अनुमान है कि पूरी दुनिया में भाषाओं की संख्या तीन से आठ हजार के बीच है। वस्तुतः यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप भाषा को किस तरह से परिभाषित करते हैं। अलबत्ता दुनिया की भाषाओं के एथनोलॉग कैटलॉग के अनुसार दुनिया में इस वक्त 6909 जीवित भाषाएं हैं। इनमें से केवल 6 फीसदी भाषाएं ही ऐसी हैं, जिन्हें बोलने वालों की संख्या दस लाख या ज्यादा है। एथनोलॉग कैटलॉग के बारे में जानकारी यहाँ मिल सकती है।
विश्व पत्रकारिता और हिन्दी पत्रकारिता दिवस
अंतर्राष्ट्रीय पत्रकारिता स्वतंत्रता दिवस (वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम डे) हर साल 3 मई को मनाया जाता है। वर्ष 1991 में युनेस्को और संयुक्त राष्ट्र के 'जन सूचना विभाग' ने मिलकर इसे मनाने का निर्णय किया था। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने भी इसकी घोषणा की। युनेस्को महा-सम्मेलन के 26वें सत्र में 1993 में इससे संबंधित प्रस्ताव को स्वीकार किया गया था। इसे मनाने का उद्देश्य प्रेस की स्वतंत्रता के जुड़े विभिन्न पक्षों को लेकर वैश्विक-जागरूकता बढ़ाना है।
अंतर्राष्ट्रीय पत्रकारिता स्वतंत्रता दिवस (वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम डे) हर साल 3 मई को मनाया जाता है। वर्ष 1991 में युनेस्को और संयुक्त राष्ट्र के 'जन सूचना विभाग' ने मिलकर इसे मनाने का निर्णय किया था। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने भी इसकी घोषणा की। युनेस्को महा-सम्मेलन के 26वें सत्र में 1993 में इससे संबंधित प्रस्ताव को स्वीकार किया गया था। इसे मनाने का उद्देश्य प्रेस की स्वतंत्रता के जुड़े विभिन्न पक्षों को लेकर वैश्विक-जागरूकता बढ़ाना है।
हिन्दी पत्रकारिता दिवस भी मई में मनाया जाता है। इसकी तारीख है 30 मई। 30 मई, 1826 में पंडित युगल किशोर शुक्ल ने हिन्दी के पहले समाचार पत्र 'उदन्त मार्तण्ड' का प्रकाशन व सम्पादन आरम्भ कोलकाता से किया था। इस प्रकार भारत में हिन्दी पत्रकारिता की आधारशिला उन्होंने रखी। उस समय अंग्रेज़ी, फारसी और बांग्ला में तो अनेक पत्र निकल रहे थे किन्तु हिन्दी में एक भी पत्र प्रकाशित नहीं होता था। प्रारंभिक रूप में इसकी केवल 500 प्रतियां ही मुद्रित हुई थीं। इसका प्रकाशन लम्बे समय तक न चल सका, क्योंकि इसके प्रकाशन का खर्च निकाल पाना मुश्किल हो गया था। अंतत: 4 दिसम्बर 1826 को इसका प्रकाशन स्थगित हो गया।
उंगलियों के निशान क्यों महत्वपूर्ण होते हैं?
प्रकृति ने सभी जीवधारियों को अलग-अलग सांचों से ढालकर निकाला है। दो व्यक्तियों के हाथों और पैरों की अंगुलियों के निशान या उभार समान नहीं होते। इन्हें एपिडर्मल रिज कहते हैं। हमारी त्वचा जब दूसरी वस्तुओं के साथ सम्पर्क में आती है तब ये उभार उसे महसूस करने में मददगार होते हैं। साथ ही ग्रिप बनाने में मददगार भी होते हैं। किसी भी वस्तु के साथ सम्पर्क होने पर ये निशान उसपर छूट जाते हैं। इसकी वजह है पसीना, जो हमारी त्वचा को नर्म बनाकर रखता है। तमाम दस्तावेजों में जहाँ व्यक्ति दस्तखत नहीं कर पाता उसकी उंगलियों के निशान लिए जाते हैं। आधार पहचान-पत्र में इसीलिए उंगलियों के निशान लिए जाते हैं। फोरेंसिक विज्ञान के विस्तृत होते दायरे में अब दूध का दूध और पानी का पानी अलग करना आसान हो गया है। इसके तहत संदेह की लेशमात्र भी गुंजाइश नहीं रहती। विज्ञान के अनुसार भले ही ये निशान फौरी तौर पर लगभग एक जैसे दिखाई पड़ें, पर उनमें समानता नहीं होती। इस अंतर का पता सूक्ष्म विश्लेषण से ही हो सकता है।
उंगलियों के निशान क्यों महत्वपूर्ण होते हैं?
प्रकृति ने सभी जीवधारियों को अलग-अलग सांचों से ढालकर निकाला है। दो व्यक्तियों के हाथों और पैरों की अंगुलियों के निशान या उभार समान नहीं होते। इन्हें एपिडर्मल रिज कहते हैं। हमारी त्वचा जब दूसरी वस्तुओं के साथ सम्पर्क में आती है तब ये उभार उसे महसूस करने में मददगार होते हैं। साथ ही ग्रिप बनाने में मददगार भी होते हैं। किसी भी वस्तु के साथ सम्पर्क होने पर ये निशान उसपर छूट जाते हैं। इसकी वजह है पसीना, जो हमारी त्वचा को नर्म बनाकर रखता है। तमाम दस्तावेजों में जहाँ व्यक्ति दस्तखत नहीं कर पाता उसकी उंगलियों के निशान लिए जाते हैं। आधार पहचान-पत्र में इसीलिए उंगलियों के निशान लिए जाते हैं। फोरेंसिक विज्ञान के विस्तृत होते दायरे में अब दूध का दूध और पानी का पानी अलग करना आसान हो गया है। इसके तहत संदेह की लेशमात्र भी गुंजाइश नहीं रहती। विज्ञान के अनुसार भले ही ये निशान फौरी तौर पर लगभग एक जैसे दिखाई पड़ें, पर उनमें समानता नहीं होती। इस अंतर का पता सूक्ष्म विश्लेषण से ही हो सकता है।
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