पहले इस संगठन की पृष्ठभूमि को समझना चाहिए। इसकी शुरूआत सन 1999 में जॉर्डन के अबू मुसाब अल-ज़रकाबी ने ‘जमात अल-तौहीद-वल-जिहाद’ नाम से की थी। सन 2004 में अल-ज़रकाबी ने ओसामा बिन लादेन के प्रति अपनी आस्था व्यक्त करते हुए अपने संगठन का नाम कर दिया ‘तंज़ीम क़ायदात-अल-जिहाद फ बिलाद अल-रफीदायन।’ अंग्रेजी में इसका संक्षेप में नाम हुआ ‘अल-क़ायदा इन इराक़ (एक्यूआई)।’ सन 2006 में ज़रकाबी। बावजूद इसके उसका संगठन कायम रहा जिसके कब्जे में इराक का काफी इलाका था।
सन 2013 में इस संगठन ने सीरिया के कुछ इलाकों पर कब्जा करने के बाद अपने संगठन का नाम रखा ‘इस्लामिक स्टेट इन इराक एंड अल-शाम।’ अरबी भाषा में सीरिया को शाम कहा जाता है। हालांकि ‘अल शाम’ काफी पुराना शब्द है जो सीरिया, लेबनान, इस्रायल, फलस्तीन और जॉर्डन को एक साथ संबोधित करता है। भूमध्य सागर के जिस इलाके को अरबी में अल-शाम कहा जाता है, उसे अंग्रेजी में लैवेंट पुकारा जाता है। यहीं से एक नया अनुवाद हुआ और संगठन को ‘इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड लैवेंट’ यानी आईसिल कहा जाने लगा। इसके समांतर दूसरा शब्द चल रहा था ‘इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया’ यानी आईसिस।
जून 2014 में इस ग्रुप के नेता अबू बक्र अल बग़दादी ने इस्लामिक ‘खिलाफत’ के गठन की घोषणा कर दी, जिसका खलीफा खुद को घोषित कर दिया। इसके साथ ही इस संगठन ने घोषणा की कि वह अपने नाम के आगे से इराक और सीरिया हटा रहा है। संगठन का दावा है कि वह इस्लामिक खिलाफत स्थापित कर चुका है। इस तर्क से दुनिया की सभी इस्लामी सरकारें नाजायज हैं और केवल आईएस ही सही है।
पर एक नाम दाएश या दाइश भी चल रहा है? वह क्यों?
‘इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया’ यानी आईसिस का अरबी अनुवाद है ‘अल-दावला अल-इस्लामिया फ इराक वा अल शाम।’ अरबी मीडिया आईएस को इस नाम से पुकारता है। इसका संक्षेप नाम बना दाएश। पश्चिमी देशों ने इसे एक शब्द बना कर दाएश के रूप में इस्तेमाल करने का फैसला किया है। हालांकि अरबी में दाएश जैसा कोई शब्द नहीं है। ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड केमरन, फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलां, ऑस्ट्रेलियन प्रधानमंत्री टोनी एबट और अब अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भी इसे दाएश कहना शुरू कर दिया है।
पश्चिमी देशों के नेता दाएश नाम को वरीयता क्यों दे रहे हैं?
ऐसा केवल राजनीतिक और वैचारिक कारणों से किया जा रहा है। इस्लामिक स्टेट कहने से इस संगठन को वैधानिकता मिलती है। यानी कोई राज्य स्थापित हो गया है। प्रकारांतर से इसका मतलब यह हुआ कि ‘खिलाफत’ की स्थापना हो गई है, जिसके आगे सभी मुसलिम देशों को झुकना होगा, जबकि ऐसा है नहीं। उसके नाम रखने लेने मात्र से तो कोई नहीं बन जाता। इससे उसका रुतबा बढ़ता है और दुनिया के उन मुसलमानों तक गलत संदेश जाता है, जो मानते हैं कि यह हत्यारों का गिरोह है। यह संगठन दाएश शब्द को नापसंद करता है। यह शब्द रबी के शब्द ‘दाहेश’ से मिलता-जुलता है, जिसका अर्थ है समाज में द्वेष पैदा करने वाला। अब ज्यादातर अरब देश भी इस संगठन को दाएश नाम से पुकारने लगे हैं।
फिर भी सबसे ज्यादा प्रचलित नाम क्या है?
ज्यादातर मीडिया हाउस इस इस्लामिक स्टेट ही लिख रहे हैं, जो नाम संगठन खुद बता रहा है। गूगल पर आधारित ज्यादातर डेटा का निष्कर्ष है कि गैर अरब इलाकों में यह नाम ही सबसे ज्यादा प्रचलित है। इस साल अक्तूबर तक दाएश नाम का इस्तेमाल जीरो के आसपास था। नवम्बर में पेरिस हमले के बाद कुछ समय यह नाम प्रचलन में रहा, पर अब फिर से इस्लामिक स्टेट नाम ही ज्यादा प्रचलन में है।
राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में प्रकाशित
सन 2013 में इस संगठन ने सीरिया के कुछ इलाकों पर कब्जा करने के बाद अपने संगठन का नाम रखा ‘इस्लामिक स्टेट इन इराक एंड अल-शाम।’ अरबी भाषा में सीरिया को शाम कहा जाता है। हालांकि ‘अल शाम’ काफी पुराना शब्द है जो सीरिया, लेबनान, इस्रायल, फलस्तीन और जॉर्डन को एक साथ संबोधित करता है। भूमध्य सागर के जिस इलाके को अरबी में अल-शाम कहा जाता है, उसे अंग्रेजी में लैवेंट पुकारा जाता है। यहीं से एक नया अनुवाद हुआ और संगठन को ‘इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड लैवेंट’ यानी आईसिल कहा जाने लगा। इसके समांतर दूसरा शब्द चल रहा था ‘इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया’ यानी आईसिस।
जून 2014 में इस ग्रुप के नेता अबू बक्र अल बग़दादी ने इस्लामिक ‘खिलाफत’ के गठन की घोषणा कर दी, जिसका खलीफा खुद को घोषित कर दिया। इसके साथ ही इस संगठन ने घोषणा की कि वह अपने नाम के आगे से इराक और सीरिया हटा रहा है। संगठन का दावा है कि वह इस्लामिक खिलाफत स्थापित कर चुका है। इस तर्क से दुनिया की सभी इस्लामी सरकारें नाजायज हैं और केवल आईएस ही सही है।
पर एक नाम दाएश या दाइश भी चल रहा है? वह क्यों?
‘इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया’ यानी आईसिस का अरबी अनुवाद है ‘अल-दावला अल-इस्लामिया फ इराक वा अल शाम।’ अरबी मीडिया आईएस को इस नाम से पुकारता है। इसका संक्षेप नाम बना दाएश। पश्चिमी देशों ने इसे एक शब्द बना कर दाएश के रूप में इस्तेमाल करने का फैसला किया है। हालांकि अरबी में दाएश जैसा कोई शब्द नहीं है। ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड केमरन, फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलां, ऑस्ट्रेलियन प्रधानमंत्री टोनी एबट और अब अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भी इसे दाएश कहना शुरू कर दिया है।
पश्चिमी देशों के नेता दाएश नाम को वरीयता क्यों दे रहे हैं?
ऐसा केवल राजनीतिक और वैचारिक कारणों से किया जा रहा है। इस्लामिक स्टेट कहने से इस संगठन को वैधानिकता मिलती है। यानी कोई राज्य स्थापित हो गया है। प्रकारांतर से इसका मतलब यह हुआ कि ‘खिलाफत’ की स्थापना हो गई है, जिसके आगे सभी मुसलिम देशों को झुकना होगा, जबकि ऐसा है नहीं। उसके नाम रखने लेने मात्र से तो कोई नहीं बन जाता। इससे उसका रुतबा बढ़ता है और दुनिया के उन मुसलमानों तक गलत संदेश जाता है, जो मानते हैं कि यह हत्यारों का गिरोह है। यह संगठन दाएश शब्द को नापसंद करता है। यह शब्द रबी के शब्द ‘दाहेश’ से मिलता-जुलता है, जिसका अर्थ है समाज में द्वेष पैदा करने वाला। अब ज्यादातर अरब देश भी इस संगठन को दाएश नाम से पुकारने लगे हैं।
फिर भी सबसे ज्यादा प्रचलित नाम क्या है?
ज्यादातर मीडिया हाउस इस इस्लामिक स्टेट ही लिख रहे हैं, जो नाम संगठन खुद बता रहा है। गूगल पर आधारित ज्यादातर डेटा का निष्कर्ष है कि गैर अरब इलाकों में यह नाम ही सबसे ज्यादा प्रचलित है। इस साल अक्तूबर तक दाएश नाम का इस्तेमाल जीरो के आसपास था। नवम्बर में पेरिस हमले के बाद कुछ समय यह नाम प्रचलन में रहा, पर अब फिर से इस्लामिक स्टेट नाम ही ज्यादा प्रचलन में है।
बेहतरीन और उम्दा प्रस्तुति....आपको सपरिवार नववर्ष की शुभकामनाएं...HAPPY NEW YEAR 2016...
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