प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) पुलिस द्वारा तैयार किया गया एक लिखित अभिलेख है, जिसमें संज्ञेय अपराध की जानकारी होती है। मूलतः यह पीड़ित व्यक्ति की शिकायत है। यह एक महत्वपूर्ण दस्तावेज इसलिए है, क्योंकि इसके आधार पर ही भविष्य की न्यायिक प्रक्रिया चलती है। दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा- 154 के अनुसार संज्ञेय अपराध के किए जाने से संबंधित प्रत्येक इत्तला, यदि पुलिस थाने के भार-साधक अधिकारी को मौखिक दी गई हैं तो उसके द्वारा या उसके निदेशाधीन लेखबद्ध कर ली जाएगी और इत्तला देने वाले को पढ़कर सुनाई जाएगी और प्रत्येक ऐसी इत्तला पर, चाहे वह लिखित रूप में दी गई हो या पूर्वोक्त रूप में लेखबद्ध की गई हो, उस व्यक्ति द्वारा हस्ताक्षर किए जाएंगे, जो उसे दे और उसका सार ऐसी पुस्तक में, जो उस अधिकारी द्वारा ऐसे रूप में रखी जाएगी जिसे राज्य सरकार इस निमित्त विहित करें, प्रविष्ट किया जाएगा ।
शून्य एफआईआर एक नई अवधारणा है, जो दिसम्बर 2012 में दिल्ली में हुए गैंगरेप के बाद सामने आई है। इसकी सलाह जस्टिस जेएस वर्मा की अध्यक्षता में बनाई गई समिति ने की थी। सामान्यतः एफआईआर उस थाने में दर्ज होती है जिसके क्षेत्राधिकार में अपराध हुआ हो। ज़ीरो एफआईआर किसी भी थाने में दर्ज कराई जा सकती है। इसके बाद पुलिस और न्याय प्रक्रिया से जुड़े विभागों को जिम्मेदारी बनती है कि एफआईआर का सम्बद्ध थाने में स्थानांतरण कराएं। मूलतः यह महिलाओं को सुविधा प्रदान कराने की व्यवस्था है। और इसका उद्देश्य यह भी है कि पुलिस फौरन कार्रवाई करे। अभी देश के तमाम पुलिस अधिकारी भी इस व्यवस्था से खुद को अनभिज्ञ बताते हैं।
शून्य एफआईआर एक नई अवधारणा है, जो दिसम्बर 2012 में दिल्ली में हुए गैंगरेप के बाद सामने आई है। इसकी सलाह जस्टिस जेएस वर्मा की अध्यक्षता में बनाई गई समिति ने की थी। सामान्यतः एफआईआर उस थाने में दर्ज होती है जिसके क्षेत्राधिकार में अपराध हुआ हो। ज़ीरो एफआईआर किसी भी थाने में दर्ज कराई जा सकती है। इसके बाद पुलिस और न्याय प्रक्रिया से जुड़े विभागों को जिम्मेदारी बनती है कि एफआईआर का सम्बद्ध थाने में स्थानांतरण कराएं। मूलतः यह महिलाओं को सुविधा प्रदान कराने की व्यवस्था है। और इसका उद्देश्य यह भी है कि पुलिस फौरन कार्रवाई करे। अभी देश के तमाम पुलिस अधिकारी भी इस व्यवस्था से खुद को अनभिज्ञ बताते हैं।
आपने अक्सर देखा होगा कि कोई एम्बुलेंस खास तरीके का सायरन बजाती आती है और लोग उसे रास्ता देते हैं। इसे आपातकालीन सेवा संकेत कहते हैं। एम्बुलेंस की छत पर रंगीन बत्तियाँ भी लगी रहती हैं। इसी तरह की व्यवस्था फायर ब्रिगेड के साथ भी होती है। पुलिस की गश्ती गाड़ियों पर भी। इसका उद्देश्य ज़रूरी काम पर जा रहे लोगों को पहचानना और मदद करना है। महत्वपूर्ण सरकारी अधिकारियों, फौजी और नागरिक पदाधिकारियों के लिए भी ज़रूरत के अनुसार ऐसी व्यवस्थाएं की जाती हैं।
भारत में सेंट्रल मोटर ह्वीकल्स रूल्स 1989 के नियम 108(3) के अंतर्गत गाड़ियों पर बत्ती लगाने के जो निर्देश दिए हैं उनके अंतर्गत लाल, नीली और पीली बत्तियाँ गाड़ियों में लगाई जाती है। ये केन्द्रीय निर्देश हैं। इनके अलावा राज्य सरकारों के निर्देश भी होते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने दिसम्बर 2013 में सभी राज्यों और केन्द्र शासित क्षेत्रों को अपने नियम युक्तिसंगत बनाने का निर्देश दिया था। इन नियमों में आवश्यकतानुसार बदलाव होता रहता है।
हॉलमार्क क्या होता है?
हॉलमार्क बहुमूल्य धातुओं जैसे सोने, चाँदी और प्लेटिनम की गुणवत्ता को व्यक्त करता है। हॉलमार्क शब्द Goldsmiths Hall या सुनार शाला से आया है। सोने की हॉलमार्किंग का काम भारतीय मानक ब्यूरो ने निजी और सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को सौंपा है। जिन ज़ेवरों पर यह लगा होता है उन्हें ख़रीदते हुए ग्राहक को भरोसा रहता है कि सोना ठीक है।
बहुत ही बढ़िया जानकारी दी है सर
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