चाबहार बंदरगाह ओमान की खाड़ी में ईरान के दक्षिण पूर्व में स्थित है. यह ईरान का गहरे सागर का एकमात्र बंदरगाह है. इसमें दो बंदरगाह हैं. एक है शहीद कलंतारी और दूसरा शहीद बेहश्ती. दोनों में पाँच-पाँच बर्थ हैं. यह बंदरगाह भारत-ईरान और अफ़ग़ानिस्तान तीन देशों के समझौते के अधीन विकसित किया जा रहा है. यह एक दीर्घकालीन परियोजना है, जो बाद में इस इलाके को अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण कॉरिडोर के मार्फत मध्य एशिया के रास्ते यूरोप तक से जोड़ने का कार्य कर सकती है. इस बंदरगाह के विकास की परिकल्पना सन 1973 में ईरान के अंतिम शाह ने की थी. सन 1979 की ईरानी क्रांति के बाद इसका काम धीमा पड़ गया था. इसका पहला चरण सन 1983 में पूरा हुआ. इस बंदरगाह में ईरान की दिलचस्पी की एक वजह यह थी कि इराक़ के साथ युद्ध के कारण ईरान ने अपने समुद्री व्यापार को पूर्व की तरफ बढ़ाना शुरू कर दिया था. शहीद बेहश्ती बंदरगाह को विकसित करने के लिए भारत और ईरान के बीच समझौता 2003 में हुआ था.
अमेरिकी पाबंदियाँ
सन 1979 की ईरानी क्रांति के बाद से अमेरिका और ईरान के रिश्ते बिगड़ते गए जिनके कारण अमेरिका ने ईरान पर कई बार पाबंदियाँ लगाईं. हाल में अमेरिका ने 5 नवंबर से ईरान पर फिर से बड़ी पाबंदियाँ लगाने का फैसला किया है. पर उसने चाबहार बंदरगाह का विकास करने के भारतीय कार्यक्रम को उन पाबंदियों से छूट दी है. मई 2016 में भारत और ईरान के बीच एक समझौता हुआ, जिसके तहत भारत शहीद बेहश्ती बंदरगाह की एक बर्थ के पुनरुद्धार और 600 मीटर लंबे एक कंटेनर क्षेत्र का पुनर्निर्माण करेगा. भारत इस बंदरगाह के कंटेनर रेलवे ट्रेक का निर्माण भी कर रहा है और चाबहार-ज़ाहेदान रेलवे लाइन भी तैयार कर रहा है. इसके बाद ज़ाहेदान से अफ़ग़ानिस्तान के ज़रंज तक रेलवे लाइन का विस्तार होगा. ईरान में भारत अंतरराष्ट्रीय उत्तरी-दक्षिणी कॉरिडोर को बनाने की योजना पर भी काम कर रहा है. यह परिवहन कॉरिडोर 7,200 किलोमीटर लंबा नेटवर्क होगा, जिसमें पोत, रेल और सड़क मार्ग से माल का परिवहन होगा. इस परियोजना पर 16 मई 2002 को भारत, रूस और ईरान के बीच समझौता हुआ था. यह नेटवर्क भारत, ईरान, अफ़ग़ानिस्तान, आर्मेनिया, अजरबैजान, रूस, मध्य एशिया के रास्ते यूरोप को जोड़ेगा.
अफ़ग़ानिस्तान की भूमिका
अमेरिका मानता है कि युद्ध-प्रभावित अफ़ग़ानिस्तान के हितों की रक्षा के लिए चाबहार बंदरगाह का विकास करना जरूरी है. चूंकि अफ़ग़ानिस्तान के पास समुद्र तट नहीं है, इसलिए यह उसके व्यापार के लिए महत्वपूर्ण बंदरगाह साबित होगा. भारत के सीमा सड़क संगठन ने अफ़ग़ानिस्तान में जंरंज से डेलाराम तक 215 किलोमीटर लम्बे मार्ग का निर्माण पूरा कर लिया है, जो निमरोज़ प्रांत की पहली पक्की सड़क है. पिछले साल अक्तूबर में भारत ने चाबहार के रास्ते अफ़ग़ानिस्तान को गेहूँ की पहली खेप भेजकर इस व्यापार मार्ग की शुरुआत कर भी दी है.
अमेरिकी पाबंदियाँ
सन 1979 की ईरानी क्रांति के बाद से अमेरिका और ईरान के रिश्ते बिगड़ते गए जिनके कारण अमेरिका ने ईरान पर कई बार पाबंदियाँ लगाईं. हाल में अमेरिका ने 5 नवंबर से ईरान पर फिर से बड़ी पाबंदियाँ लगाने का फैसला किया है. पर उसने चाबहार बंदरगाह का विकास करने के भारतीय कार्यक्रम को उन पाबंदियों से छूट दी है. मई 2016 में भारत और ईरान के बीच एक समझौता हुआ, जिसके तहत भारत शहीद बेहश्ती बंदरगाह की एक बर्थ के पुनरुद्धार और 600 मीटर लंबे एक कंटेनर क्षेत्र का पुनर्निर्माण करेगा. भारत इस बंदरगाह के कंटेनर रेलवे ट्रेक का निर्माण भी कर रहा है और चाबहार-ज़ाहेदान रेलवे लाइन भी तैयार कर रहा है. इसके बाद ज़ाहेदान से अफ़ग़ानिस्तान के ज़रंज तक रेलवे लाइन का विस्तार होगा. ईरान में भारत अंतरराष्ट्रीय उत्तरी-दक्षिणी कॉरिडोर को बनाने की योजना पर भी काम कर रहा है. यह परिवहन कॉरिडोर 7,200 किलोमीटर लंबा नेटवर्क होगा, जिसमें पोत, रेल और सड़क मार्ग से माल का परिवहन होगा. इस परियोजना पर 16 मई 2002 को भारत, रूस और ईरान के बीच समझौता हुआ था. यह नेटवर्क भारत, ईरान, अफ़ग़ानिस्तान, आर्मेनिया, अजरबैजान, रूस, मध्य एशिया के रास्ते यूरोप को जोड़ेगा.
अफ़ग़ानिस्तान की भूमिका
अमेरिका मानता है कि युद्ध-प्रभावित अफ़ग़ानिस्तान के हितों की रक्षा के लिए चाबहार बंदरगाह का विकास करना जरूरी है. चूंकि अफ़ग़ानिस्तान के पास समुद्र तट नहीं है, इसलिए यह उसके व्यापार के लिए महत्वपूर्ण बंदरगाह साबित होगा. भारत के सीमा सड़क संगठन ने अफ़ग़ानिस्तान में जंरंज से डेलाराम तक 215 किलोमीटर लम्बे मार्ग का निर्माण पूरा कर लिया है, जो निमरोज़ प्रांत की पहली पक्की सड़क है. पिछले साल अक्तूबर में भारत ने चाबहार के रास्ते अफ़ग़ानिस्तान को गेहूँ की पहली खेप भेजकर इस व्यापार मार्ग की शुरुआत कर भी दी है.