Friday, January 29, 2016

नेताजी सुभाष चंद्र बोस के लिए ‘नेताजी’ शब्द कब, किसने और क्यों इस्तेमाल किया?

कुछ लोग कहते हैं कि अनुसार सुभाष बोस को सबसे पहले रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने नेताजी का संबोधन दिया। इसका कोई प्रमाण नहीं मिलता। उनके नाम का प्रचलन 1942 में हुआ, जबकि रवीन्द्रनाथ ठाकुर का निधन 1941 में हो गया था। सन 1940 के अंत में सुभाष बोस के मन में देश के बाहर जाकर स्वतंत्रता दिलाने की योजना तैयार हो चुकी थी। वे पेशावर और काबुल होते हुए इतालवी दूतावास के सहयोग से अनेक 28 मार्च 1941 को बर्लिन (जर्मनी) पहुँचे। बर्लिन में उन्होंने स्वतंत्र भारत केन्द्र की स्थापना की। यहाँ उन्होंने सिंगापुर तथा उत्तर अफ्रीका से लाए गए भारतीय युद्धबंदियों को एकत्र करके सैनिक दल का गठन किया। इस सैनिक दल के सदस्य सुभाष को ‘नेताजी’ के नाम से संबोधित करते थे। कुछ लोग यह भी कहते हैं कि हिटलर ने उन्हें यह संबोधन दिया। पर भारतीय नाम नेताजी तो कोई भारतीय ही दे सकता है। सुभाष ने नियमित प्रसारण हेतु आज़ाद हिंद रेडियो की शुरुआत करवाई। अक्तूबर 1941 से इसका प्रसारण प्रारम्भ हुआ, यहाँ से भारतवासियों तथा पूर्वी एशिया के भारतीयों के लिए अंग्रेजी, हिन्दुस्तानी, बांग्ला, तमिल, तेलुगु, फ़ारसी व पश्तो इन सात भाषाओं में संस्था की गतिविधियों का प्रसारण किया जाता था। उधर फरवरी 1942 में अंग्रेज सेना ने सिंगापुर में जापानी सैनिकों के समक्ष आत्मसमर्पण किया। इनमें भारतीय सेना के अधिकारी और पाँच हज़ार सैनिक थे जिन्हें जापानी सेना ने बंदी बना लिया था। इन्हीं सैनिकों ने आजाद हिंद फौज तैयार की। सुभाष जर्मनी बोस को तार भेजकर जर्मनी से पूर्वी एशिया में आकर भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन का नेतृत्व स्वीकार करने हेतु बुलाया गया। 8 फरवरी 1943 को जर्मनी से आबिद अली हसन के साथ एक पनडुब्बी में सवार होकर 90 दिन की खतरनाक यात्रा कर 6 मई को सुमात्रा के पेनांग फिर वहाँ से 16 मई 1943 को तोक्यो पहुँचे। 21 जून 1943 को नेताजी ने तोक्यो रेडियो से भाषण दिया। देश का सबसे प्रसिद्ध नारा ‘जैहिन्द’ नेताजी ने ही दिया था।

पश्चिम बंगाल राज्य भारत के पूर्वी भाग में स्थित है तो यह पश्चिमी बंगाल कैसे है? पूर्वी बंगाल क्यों नहीं?

आज हम जिसे पश्चिम बंगाल कहते हैं वह समूचे बंगाल का एक हिस्सा है। सन 1757 की प्लासी लड़ाई में ईस्ट इंडिया कम्पनी की जीत से अंग्रेजी शासन को बुनियादी आधार मिला। अंग्रेजी शासन ने शुरू में कोलकाता को अपनी राजधानी बनाया। बीसवीं सदी के प्रारम्भ में वायसराय लॉर्ड कर्जन ने प्रशासनिक कारणों से बंगाल को दो हिस्सों में बाँटने का फैसला किया। इसके पीछे जो भी कारण रहा हो, पर यह स्पष्ट था कि मुस्लिम बहुल क्षेत्र पूर्वी बंगाल बना और हिन्दू बहुल क्षेत्र पश्चिमी बंगाल। 16 अक्टूबर 1905 को बंगाल का विभाजन हुआ। बंग भंग की इस कारवाई ने भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन की चिंगारी जला दी। विभाजन का भारी विरोध हुआ, पर वह टला नहीं। सन 1906 में गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने आमार शोनार बांग्ला... गीत लिखा, जो सन 1972 में बांग्लादेश का राष्ट्रगीत बना। बहरहाल 1947 में देश के विभाजन के बाद भी बंगाल विभाजित रहा। पूर्वी बंगाल, पूर्वी पाकिस्तान बना और पश्चिमी बंगाल भारत में रहा। वह नाम अबतक चला आ रहा है।

टीवी की टीआरपी से अभिनेताओं और निर्माताओं को क्या पायदा होता है?

टारगेट रेटिंग पॉइंट(टीआरपी) का उद्देश्य टेलीविज़न के दर्शकों की संख्या का अनुमान लगाना है। इसका सबसे प्रचलित तरीका है फ्रीक्वेंसी मॉनीटरिंग। कुछ सैम्पल घरों में पीपुल मीटर लगाए जाते हैं, जो टीवी पर देखे जा रहे कार्यक्रमों की फ्रीक्वेंसी दर्ज करते हैं। इसे डिकोड करके पता लगाया जाता है कि किस चैनल को कितना देखा गया। अब फ्रीक्वेंसी की जगह तस्वीर को रिकॉर्ड करने की तकनीक भी स्तेमाल में लाई जा रही है। भारत में इंडिया टेलीविज़न ऑडियंस मैज़रमेंट या इनटैम इस काम को करती थी। पहले टैम (TAM) नाम की संस्था, हर हफ्ते टीआरपी देती थी। अब टैम की जगह Broadcast Audience Research (BARC) नाम की एजेंसी ने टीआरपी देनी शुरू की है। इसका उद्देश्य विज्ञापनदाताओं को यह बताना है कि किस चैनल की और किस कार्यक्रम की ज्यादा लोकप्रियता है। जाहिर है कि कार्यक्रमों के प्रस्तोता बेहतर टीआरपी की मदद से ज्यादा विज्ञापन हासिल करना चाहते हैं।

किसी प्रोडक्ट का बारकोड क्या होता है?

बारकोड मोटे तौर पर किसी वस्तु के बारे में जानकारी देने वाले डेटा का मशीन से पढ़े जाने लायक ऑप्टिकल विवरण होता है. मूलतः शुरूआती बारकोडों में अनेक समांतर रेखाओं की मोटाई और उनके बीच की व्यवस्थित दूरी उस विवरण को व्यक्त होती थी. यह एक आयामी व्यवस्था थी, अब इनमें चतुष्कोण, पंचकोण, डॉट और अन्य ज्यामितीय संरचनाओं यानी दो आयामी व्यवस्था का इस्तेमाल भी होने लगा है. शुरू में बारकोड को पढ़ने के लिए ऑप्टिकल स्कैनरों और बारकोड रीडर आते थे, पर अब डेस्कटॉप प्रिंटरों और स्मार्टफोनों में भी इसकी व्यवस्था होने लगी है.
साठ के दशक में अमेरिकन रेलरोड्स की एसोसिएशन ने बारकोड का चलन शुरू किया था. इसका विकास जनरल टेलीफोन एंड इलेक्ट्रॉनिक्स (जीटीई) ने किया था. इसके तहत इस्पात की पटरियों की पहचान के लिए उनमें रंगीन पट्टियाँ लगाई जाती थीं. ये पट्टियाँ उस सामग्री के स्वामित्व, उस उपकरण के टाइप और पहचान नम्बर की जानकारी देती थीं. गाड़ी के दोनों और ये पट्टियाँ लगी होती थीं. इन प्लेटों को यार्ड के गेट पर लगा स्कैनर पढ़ता था. तकरीबन दस साल तक इस्तेमाल में आने के बाद इसका चलन बंद कर दिया गया, क्योंकि यह व्यवस्था विश्वसनीय नहीं रही. इसके बाद जब सुपरमार्केट में सामान के भुगतान की व्यवस्था में इस्तेमाल किया गया तो उसमें काफी सफलता मिली. इसके बाद यह व्यवस्था दुनिया भर में चलने लगी. इसके बाद ऑटोमेटिक आइडैंटिफ़िकेशन एंड डेटा कैप्चर (एआईडीसी) नाम से यह प्रणाली दूसरे कई कामों में भी शुरू की गई. इसके अलावा युनीवर्सल प्रोडक्ट कोड (यूपीसी) नाम से एक और सिस्टम भी सामने आया. इक्कीसवीं सदी में रेडियो फ्रीक्वेंसी आइडैंटिफ़िकेशन की शुरूआत भी हुई. 

बारकोड अब जीवन के ज्यादातर क्षेत्रों में अपनाए जा रहे हैं. अस्पताल में मरीज का पूरा विवरण बारकोड के मार्फत पढ़ा जा सकता है, किताब के बारे में जानकारी बारकोड से मिल जाती है, हर तरह के उत्पाद की कीमत बारकोड बताता है.

क्या मछलियों को प्यास  लगती है? यदि पानी पीती हैं तो खारे पानी की मछली मीठे पानी में और मीठे पानी की मछली खारे पानी में किस प्रकार जीवित रह सकती है?

मछलियाँ कई प्रकार की होती हैं. कई मछलियाँ केवल ताजा पानी में होती हैं और कई खारे पानी में. उनके शरीर की त्वचा तथा गलफड़े (गिल्स) जरूरत भर के पानी को सोख लेते हैं. मछली के गलफड़े उसे आवश्यक ऑक्सीजन पहुँचाते हैं. खारे पानी में रहने वाली मछलियों के गलफड़े पानी का शोधन करके नमक को अलग कर देते हैं. सैल्मन परिवार की मछली दोनों प्रकार के पानी में रह सकती है. उसके शरीर की संरचना में खारे पानी के शोधन की व्यवस्था होती है.

बैंकिंग प्रणाली में आरटीजीएस और आईएफएससी कोड क्या है? यह किस तरह काम करते हैं, इससे आम आदमी को कोई फायदा होता है?

यह बैंकों के धनराशि लेन-देन की व्यवस्था है. भारतीय बैंक रियल टाइम ग्रॉस सेटलमेंट (आरटीजीएस) और नेशनल इलेक्ट्रॉनिक फंड ट्रांसफर प्रणाली के मार्फत काम करते हैं. आमतौर पर धनराशि का ट्रांसफर इलेक्ट्रॉनिक क्लीयरिंग सर्विसेज (ईसीएस) के मार्फत होता है. इस व्यवस्था के तहत बैंकों की ब्रांचों के इंडियन फाइनेंशियल सिस्टम कोड (आईएफएससी) प्रदान किए गए हैं. यह कोड चेक पर लिखा रहता है. आम आदमी को जल्द और सही सेवा देने के लिए ही इन्हें बनाया गया है.

प्लास्टिक सर्जरी क्या है?

प्लास्टिक सर्जरी का मतलब है, शरीर के किसी हिस्से को ठीक करना या पुनर्जीवित करना. इसमें प्लास्टिक शब्द-ग्रीक शब्द "प्लास्टिको" से आया है. ग्रीक में प्लास्टिको का अर्थ होता है बनाना या तैयार करना. प्लास्टिक सर्जरी  में सर्जन शरीर के किसी हिस्से के सेल निकालकर दूसरे हिस्से में जोड़ता है और वे स्वयं उस अंग की जगह ले लेते हैं. प्रायः दुर्घटना या किसी कारण से अंग भंग होने पर इसका इस्तेमाल होता है. हाथ-पैर कट जाने, चेहरे, नाक, कान वगैरह में विकृति आने पर इसकी मदद ली जाती है. प्लास्टिक सर्जरी का श्रेय छठी शताब्दी ईसा पूर्व के भारतीय शल्य चिकित्सक सुश्रुत को जाता है. 
  
प्रभात खबर अवसर में प्रकाशित

Thursday, January 14, 2016

एस्ट्रोनॉट्स स्पेस में क्या या कैसा खाना खाते हैं?

अब अंतरिक्ष यात्राएं काफी लम्बी होने लगी हैं. कई-कई महीने तक यात्रियों को अंतरिक्ष स्टेशन पर रहना पड़ता है. उनके लिए खाने की व्यवस्था करने के पहले देखना पड़ता है कि गुरुत्वाकर्षण शक्ति से मुक्त स्पेस में उनके शरीर को किस प्रकार के भोजन की जरूरत है. साथ ही उसे स्टोर किस तरह से किया जाए. सबसे पहले अंतरिक्ष यात्री यूरी गागारिन को भोजन के रूप में टूथपेस्ट जैसी ट्यूब में कुछ पौष्टिक वस्तुएं दी गईं थीं. उन्हें गोश्त का पेस्ट और चॉकलेट सॉस भी दिया गया. 1962 में अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री जॉन ग्लेन ने भारहीनता की स्थिति में भोजन करने का प्रयोग किया था. शुरू में लगता था कि भारहीनता में इंसान भोजन को निगल पाएगा या नहीं. इसके बाद अंतरिक्ष यात्रियों के लिए टेबलेट और तरल रूप में भोजन बनाया गया. धीरे-धीरे उनके भोजन पर रिसर्च होती रही. उन्हें सैंडविच और टोस्ट दिए जाने लगे. अब उन्हें कई तरह के पेय पदार्थ और खाने की चीजें भेजी जाती हैं. अलबत्ता वहाँ स्वाद की समस्या होती है. भारतीय मूल की सुनीता विलियम्स हाल में जब भारत आईं थी तो उन्होंने बताया था कि वे अंतरिक्ष में समोसे लेकर गई थीं. साथ ही वे पढ़ने के लिए उपनिषद और गीता भी लेकर गईं थी.

एंटी ऑक्सीडेंट क्या होते हैं और ये शरीर पर क्या प्रभाव डालते हैं?
हमारे शरीर की खरबों कोशिकाओं को पोषण की कमी और संक्रमण का ही खतरा नहीं होता हैबल्कि फ्री रेडिकल्स भी कोशिकाओं को काफी नुकसान पहुंचाते हैं. यह फ्री रेडिकल्स भोजन को ऊर्जा में बदलने की प्रक्रिया में उप-उत्पाद के रूप में निकलते हैं. इसके अलावा कुछ उस भोजन में होते हैं जो हम खाते हैंकुछ उस हवा में तैरते रहते हैं जो हमारे आसपास मौजूद होती है. फ्री रेडिकल्स अलग-अलग आकारमाप और रासायनिक संगठन के होते हैं. फ्री रेडिकल्स कोशिकाओं को नष्ट करके हृदय रोगोंकैंसर और दूसरी बीमारियों की आशंका बढ़ा सकते हैं. एंटी ऑक्सीडेंट फ्री रेडिकल्स के प्रभाव से कोशिकाओं को बचाते हैं.

भोजन को पचाने में कई क्रियाएं होती हैं. शरीर भोजन से अपने लिए जरूरी तत्वों को ले लेता है लेकिन उन तत्वों को अलग कर देता है जो नुकसानदेह हैं. ये विषैले तत्व कई बार शरीर से आसानी से नहीं निकलते. ऐसे में एंटी ऑक्सीडेंट उन्हें शरीर से बाहर करता है और शरीर की सफाई करता है. एंटी ऑक्सीडेंट वह अणु होते हैं जो दूसरे अणुओं के ऑक्सीडेशन को रोकते हैं. सैकड़ों नहीं हजारों पदार्थ एंटी ऑक्सीडेंट की तरह कार्य करते हैं. यह विटामिनमिनरल्स और दूसरे कई पोषक तत्व होते हैं. बीटा कैरोटिनल्युटिन लाइकोपीनफ्लैवोनाइडलिगनान जैसे एंटी ऑक्सीडेंट हमारे लिए बहुत जरूरी और महत्वपूर्ण हैं. इनके अलावा मिनरल सेलेनियम भी एक एंटी ऑक्सीडेंट की तरह कार्य करता है. विटामिन एविटामिन सी और विटामिन ई की एक एंटी ऑक्सीडेंट के रूप में हमारे शरीर में महत्वपूर्ण भूमिका होती है.

एंटी ऑक्सीडेंट ताजे फल और सब्जियों में सबसे अधिक मात्रा में पाए जाते हैं. इन्हें स्कैवेंजर भी कहते हैंक्योंकि यह फ्री रेडिकल्स को खाकर शरीर की सफाई करते हैं. गाजर शक्तिशाली एंटी ऑक्सीडेंट बीटा-कैरोटिन से भरपूर होती है. यह शकरकंदशलजम और पीली एवं नारंगी रंग की सब्जियों में होता है. टमाटर में लाइकोपीन होता है. यह फेफड़ेबड़ी आंत और स्तन कैंसर से बचाता है और मस्तिष्क की कार्यप्रणाली को दुरुस्त रखता है. चाय हमें कैंसरहृदय रोगोंस्ट्रोक और दूसरी बीमारियों से बचाती है. हरी और काली दोनों चाय काफी लाभदायक होती हैं. लहसुन एंटी ऑक्सीडेंट से भरपूर होता है जो कैंसर और हृदय रोगों से लड़ने में मददगार होता है और बढ़ती उम्र के प्रभावों को कम करता है.
मंगल ग्रह के बारे में बताएं.

मंगल सौरमंडल में सूर्य से चौथा ग्रह है. पृथ्वी से यह लाल नज़र आता है, जिस वजह से इसे "लाल ग्रह" के नाम से भी जाना जाता है. सौरमंडल के ग्रह दो तरह के होते हैं- "स्थलीय ग्रह" जिनमें ज़मीन होती है और "गैसीय ग्रह" जिनमें अधिकतर गैस ही गैस है. पृथ्वी की तरह, मंगल भी एक स्थलीय धरातल वाला ग्रह है. इसकी सतह देखने पर चंद्रमा के गर्त और पृथ्वी के ज्वालामुखियों, घाटियों, रेगिस्तान और ध्रुवीय बर्फीली चोटियों की याद दिलाती है.

हमारे सौरमंडल का सबसे ऊँचा पर्वत ओलिम्पस मंगल पर ही है. आसपास के मैदानी क्षेत्र से इसकी चोटी की ऊँचाई करीब 24 किलोमीटर है. अपनी भौगोलिक विशेषताओं के अलावा, मंगल का अपनी धुरी पर घूमना और मौसमी चक्र धरती जैसा है. इस समय मंगल ग्रह की परिक्रमा पाँच यान मार्स ओडिसी, मार्स एक्सप्रेस, मार्स रिकॉनेसां ऑर्बिटर, मावेन और मंगलयान कर रहे है. दो अन्वेषण रोवर (क्यूरॉसिटी और अपरच्युनिटी) मंगल की सतह पर हैं. लैंडर फीनिक्स, के साथ ही कई निष्क्रिय रोवर्स और लैंडर हैं जो या तो असफल हो गए हैं या उनका अभियान पूरा हो गया है.

हम जानते हैं कि हमारी धरती दूसरे ग्रहों के साथ सूरज की परिक्रमा करती है. इस परिक्रमा का यात्रा पथ किसी का बड़ा है और किसी का छोटा. मंगल और हमारे बीच दूरी घटती बढ़ती रहती है. हर दो साल में मंगल पृथ्वी के करीब आता है. इसे मंगल की वियुति कहते हैं. पन्द्रह से सत्रह साल में यह सबसे करीब यानी साढ़े पाँच करोड़ किलोमीटर की दूरी पर होता है. इसे महान वियुति कहते हैं. जब सबसे दूर होता है तब वह दूरी तकरीबन 40 करोड़ किलोमीटर होती है. हमारे मंगलयान को मंगल की कक्षा में पहुँचने के लिए तकरीबन 69 करोड़ किलोमीटर की यात्रा करनी होगी. मंगल के दो चन्द्रमा, फ़ोबोस और डिमोज़ हैं, जो छोटे और अनियमित आकार के हैं.

Sunday, January 10, 2016

वेलेंटाइन डे क्यों मनाया जाता है?

वेलेंटाइन दिवस या संत वेलेंटाइन दिवस 14 फ़रवरी को हर साल काफी लोगों द्वारा दुनिया भर में मनाया जाता है। इसमें प्रेमी एक दूसरे के प्रति अपने प्रेम का इजहार वेलेंटाइन कार्ड भेजकर, फूल देकर, या मिठाई आदि देकर करते हैं। यह दिन संत वेलेंटाइन नाम के ईसाई शहीद धर्मगुरु के नाम पर मनाया जाता है। संत वेलेंटाइन अनेक हुए हैं। इनमें से कम से कम दो का सम्बन्ध 14 फरवरी से है। इनके बारे में कई प्रकार की कहानियाँ प्रचलित हैं। बहरहाल यूरोप में रूमानियत को बढ़ावा देने वाला यह दिन अब यूरोप से बाहर निकल चुका है। आधुनिक वेलेंटाइन के प्रतीकों में दिल के आकार का प्रारूप, कबूतर, और पंख वाले क्यूपिड का चित्र शामिल हैं। ग्रेट ब्रिटेन में उन्नीसवीं शताब्दी में वेलेंटाइन का फैशन था। अमेरिकी ग्रीटिंग कार्ड एसोसिएशन का अनुमान है कि लगभग एक अरब वेलेंटाइन हर साल पूरी दुनिया में भेजे जाते हैं। क्रिसमस के बाद इस दिन सबसे ज्यादा कार्ड भेजे जाते हैं। बाजार का आकार इतना बड़ा इसलिए है, क्योंकि वेलेंटाइन डे एक दिन का उत्सव नहीं है, बल्कि सप्ताह भर चलने वाला उत्सव है। यह उत्सव 7 फरवरी को रोज़ डे से शुरू होता है। इसके बाद प्रपोज़ल डे, चॉकलेट डे, टेडी डे, प्रॉमिस डे, किस डे, हग डे और आखिर में 14 फरवरी को वेलेंटाइन डे आता है।

आईजीएमडीपी क्या है?इसे इंटीग्रेटेड गाइडेड मिसाइल डेवलपमेंट प्रोग्राम कहते हैं। भारत के रक्षा अनुसंधान तथा विकास संगठन (डीआरडीओ) के इस कार्यक्रम की शुरूआत अस्सी के दशक में हुई थी। इसके अंतर्गत पृथ्वी, त्रिशूल, आकाश और अग्नि जैसे प्रक्षेपास्त्र आते हैं।

दाढ़ी के बाल सिर्फ पुरुषों के ही क्यों होते हैं, महिलाओं के क्यों नहीं?जन्म के समय बच्चे के शरीर में लेता है तो उसके शरीर पर केवल रोएं जैसे बाल होते हैं। ग्यारह से तेरह की उम्र से लड़के और लड़कियों के शरीर में केश वृद्धि शुरू होती है. यही वह उम्र होती है जब सेक्स ग्रन्थियों का तेजी से विकास होता है। स्त्रियों और पुरुषों के शरीर में ग्रंथियाँ विशेष प्रकार के हारमोंस पैदा करती हैं जिन्हें एंड्रोजेंस कहते हैं। पुरुषों में एंड्रोजेंस की मौजूदगी के कारण ही दाढ़ी-मूँछें विकसित होती हैं। स्त्री में दूसरी सेक्स ग्रंथियां होती हैं जो दूसरे प्रकार के हारमोंस के पैदा करती हैं जिन्हें एस्ट्रोजेंस कहते हैं। पुरुष में बनने वाले हारमोंस आवाज़ में भारीपन और केश वृद्धि आदि को नियमित करते हैं। स्त्री में बनने वाले एस्ट्रोजेंस उसके सेक्स लक्षणों को पैदा करते हैं। इन्हीं हारमोंस के कारण स्त्री व पुरुष में शारीरिक भिन्नताएं होती हैं। औरतों का जिस्म कोमल, नरम व नाज़ुक रहता है वहीं पुरुषों दा जिस्म सख्त व मजबूत होता है।

बंदूक चलाने पर पीछे की तरफ झटका क्यों लगता है?
न्यूटन का गति का तीसरा नियम है कि प्रत्येक क्रिया की सदैव बराबर एवं विपरीत दिशा में प्रतिक्रिया होती है। जब बंदूक की गोली आगे बढ़ती है तब वह पीछे की ओर भी धक्का देती है। गोली तभी आगे बढ़ती है जब बंदूक का बोल्ट उसके पीछे से प्रहार करता है। इससे जो शक्ति जन्म लेती है वह आगे की और ही नहीं जाती पीछे भी जाती है। तोप से गोला दगने पर भी यही होता है। आप किसी हथौड़े से किसी चीज पर वार करें तो हथौड़े में भी पीछे की और झटका लगता है।

ब्रैड में छोटे-छोटे छेद क्यों होते हैं?
दरअसल ब्रैड को बनाने के पहले मैदा और पानी या दूध से बने उसके डो को या तो कुछ देर के लिए अलग रख देते हैं या उसमें खमीर मिलाते हैं। इससे उस मैदा या आटे के भीतर गैस के बुलबुले बन जाते हैं। इन बुलबुलों के कारण डबलरोटी स्पंज जैसी बनती है। जिस भट्टी में इसे पकाया जाता है वह इस गैस को आसानी से बाहर नहीं जाने देती। इसके कारण यह गैस वहीं पर गर्म होकर जगह बना देती है। साथ ही रोटी को सेंकने में मदद भी करती है।

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में प्रकाशित

Thursday, January 7, 2016

क्या यह सच है कि शहद को हज़ार साल तक सुरक्षित रखा जा सकता है?

शहद की एक्सपायरी डेट नहीं होती. इसका रूप परिवर्तन हो सकता है. मसलन ठंड पड़ने पर यह जम सकता है, हालांकि यह जल्दी जमता भी नहीं है, बल्कि ठंड पड़ने पर गाढ़ा होता जाता है. एक तापमान के बाद इसमें क्रिस्टल बनने लगते हैं. खाने वाले वस्तुओं में संभवतः यह सबसे दीर्घजीवी है. इसका कारण है इसमें पानी की मात्रा का बेहद कम होना. इसमें अम्लीय पीएच स्तर इतना होता है कि इसमें बैक्टीरिया का विकास नहीं हो पाता. दुनिया में पाँच हजार साल पुराने शहद के अंश भी मिले हैं. संभव है लंबे समय तक रहने के बाद पानी की मात्रा होने के कारण इसमें फर्मेंटेशन शुरू हो जाए.

क्रिकेट पिच को बनाने में किन बातों को ध्यान में रखा जाता है?
क्रिकेट का पिच बनाते वक्त बुनियादी तौर पर तो यह देखा जाता है कि वह लगातार खेल के बावज़ूद जल्द टूटे नहीं. पिच में दरार पड़ना या धूल पैदा होना अच्छा नहीं माना जाता. अकसर इस पर घास उगाई जाती है. घास अपने नीचे की ज़मीन को जोड़कर रखती है. पर ज्यादा घास से विकेट तेज़ हो जाता है.

भारत के राष्ट्रीय पक्षी, जल जीव, फूल, पेड़, फल, आदि कब घोषित हुए?

राष्ट्रीय ध्वज, राष्ट्रीय गान, राष्ट्रीय पंचांग और राष्ट्रीय प्रतीक के अलावा तमाम अन्य बातों के बारे में औपचारिक निर्णय नहीं हैं. देश का प्रतीक चिह्न चार शेरों वाली प्रतिमा है जो अशोक स्तम्भ के शिखर पर लगी थी. इसके नीचे लिखा है सत्यमेव जयते, जो मुंडक उपनिषद से लिया गया है. इसे हमारे तमाम शासकीय कार्यों में इस्तेमाल किया जाता है. उसमें स्थित धर्मचक्र हमारे तिरंगे झंडे के बीच में लगाया गया है. भारत सरकार ने यह चिन्ह 26 जनवरी, 1950 को अपनाया. भारत की संविधान सभा ने राष्ट्रीय ध्वज का प्रारूप 22 जुलाई 1947 को अपनाया. राष्ट्रीय गान को संविधान सभा ने 24 जनवरी 1950 को अपनाया उसी दिन राष्ट्र गीत वंदे मातरम को भी स्वीकार किया गया.
राष्ट्रीय पंचांग राष्ट्रीय कैलेंडर शक संवत पर आधारित है, चैत्र इसका माह होता है और ग्रेगोरियन कैलेंडर के साथ-साथ 22 मार्च, 1957 से इसे अपनाया. भारत में बाघों की घटती जनसंख्या की जांच करने के लिए अप्रैल 1973 में प्रोजेक्‍ट टाइगर (बाघ परियोजना) शुरू की गई. अब तक इस परियोजना के अधीन 27 बाघ के आरक्षित क्षेत्रों की स्थापना की गई है जिनमें 37, 761 वर्ग किमी क्षेत्र शामिल है.

भारतीय रुपए का प्रतीक चिह्न अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आदान-प्रदान तथा आर्थिक संबल को परिलक्षित कर रहा है. रुपए का चिह्न भारत के लोकाचार का भी एक रूपक है. रुपए का यह नया प्रतीक देवनागरी लिपि के '' और रोमन लिपि के अक्षर 'आर' को मिला कर बना है, जिसमें एक क्षैतिज रेखा भी बनी हुई है. यह रेखा हमारे राष्ट्रध्वज तथा बराबर के चिन्ह को प्रतिबिंबित करती है. भारत सरकार ने 15 जुलाई 2010 को इस चिन्ह को स्वीकार कर लिया है.

सूक्ष्मदर्शी यंत्र क्या है? इसका आविष्कार कब, कैसे और कहाँ हुआ?

सूक्ष्मदर्शी या माइक्रोस्कोप वह यंत्र है जिसकी सहायता से आँख से न दिखने योग्य सूक्ष्म वस्तुओं को भी देखा जा सकता है. सामान्य सूक्ष्मदर्शी ऑप्टिकल माइक्रोस्कोप होता है, जिसमें रोशनी और लैंस की मदद से किसी चीज़ को बड़ा करके देखा जाता है. ऐसा माना जाता है सबसे पहले सन 1610 में इटली के वैज्ञानिक गैलीलियो ने सरल सूक्ष्मदर्शी बनाया. पर इस बात के प्रमाण हैं कि सन 1620 में नीदरलैंड्स में पढ़ने के लिए आतिशी शीशा बनाने वाले दो व्यक्तियों ने सूक्ष्मदर्शी तैयार किए. इनके नाम हैं हैंस लिपरशे (जिन्होंने पहला टेलिस्कोप भी बनाया) और दूसरे हैं जैकैरियस जैनसन. इन्हें भी टेलिस्कोप का आविष्कारक माना जाता है.

इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी में प्रकाश के बदले इलेक्ट्रॉन का इस्तेमाल होता है. इलेक्ट्रॉन द्वारा वस्तुओं को प्रकाशित किया जाता है एवं उनका परिवर्धित चित्र बनता है. कुछ इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी वस्तुओं का 20 लाख गुणा बड़ा चित्र बना सकते है. परमाण्विक बल सूक्ष्मदर्शी यंत्र (atomic force microscope, AFM), जिसे scanning force microscope, SFM भी कहा जाता है, एक बेहद छोटी चीजों को यानी नैनोमीटर के अंशों से भी सूक्ष्म स्तर तक दिखा सकता है. एक नैनोमीटर माने एक मीटर का एक अरबवाँ अंश.
प्रभात खबर अवसर में प्रकाशित

Sunday, January 3, 2016

खाद्य सामग्री के घटकों में लिखे आईएनएस.-320, ई-422 इत्यादि तत्व क्या होते हैं?

खाद्य वस्तुओं में जिन रसायनों आदि का इस्तेमाल किया जाता है उन्हें नाम देने के लिए इंटरनेशनल नम्बरिंग सिस्टम का इस्तेमाल किया जाता है। इसे परिभाषित किया है संयुक्त राष्ट्र के विश्व स्वास्थ्य संगठन और फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गनिज़ेशन के अंतरराष्ट्रीय खाद्य मानक संगठन कोडैक्स एलिमेंटेरियस ने। सबसे पहले यह सूची सन 1989 में प्रकाशित की गई थी, फिर 2008 और फिर 2011 में। इसके अंतर्गत कुछ तत्वों को शामिल किया जाता है और कुछ को हटाया भी जाता है। आमतौर पर इनके नम्बर तीन या चार अंकों में होते हैं और इनके पहले अंग्रेजी में ई, ए और यू लिखे जाते हैं। यूरोपियन यूनियन में पैकेज्ड सामग्री पर ई, ऑस्ट्रेलिया में ए और अमेरिका में यू लिखा जाता है। नम्बर लिखने से पूरे तत्व का नाम लिखने की जरूरत नहीं होती। मसलन ह्ल्दी के लिए 100, रिबोफ्लाविन्स के लिए 101, टार्टाज़ाइन के लिए 102 और इसी प्रकार अन्य तत्वों के नम्बर होते हैं। ये तत्व खाद्य सामग्री में प्रयुक्त होते हैं। वह शाकाहारी हो या मांसाहारी।

जेड प्लस सुरक्षा क्या है? इसे किसे दिया जाता है और क्यों? इस सुरक्षा में किस तरह के सुरक्षाकर्मी होते हैं?

भारत में एक्स, वाई, ज़ेड और ज़ेड+ सुरक्षा श्रेणियाँ होतीं हैं। एक्स में एक गार्ड होता है, वाई में दो, ज़ेड में 11 और ज़ेड+ में 36 गार्ड होते हैं। सुरक्षा देने के कारण व्यक्ति की महत्ता और उस पर आए खतरे पर निर्भर करते हैं। सचिन तेन्दुलकर को लश्करे तैयबा की धमकी के बाद उन्हें सुरक्षा दी गई। राजनेताओं से लेकर उद्योगपतियों, फिल्म कलाकारों, खिलाड़ियों और किसी भी क्षेत्र से जुड़े व्यक्ति को ज़रूरत पड़ने पर सुरक्षा दी जाती रही है।

स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप (एसपीजी), नेशनल सिक्योरिटी गार्ड्स(एनएसजी), इंडो-तिबेतन बॉर्डर पुलिस, केंद्रीय रिजर्व पुलिस के ऊपर यह जिम्मेदारी है। प्रधानमंत्री तथा कुछ अन्य महत्वपूर्ण व्यक्तियों की सुरक्षा का अंदरूनी घेरा एसपीजी का होता है।

महामहिम और महामना शब्द से क्या तात्पर्य है?
शब्दकोश के अनुसार महामना (सं.) [वि.] बहुत उच्च और उदार मन वाला; उदारचित्त; बड़े दिलवाला। [सं-पु.] एक सम्मान सूचक संबोधन। और महामहिम (सं.) [वि.] 1. जिसकी महिमा बहुत अधिक हो; बहुत बड़ी महिमा वाला; महामहिमायुक्त 2. अति महत्व शाली। [सं-पु.] एक सम्मान सूचक संबोधन। आधुनिक अर्थ में हम राजद्वारीय सम्मान से जुड़े व्यक्तियों को महामहिम कहने लगे हैं। मसलन राष्ट्रपति और राज्यपालों को। अब तो जन प्रतिनिधियों के लिए भी इस शब्द का इस्तेमाल होने लगा है। इस शब्द से पुरानी सामंती गंध आती है और शायद इसीलिए राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को अपने पदनाम से पहले 'महामहिम ' जोड़ना पसंद नहीं है, इसलिए पिछले कुछ समय से उनके कार्यक्रमों से जुड़े बैनर,पोस्टर या निमंत्रण पत्रों में 'महामहिम' नहीं लिखा गया। यहाँ तक, कि उनके स्वागत-सम्मान वाले भाषणों में भी 'महामहिम' संबोधन से परहेज किया गया। अंग्रेजी में भी उनके नाम से पहले 'हिज़ एक्सेलेंसी' नहीं जोड़ा गया। कुछ राज्यपालों ने भी इस दिशा में पहल की है। महामना शब्द के साथ सरकारी पद नहीं जुड़ा है। इसका इस्तेमाल भी ज्यादा नहीं होता। यह प्रायः गुणीजन, उदार समाजसेवियों के लिए इस्तेमाल होने वाला शब्द है और इसका सबसे बेहतरीन इस्तेमाल महामना मदन मोहन मालवीय के लिए होते देखा गया है।

मैग्नेटिक ट्रेन क्या होती है?

मैग्नेटिक ट्रेन से आशय परिवहन की मैग्नेटिक लेवीटेशन व्यवस्था से है। इसमें गाड़ी पहिए, एक्सिल या बियरिंग के बजाय चुम्बकीय शक्ति से चलती है। इसके लिए कोई रास्ता या पटरी बनाई जाती है जिसके कुछ इंच ऊपर चुम्बकीय शक्ति से गाड़ी हवा में रहती है। चुम्बकीय शक्ति से ही यह आगे या पीछे चलती है। चूंकि किसी चीज़ की किसी दूसरी चीज़ से रगड़ नहीं होती इसलिए इसे चलने और रुकने में झटके वगैरह भी नहीं लगते। परिवहन की कुछ तकनीकों में मैग्नेटिक लेवीटेशन के तत्वों को दूसरी तकनीक से जोड़कर मिश्रित तकनीक भी तैयार की गई है। मोनोरेल इसका उदाहरण है। दुनिया के तमाम देशों में मैग्लेव चलती हैं। एशिया में जापान और चीन में ऐसी गाड़ियाँ हैं। भारत में भी रेल मंत्रालय ऐसी गाड़ी चलाने पर विचार कर रहा है।  
राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में प्रकाशित

Friday, January 1, 2016

प्रकृति में सबसे ज्यादा ऑक्सीजन पैदा करने वाला पेड़ या पौधा कौन सा है?

पेड़ या पौधे ऑक्सीजन तैयार नहीं करते बल्कि वे फोटो सिंथेसिस या प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया को पूरा करते हैं. पौधे कार्बन डाइऑक्साइड को ग्रहण करते हैं और उसके दो बुनियादी तत्वों को अलग करके ऑक्सीजन को वातावरण में फैलाते हैं. एक माने में वातावरण को इंसान के रहने लायक बनाने में सबसे बड़ी भूमिका निभाते हैं. कौन सा पेड़ सबसे ज्यादा ऑक्सीजन पैदा करते है? इसे लेकर अधिकार के साथ कहना मुश्किल है, पर तुलसी, पीपल, नीम और बरगद के पेड़ काफी ऑक्सीजन तैयार करते हैं और हमारे परम्परागत समाज में इनकी पूजा होती है. यों पेड़ों के मुकाबले काई ज्यादा ऑक्सीजन तैयार करती है.

प्रकाश संश्लेषण वह क्रिया है जिसमें पौधे अपने हरे रंग वाले अंगों जैसे पत्ती, द्वारा सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में वायु से कार्बन डाइऑक्साइड तथा भूमि से जल लेकर जटिल कार्बनिक खाद्य पदार्थों जैसे कार्बोहाइड्रेट का निर्माण करते हैं तथा आक्सीजन गैस (O2) बाहर निकालते हैं. इस प्रक्रिया में आक्सीजन एवं ऊर्जा से भरपूर कार्बोहाइड्रेट (सूक्रोज, ग्लूकोज, स्टार्च आदि) का निर्माण होता है तथा आक्सीजन गैस बाहर निकलती है. प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया सबसे महत्वपूर्ण जैव रासायनिक क्रियाओं में से एक है. सीधे या परोक्ष रूप से दुनिया के सभी सजीव इस पर आश्रित हैं.

हमारे फ्रिज में आइस क्यूब का आविष्कार कैसे हुआ?
आइस क्यूब के पहले आइस या बर्फ का आविष्कार हुआ था. यों तो बर्फ प्राकृतिक रूप से हमें मिलती है. उसके आविष्कार की बात सोची नहीं जा सकती. पर खाने-पीने की चीज़ों को सुरक्षित रखने के लिए और गर्म इलाकों में कमरे को ठंडा रखने के लिए बर्फ की ज़रूरत हुई. शुरू के दिनों में सर्दियों की बर्फ को जमीन के नीचे दबाकर या मोटे कपड़े में लपेट कर उसे देर तक सुरक्षित रखने का काम हुआ. फिर आइस हाउस बनाने का चलन शुरू हुआ. ज़मीन के नीचे तहखाने जैसे बनाकर उनमें बर्फ की सिल्लियाँ रखी जाती थीं, जो या तो सर्दियों में सुरक्षित कर ली जाती थीं या दूर से लाई जाती थीं. उधर चीन में आइसक्रीम बनाने की कला का जन्म भी हो गया था. सन 1295 में जब मार्को पोलो चीन से वापस इटली आया तो उसने आइस क्रीम का जिक्र किया. आइस हाउस के बाद आइस बॉक्स बने. फिर कृत्रिम बर्फ बनाने की बात सोची गई. इसके बाद रेफ्रिजरेटर की अवधारणा ने जन्म लिया. सन 1841 में अमेरिकी वैज्ञानिक जॉन गोरी ने बर्फ बनाने वाली मशीन बना ली. आइस क्यूब ट्रे बीसवीं सदी की देन है. इस ट्रे ने आइस क्यूब को जन्म दिया.

शीशे का आविष्कार कब और कैसे हुआ और इसका पहली बार किस रूप में उपयोग किया गया?

शीशे से आपका आशय दर्पण से है तो वह प्रकृति ने हमें ठहरे हुए पानी के रूप में दिया था. पत्थर युग में चिकने पत्थर में भी इंसान को अपना प्रतिबिंब नज़र आने लगा था. इसके बाद यूनान, मिस्र, रोम, चीन और भारत की सभ्यताओं में धातु को चमकदार बनाकर उसका इस्तेमाल दर्पण की तरह करने की परंपरा शुरू हुई. पर प्रकृति ने उससे पहले उन्हें एक दर्पण बनाकर दे दिया था. यह था ऑब्सीडियन. ज्वालामुखी के लावा के जमने के बाद बने कुछ काले चमकदार पत्थर एकदम दर्पण का काम करते थे. बहरहाल धातु युग में इंसान ने ताँबे की प्लेटों को चमकाकर दर्पण बना लिए. प्राचीन सभ्यताओं को शीशा बनाने की कला भी आती थी. ईसा की पाँचवीं सदी में चीन के लोगों ने चाँदी और मरकरी से शीशे के एक और कोटिंग करके दर्पण बना लिए थे. हमारे यहाँ स्त्रियों के गहनों में आरसी भी एक गहना है, जो वस्तुतः चेहरा देखने वाला दर्पण है.

रेशम का आविष्कार कब और कैसे हुआ?
रेशम प्राकृतिक प्रोटीन से बना रेशा है. यह प्रोटीन रेशों में मुख्यतः फिब्रोइन (fibroin) होता है. ये रेशे कुछ कीड़ों के लार्वा द्वारा बनाए जाते हैं. सबसे उत्तम रेशम शहतूत के पत्तों पर पलने वाले कीड़ों के लार्वा द्वारा बनाया जाता है. moth caterpillars. रेशम का आविष्कार चीन में ईसा से 3500 साल पहले हो गया था. इसका श्रेय चीन की महारानी लीज़ू को दिया जाता है. प्राचीन मिस्र की ममियों में और प्राचीन भारत की ऐतिहासिक धरोहरों में भी रेशम मिलता है. रेशम कला या सेरीकल्चर को चीनी महारानी ने छिपाने की कोशिश की, पर पहले कोरिया और फिर यह कला भारत पहुँची.

रेशम एक प्रकार का महीन चमकीला और दृढ़ तंतु या रेशा जिससे कपड़े बुने जाते हैं . यह तंतु कोश में रहनेवाले एक प्रकार के कीड़े तैयार करते हैं. रेशम के कीड़े कई तरह के होते हैं. अंडा फूटने पर ये बड़े पिल्लू के आकार में होते हैं और रेंगते हैं. इस अवस्था में ये पत्तियाँ बहुत खाते हैं. शहतूत की पत्ती इनका सबसे अच्छा भोजन है. ये पिल्लू बढ़कर एक प्रकार का कोश बनाकर उसके भीतर हो जाते हैं. उस समय इन्हें 'कोया' कहते हैं. कोश के भीतर ही यह कीड़ा वह तंतु निकालता है, जिसे रेशम कहते हैं. कोश के भीतर रहने की अवधि जब पूरी हो जाती है, तब कीड़ा रेशम को काटता हुआ निकलकर उड़ जाता है. इससे कीड़े पालने वाले निकलने के पहले ही कोयों को गरम पानी में डालकर कीड़ों को मार डालते हैं और तब ऊपर का रेशम निकालते हैं. 
प्रभात खबर अवसर में प्रकाशित
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