मई दिवस के दो अर्थ
हैं. एक अर्थ है यूरोप में मनाया जाने वाला पारम्परिक मई दिवस और दूसरा है
उन्नीसवीं सदी से शुरू हुआ अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस. दोनों 1 मई को मनाए जाते
हैं. पारम्परिक अर्थ में यह यूरोप के पुराने मूर्ति-पूजक त्योहारों से जुड़ा है. उत्तरी
गोलार्द्ध में यह भीषण सर्दियों की समाप्ति का संकेत भी करता है. जैसे-जैसे यूरोप
ईसाई बनता गया, मूर्तिपूजक
छुट्टियों की धार्मिक विशेषता खो गईं. शुरुआती मई दिवस समारोह, फूलों की रोमन देवी के
त्योहार फ्लोरा और जर्मेनिक देशों के समारोह वालपुर्गिस नाइट के साथ तब मनाए जाते
थे, जब यूरोप में ईसाई धर्म नहीं आया था. यूरोप में धर्मांतरण की प्रक्रिया के
दौरान,
कई मूर्तिपूजक
समारोहों को त्याग दिया गया था, या उन्हें नया रूप दिया गया. मई दिवस का एक धर्मनिरपेक्ष
संस्करण यूरोप और अमेरिका में मनाया जाता रहा है. इस रूप में, मई दिवस को मेपोल के
नृत्य और मई की महारानी के राज्याभिषेक की परम्परा में मनाते हैं.
श्रमिक दिवस के रूप
में 1 मई को आठ घंटे के कार्य-दिवस के लिए हुए संघर्ष की स्मृति में मनाया जाता
है. इसे अंतरराष्ट्रीय श्रमिक दिवस कहते हैं. एक जमाने तक दुनिया में श्रमिकों के
काम का समय निर्धारित नहीं था. इसके लिए संघर्ष चला और अमेरिका में इसकी खूनी
परिणति हुई. इसे 4 मई 1886 के शिकागो के हेमार्केट प्रकरण के रूप में याद किया
जाता है. हेमार्केट मामला शिकागो, इलिनॉय, संयुक्त राज्य अमेरिका में तीन दिन की आम हड़ताल के
दौरान हुआ था, जिसमें आम
मज़दूर,
कारीगर, व्यापारी और दूसरे लोग
शामिल थे. आंदोलन के दौरान पुलिस की गोली से चार हड़ताली मारे गए. इसके अगले दिन
हेमार्केट चौक में एक रैली हुई, जिसमें एक अज्ञात हमलावर ने बम फेंका, जिसमें सात
पुलिसकर्मियों समेत करीब एक दर्जन लोगों की मौत हुई. इसके बाद एक मुकदमा चला,
जिसके बाद चार लोगों को फाँसी दी गई. इस घटना से दुनियाभर में गुस्से की लहर फैल
गई और अंततः दुनिया के मजदूरों के काम के घंटे आठ निर्धारित हो गए. उसकी याद में
मई दिवस मनाया जाता है. यह भी रोचक है कि अमेरिका में काफी पहले से श्रम दिवस
सितम्बर के पहले सोमवार को मनाया जाता है. बीसवीं सदी के उत्तरार्ध में उन्होंने 1
मई को लॉयल्टी डे के रूप में मनाना शुरू कर दिया है. समाजवाद और साम्यवाद के उभार
के बाद सन 1904 में सेकंड इंटरनेशनल ने मई दिवस को अंतरराष्ट्रीय श्रम दिवस मनाने
का फैसला किया.
भारत में पहली ट्रेन
कब चली?
16 अप्रैल 1853 को
मुम्बई और ठाणे के बीच जब पहली रेल चली. ग्रेट इंडियन पेनिनसुला रेलवे के 14
डिब्बों वाली उस गाड़ी के आगे एक छोटा फॉकलैंड नाम का भाप इंजन लगा था. पहली ट्रेन
ने 34 किलोमीटर का सफर किया. भारत में रेल की शुरुआत की कहानी अमेरिका के कपास की
फसल की विफलता से जुड़ी हुई है, जहां वर्ष 1846 में कपास की फसल को काफी
नुकसान पहुंचा था. इसके कारण ब्रिटेन के मैनचेस्टर और ग्लासगो के कपड़ा
कारोबारियों को वैकल्पिक स्थान की तलाश करने पर विवश होना पड़ा था. अंग्रेज़ों को
प्रशासनिक दृष्टि और सेना के परिचालन के लिए भी रेलवे का विकास करना तर्क संगत लग
रहा था. ऐसे में 1843 में लॉर्ड डलहौजी ने भारत में रेल चलाने की संभावना तलाश
करने का कार्य शुरु किया. डलहौजी ने बम्बई, कोलकाता, मद्रास को रेल
सम्पर्क से जोड़ने का प्रस्ताव किया. इस पर अमल नहीं हो सका. साल 1849 में ग्रेट
इंडियन पेंनिनसुलर कंपनी कानून पारित हुआ और भारत में रेलवे की स्थापना का मार्ग
प्रशस्त हुआ.
उंगलियों के निशानों
की क्या खासियत होती है?
प्रकृति ने सभी
जीवधारियों को अलग-अलग सांचों से ढालकर निकाला है. दो व्यक्तियों के हाथों और
पैरों की अंगुलियों के निशान या उभार समान नहीं होते. इन्हें एपिडर्मल रिज कहते
हैं. हमारी त्वचा जब दूसरी वस्तुओं के साथ सम्पर्क में आती है तब ये उभार उसे
महसूस करने में मददगार होते हैं. साथ ही ग्रिप बनाने में मददगार भी होते हैं. किसी
भी वस्तु के साथ सम्पर्क होने पर ये निशान उसपर छूट जाते हैं. इसकी वजह है पसीना, जो
हमारी त्वचा को नर्म बनाकर रखता है. तमाम दस्तावेजों में जहाँ व्यक्ति दस्तखत नहीं
कर पाता उसकी उंगलियों के निशान लिए जाते हैं. आधार पहचान-पत्र में इसीलिए
उंगलियों के निशान लिए जाते हैं. फोरेंसिक विज्ञान के विस्तृत होते दायरे में अब
दूध का दूध और पानी का पानी अलग करना आसान हो गया है. इसके तहत संदेह की लेशमात्र
भी गुंजाइश नहीं रहती. विज्ञान के अनुसार भले ही ये निशान फौरी तौर पर लगभग एक
जैसे दिखाई पड़ें, पर उनमें समानता नहीं होती. इस अंतर का पता सूक्ष्म
विश्लेषण से ही हो सकता है.
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन संगीतकार - नौशाद अली और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDelete