कुसुम राजावत, प्लॉट नं.1, श्रीराम कॉलोनी, कारोठ
रोड, राजगढ़ (अलवर)-301408
ऑक्सफोर्ड इंग्लिश डिक्शनरी के अनुसार
हैलो शब्द पुराने जर्मन शब्द हाला, होला से बना है, जिसका इस्तेमाल नाविक करते थे।
हैलो या हलो मूलतः अपनी तरफ ध्यान खींचने वाला शब्द है। काफी लोगों का कहना है कि यह
शब्द पुराने फ्रांसीसी या जर्मन शब्द होला से
निकला है। इसका मतलब होता है 'कैसे
हो'
यानी, हाल कैसा है जनाब का? और
यह शब्द 1066 ईस्वी के नॉरमन हमले के समय इंग्लैंड पहुंचा था। अंग्रेज कवि चॉसर के
ज़माने में यानी 1300 के बाद यह शब्द हालो (Hallow) बन चुका था। इसके दो सौ साल बाद यानी शेक्सपियर
के ज़माने में हालू (Halloo) बन गया। फिर यह शिकारियों और
मल्लाहों के इस्तेमाल से कुछ और बदला और Hallloa, Hallooa, Hollo बना।
शब्दों के सफर की खोज करने वाले अजित
वडनेरकर के अनुसार सभ्यता के विकास के साथ मनुष्य ने एक-दूसरे का ध्यानाकर्षण करने
के लिए जिन ध्वनियों का प्रयोग किया, दुनियाभर
में उनमें आश्चर्यजनक समानता है। ज्यादातर कण्ठ्य ध्वनियां हैं जो सीधे गले से
निकलती हैं। जिसके लिए जीभ, दांत
अथवा तालू का कोई काम नहीं है जैसे अ-आ अथवा ह। एक अन्य दिलचस्प समानता यह भी है
कि यह शब्दावली पूर्व में भी और पश्चिम में भी मल्लाहों द्वारा बनाई गई है। भारत
के ज्यादातर मांझी या मल्लाह ओSSSSहैSS या, हैया
होSSS
जैसी ध्वनियों का प्रयोग करते हैं।
अरबी, फारसी, उर्दू में शोर-गुल के लिए “हल्ला” शब्द
प्रचलित है जिसका रिश्ता भी इन्हीं ध्वनियों से है। इसे ही “हो-हल्ला” या
“हुल्लड़” कहते हैं। यूरोप में भी नाविकों के बीच ध्यानाकर्षण का प्रचलित ध्वनि-संकेत
था ahoy
यानी हॉय। ये आदिम ध्वनियां हैं और
मनुष्य के कंठ में भाषा का संस्कार आने से पहले से पैठी हुई हैं। आप्टे के संस्कृत
कोश में हंहो शब्द का उल्लेख है जिसका प्रयोग प्राचीन काल में था। बहरहाल वर्ष
1800 तक इस शब्द का एक विशेष रूप तय हो चुका था और वह था हलो (Hullo)।
बहरहाल जब टेलीफोन का आविष्कार हुआ तो शुरूआत
में लोग फोन पर बजाए पूछा करते थे ‘आर
यू देयर?’(Are you there)? तब
उन्हें यह विश्वास नहीं था कि उनकी आवाज़ दूसरी ओर पहुंच रही है। लेकिन अमेरिकी आविष्कारक
टॉमस एडीसन को इतना लंबा वाक्य पसंद नहीं था। उन्होंने जब पहली बार फ़ोन किया तो
उन्हें य़कीन था कि दूसरी ओर उनकी आवाज़ पहुंच रही है। चुनांचे उन्होंने कहा, हलो।
10 मार्च 1876 को अलेक्जेंडर ग्राहम बैल के टेलीफोन आविष्कार को पेटेंट मिला। वे
शुरू में टेलीफोन पर बात शुरू करने के लिए नाविकों के शब्द ‘हॉय’ का
इस्तेमाल करते थे। सन 1877 में टॉमस एडीसन ने पिट्सबर्ग की सेंट्रल डिस्ट्रिक्ट
एंड प्रिंटिंग टेलीग्राफ कम्पनी के अध्यक्ष टीबीए स्मिथ को लिखा कि टेलीफोन पर
स्वागत शब्द के रूप में हैलो का इस्तेमाल करना चाहिए। उनकी सलाह को अंततः सभी ने
मान लिया। उन दिनों टेलीफोन एक्सचेंज में काम करने वाली ऑपरेटरों को ‘हैलो गर्ल्स’ कहा जाता था।
क्या हमारे राष्ट्रीय चिह्नों की तरह, हर राज्य के अलग-अलग प्रतीक राजकीय चिह्न हैं?
शिखा जैन, 19, अबुल फजल रोड, बंगाली
मार्केट, नई दिल्ली-110001
जिस तरह हमारे राष्ट्रीय चिह्न हैं लगभग उसी तर्ज
पर कुछ राज्यों ने भी अपने राजचिह्न बनाए हैं और दूसरे प्रतीक भी तय किए हैं। कुछ
राज्यों में अशोक चिह्न को राज्य का चिह्न बनाया है। उत्तर प्रदेश के राजकीय चिह्न में दो मछलियाँ, तीर कमान तथा दो
नदियों का संगम दिखाया गया है। बिहार में दो स्वस्तिक चिह्नों के बीच बोधिवृक्ष
राजचिह्न है। मध्य प्रदेश के राजचिह्न में अशोक स्तम्भ के साथ वटवृक्ष है।
महाराष्ट्र के चिह्न में दीपाधार है। तमिलनाडु का राजचिह्न है श्रीविल्लिपुत्तूर
अंडाल मंदिर। इसी तरह राज्यों के अलग-अलग
पक्षी, पशु, वृक्ष, फूल वगैरह हैं। कर्नाटक का अपना राज्य नृत्य यक्षगान और राज्य
गान भी है।
आंख के चश्मे की खोज कब हुई? पहला चश्मा किस देश ने बनाया?
बद्री प्रसाद वर्मा अंजान, गल्लामंडी, गोलाबाजार-273408
गोरखपुर (उ.प्र.)
आँख के चश्मे या तो नज़र ठीक करने के लिए पहने
जाते हैं या फिर धूप, धूल या औद्योगिक कार्यों में उड़ती चीजों से आँखों को बचाने
के लिए भी इन्हें पहना जाता है। शौकिया फैशन के लिए भी। स्टीरियोस्कोपी जैसे कुछ
विशेष उपकरण भी होते हैं, जो कला, शिक्षा और अंतरिक्ष अनुसंधान में काम करते हैं। सामान्यतः
ज्यादा उम्र के लोगों को पढ़ने और नजदीक देखने के लिए चश्मा लगाने की जरूरत होती
है।
सम्भवतः सबसे पहले 13वीं सदी में इटली में नजर के
चश्मे पहने गए। पर उसके पहले अरब वैज्ञानिक अल्हाज़न बता चुके थे कि हम इसलिए देख
पाते हैं, क्योंकि वस्तु से निकला प्रकाश हमारी आँख तक पहुँचता है न कि आँखों से
निकला प्रकाश वस्तु तक पहुँचता है। सन 1021 के आसपास लिखी गई उनकी ‘किताब अल-मनाज़िर’ किसी छवि को बड़ा करके देखने के लिए उत्तल(कॉनवेक्स) लेंस के इस्तेमाल
का जिक्र था। बारहवीं सदी में इस किताब का अरबी से लैटिन में अनुवाद हुआ। इसके बाद
इटली में चश्मे बने।
अंग्रेज वैज्ञानिक रॉबर्ट ग्रोसेटेस्ट की रचना ‘ऑन द रेनबो’ में बताया गया है
कि किस प्रकाश ऑप्टिक्स की मदद से महीन अक्षरों को दूर से पढ़ा जा सकता है। यह
रचना 1220 से 1235 के बीच की है। सन 1262 में रोजर बेकन ने वस्तुओं को बड़ा करके
दिखाने वाले लेंस के बारे में लिखा। बारहवीं सदी में ही चीन में धूप की चमक से
बचने के लिए आँखों के आगे धुंधले क्वार्ट्ज पहनने का चलन शुरू हो गया था। बहरहाल
इतना प्रमाण मिलता है कि सबसे पहले सन 1286 में इटली में चश्मा पहना गया। यह
स्पष्ट नहीं है कि उसका आविष्कार किसने किया। चौदहवीं सदी की पेंटिंगों में एक या
दोनों आँखों के चश्मा धारण किए पात्रों के चित्र मिलते हैं।
कादम्बिनी के मार्च 2016 अंक में प्रकाशित
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 21 - 04 - 2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2319 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
बहुत अच्छी अच्छी जानकारी...
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