Sunday, April 3, 2016

सूरज सुबह और शाम को ही सिंदूरी क्यों दिखाई देता है? दोपहर में क्यों नहीं?

इस सवाल का जवाब जानने के लिए पहले यह समझना होगा कि आसमान का रंग नीला या आसमानी क्यों होता है. धरती के चारों ओर वायुमंडल यानी हवा है. इसमें कई तरह की गैसों के मॉलीक्यूल और पानी की बूँदें या भाप है. गैसों में सबसे ज्यादा करीब 78 फीसद नाइट्रोजन है और करीब 21 फीसद ऑक्सीजन. इसके अलावा ऑरगन गैस और पानी है. इसमें धूल, राख और समुद्री पानी से उठा नमक वगैरह है. हमें अपने आसमान का रंग इन्हीं चीजों की वजह से आसमानी लगता है.

दरअसल हम जिसे रंग कहते हैं वह रोशनी है. रोशनी वेव्स या तरंगों में चलती है. हवा में मौजूद चीजें इन वेव्स को रोकती हैं. जो लम्बी वेव्स हैं उनमें रुकावट कम आती है. वे धूल के कणों से बड़ी होती हैं. यानी रोशनी की लाल, पीली और नारंगी तरंगें नजर नहीं आती. पर छोटी तरंगों को गैस या धूल के कण रोकते हैं. और यह रोशनी टकराकर चारों ओर फैलती है. रोशनी के वर्णक्रम या स्पेक्ट्रम में नीला रंग छोटी तरंगों में चलता है. यही नीला रंग जब फैलता है तो वह आसमान का रंग लगता है.

दिन में सूरज ऊपर होता है. वायुमंडल का निचला हिस्सा ज्यादा सघन है. आप दूर क्षितिज में देखें तो वह पीलापन लिए होता है. कई बार लाल भी होता है. सुबह और शाम के समय सूर्य नीचे यानी क्षितिज में होता है तब रोशनी अपेक्षाकृत वातावरण की निचली सतह से होकर हम तक पहुँचती है. माध्यम ज्यादा सघन होने के कारण वर्णक्रम की लाल तरंगें भी बिखरती हैं. इसलिए आसमान अरुणिमा लिए नज़र आता है.

कई बार आँधी आने पर आसमान पीला भी होता है. आसमान का रंग तो काला होता है. रात में जब सूरज की रोशनी नहीं होती वह हमें काला नजर आता है. हमें अपना सूरज भी पीले रंग का लगता है. जब आप स्पेस में जाएं जहाँ हवा नहीं है वहाँ आसमान काला और सफेद सूरज नजर आता है.

बंदूक चलाने पर पीछे की तरफ झटका क्यों लगता है?

न्यूटन का गति का तीसरा नियम है कि प्रत्येक क्रिया की सदैव बराबर एवं विपरीत दिशा में प्रतिक्रिया होती है. जब बंदूक की गोली आगे बढ़ती है तब वह पीछे की ओर भी धक्का देती है. गोली तभी आगे बढ़ती है जब बंदूक का बोल्ट उसके पीछे से प्रहार करता है. इससे जो शक्ति जन्म लेती है वह आगे की और ही नहीं जाती पीछे भी जाती है. तोप से गोला दगने पर भी यही होता है. आप किसी हथौड़े से किसी चीज पर वार करें तो हथौड़े में भी पीछे की और झटका लगता है.

रेव पार्टी शब्द आजकल खासा प्रचलन में है. यह शब्द किस अर्थ में आता है?

अंग्रेजी शब्द रेव का मतलब है मौज मस्ती. टु रेव इसकी क्रिया है यानी मस्ती मनाना. पश्चिमी देशों में भी यह शब्द बीसवीं सदी में ही लोकप्रिय हुआ. ब्रिटिश स्लैंग में रेव माने ‘वाइल्ड पार्टी.’ इसमें डिस्क जॉकी, इलेक्ट्रॉनिक म्यूज़िक का प्राधान्य होता है. अमेरिका में अस्सी के दशक में एसिड हाउस म्यूज़िक का चलन था. रेव पार्टी का शाब्दिक अर्थ हुआ 'मौज मस्ती की पार्टी'. इसमें ड्रग्स, तेज़ पश्चिमी संगीत, नाचना, शोर-गुल और सेक्स का कॉकटेल होता है. भारत में ये मुम्बई, दिल्ली से शुरू हुईं. अब छोटे शहरों तक पहुँच गई हैं, लेकिन नशे के घालमेल ने रेव पार्टी का उसूल बदल दिया है. पहले यह खुले में होती थीं अब छिपकर होने लगी हैं.

महामहिम और महामना शब्द से क्या तात्पर्य है?

शब्दकोश के अनुसार महामना (सं.) [वि.] बहुत उच्च और उदार मन वाला; उदारचित्त; बड़े दिलवाला. [सं-पु.] एक सम्मान सूचक संबोधन. और महामहिम (सं.) [वि.] 1. जिसकी महिमा बहुत अधिक हो; बहुत बड़ी महिमा वाला; महामहिमायुक्त 2. अति महत्व शाली. [सं-पु.] एक सम्मान सूचक संबोधन. आधुनिक अर्थ में हम राजद्वारीय सम्मान से जुड़े व्यक्तियों को महामहिम कहने लगे हैं. मसलन राष्ट्रपति और राज्यपालों को. अब तो जन प्रतिनिधियों के लिए भी इस शब्द का इस्तेमाल होने लगा है.

इस शब्द से पुरानी सामंती गंध आती है और शायद इसीलिए राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को अपने पदनाम से पहले 'महामहिम ' जोड़ना पसंद नहीं है, इसलिए पिछले कुछ समय से उनके कार्यक्रमों से जुड़े बैनर,पोस्टर या निमंत्रण पत्रों में 'महामहिम' नहीं लिखा गया. यहाँ तक, कि उनके स्वागत-सम्मान वाले भाषणों में भी 'महामहिम' संबोधन से परहेज किया गया. अंग्रेजी में भी उनके नाम से पहले 'हिज़ एक्सेलेंसी' नहीं जोड़ा गया. कुछ राज्यपालों ने भी इस दिशा में पहल की है.

महामना शब्द के साथ सरकारी पद नहीं जुड़ा है. इसका इस्तेमाल भी ज्यादा नहीं होता. यह प्रायः गुणीजन, उदार समाजसेवियों के लिए इस्तेमाल होने वाला शब्द है और इसका सबसे बेहतरीन इस्तेमाल महामना मदन मोहन मालवीय के लिए होते देखा गया है.

प्रभात खबर अवसर में 31 मार्च 2016 के अंक में प्रकाशित

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