इंग्लैंड के राजा हेनरी पंचम ने 1414 में पहली बार ऐसे औपचारिक परिचय पत्र का आविष्कार किया, जिसे पासपोर्ट कह सकते हैं। उन्नीसवीं सदी में रेलवे के आविष्कार के बाद यूरोप में यात्राएं बढ़ीं, जिसके कारण दस्तावेजों की जाँच मुश्किल काम हो गया। लंबे समय तक बगैर पासपोर्ट यात्राएं भी हुईं। पहले विश्व युद्ध तक पासपोर्ट की व्यवस्था लगभग समाप्त हो गई थी, पर उसी दौरान राष्ट्रीय सुरक्षा के सवाल उठे और फिर आधुनिक व्यवस्था का विकास हुआ। 1920 में लीग ऑफ नेशंस का पासपोर्ट और कस्टम को लेकर पेरिस सम्मेलन हुआ और पासपोर्ट की मानक बुकलेट डिजाइन स्वीकृत हुई। संयुक्त राष्ट्र की स्थापना के बाद 1963 में अंतरराष्ट्रीय यात्रा को लेकर सम्मेलन हुआ। 1980 में अंतरराष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन ने मशीन रीडेबल पासपोर्ट का मानक रूप बनाया। फिर बायोमीट्रिक्स पहचान को पासपोर्ट में शामिल किया गया। भारत में अंग्रेजी शासन के दौरान पासपोर्ट का उपयोग यूरोपीय व्यापारियों, अधिकारियों और सैनिकों के लिए था। भारतीयों को विदेश यात्रा के लिए प्रशासन से अनुमति लेनी पड़ती थी। स्वतंत्रता के बाद 1950 में भारत ने अपने नागरिकों के लिए आधुनिक पासपोर्ट प्रणाली शुरू की। पासपोर्ट एक्ट, 1967 ने इसे और व्यवस्थित किया।
राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में 21 जून, 2025 को प्रकाशित
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