Sunday, April 3, 2011

अल्पसंख्यकों से दुर्व्यवहार करने वाले देशों पर अंतरराष्ट्रीय कारवाई सम्भव है?


जिन देशों में अल्पसंख्यकों के साथ दोहरा व्यवहार किया जा  रहा है, जहां उनका जीवन और स्वतंत्रता असुरक्षित है, वहां क्या संयुक्त राष्ट्र या किसी दूसरी अंतराराष्ट्रीय संस्था द्वारा अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा की जा सकती है? या फिर केवल वही राष्ट्र उनके हित अहित तय करता है?

सबसे पहले अल्पसंख्यक शब्द के अर्थ को समझें। दुनिया में जातीय, सामुदायिक, वैचारिक धार्मिक, वर्गीय, भाषायी, लैंगिक, क्षेत्रीय, सांस्कृतिक या किसी दूसरे आधार पर अल्पसंख्यक हो सकते हैं। आधुनिक लोकतंत्र की भावना है कि बहुसंक्यकों की भीड़ में अल्पसंख्यकों के साथ अन्याय न हो। अल्पसंख्यक एक व्यक्ति भी हो सकता है और एक समूह भी। अंतरऱाष्रीय कानून के तहत बच्चों, स्त्रियों और शरणार्थियों के अधिकार भी इसके तहत रखे जाते हैं।

पहले विश्वयुद्ध के दौरान 1914 से 1920 के बीच ऑटोमन साम्राज्य (तुर्की) ने उत्तरी मेसोपोटामिया के असीरियन लोगों का जबर्दस्त संहार किया गया। अनुमान है कि इस संहार में पाँच से साढ़े सात लाख लोग मारे गए। ऑटोमन साम्राज्य ने ऐसे ही आर्मीनियन और पोंटिक ग्रीक नरसंहार किए, जिनमें करीब 30 लाख अल्पसंख्यक ईसाइयों की हत्या हुई। पहले विश्वयुद्ध के बाद उत्तरी राक का सिमेले नरसंहार भी इसी तरह की एक मिसाल है। इसी तरह नाजी जर्मनी में द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान करीब 60 लाख यहूदियों का संहार किया गया।

द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद संयुक्त राष्ट्र के तत्वावधान में अनेक अतरराष्ट्रीय संधियां हुईं हैं। इनमें सबसे महत्वपूर्ण हैं नरसंहार अपराध के विरोध में संधि 1948, जातीय भेदभाव के खिलाफ 1965, नागरिक और राजनैतिक अधिकार 1966, आर्थक, सामाजिक र सांस्कृतिक अधिकार 1966, स्त्रियों से भेदभाव 1979, टॉर्चर तथा क्रूरता 1984, बाल अधिकार 1989, इसके अलावा 1992 का संयुक्त राष्ट्र का अल्पसंख्यक अधिकारों का घोषणापत्र भी इसकी एक कड़ी है। हर साल संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) द्वारा जारी होने वाली मानव विकास रिपोर्ट में इस बात का उल्लेख होता है कि किन देशों ने इन संधियों की पुष्टि की है। हालांकि संधियों की पुष्टि करने से कोई देश इन अपराधों से मुक्त नहीं हो जाता, पर यह काम धीरे-धीरे ही सम्भव है। और इसमें सभी देशों की सरकारों और जनता की सहमति की आवश्यकता है। अंतरराष्ट्रीय कारवाई के लिए बड़े स्तर पर आम सहमति बनानी होती है। ऐसी सहमति के तहत ही सूडान के राष्ट्रपति उमर हसन अल-बशीर के खिलाफ दारफुर नर संहार के काऱण गिरफ्तारी वारंट जारी हुआ। इसी तरह संयुक्त राष्ट्र ने हाल में लीबिया में जनता को कुचलने की कारवाई के विरोध में फौजी कारवाई की फैसला किया।    



2 comments:

  1. जब तक आदमी खुद को अपने पैदा करने वाले के प्रति जवाबदेह महसूस नहीं करेगा तब तक कोई कानून बना लिया जाये , दुनिया में कमज़ोर की हिफाज़त होना मुमकिन ही नहीं है . अमेरिका कमज़ोर मुल्कों पर अपने स्वार्थ के लिए बमबारी कर रहा है और लोग अपनी सूची में उसका नाम तक नहीं लिख पाते एक ज़ालिम के तौर पर.

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  2. gyaan kosh men itni gyaan vrdhk saamgri milegi socha nhin thaa bhtrin sch bdhai ho . akhtar khan akela kota rajasthan

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