करीब सात करोड़ साल पहले सुपर महाद्वीप गोंडवाना यानी इंडो-ऑस्ट्रेलियन प्लेट उत्तर की ओर बढ़ी और यूरेशियन प्लेट से टकराई. इससे ज़मीन का काफी हिस्सा उठ गया. यही उभरी हुई ज़मीन हिमालय है. इस टकराव को पूरा होने में करीब दो करोड़ साल लगे. जिस इलाके में कभी समुद्र था वहाँ दुनिया के सबसे ऊँचे पहाड़ बन गए. यह बात अब से करीब पाँच करोड़ साल पहले की है. इसके दो करोड़ साल बाद पहला हिमयुग आया. हिमयुगों अंतिम दौर करीब 20 हजार साल पहले तक चला. ग्लेशियरों के पिघलने के साथ ही नदियों का जन्म भी हुआ. यमुना नदी यमुनोत्री से निकलती है, पर उसके काफी पहले ग्लेशियरों की पिघली बर्फ का पानी सतह पर या ज़मीन के नीचे से होता हुआ यमुनोत्री तक आता है.
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यमुना सूर्य की पुत्री और यमराज की बहन हैं. जिस पहाड़ से निकलतीं हैं उसका एक नाम कालिंद है इसलिए यमुना को कालिंदी भी कहते हैं.
भारत में थिएटर, रंगमंच के इतिहास पर रोशनी डालिए.
ऐसा समझा जाता है कि नाट्यकला का विकास प्राचीन भारत में हुआ. ऋग्वेद के सूत्रों में यम और यमी, पुरुरवा और उर्वशी आदि के कुछ संवाद हैं. इन संवादों में लोग नाटक के विकास का चिह्न पाते हैं. अनुमान किया जाता है कि इन्हीं संवादों से प्रेरणा ग्रहण कर साहित्य में नाटक एक शैली बनी. भरतमुनि ने उसे शास्त्रीय रूप दिया. उनके अनुसार देवताओं ने ब्रह्मा से मनोरंजन का कोई साधन उत्पन्न करने की प्रार्थना की. उन्होंने ऋग्वेद से कथोपकथन, सामवेद से गायन, यजुर्वेद से अभिनय और अथर्ववेद से रस लेकर, नाटक का निर्माण किया. विश्वकर्मा ने रंगमंच बनाया.
नाटकों का विकास चाहे जिस प्रकार हुआ हो, संस्कृत साहित्य में नाट्य ग्रंथ उससे जुड़े अनेक शास्त्रीय ग्रंथ लिखे गए. कालिदास, भास, भट्ट नारायण और भवभूति संस्कृत नाटक उत्कृष्ट कोटि के हैं और वे अधिकतर अभिनय करने के उद्देश्य से लिखे गए थे. अग्नि पुराण, शिल्प रत्न, काव्य मीमांसा तथा संगीतमार्तंड में भी राजप्रसाद के नाट्यमंडपों के विवरण प्राप्त होते हैं. इसी प्रकार महाभारत में रंगशाला का उल्लेख है और हरिवंश पुराण तथा रामायण में नाटक खेले जाने का वर्णन है. भरत का नाट्यशास्त्र पहली या दूसरी सदी में संकलित हुआ समझा जाता है. भरत ने आदिवासियों तथा आर्यों दोनों के नाट्यमंडपों के आकार को अपनाया है. इन दोनों के सम्मिश्रण से इन्होंने नाट्यमंडपों के जो रूप निर्धारित किए, वे सर्वथा भारतीय हैं. भरत ने तीन प्रकार के नाट्यमंडपों का विधान बताया है : विकृष्ट (अर्थात् आयताकार), चतुरस्र (वर्गाकार) तथा त्रयस्र (त्रिभुजाकार). उन्होंने इन तीनों के फिर तीन भेद किए हैं : ज्येष्ठ (देवताओं के लिए), मध्यम (राजाओं के लिए), तथा अवर (औरों के लिए).
आधुनिक भारतीय नाट्य साहित्य का इतिहास एक शताब्दी से अधिक पुराना नहीं है. राम लीला आदि की तरह लोक कला के माध्यम से भारतीय थिएटर जीवित रही अंग्रेजों का प्रभुत्व देश में व्याप्त होने पर उनके देश की अनेक वस्तुओं ने हमारे देश में प्रवेश किया. उनके मनोरंजन के निमित्त पाश्चात्य नाटकों का भी प्रवेश हुआ. उन लोगों ने अपने नाटकों के अभिनय के लिए यहाँ अभिनय शालाओं का संयोजन किया, जो थिएटर के नाम से अधिक विख्यात हैं. दूसरी ओर बंबई में पारसी लोगों ने इन विदेशी अभिनयशालाओं के अनुकरण पर भारतीय नाटकों के लिए, एक नए ढंग की अभिनयशाला को जन्म दिया. पारसी नाटक कंपनियों ने रंगमंच को आकर्षक और मनोरंजक बनाकर अपने नाटक उपस्थित किए.
विश्व का सबसे ऊँचा पेड़ कौन सा है?
दुनिया का सबसे ऊँचा जीवित पेड़ है रेडवुड नेशनल पार्क, कैलिफोर्निया में खड़ा कोस्ट रेडवुड जिसकी ऊँचाई है 115.66 मीटर यानी 379 फुट. कुतुब मीनार से भी ऊँचे इस पेड़ की तुलना कुछ और चीजों से करें तो पाएंगे कि यह अमेरिकी संसद भवन और स्टेच्यू ऑफ लिबर्टी से भी ज्यादा ऊँचा है. और सबसे बड़ा यानी सबसे ज्यादा जगह घेरने वाला सिंगल स्टैम पेड़ है जनरल शर्मन. आसानी से समझने के लिए सबसे ज्यादा लकड़ी देने वाला पेड़. जनरल शर्मन पेड़ अमेरिका के कैलिफोर्निया राज्य के सेक्योवा नेशनल पार्क में मौजूद है. यह इतिहास में ज्ञात जीवित पेड़ों में सबसे ऊँचा नहीं है. दरअसल यह मनुष्यों को ज्ञात सबसे विशाल वृक्ष भी नहीं है. ट्रिनिडाड, कैलिफोर्निया के पास क्रैनेल क्रीक जाइंट पेड़ जनरल शर्मन के मुकाबले 15 से 25 प्रतिशत ज्यादा बड़ा था. पर उस पेड़ को 1940 के दशक में काट डाला गया.
अहिंसा सिल्क क्या है?
महात्मा गांधी सिल्क पहनने का विरोध करते थे, क्योंकि इसे तैयार करने में रेशम के कीड़े की हत्या की जाती है. पर दुनिया में सिल्क तैयार करने की केवल एक विधि ही नहीं है. अहिंसा सिल्क अलग ढंग के कीड़ों से बनाई जाती है. इसमें जब कीड़ा सिल्क छोड़ देता है तब उसे एकत्र किया जाता है. इसे वाइल्ड सिल्क भी कहा जाता है. दुनिया में वाइल्ड सिल्क के कीड़ों की 500 प्रजातियाँ हैं. इस सिल्क में एक धागा नहीं मिलता, बल्कि कपास की तरह की रुई मिलती है इससे धागा बनाया जाता है.
दुनिया की सबसे बड़ी प्रतिमा कौन सी है और कहाँ है?
चीन के हेनान प्रांत के लुशान में बनी बुद्ध प्रतिमा, जो 128 मीटर ऊँची है. कुतुब मीनार (72.5) से भी ऊँची
एटीएम मशीन का पूरा मतलब क्या है?
एटीएम का अर्थ है ऑटोमेटेड टैलर मशीन. टैलर को सामान्यत: क्लर्क या कैशियर के रूप में पहचानते हैं. एटीएम की ज़रूरत पश्चिमी देशों में वेतन बढ़ने तथा प्रशिक्षित कर्मियों की संख्या में कमी होने के कारण पैदा हुई. काम को आसान और सस्ता बनाने के अलावा यह ग्राहक के लिए सुविधाजनक भी है. व्यावसायिक संस्थानों में सेल्फ सर्विस की अवधारणा बढ़ रही है. इसके आविष्कार का श्रेय आर्मेनियाई मूल के अमेरिकी लूथर जॉर्ज सिमियन को जाता है. उसने 1939 में इस प्रकार की मशीन तैयार कर ली थी, जिसे शुरू में उसने बैंकमेटिक नाम दिया. पर इस मशीन को किसी ने स्वीकार नहीं किया. बैंक अपने कैश को लेकर संवेदनशील होते हैं. वे एक मशीन के सहारे अपने कैश को छोड़ने का जोखिम मोल लेने को तैयार नहीं थे. लूथर इसके विकास में लगा रहा और 21 साल बाद जून 1960 में उसने इसका पेटेंट फाइल किया. फरवरी 1963 में उसे पेटेंट मिला. इस बीच उसने सिटी बैंक ऑफ न्यूयॉर्क (आज का सिटी बैंक) को इसे प्रयोगात्मक रूप से इस्तेमाल करने के लिए राज़ी कर लिया. छह महीने के ट्रायल में यह मशीन लोकप्रिय नहीं हो पाई. साठ के दशक में ही क्रेडिट कार्ड का चलन शुरू होने के कारण जापान में इस तरीके की मशीन की ज़रूरत महसूस की गई. तब तक कुछ और लोगों ने मशीनें तैयार कर ली थीं. जापान में 1966 में एक कैश डिस्पेंसर लगाया गया, जो चल निकला. उधर 1967 में लंदन में बार्कलेज़ बैंक ने ऐसी मशीन लगाने की घोषणा की. उस मशीन को तैयार किया था भारत में जन्मे स्कॉटिश मूल के जॉन शै़फर्ड ने. इस मशीन में तब से काफी बदलाव हो चुके हैं. इलेक्ट्रॉनिक्स और इंस्ट्रूमेंटेशन के बुनियादी तौर-तरीकों में काफी बदलाव हो चुका है. मैग्नेटिक स्ट्रिप के कारण इसकी कार्य-पद्धति बदल गई है. प्लास्टिक मनी की संस्कृति विकसित होने के कारण इसका चलन बढ़ता ही जा रहा है. अब तो आप भारतीय बैंक के कार्ड से अमेरिका में भी पैसा निकाल सकते हैं.
चीन के हेनान प्रांत के लुशान में बनी बुद्ध प्रतिमा, जो 128 मीटर ऊँची है. कुतुब मीनार (72.5) से भी ऊँची
एटीएम मशीन का पूरा मतलब क्या है?
एटीएम का अर्थ है ऑटोमेटेड टैलर मशीन. टैलर को सामान्यत: क्लर्क या कैशियर के रूप में पहचानते हैं. एटीएम की ज़रूरत पश्चिमी देशों में वेतन बढ़ने तथा प्रशिक्षित कर्मियों की संख्या में कमी होने के कारण पैदा हुई. काम को आसान और सस्ता बनाने के अलावा यह ग्राहक के लिए सुविधाजनक भी है. व्यावसायिक संस्थानों में सेल्फ सर्विस की अवधारणा बढ़ रही है. इसके आविष्कार का श्रेय आर्मेनियाई मूल के अमेरिकी लूथर जॉर्ज सिमियन को जाता है. उसने 1939 में इस प्रकार की मशीन तैयार कर ली थी, जिसे शुरू में उसने बैंकमेटिक नाम दिया. पर इस मशीन को किसी ने स्वीकार नहीं किया. बैंक अपने कैश को लेकर संवेदनशील होते हैं. वे एक मशीन के सहारे अपने कैश को छोड़ने का जोखिम मोल लेने को तैयार नहीं थे. लूथर इसके विकास में लगा रहा और 21 साल बाद जून 1960 में उसने इसका पेटेंट फाइल किया. फरवरी 1963 में उसे पेटेंट मिला. इस बीच उसने सिटी बैंक ऑफ न्यूयॉर्क (आज का सिटी बैंक) को इसे प्रयोगात्मक रूप से इस्तेमाल करने के लिए राज़ी कर लिया. छह महीने के ट्रायल में यह मशीन लोकप्रिय नहीं हो पाई. साठ के दशक में ही क्रेडिट कार्ड का चलन शुरू होने के कारण जापान में इस तरीके की मशीन की ज़रूरत महसूस की गई. तब तक कुछ और लोगों ने मशीनें तैयार कर ली थीं. जापान में 1966 में एक कैश डिस्पेंसर लगाया गया, जो चल निकला. उधर 1967 में लंदन में बार्कलेज़ बैंक ने ऐसी मशीन लगाने की घोषणा की. उस मशीन को तैयार किया था भारत में जन्मे स्कॉटिश मूल के जॉन शै़फर्ड ने. इस मशीन में तब से काफी बदलाव हो चुके हैं. इलेक्ट्रॉनिक्स और इंस्ट्रूमेंटेशन के बुनियादी तौर-तरीकों में काफी बदलाव हो चुका है. मैग्नेटिक स्ट्रिप के कारण इसकी कार्य-पद्धति बदल गई है. प्लास्टिक मनी की संस्कृति विकसित होने के कारण इसका चलन बढ़ता ही जा रहा है. अब तो आप भारतीय बैंक के कार्ड से अमेरिका में भी पैसा निकाल सकते हैं.
आसानी से समझने के लिए सबसे ज्यादा लकड़ी देने वाला पेड़. जनरल शर्मन पेड़ अमेरिका के कैलिफोर्निया राज्य के सेक्योवा नेशनल पार्क में मौजूद है. यह इतिहास में ज्ञात जीवित पेड़ों में सबसे ऊँचा नहीं है.उपयोगी जानकारी !!
ReplyDeleteआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन जन्मदिवस : वहीदा रहमान और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteबहुत रोचक जानकारी...
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