ब्रिटिश संसद संसदीय परंपराओं की जननी. 'बजट' शब्द भी वहीं से आया है. 1733 में जब ब्रिटिश प्रधानमंत्री एवं वित्त मंत्री (चांसलर ऑफ एक्सचेकर) रॉबर्ट वॉलपोल संसद में देश की माली हालत का लेखा-जोखा पेश करने आए, तो अपना भाषण और उससे संबद्ध दस्तावेज चमड़े के एक बैग (थैले) में रखकर लाए. चमड़े के बैग को फ्रेंच भाषा में बुजेट कहा जाता है. बस, इसीलिए इस परंपरा को पहले बुजेट और फिर कालांतर में बजट कहा जाने लगा. जब वित्त मंत्री चमड़े के बैग में दस्तावेज लेकर वार्षिक लेखा-जोखा पेश करने सदन में पहुंचता तो सांसद कहते - 'बजट खोलिए, देखें इसमें क्या है.' या 'अब वित्त मंत्री जी अपना बजट खोलें.' इस तरह 'बजट' नामकरण साल दर साल मजबूत होता गया
रेल बजट अलग क्यों होता है?
भारतीय संविधान के अनुच्छेद-112 के अनुसार राष्ट्रपति प्रत्येक वित्तीय वर्ष के सम्बंध में संसद के दोनों सदनों के सामने भारत सरकार की उस वर्ष के लिए प्राप्तियों और व्यय का विवरण रखवाएंगे, जिसे वार्षिक वित्तीय विवरण कहा गया है. यह बजट सामान्यतः फरवरी की अंतिम तिथि को पेश किया जाता है और 1 अप्रेल से लागू होता है. भारतीय रेल भी सरकार का उपक्रम है. इसका अलग बजट बनाने की परम्परा सन 1924 से शुरू हुई है. इसके लिए 1920-21 में बनाई गई विलियम एम एकवर्थ कमेटी ने रेल बजट को सामान्य बजट से अलग पेश करने का सुझाव दिया था. 1920-21 में सरकार का कुल बजट 180 करोड़ का था, जबकि इसमें 82 करोड़ रु का रेल बजट था. अकेला रेल विभाग देश की अकेली सबसे बड़ी आर्थिक गतिविधि संचालित करता था. इसलिए उसका बजट अलग तैयार करने का सुझाव दिया गया. अब अनेक विशेषज्ञ रेल बजट को आम बजट का हिस्सा बनाने का सुझाव देते हैं.
हम इंग्लिश कैलेंडर को ही क्यों फॉलो करते हैं? और फरवरी में ही सबसे कम दिन क्यों होते हैं?
फॉलो करने की वजह तो सरकारी है. सन 1757 में प्लासी की लड़ाई के बाद भारत में ईस्ट इंडिया कम्पनी का शासन स्थापित होने की शुरूआत हो गई और तभी अंग्रेजी कैलेंडर का चलन शुरू हो गया. उसके पहले तक भारत में या तो विक्रमी पंचांग चलता था या इस्लामी काल पद्धति.
लीप वर्ष का अतिरिक्त दिन 29 फ़रवरी महत्त्वपूर्ण है. यह प्रकृति द्वारा सौर मंडल और इसके नियमों से आता है. यह धरती के सूर्य की परिक्रमा करने से जुड़ा हुआ है. पृथ्वी को सूर्य का एक चक्कर लगाने में 365.242 दिन लगते हैं अर्थात एक कैलेंडर वर्ष से चौथाई दिन अधिक. अतः प्रत्येक चौथे वर्ष कैलेंडर में एक दिन अतिरिक्त जोड़ना पड़ता है. इस बढ़े दिन वाले साल को लीप वर्ष या अधिवर्ष कहते हैं. ये अतिरिक्त दिन ग्रेगोरियन कैलेंडर में लीप वर्ष का 60वाँ दिन बनता है अर्थात 29फ़रवरी.
यदि 29 फ़रवरी की व्यवस्था न हो तो हम प्रत्येक वर्ष प्रकृति के कैलेंडर से लगभग छह घंटे आगे निकल जाएँगे, यानी एक सदी में 24 दिन आगे. यदि ऐसा होता तो मौसम को महीने से जोड़ कर रखना मुश्किल हो जाता. यदि लीप वर्ष की व्यवस्था ख़त्म कर दें तो आजकल जिसे मई-जून की सड़ी हुई गर्मी कहते हैं वैसी स्थिति 500 साल बाद दिसंबर में आएगी.
दुनिया का सबसे बड़ा हाइवे कहाँ है? उसकी लम्बाई कितनी है?
ऑस्ट्रेलिया का हाइवे नम्बर वन दुनिया का सबसे लम्बा हाइवे माना जाता है. इसकी लम्बाई 14,500 किलोमीटर है. और यह इस महाद्वीप सागर तट से लगकर चलता है. यानी पूरे महाद्वीप का चक्कर लगाता है.
रेलवे स्टेशनों पर समुद्र तल से उनकी ऊँचाई क्यों लिखी जाती है?
यह एक जानकारी है जो वहाँ भी दी जाती है जहाँ रेलगाड़ियाँ नहीं जातीं वहाँ भी शहर के नाम के साथ ऐसी जानकारी दी जाती है. भारतीय रेलवे ने इस प्रकार की जानकारी शहर के नाम पट पर देने का निर्णय जनता की जानकारी बढ़ाने के लिए किया है. अलबत्ता रेल के ड्राइवरों को इस आशय की सूचना दी जाती है कि उनके रास्ते पर पड़ने वाले स्थानों की ऊँचाई क्या है. इससे उन्हें गाड़ी चलाने में आवश्यक सावधानी बरतने में सुविधा होती है. यदि आगे ढलान है तो गाड़ी की गति अलग होगी और यदि चढ़ाई है तो इंजन की शक्ति का दूसरे तरीके से इस्तेमाल होगा.
उल्लू रात में देखता कैसे है?
उल्लू बहुत कम रोशनी में भी देख लेता है. उल्लुओं की अधिकतर प्रजातियाँ रात में देखने वाली हैं. उनकी आंखों में कई प्रकार की अनुकूलन क्षमता होती है. खासतौर से आँखों का आकार दूसरे पक्षियों के मुकाबले काफी बड़ा होता है. उनके रेटिना में प्रकाश संवेदनशील कोशिकाएं होती हैं. कॉर्निया भी बड़ा होता हैं. पर वे दूरदर्शी होते हैं. पास की कई चीजें अच्छी तरह देख नहीं पाते.प्रभात खबर अवसर में प्रकाशित
रेल बजट अलग क्यों होता है?
भारतीय संविधान के अनुच्छेद-112 के अनुसार राष्ट्रपति प्रत्येक वित्तीय वर्ष के सम्बंध में संसद के दोनों सदनों के सामने भारत सरकार की उस वर्ष के लिए प्राप्तियों और व्यय का विवरण रखवाएंगे, जिसे वार्षिक वित्तीय विवरण कहा गया है. यह बजट सामान्यतः फरवरी की अंतिम तिथि को पेश किया जाता है और 1 अप्रेल से लागू होता है. भारतीय रेल भी सरकार का उपक्रम है. इसका अलग बजट बनाने की परम्परा सन 1924 से शुरू हुई है. इसके लिए 1920-21 में बनाई गई विलियम एम एकवर्थ कमेटी ने रेल बजट को सामान्य बजट से अलग पेश करने का सुझाव दिया था. 1920-21 में सरकार का कुल बजट 180 करोड़ का था, जबकि इसमें 82 करोड़ रु का रेल बजट था. अकेला रेल विभाग देश की अकेली सबसे बड़ी आर्थिक गतिविधि संचालित करता था. इसलिए उसका बजट अलग तैयार करने का सुझाव दिया गया. अब अनेक विशेषज्ञ रेल बजट को आम बजट का हिस्सा बनाने का सुझाव देते हैं.
हम इंग्लिश कैलेंडर को ही क्यों फॉलो करते हैं? और फरवरी में ही सबसे कम दिन क्यों होते हैं?
फॉलो करने की वजह तो सरकारी है. सन 1757 में प्लासी की लड़ाई के बाद भारत में ईस्ट इंडिया कम्पनी का शासन स्थापित होने की शुरूआत हो गई और तभी अंग्रेजी कैलेंडर का चलन शुरू हो गया. उसके पहले तक भारत में या तो विक्रमी पंचांग चलता था या इस्लामी काल पद्धति.
लीप वर्ष का अतिरिक्त दिन 29 फ़रवरी महत्त्वपूर्ण है. यह प्रकृति द्वारा सौर मंडल और इसके नियमों से आता है. यह धरती के सूर्य की परिक्रमा करने से जुड़ा हुआ है. पृथ्वी को सूर्य का एक चक्कर लगाने में 365.242 दिन लगते हैं अर्थात एक कैलेंडर वर्ष से चौथाई दिन अधिक. अतः प्रत्येक चौथे वर्ष कैलेंडर में एक दिन अतिरिक्त जोड़ना पड़ता है. इस बढ़े दिन वाले साल को लीप वर्ष या अधिवर्ष कहते हैं. ये अतिरिक्त दिन ग्रेगोरियन कैलेंडर में लीप वर्ष का 60वाँ दिन बनता है अर्थात 29फ़रवरी.
यदि 29 फ़रवरी की व्यवस्था न हो तो हम प्रत्येक वर्ष प्रकृति के कैलेंडर से लगभग छह घंटे आगे निकल जाएँगे, यानी एक सदी में 24 दिन आगे. यदि ऐसा होता तो मौसम को महीने से जोड़ कर रखना मुश्किल हो जाता. यदि लीप वर्ष की व्यवस्था ख़त्म कर दें तो आजकल जिसे मई-जून की सड़ी हुई गर्मी कहते हैं वैसी स्थिति 500 साल बाद दिसंबर में आएगी.
दुनिया का सबसे बड़ा हाइवे कहाँ है? उसकी लम्बाई कितनी है?
ऑस्ट्रेलिया का हाइवे नम्बर वन दुनिया का सबसे लम्बा हाइवे माना जाता है. इसकी लम्बाई 14,500 किलोमीटर है. और यह इस महाद्वीप सागर तट से लगकर चलता है. यानी पूरे महाद्वीप का चक्कर लगाता है.
रेलवे स्टेशनों पर समुद्र तल से उनकी ऊँचाई क्यों लिखी जाती है?
यह एक जानकारी है जो वहाँ भी दी जाती है जहाँ रेलगाड़ियाँ नहीं जातीं वहाँ भी शहर के नाम के साथ ऐसी जानकारी दी जाती है. भारतीय रेलवे ने इस प्रकार की जानकारी शहर के नाम पट पर देने का निर्णय जनता की जानकारी बढ़ाने के लिए किया है. अलबत्ता रेल के ड्राइवरों को इस आशय की सूचना दी जाती है कि उनके रास्ते पर पड़ने वाले स्थानों की ऊँचाई क्या है. इससे उन्हें गाड़ी चलाने में आवश्यक सावधानी बरतने में सुविधा होती है. यदि आगे ढलान है तो गाड़ी की गति अलग होगी और यदि चढ़ाई है तो इंजन की शक्ति का दूसरे तरीके से इस्तेमाल होगा.
उल्लू रात में देखता कैसे है?
उल्लू बहुत कम रोशनी में भी देख लेता है. उल्लुओं की अधिकतर प्रजातियाँ रात में देखने वाली हैं. उनकी आंखों में कई प्रकार की अनुकूलन क्षमता होती है. खासतौर से आँखों का आकार दूसरे पक्षियों के मुकाबले काफी बड़ा होता है. उनके रेटिना में प्रकाश संवेदनशील कोशिकाएं होती हैं. कॉर्निया भी बड़ा होता हैं. पर वे दूरदर्शी होते हैं. पास की कई चीजें अच्छी तरह देख नहीं पाते.प्रभात खबर अवसर में प्रकाशित
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