहिकल (यूएलवी) जो मॉड्यूलर लांचर होगा. यानी उसके इंजन और बूस्टर बदल कर अलग-अलग वज़न का भार अंतरिक्ष में भेजा जा सके. बहरहाल जीएसएलवी हमारे पहले अंतरिक्ष यात्री को लेकर जाएगा.
हमारे देश में इंग्लिश कैलेंडर क्यों चलता है?
लागू होने की वजह तो सरकारी है. सन 1757 में प्लासी की लड़ाई के बाद भारत में ईस्ट इंडिया कम्पनी का शासन स्थापित होने की शुरूआत हो गई और तभी अंग्रेजी कैलेंडर का चलन शुरू हो गया. धीरे-धीरे पूरा देश अंग्रेजी शासन के अधीन आ गया. उसके पहले तक भारत में या तो विक्रमी पंचांग चलता था या इस्लामी काल पद्धति. आज ग्रेगोरियन कैलेंडर दुनियाभर की मानक काल-गणना पद्धति बन गई है.
आईएमई का फुलफॉर्म?
आपका आशय मोबाइल टेलीफोन के आईएमई से है, जिसका फुल फॉर्म है International Magnetospheric Explorer
हॉर्स पावर माने क्या?
हॉर्स पावर शक्ति की एक माप है. बिजली के मामले में आमतौर पर 746 वॉट को एक हॉर्स पावर मानते हैं. अठारहवीं सदी में स्कॉटिश इंजीनियर जेम्स वॉट ने स्टीम इंजन की तुलना माल ढोने वाले घोड़े या ड्राफ्ट हॉर्स से की तो यह चलन शुरू हुआ. इसके बाद टर्बाइन और इलेक्ट्रिक मोटर के इंजनों से इसकी तुलना शुरू हो गई.
लागू होने की वजह तो सरकारी है. सन 1757 में प्लासी की लड़ाई के बाद भारत में ईस्ट इंडिया कम्पनी का शासन स्थापित होने की शुरूआत हो गई और तभी अंग्रेजी कैलेंडर का चलन शुरू हो गया. धीरे-धीरे पूरा देश अंग्रेजी शासन के अधीन आ गया. उसके पहले तक भारत में या तो विक्रमी पंचांग चलता था या इस्लामी काल पद्धति. आज ग्रेगोरियन कैलेंडर दुनियाभर की मानक काल-गणना पद्धति बन गई है.
आईएमई का फुलफॉर्म?
आपका आशय मोबाइल टेलीफोन के आईएमई से है, जिसका फुल फॉर्म है International Magnetospheric Explorer
हॉर्स पावर माने क्या?
हॉर्स पावर शक्ति की एक माप है. बिजली के मामले में आमतौर पर 746 वॉट को एक हॉर्स पावर मानते हैं. अठारहवीं सदी में स्कॉटिश इंजीनियर जेम्स वॉट ने स्टीम इंजन की तुलना माल ढोने वाले घोड़े या ड्राफ्ट हॉर्स से की तो यह चलन शुरू हुआ. इसके बाद टर्बाइन और इलेक्ट्रिक मोटर के इंजनों से इसकी तुलना शुरू हो गई.
प्रभात खबर अवसर में प्रकाशित
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन विश्व एथनिक दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteउपयोगी जानकारी -धन्यवाद .
ReplyDeleteसार्थक जानकारी
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