राष्ट्रीय शाके अथवा शक संवत भारत का राष्ट्रीय कलैण्डर है। इसका प्रारम्भ यह 78 वर्ष ईसा पूर्व माना जाता है। यह संवत भारतीय गणतंत्र का सरकारी तौर पर स्वीकृत अपना राष्ट्रीय संवत है। ईसवी सन 1957 (चैत्र 1, 1879 शक) को भारत सरकार ने इसे देश के राष्ट्रीय पंचांग के रूप में मान्यता प्रदान की थी। इसीलिए राजपत्र (गजट), आकाशवाणी और सरकारी कैलेंडरों में ग्रेगोरियन कैलेंडर के साथ इसका भी प्रयोग किया जाता है। विक्रमी संवत की तरह इसमें चन्द्रमा की स्थिति के अनुसार काल गणना नहीं होती, बल्कि सौर गणना होती है। यानी महीना 30 दिन का होता है। इसे शालिवाहन संवत भी कहा जाता है। इसमें महीनों का नामकरण विक्रमी संवत के अनुरूप ही किया गया है, लेकिन उनके दिनों का पुनर्निर्धारण किया गया है। इसके प्रथम माह (चैत्र) में 30 दिन हैं, जो अंग्रेजी लीप ईयर में 31 दिन हो जाते हैं। वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण एवं भाद्रपद में 31-31 दिन एवं शेष 6 मास में यानी आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ तथा फाल्गुन में 30-30 दिन होते हैं। ईसवी सन 500 के बाद संस्कृत में लिखित अधिकतर ज्योतिष ग्रन्थ शक संवत का प्रयोग करने लगे। इस संवत का यह नाम क्यों पड़ा, इस विषय में विभिन्न मत हैं। इसे कुषाण राजा कनिष्क ने चलाया या किसी अन्य ने, इस विषय में अन्तिम रूप से कुछ नहीं कहा जा सका है।
एनालॉग सिग्नल्स और डिजिटल सिग्नल्स में क्या अंतर होता है?हिन्दी में एनालॉग को अनुरूप और डिजिटल को अंकीय सिग्नल कहते हैं। दोनों सिग्नलों का इस्तेमाल विद्युतीय सिग्नलों के मार्फत सूचना को एक स्थान से दूसरे स्थान तक भेजने के लिए किया जाता है। दोनों में फर्क यह है कि एनालॉग तकनीक में सूचना विद्युत स्पंदनों के मार्फत जाती है। डिजिटल तकनीक में सूचना बाइनरी फॉर्मेट (शून्य और एक) में बदली जाती है। कम्प्यूटर द्वयाधारी संकेत (बाइनरी) ही समझता है। इसमें एक बिट दो भिन्न दिशाओं को व्यक्त करती है। इसे आसान भाषा में कहें तो कम्प्यूटर डिजिटल है और पुराने मैग्निटक टेप एनाल़ॉग। एनालॉग ऑडियो या वीडियो में वास्तविक आवाज या चित्र अंकित होता है जबकि डिजिटल में उसका बाइनरी संकेत दर्ज होता है, जिसे प्ले करने वाली तकनीक आवाज या चित्र में बदलती है। टेप लीनियर होता है, यानी यदि आपको कोई गीत सुनना है जो टेप में 10वें मिनट में आता है तो आपको बाकायदा टेप चलाकर 9 मिनट, 59 सेकंड पार करने होंगे। इसके विपरीत डिजिटल सीडी या कोई दूसरा फॉर्मेट सीधे उन संकेतों पर जाता है। पुराने रिकॉर्ड प्लेयर में सुई जब किसी ऐसी जगह आती थी जहाँ आवाज में झटका लगता हो तो वास्तव में वह आवाज ही बिगड़ती थी। डिजिटल सिग्नल में आवाज सुनाने वाला उपकरण डिजिटल सिग्नल पर चलता है। मैग्नेटिक टेप में जेनरेशन लॉस होता है। यानी एक टेप से दूसरे टेप में जाने पर गुणवत्ता गिरती है। डिजिटल प्रणाली में ऐसा नहीं होता।
पोस्टकार्ड कब से चलन में आए और पहला पोस्टकार्ड किसने-किसको भेजा था?
दुनिया में पोस्टकार्ड का चलन इंग्लैंड से शुरू हुआ है। पहला पोस्टकार्ड फुलहैम, लंदन से लेखक थियोडोर हुक को भजा गया था, जो लेखक ने खुद अपने नाम लिखा था। शायद यह उसी समय शुरू हुई डाकसेवा पर व्यंग्य था। इसपर ‘पेनी ब्लैक’ डाक टिकट लगा था, जो दुनिया का पहला डाक टिकट था। पर इसे पहला पोस्टल कार्ड कहना सही नहीं होगा। पोस्टल कार्ड और पोस्ट कार्ड में अंतर समझना चाहिए। पोस्ट कार्ड सामान्य कार्ड है, जिसपर डाक टिकट लगाकर भेजा जाता है, जबकि पोस्टल कार्ड किसी डाक विभाग द्वारा जारी कार्ड होता है, जिसपर डाक की कीमत छपी होती है। पोस्ट कार्ड का इस्तेमाल आज पिक्चर पोस्ट कार्ड तथा व्यावसायिक संदेशों के ले भी होता है। बहरहाल पहला पोस्टल कार्ड 1 अक्तूबर 1869 में ऑस्ट्रिया-हंगरी के डाक विभाग ने जारी किया। इसके बाद दूसरे देशों में इसकी शुरूआत हुई। पोस्टकार्ड आज संग्रह की वस्तु भी हैं। इनके अध्ययन और संग्रह को डेल्टायलॉजी कहा जाता है।
बहुत सही और सत्य
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