संयुक्त राष्ट्र शांति-सेना संयुक्त राष्ट्र के
सदस्य देशों की सेनाओं की मदद से एक अस्थायी व्यवस्था के रूप में अलग-अलग
परिस्थितियों में गठित की जाती है. इसका उद्देश्य टकराव को दूर करके शांति स्थापित
करने में मदद करना होता है. संयुक्त राष्ट्र शांति सैनिक नीले रंग की टोपियाँ
लगाते हैं या नीले रंग के हेल्मेट पहनते हैं, जो अब इस सेना की पहचान बन गई है.
संयुक्त राष्ट्र की अपनी कोई सेना नहीं होती. इस
सेना के सदस्य अपने देश की सेना के सदस्य ही रहते हैं. शांति-सेना के रूप में
कार्य करते समय यह सेना संयुक्त राष्ट्र के प्रभावी नियंत्रण में होती है. शांति-रक्षा का हर
कार्य सुरक्षा परिषद द्वारा अनुमोदित होता है. संयुक्त राष्ट्र के गठन के समय इस सेना की परिकल्पना नहीं की गई थी,
बल्कि बदलते हालात के साथ इसका विकास होता गया. संयुक्त राष्ट्र के चार्टर में
सुरक्षा परिषद को अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बनाए रखने के लिए संयुक्त
कार्रवाई करने का अधिकार दिया गया है. संयुक्त राष्ट्र के शांति-ऑपरेशंस का एक अलग
विभाग बन गया है, जिसके प्रमुख इस समय ज्यां-पियरे लैक्रो हैं.
संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन सबसे पहले 1948 में
अरब-इसरायल युद्ध के समय भेजा गया था. उसके बाद से संयुक्त राष्ट्र के 63 मिशन
भेजे जा चुके हैं, जिनमें से 17 आज भी सक्रिय हैं. सन 1988 में संयुक्त राष्ट्र
शांति-रक्षा बल को नोबेल शांति पुरस्कार भी दिया गया. संयुक्त राष्ट्र के पूर्ववर्ती
संगठन लीग ऑफ नेशंस के सामने शांति स्थापना के ज्यादा अवसर नहीं आए, पर सन 1934-35
में लीग ऑफ नेशंस के नेतृत्व में जर्मनी के सार क्षेत्र में सेना भेजी गई. इसे
दुनिया की पहली शांति-स्थापना से जुड़ी संयुक्त सैनिक कार्रवाई माना जा सकता है. पहले
विश्व युद्ध के काफी समय बाद सार क्षेत्र में जनमत संग्रह के संचालन के लिए इसकी
जरूरत महसूस की गई.
भारत में गाँवों की
सही संख्या क्या है?
गूगल पर सर्च करें तो कई तरह की संख्याएं सामने
आएंगी. ज्यादातर 6,40,000 को आसपास हैं. हाल में जब भारत सरकार ने घोषणा की कि देश
के सभी गाँवों में बिजली पहुँचा दी गई है, तब यह संख्या 5,97, 464 बताई गई. दरअसल
यह संख्या राजस्व गाँवों की संख्या है. जन 2011 की जनगणना में राजस्व गाँवों की
संख्या 5,97, 464 बताई गईं थी. गाँव की बस्ती, पुरवा जैसी कई परिभाषाएं हैं. यदि
कुछ लोग कहीं घर बनाकर रहने लगें, तो आधिकारिक रूप से उसे तबतक गाँव नहीं कहेंगे,
जबतक राजस्व खाते में उसका नाम दर्ज न हो जाए. शहरों के विकास के साथ हमारे देश
में बहुत से गाँवों और बस्तियों का अस्तित्व खत्म भी होता जा रहा है, इसलिए यह
संख्या बदलता रहती है.
सोशल मीडिया में डीपी
किसे कहते हैं?
डीपी माने डिस्प्ले पिक्चर. आपकी वह तस्वीर जो
आपकी पहचान है. कुछ लोग अपनी तस्वीर लगाते हैं और कुछ लोग प्रतीक रूप में किसी दृश्य
या वस्तु की तस्वीर भी लगाते हैं. समय पड़ने पर उसमें बदलाव भी करते हैं जैसे हाल
में कुछ लोग ने जम्मू-कश्मीर में एक बालिका के साथ हुए बलात्कार के प्रति रोष
जाहिर करने के लिए अपनी डीपी काली कर दी थी.
कम्प्यूटिंग या डिजिटल मीडिया के उदय के साथ जब
कई तरह के फोरम जन्म लेने लगे तब यूजर की पहचान का सवाल भी उठा. इसके लिए शुरूआती
शब्द बना अवतार. अवतार भारतीय पौराणिक शब्द है, जिसे इंटरनेट पर इस रूप में जगह
मिली. कई जगह इसे पायकन (पर्सनल आयकन) भी कहा गया. अवतार शब्द का सबसे पहला
इस्तेमाल सन 1979 में कम्प्यूटर गेम प्लेटो में देखने को मिला, पर ऑन-स्क्रीन
परिचय के लिए 1985 में कम्प्यूटर गेम अल्टिमा-4
केसर क्या होता है?
केसर कृषि-उत्पाद है
यानी कि उसकी खेती होती है. भारत की केसर दुनिया में सबसे अच्छी मानी जाती. भारत
में जम्मू-कश्मीर में केसर की खेती होती है. कश्मीर के अवंतीपुर के पंपोर और जम्मू
संभाग के किश्तवाड़ इलाके में केसर की खेती की जाती है. केसर बोने के लिए खास जमीन
की आवश्यकता होती है. ऐसी जमीन जहां बर्फ पड़ती हो और जमीन में नमी मौजूद रहती हो.
जिस जमीन पर केसर बोयी जाती है वहां कोई और खेती नहीं की जा सकती. कारण, केसर का बीज
हमेशा जमीन के अंदर ही रहता है. इस बीज को निकाल कर उमसे दवाइयाँ और खाद मिलाकर
फिर से बोया जाता है. यह बुआई जुलाई-अगस्त में की जाती है. केसर के फूल
अक्टूबर-नवंबर में खिलने लगते हैं. जमीन में जितनी ज्यादा नमी होगी, केसर की
पैदावार भी उतनी ही ज्यादा होगी. केसर का फूल नीले रंग का होता है. नीले फूल के
भीतर पराग की पांच पंखुड़ियां होती हैं. इनमें तीन केसरिया रंग की और बीच की दो
पंखुड़ियां पीले रंग की. केसरिया रंग की पंखुड़ियाँ ही असली केसर कही जाती हैं.
अच्छी जानकारी है.
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