मिस्र के पिरामिड वहां के तत्कालीन फराऊन (सम्राट) के लिए बनाए गए स्मारक स्थल हैं. इनमें राजाओं और उनके परिवार के लोगों के शवों को दफनाकर सुरक्षित रखा गया है. इन शवों को ममी कहा जाता है. उनके शवों के साथ भोजन सामग्री, पेय पदार्थ, वस्त्र, गहने, बर्तन, वाद्य यंत्र, हथियार, जानवर एवं कभी-कभी तो सेवक सेविकाओं को भी दफना दिया जाता था.
मिस्र के सबसे पुराने पिरामिड एक पुराने प्रांत की राजधानी मैम्फिस के पश्चिमोत्तर में स्थित सक्कारा में मिले हैं. इनमें सबसे पुराना जोसर का पिरामिड है, जिसका निर्माण ईसा पूर्व 2630 से 2611 के बीच हुआ होगा. पिरामिडों को देखकर उन्हें बनाने की तकनीक, सामग्री और इस काम में लगे मजदूरों की संख्या की कल्पना करते हुए हैरत होती है. एक बड़े पिरामिड का निर्माण करने में पचास हजार से एक लाख लोग तक लगे हों तब भी आश्चर्य नहीं. मिस्र में 138 पिरामिड हैं. इनमें काहिरा के उप नगर गीज़ा का ‘ग्रेट पिरामिड’ शानदार है. यह प्राचीन विश्व के सात अजूबों की सूची में है. उन सात प्राचीन आश्चर्यों में यही एकमात्र ऐसा स्मारक है जिसे समय के थपेड़े खत्म नहीं कर पाए. यह पिरामिड 450 फुट ऊंचा है. 43 सदियों तक यह दुनिया की सबसे ऊंची इमारत रही. 19वीं सदी में ही इसकी ऊंचाई का कीर्तिमान टूटा. इसका आधार 13 एकड़ में फैला है जो करीब 16 फुटबॉल मैदानों जितना है. यह 25 लाख शिला खंडों से निर्मित है जिनमें से हर एक का वजन 2 से 30 टन के बीच है. ग्रेट पिरामिड को इतनी गणितीय परिशुद्धता से बनाया गया है कि आज भी इसे बनाना आसान नहीं है. कुछ साल पहले तक (लेसर किरणों से माप-जोख का उपकरण ईजाद होने तक) वैज्ञानिक इसकी सूक्ष्म सममिति (सिमिट्रीज) का पता नहीं लगा पाए थे. ऐसा दूसरा पिरामिड बनाने की बात छोडिए. प्रमाण बताते हैं कि इसका निर्माण करीब 2560 वर्ष ईसा पूर्व मिस्र के शासक खुफु के चौथे वंश ने कराया था. इसे बनाने में करीब 23 साल लगे.
पिरामिड कैसे बनाए गए होंगे यह हैरानी का विषय है. इसमें लगे विशाल पत्थर कहाँ से लाए गए होंगे, कैसे लाए गए होंगे और किस तरस से उन्हें एक-दूसरे के ऊपर रखा गया होगा? यहाँ आसपास सिर्फ़ रेत है. यह माना जाता है कि पहले चारों ओर ढालदार चबूतरे बनाए गए होंगे, जिनपर लट्ठों के सहारे पत्थर ऊपर ले जाए गए होंगे. पत्थरों की जुड़ाई इतनी साफ है कि नोक भर दोष नजर नहीं आता.
खिलाफत आंदोलन क्या था? भारतीय स्वतंत्रता संग्राम, कांग्रेस या गांधीजी का इससे क्या सम्बन्ध था?
आजादी से बहुत पहले 1919-1924 के बीच चला था खिलाफत आंदोलन. यह आंदोलन दक्षिण एशियाई मुसलमानों ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ चलाया था. पहले विश्व युद्ध में ऑटोमन साम्राज्य भी पराजित शक्तियों में शामिल था. उधर तुर्की के भीतर इस बात को लेकर आंदोलन था कि धार्मिक राज्य की स्थापना हो या नहीं. ब्रिटेन ने प्रथम विश्व युद्ध के बाद तुर्की के ऑटोमन साम्राज्य के खलीफा के साथ किया गया वादा पूरा नहीं किया. खलीफा मुसलमानों के मजहबी नेता थे. आन्दोलन का उद्देश्य तुर्की में खलीफा के पद की पुनर्स्थापना के लिए अंग्रेजों पर दबाव बनाना था. भारत में उस समय आजादी की लड़ाई चल रही थी और महात्मा गांधी ने खिलाफत आंदोलन का समर्थन किया. उन्हें लगता था कि इससे भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में मुसलमानों का सहयोग मिलेगा.
ब्रिटिश शासन के प्रति नाराज़गी को अबुलकलाम आजाद, ज़फर अली खाँ तथा मुहम्मद अली ने अपने समाचारपत्रों अल-हिलाल, जमींदार तथा कॉमरेड और हमदर्द के मार्फत व्यापक रूप दिया. तहरीके खिलाफत ने जमीयत-उल-उलेमा के सहयोग से खिलाफत आंदोलन का गठन किया तथा मुहम्मद अली ने 1920 में खिलाफत घोषणापत्र जारी किया. गांधी जी के प्रभाव से खिलाफत आंदोलन तथा असहयोग आंदोलन एकरूप हो गए. मई, 1920 तक खिलाफत कमेटी ने महात्मा गांधी की अहिंसात्मक असहयोग योजना का समर्थन किया. सितंबर में कांग्रेस के विशेष अधिवेशन ने असहयोग आंदोलन के दो ध्येय घोषित किए-स्वराज्य तथा खिलाफत की माँगों की स्वीकृति. इधर भारत में यह आंदोलन चल रहा था उधर तुर्की में आधुनिकतावादी मुस्तफा कमाल पाशा ने नवंबर, 1922 में सुल्तान खलीफा मुहम्मद चतुर्थ को पदच्युत कर दिया. सन 1924 में उन्होंने खलीफा का पद समाप्त कर दिया. वहाँ एक धर्मनिरपेक्ष शासन व्यवस्था की स्थापना हो गई. इसके साथ भारत का खिलाफत आंदोलन भी अपने आप खत्म हो गया. एक खलीफा होने के नाते, तुर्क सम्राट नाममात्र के लिए ही सही दुनिया भर में सभी मुसलमानों की सर्वोच्च धार्मिक और राजनीतिक नेता थे. पर उस ताकत को तुर्की के भीतर ही समर्थन नहीं मिला. अलबत्ता इस आंदोलन ने भारत के राष्ट्रीय आंदोलन को अनेक मुसलमान नेता दिए. हालांकि यह आंदोलन मुसलमानों का धार्मिक आंदोलन था, पर इसमें हिन्दुओं का समर्थन भी मिला.
ट्यूबलाइट में चोक का क्या इस्तेमाल होता है?
ट्यूबलाइट मूलतः मर्करी वैपर लैम्प है. इसमें मर्करी वैपर को चार्ज करने के लिए बिजली के हाई वोल्टेज प्रवाह की जरूरत होती है. चोक और स्टार्टर प्रेरक या inductor or a reactor का काम करते हैं. प्रेरक को साधारण भाषा में 'चोक' (choke) और 'कुण्डली' (coil) भी कहते हैं. ट्यूबलाइट आदि को जलाने के लिए हाई वोल्ट पैदा करने एवं जलने के बाद उससे बहने वाली धारा को सीमित रखने के लिए इसका इस्तेमाल होता है. पुरानी कारों एवं स्कूटरों आदि में स्पार्क पैदा करने के लिए इग्नीशन क्वायल की भी यही भूमिका होती है.
प्रभात खबर अवसर में प्रकाशित
मिस्र के सबसे पुराने पिरामिड एक पुराने प्रांत की राजधानी मैम्फिस के पश्चिमोत्तर में स्थित सक्कारा में मिले हैं. इनमें सबसे पुराना जोसर का पिरामिड है, जिसका निर्माण ईसा पूर्व 2630 से 2611 के बीच हुआ होगा. पिरामिडों को देखकर उन्हें बनाने की तकनीक, सामग्री और इस काम में लगे मजदूरों की संख्या की कल्पना करते हुए हैरत होती है. एक बड़े पिरामिड का निर्माण करने में पचास हजार से एक लाख लोग तक लगे हों तब भी आश्चर्य नहीं. मिस्र में 138 पिरामिड हैं. इनमें काहिरा के उप नगर गीज़ा का ‘ग्रेट पिरामिड’ शानदार है. यह प्राचीन विश्व के सात अजूबों की सूची में है. उन सात प्राचीन आश्चर्यों में यही एकमात्र ऐसा स्मारक है जिसे समय के थपेड़े खत्म नहीं कर पाए. यह पिरामिड 450 फुट ऊंचा है. 43 सदियों तक यह दुनिया की सबसे ऊंची इमारत रही. 19वीं सदी में ही इसकी ऊंचाई का कीर्तिमान टूटा. इसका आधार 13 एकड़ में फैला है जो करीब 16 फुटबॉल मैदानों जितना है. यह 25 लाख शिला खंडों से निर्मित है जिनमें से हर एक का वजन 2 से 30 टन के बीच है. ग्रेट पिरामिड को इतनी गणितीय परिशुद्धता से बनाया गया है कि आज भी इसे बनाना आसान नहीं है. कुछ साल पहले तक (लेसर किरणों से माप-जोख का उपकरण ईजाद होने तक) वैज्ञानिक इसकी सूक्ष्म सममिति (सिमिट्रीज) का पता नहीं लगा पाए थे. ऐसा दूसरा पिरामिड बनाने की बात छोडिए. प्रमाण बताते हैं कि इसका निर्माण करीब 2560 वर्ष ईसा पूर्व मिस्र के शासक खुफु के चौथे वंश ने कराया था. इसे बनाने में करीब 23 साल लगे.
पिरामिड कैसे बनाए गए होंगे यह हैरानी का विषय है. इसमें लगे विशाल पत्थर कहाँ से लाए गए होंगे, कैसे लाए गए होंगे और किस तरस से उन्हें एक-दूसरे के ऊपर रखा गया होगा? यहाँ आसपास सिर्फ़ रेत है. यह माना जाता है कि पहले चारों ओर ढालदार चबूतरे बनाए गए होंगे, जिनपर लट्ठों के सहारे पत्थर ऊपर ले जाए गए होंगे. पत्थरों की जुड़ाई इतनी साफ है कि नोक भर दोष नजर नहीं आता.
खिलाफत आंदोलन क्या था? भारतीय स्वतंत्रता संग्राम, कांग्रेस या गांधीजी का इससे क्या सम्बन्ध था?
आजादी से बहुत पहले 1919-1924 के बीच चला था खिलाफत आंदोलन. यह आंदोलन दक्षिण एशियाई मुसलमानों ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ चलाया था. पहले विश्व युद्ध में ऑटोमन साम्राज्य भी पराजित शक्तियों में शामिल था. उधर तुर्की के भीतर इस बात को लेकर आंदोलन था कि धार्मिक राज्य की स्थापना हो या नहीं. ब्रिटेन ने प्रथम विश्व युद्ध के बाद तुर्की के ऑटोमन साम्राज्य के खलीफा के साथ किया गया वादा पूरा नहीं किया. खलीफा मुसलमानों के मजहबी नेता थे. आन्दोलन का उद्देश्य तुर्की में खलीफा के पद की पुनर्स्थापना के लिए अंग्रेजों पर दबाव बनाना था. भारत में उस समय आजादी की लड़ाई चल रही थी और महात्मा गांधी ने खिलाफत आंदोलन का समर्थन किया. उन्हें लगता था कि इससे भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में मुसलमानों का सहयोग मिलेगा.
ब्रिटिश शासन के प्रति नाराज़गी को अबुलकलाम आजाद, ज़फर अली खाँ तथा मुहम्मद अली ने अपने समाचारपत्रों अल-हिलाल, जमींदार तथा कॉमरेड और हमदर्द के मार्फत व्यापक रूप दिया. तहरीके खिलाफत ने जमीयत-उल-उलेमा के सहयोग से खिलाफत आंदोलन का गठन किया तथा मुहम्मद अली ने 1920 में खिलाफत घोषणापत्र जारी किया. गांधी जी के प्रभाव से खिलाफत आंदोलन तथा असहयोग आंदोलन एकरूप हो गए. मई, 1920 तक खिलाफत कमेटी ने महात्मा गांधी की अहिंसात्मक असहयोग योजना का समर्थन किया. सितंबर में कांग्रेस के विशेष अधिवेशन ने असहयोग आंदोलन के दो ध्येय घोषित किए-स्वराज्य तथा खिलाफत की माँगों की स्वीकृति. इधर भारत में यह आंदोलन चल रहा था उधर तुर्की में आधुनिकतावादी मुस्तफा कमाल पाशा ने नवंबर, 1922 में सुल्तान खलीफा मुहम्मद चतुर्थ को पदच्युत कर दिया. सन 1924 में उन्होंने खलीफा का पद समाप्त कर दिया. वहाँ एक धर्मनिरपेक्ष शासन व्यवस्था की स्थापना हो गई. इसके साथ भारत का खिलाफत आंदोलन भी अपने आप खत्म हो गया. एक खलीफा होने के नाते, तुर्क सम्राट नाममात्र के लिए ही सही दुनिया भर में सभी मुसलमानों की सर्वोच्च धार्मिक और राजनीतिक नेता थे. पर उस ताकत को तुर्की के भीतर ही समर्थन नहीं मिला. अलबत्ता इस आंदोलन ने भारत के राष्ट्रीय आंदोलन को अनेक मुसलमान नेता दिए. हालांकि यह आंदोलन मुसलमानों का धार्मिक आंदोलन था, पर इसमें हिन्दुओं का समर्थन भी मिला.
ट्यूबलाइट में चोक का क्या इस्तेमाल होता है?
ट्यूबलाइट मूलतः मर्करी वैपर लैम्प है. इसमें मर्करी वैपर को चार्ज करने के लिए बिजली के हाई वोल्टेज प्रवाह की जरूरत होती है. चोक और स्टार्टर प्रेरक या inductor or a reactor का काम करते हैं. प्रेरक को साधारण भाषा में 'चोक' (choke) और 'कुण्डली' (coil) भी कहते हैं. ट्यूबलाइट आदि को जलाने के लिए हाई वोल्ट पैदा करने एवं जलने के बाद उससे बहने वाली धारा को सीमित रखने के लिए इसका इस्तेमाल होता है. पुरानी कारों एवं स्कूटरों आदि में स्पार्क पैदा करने के लिए इग्नीशन क्वायल की भी यही भूमिका होती है.
प्रभात खबर अवसर में प्रकाशित
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