Sunday, December 31, 2017

भारत का राष्ट्रीय कैलेंडर शक संवत

राष्ट्रीय शाके अथवा शक संवत भारत का राष्ट्रीय कलैण्डर है। इसका प्रारम्भ यह 78 वर्ष ईसा पूर्व माना जाता है। यह संवत भारतीय गणतंत्र का सरकारी तौर पर स्वीकृत अपना राष्ट्रीय संवत है। ईसवी सन 1957 (चैत्र 1, 1879 शक) को भारत सरकार ने इसे देश के राष्ट्रीय पंचांग के रूप में मान्यता प्रदान की थी। इसीलिए राजपत्र (गजट), आकाशवाणी और सरकारी कैलेंडरों में ग्रेगोरियन कैलेंडर के साथ इसका भी प्रयोग किया जाता है। विक्रमी संवत की तरह इसमें चन्द्रमा की स्थिति के अनुसार काल गणना नहीं होती, बल्कि सौर गणना होती है। यानी महीना 30 दिन का होता है। इसे शालिवाहन संवत भी कहा जाता है। इसमें महीनों का नामकरण विक्रमी संवत के अनुरूप ही किया गया है, लेकिन उनके दिनों का पुनर्निर्धारण किया गया है। इसके प्रथम माह (चैत्र) में 30 दिन हैं, जो अंग्रेजी लीप ईयर में 31 दिन हो जाते हैं। वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण एवं भाद्रपद में 31-31 दिन एवं शेष 6 मास में यानी आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ तथा फाल्गुन में 30-30 दिन होते हैं। ईसवी सन 500 के बाद संस्कृत में लिखित अधिकतर ज्योतिष ग्रन्थ शक संवत का प्रयोग करने लगे। इस संवत का यह नाम क्यों पड़ा, इस विषय में विभिन्न मत हैं। इसे कुषाण राजा कनिष्क ने चलाया या किसी अन्य ने, इस विषय में अन्तिम रूप से कुछ नहीं कहा जा सका है। वराहमिहिर ने इसे शक-काल तथा शक-भूपकाल कहा है। उत्पल (लगभग 966 ई.) ने बृहत्संहिता की व्याख्या में कहा है-जब विक्रमादित्य द्वारा शक राजा मारा गया तो यह संवत चला। सबसे प्राचीन शिलालेख, जिसमें स्पष्ट रूप से शक संवत का उल्लेख है, 'चालुक्य वल्लभेश्वर' का है, जिसकी तिथि 465 शक संवत अर्थात 543 ई. है। क्षत्रप राजाओं के शिलालेखों में वर्षों की संख्या व्यक्त है, किन्तु संवत का नाम नहीं है, किन्तु वे संख्याएँ शक काल की द्योतक हैं। यों कुषाण राजा कनिष्क को शक संवत का प्रतिष्ठापक माना जाता है। शक राज्यों को चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने समाप्त कर दिया पर उनका स्मारक शक संवत चल रहा है। इसमें महीनों का क्रम इस प्रकार होता है।

क्रम         माह         दिवस        मास प्रारम्भ अंग्रेजी तिथि
1           चैत्र         30/31       22 मार्च    
2           वैशाख       31          21 अप्रेल   
3           ज्येष्ठ       31          22 मई
4           आषाढ़       31          22 जून
5           श्रावण       31          23 जुलाई
6           भाद्र        31          23 अगस्त
7           आश्विन     30          23 सितंबर
8           कार्तिक      30          23 अक्टूबर
9           मार्गशीर्ष     30          22 नवम्बर
10          पौष         30          22 दिसम्बर
11          माघ         30          23 जनवरी

12          फाल्गुन       30          20 फ़रवरी

कादम्बिनी के ज्ञानकोश स्तम्भ में प्रकाशित

Thursday, December 21, 2017

सऊदी अरब का विजन-2030 क्या है?

सऊदी सरकार की विजन-2030 योजना एक आर्थिक-राजनीतिक कार्यक्रम का हिस्सा है. यह मानकर चला जा रहा है कि देश अब ज्यादा समय तक पेट्रोलियम पर निर्भर नहीं करेगा. अर्थ-व्यवस्था को नई दिशा देने और स्वास्थ्य, शिक्षा, मनोरंजन और पर्यटन पर नए सिरे से सोचने की जरूरत है. हाल में देश में सिनेमाघर फिर से खोलने की घोषणा भी इसी के तहत की गई है.
सत्तर के दशक में यहाँ सिनेमा पर यह मानते हुए पाबंदी लगा दी गई थी कि सिनेमा गैर-इस्लामी है. उसके पहले वहाँ सिनेमाघर थे और फिल्मों को गैर-इस्लामी नहीं माना जाता था. पर उसके बाद वहाँ सिनेमाघर बंद कर दिए गए. हालांकि हाल के कुछ वर्षों में वहाँ डॉक्यूमेंट्री और शिक्षाप्रद फिल्में बनने लगी हैं, पर उनका निजी प्रदर्शन ही हो पाता है. देश के अमीर लोग डीवीडी और सैटेलाइट टीवी पर फिल्में देखने लगे हैं. नवम्बर 2010 में वहाँ खोबार में आईमैक्स का एक थिएटर स्थापित किया गया, जिसमें ज्यादातर विज्ञान और तकनीक से जुड़ी फिल्में दिखाई जाती हैं. हाल में सरकार ने फैसला किया है कि सन 2018 से सिनेमाघर खोले जाएंगे. आशा है कि सन 2030 तक देश में करीब 300 सिनेमाघर खुल जाएंगे.
कैलेंडर क्यों बने और कितने प्रकार के होते हैं?
समय को क्रमबद्ध करने की व्यवस्था का नाम कैलेंडर है. इस व्यवस्था की ज़रूरत सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, प्रशासनिक, खेती-बाड़ी, तकनीकी और वैज्ञानिक कारणों से पैदा होती है. सब कुछ स्थिर नहीं है, बल्कि चलायमान है. इस गति को नापने के स्केल बने. उनकी व्यवस्था कैलेंडर है. वर्ष महीने, सप्ताह, दिन, घंटे, मिनट और सेकंड समय नापने के कुछ पैमाने हैं. यह समय चक्र चंद्रमा या सूर्य या दोनों की गतियों से तय होता है. चंद्रमा के अपने पूर्ण आकार लेने से गायब होने तक और फिर क्रमशः पूर्ण आकार लेने के चौदह-चौदह दिन के दो पखवाड़ों से महीने बने. इसके विपरीत पृथ्वी द्वारा सूर्य की एक परिक्रमा पूरी करने पर एक वर्ष बना. चन्द्र मास के बारह महीने 365 दिन नहीं लेते. इसलिए चन्द्र-व्यवस्था के कैलेंडरों में एक अतिरिक्त महीने का चक्र भी शामिल किया गया. दुनिया भर की सभ्यताओं और संस्कृतियों ने अपने-अपने कैलेंडर बनाए हैं.
कैलेंडर सभ्यताओं के प्राचीनतम आविष्कार हैं. प्राचीन मिस्र, भारत, चीन और मेसोपोटामिया में कैलेंडर बन गए थे. भारतीय कैलेंडर आमतौर पर चन्द्र या सौर-चन्द्र व्यवस्था पर केंद्रित हैं. भारत में इन्हें पंचांग कहते हैं. पंचांग माने तिथि, वासर, नक्षत्र, योग और करण का विवरण देने वाली व्यवस्था. वेदों में पंचांग का उल्लेख हैं. भारत में अनेक पद्धतियों के पंचांग हैं, पर सबसे ज्यादा प्रचलित विक्रम और शक या शालिवाहन पंचांग हैं. दुनिया में आमतौर पर प्रचलित ग्रेगोरियन कैलेंडर है. यह ईसाई कैलेंडर है. इसके सुधरे रूप जूलियन कैलेंडर को आमतौर पर दुनिया के ज्यादातर संगठन मान्यता देते हैं. इस्लामिक और चीनी कैलेंडर भी अपनी-अपनी जगह प्रचलित हैं.
क्या पाकिस्तान में मंदिर हैं?
हाँ पाकिस्तान में बड़ी संख्या में मंदिर हैं. पाक अधिकृत कश्मीर में शारदा पीठ है, बलूचिस्तान में हिंगलाज देवी का मंदिर है, जिसमें स्थानीय मुसलमान भी चढ़ावा चढ़ाते हैं. उसे नानी मंदिर कहते हैं. इस्लामाबाद में सैदपुर मंदिर है, मनसेहरा में शिव मंदिर है,पेशावर में नंदी मंदिर है. वहाँ सिखों के गुरद्वारे भी हैं, जिनमें सबसे प्रसिद्ध गुरुनानक देव जी का जन्मस्थल ननकाना साहिब है. कुछ मंदिर अब भी सुरक्षित है.
क्या चंद्रमा पर ध्वनि सुनाई देती है?
ध्वनि की तरंगों को चलने के लिए किसी माध्यम की ज़रूरत होती है. चन्द्रमा पर न तो हवा है और न किसी प्रकार का कोई और माध्यम है. इसलिए आवाज़ सुनाई नहीं पड़ती.
सेंधा नमक, सादा नमक और काला नमक में क्या फर्क है?
सादा नमक समुद्र के या खारे पानी की झीलों के पानी को सुखाकर बनाया जाता है. पुराने ज़माने में समुद्री नमक बोरों में भरकर और उसके क्रिस्टल रूप में बिकता था. सेंधा नमक वस्तुत: नमक की चट्टान है, जिसे पीसकर पाउडर की शक्ल में बनाते हैं. काला नमक मसाले (मूलत: हरड़) मिलाकर बनाया जाता है.


Sunday, December 17, 2017

अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के जज कैसे नियुक्त होते हैं?

इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (ICJ)में 15 जज होते हैं, जिनमें से प्रत्येक का कार्यकाल 9 साल का होता है। सदन में निरंतरता बनाए रखने के लिए हरेक तीन साल में एक तिहाई सदस्य नए आते हैं। इसके लिए इनका चुनाव होता है। चुनाव संयुक्त राष्ट्र महासभा और सुरक्षा परिषद मिलकर करती हैं। प्रत्याशी को दोनों सदनों में स्पष्ट बहुमत मिलना चाहिए। कई बार एक बार में पूरा बहुमत नहीं मिलता तो मतदान के कई दौर होते हैं। किसी सदस्य का निधन होने या उनके त्यागपत्र देने के बाद भी सीट खाली होने पर चुनाव होता है। चुनाव न्यूयॉर्क में महासभा का सत्र होने पर होते हैं, जो हर साल शरद में होता है।

हाल में हुए पाँच सीटों के चुनाव में ऐसी स्थिति आ गई जब मामला 11 दौर केस मतदान तक खिंच गया। इस साल पाँच सीटों के लिए चुनाव हुआ। चार जजों का चुनाव होने के बाद पाँचवें स्थान के लिए भारत के दलबीर भंडारी और ब्रिटेन के क्रिस्टोफर ग्रीनवुड के बीच मतदान की नौबत आ गई। ग्यारह दौर के मतदान के बाद भी फैसला नहीं हो पाया। अंतिम दौर में महासभा में दलबीर भंडारी को बहुमत मिला और सुरक्षा परिषद में ब्रिटिश प्रत्याशी को। अंततः ब्रिटिश सरकार ने अपने प्रत्याशी को चुनाव से हटाने का फैसला किया।

गोलमेज वार्ता क्या होती है?

गोलमेज वार्ता यानी काफी लोगों की बातचीत जो एक-दूसरे के सामने हों।मेज का गोल आकार सबको आमने-सामने आने का मौका देता है। राउंड टेबल कांफ्रेंस में गोल के अलावा मुख्य ध्वनि होती है बैठकर बात करना। किसी प्रश्न को सड़क पर निपटाने के बजाय बैठकर हल करना।12 नवम्बर 1930 को जब ब्रिटिश सरकार ने भारत में राजनीतिक सुधारों पर अनेक पक्षों से बातचीत की तो उसे राउंड टेबल कांफ्रेंस कहा गया। उस बातचीत के कई दौर हुए थे।

पृथ्वी का परिक्रमा पथ क्या पूरी तरह गोलाकार है?

नहीं, यह अंडाकार है। अंतरिक्ष में पूरी तरह वृत्ताकार कक्षा कहीं नहीं मिलती। पूरी तरह वृत्ताकार न तो ग्रह होते हैं और न नक्षत्र। तमाम अंतरिक्षीय पिंड एक-दूसरे की गुरुत्व शक्ति से प्रभावित होते हैं। पृथ्वी और सूर्य के बीच की दूरी पूरी परिक्रमा के दौरान घटती-बढ़ती रहती है। दोनों के बीच न्यूनतम दूरी 14 करोड़ 71 लाख66 हजार462 किमी है, जिसे रविनीच या पेरिहेलियोन कहते हैं। अधिकतम दूरी 15,21,71,522 किमी होती है, जिसे अफेलियोन या सूर्योच्च कहते हैं।

मीडियम वेव और शॉर्ट वेव रेडियो तरंगे क्या होती हैं?

रेडियो तरंगें एक प्रकार का इलेक्ट्रो-मैग्नेटिक रेडिएशन है। ये तरंगें पूरे ब्रह्मांड की यात्रा करती हैं। आप जिन रेडियो तरंगों की बात कर रहे हैं वे कृत्रिम रूप से तैयार की गई तरंगें हैं। इनका इस्तेमाल रेडियो-टीवी प्रसारण, मोबाइल फोन, नेवीगेशन, उपग्रह संचार, कम्प्यूटर नेटवर्क, सर्जरी और अन्य चिकित्सा से लेकर माइक्रोवेव अवन तक में होता है। इन तरंगों को कई तरह की फ्रीक्वेंसी में इस्तेमाल किया जाता है। मीडियम वेव आमतौर पर 526.5 से 1606.5 किलोहर्ट्ज़ की फ्रीक्वेंसी में होती हैं। ये तरंगें धरती की गोलाई के साथ घूम जाती हैं और अयन मंडल से गुज़र सकती हैं। इस लिहाज़ से ये स्थानीय से लेकर एक महाद्वीपीय प्रसारण तक के लिए उपयोगी हैं। शॉर्ट वेव इनसे काफी ऊँची फ्रीक्वेंसी पर काम करती हैं। 3000 से 30000 किलोहर्ट्ज़ तक। मीडियम वेव के मुकाबले ये काफी लम्बी दूरी तक प्रसारण में उपयोगी हैं। लांग वेव प्रसारण भी सम्भव है। अमेरिका और यूरोप में होता भी है। मोटे तौर पर 535 किलोहर्ट्ज़ से नीची फ्रीक्वेंसी प्रसारण को लांग वेव प्रसारण कहते हैं। कई देशों की नौसेनाएं पनडुब्बियों से सम्पर्क के लिए 50 किलोहर्ट्ज़ से नीचे की फ्रीक्वेंसी का इस्तेमाल करती हैं।



Thursday, December 14, 2017

कांग्रेस पार्टी कब बनी?

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना, 72 प्रतिनिधियों की उपस्थिति के साथ 28दिसंबर 1885 को बॉम्बे के गोकुलदास तेजपाल संस्कृत महाविद्यालय में हुई थी. इसके प्रथम महासचिव(जनरल सेक्रेटरी) एओ ह्यूम थे और कोलकता के वोमेश चंद्र बनर्जी प्रथम पार्टी अध्यक्ष थे. अपने शुरुआती दिनों में कांग्रेस का दृष्टिकोण एक कुलीन वर्गीय संस्था का था. स्वराज का लक्ष्य सबसे पहले बाल गंगाधर तिलक ने अपनाया था. 1907  में काँग्रेस में दो दल बन गए. गरम दल और नरम दल. गरम दल का नेतृत्व बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय एवं बिपिन चंद्र पाल(जिन्हें लाल-बाल-पाल भी कहा जाता है) कर रहे थे. नरम दल का नेतृत्व गोपाल कृष्ण गोखले, फिरोज़शाह मेहता एवं दादा भाई नौरोजी. गरम दल पूर्ण स्वराज की मांग कर रहा था परन्तु नरम दल ब्रिटिश राज में स्वशासन चाहता था.
प्रथम विश्व युद्ध के छिड़ने के बाद सन 1916 की लखनऊ बैठक में दोनों दल फिर एक हो गए और होम रूल आंदोलन की शुरुआत हुई जिसके तहत ब्रिटिश राज में भारत के लिए अधिराज्य अवस्था(डॉमिनियन स्टेटस) की मांग की जा रही थी. 1916 में गांधी जी के भारत आगमन के साथ कांग्रेस में बहुत बड़ा बदलाव आया. चम्पारन एवं खेड़ा में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को जन समर्थन से अपनी पहली सफलताएँ मिली. 1919 में जालियाँवाला बाग हत्याकांड के पश्चात गांधी जी कांग्रेस में काफी सक्रिय हो गए. उनके मार्गदर्शन में कॉंग्रेस जनांदोलन के रास्ते पर चली.

पेट्रोलियम पदार्थों का उपयोग कब से शुरू हुआ ?
पेट्रोलियम शब्द चट्टान के लिए इस्तेमाल होने वाले ग्रीक शब्द  पेट्रा और तेल के लिए प्रयुक्त होने वाले शब्द इलायोन से मिलकर बना है. तकरीबन 4000 साल पहले यूनानी लेखकों हैरोडोटस और डायोडोरस सिक्युलस के विवरणों के अनुसार कोलटार का इस्तेमाल बेबीलोन में इमारतों को बनाने में होता था. बेबीलोन के पास पेट्रोलियम में कुंड थे. प्राचीन फारस में भी पेट्रोलियम पदार्थों के ईँधन और औषधि के रूप में इस्तेमाल का विवरण मिलता है. ईसा से करीब साढ़े तीन सौ साल पहले चीन में बाँसों की मदद से पेट्रोलियम कुएं खोदने का विवरण मिलता है. पर पेट्रोलियम का भारी इस्तेमाल इंटरनल कॉम्ब्युशन इंजन बन जाने के बाद बढ़ा. 1840 के दशक में स्कॉटलैंड के जेम्स यंग ने कच्चे तेल से मिट्टी तेल निकालने का आविष्कार किया. इससे ह्वेल के तेल की जगह एक सस्ता ईंधन मिल गया. पेट्रोलियम के शोधन की तकनीक का विकास आज भी जारी है.
खरीफ की फसल कौन सी होती है?
वर्षा ऋतु की फसल होती है खरीफ. इसे मई से जुलाई के बीच मे लगाया जाता है और इनकी कटाई सितम्बर और अक्टूबर के बीच मे की जाती है.  इसमें धान, मक्का, जूट, सोयाबीन, बाजरा, कपास, मूँगफली, शकरकन्‍द, उर्द, मूँग, लोबिया, ज्‍वार, तिल, ग्‍वार, जूट, सनई, अरहर, ढैंचा, गन्‍ना, सोयाबीन, भिंण्‍डी वगैरह को उगाया जाता है.
लक्ष्मीतरु क्या है?
लक्ष्मी तरु या सिमारूबा ग्लाउका ( Simarouba Glauca DC) मूलत: उत्तरी अमेरिका का पेड़ है. इसके बीजों से खाद्य तेल बनता है तथा अन्य भाग भी बहुत उपयोगी हैं. इसके बीज से 60 प्रतिशत तक तेल निकाला जा सकता है, जो बायो डीजल का काम करेगा. उससे वाहनों को भी चलाया जा सकेगा. इसे "स्वर्ग का पेड़" (पैराडाइज ट्री) कहा जाता है. नीम और तुलसी की तरह इस पेड़ के औषधीय गुण भी हैं. चिकनगुनिया जैसे बुखार, गैस्ट्रायटिस और अल्सर वगैरह में यह लाभकारी है. देश के कुछ कृषि विश्वविद्यालयों में इस पर शोध चल रहा है.
लोनार झील कहाँ है और इसकी खासियत क्या है?

महाराष्ट्र के बुलढाणा जिले के लोनार शहर में समुद्र तल से 1,200 मीटर ऊँची सतह पर लगभग 100 मीटर के वृत्त में फैली हुई है. इस झील का व्यास दस लाख वर्ग मीटर है. इस झील का मुहाना एकदम गोल है. वैज्ञानिकों का अनुमान है कि आकाशीय उल्का पिंड की टक्कर से के कारण यह झील बनी है. आज भी वैज्ञानिकों में इस विषय पर गहन शोध जारी है कि लोनार में जो टक्कर हुई, वो उल्का पिंड और पृथ्वी के बीच हुई या फिर कोई ग्रह पृथ्वी से टकराया था. 
प्रभात खबर अवसर में प्रकाशित

Wednesday, December 13, 2017

अंटार्कटिका की खोज किसने और कब की?

अंटार्कटिका के होने की संभावना करीब दो हजार साल पहले से थी।इसे ‘टेरा ऑस्ट्रेलिस’ यानी दक्षिणी प्रदेश के नाम के एक काल्पनिक इलाके के रूप में जानते थे। यह भी माना जाता था कि ऑस्ट्रेलिया का दक्षिणी इलाका दक्षिण अमेरिका से जुड़ा है।यूरोपीय नक्शों में इस काल्पनिक भूमि का दर्शाना लगातार तब तक जारी रहा जब तक कि 1773 में ब्रिटिश अन्वेषक कैप्टेन जेम्स कुक ने अपने दो जहाजों के साथ अंटार्कटिक सर्किल को पार करके उस सम्भावना को खारिज कर दिया। पर जबर्दस्त ठंड के कारण कैप्टेन कुक को अंटार्कटिक के सागर तट से 121 किलोमीटर दूर से वापस लौटना पड़ा। इसके बाद सन 1820 में रूसी नाविकों और ने अंटार्कटिक को पहली बार देखा। उसके बाद कई नाविकों को इस बर्फानी ज़मीन को देखने का मौका मिला।27 जनवरी 1820 को रूसी वॉन फेबियन गॉतिलेब वॉन बेलिंगशॉसेन और मिखाइल पेत्रोविच लजारोवजो दो-पोत अभियान की कप्तानी कर रहे थे, अंटार्कटिका की मुख्य भूमि के अन्दर पानी पर 32 किलोमीटर तक गए थे और उन्होंने वहाँ बर्फीले मैदान देखे थे।प्राप्त दस्तावेजों के अनुसार अंटार्कटिका की मुख्य भूमि पर पहली बार पश्चिम अंटार्कटिका में अमेरिकी सील शिकारी जॉन डेविस 7 फ़रवरी 1821 को उतरा था, हालांकि कुछ इतिहासकार इस दावे को सही नहीं मानते।

दुनिया में सबसे पहला उपन्यास कब लिखा गया?

यों तो विश्वसाहित्य की शुरुआत किस्सों-कहानियों से हुई और वे महाकाव्यों के युग से आज तक के साहित्य की बुनियाद रही हैं। परउपन्यास आधुनिक युग की देन हैं। साहित्य में गद्य का प्रयोग जीवन के यथार्थ चित्रण की कोशिश है।आमतौर पर गेंजी मोनोगतारी या ‘द टेल ऑफ गेंजी’ को दुनिया का पहला आधुनिक उपन्यास मानते हैं। जापानी लेखिका मुरासाकी शिकिबु ने इसे सन 1000 से सन 1008 के बीच कभी लिखा था। बेशक यह दुनिया के श्रेष्ठतम ग्रंथों में से एक है, पर इस बात पर एकराय नहीं है कि यह पहला उपन्यास था या नहीं।इसमें 54 अध्याय और करीब 1000 पृष्ठ हैं। इसमें प्रेम और विवेक की खोज में निकले एक राजकुमार की कहानी है। अलबत्ता हमें पहले यह समझना चाहिए कि उपन्यास होता क्या है। उपन्यास गद्य में लिखा गया लम्बा आख्यान है, जिसकी एक कथावस्तु होती है और चरित्र-चित्रण होता है। कथावस्तु को देखें तो महाभारत, रामायण और तमाम भाषाओं में महाग्रंथ हैं। पर वे सब प्रायः महाकाव्य हैं। अलबत्ता संस्कृत में दंडी के ‘दशकुमार चरित्र’और वाणभट्ट के ‘कादम्बरी’ को भी दुनिया का पहला उपन्यास माना जा सकता है। यूरोप का प्रथम उपन्यास सेर्वैन्टिस का ‘डॉन क्विक्ज़ोट’ माना जाता है जो स्पेनी भाषा का उपन्यास है। इसे 1605 में लिखा गया था।अनेक विद्वान 1678 में जोन बुन्यान द्वारा लिखे गए “द पिल्ग्रिम्स प्रोग्रेस” को पहला अंग्रेजी उपन्यास मानते हैं। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार ‘परीक्षा गुरु’ हिन्दी का पहला उपन्यास है, जो 1882 में प्रकाशित हुआ। इसके लेखकलाला श्रीनिवास दास हैं।हालांकि इसके पहले सन 1870 में 'देवरानी जेठानी की कहानी' (लेखक -पंडित गौरीदत्त) और श्रद्धाराम फिल्लौरी के‘भाग्यवती’ को भी हिन्दी के प्रथम उपन्यास होने का श्रेय दिया जाता है। पर ये पुस्तकें मुख्यतः शिक्षात्मक और अपरिपक्व हैं।

समुद्र कितना गहरा होता है?

समुद्रों की गहराई अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग होती है। सारी दुनिया के सागरों की औसत गहराई 12,100 फुट है। इसकी तुलना सबसे ऊँचे पर्वत शिखर से करें जिसकी ऊँचाई 29,029 फुट है। दुनिया में सबसे गहरा सागर पश्चिमी प्रशांत महासागर के मैरियाना ट्रेंच में है, जिसे चैलेंजर डीप कहा जाता है। इसकी गहराई को सबसे पहले 1875 में ब्रिटिश पोत एचएमएस चैलेंजर के नाविकों ने नापा था। यह गहराई35,755 से लेकर 35,814 फुट (10,898 से लेकर 10,916 मीटर) के बीच है।


राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में प्रकाशित

बादल क्यों और कैसे फटता है?

बादल फटनाबारिश का एक चरम रूप है। इस घटना में बारिश के साथ कभी-कभी गरज के साथ ओले भी पड़ते हैं। सामान्यत: बादल फटने के कारण सिर्फ कुछ मिनट तक मूसलधार बारिश होती है लेकिन इस दौरान इतना पानी बरसता है कि क्षेत्र में बाढ़ जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है। बादल फटने की घटना अमूमन पृथ्वी से 15 किलोमीटर की ऊंचाई पर घटती है। इसके कारण होने वाली वर्षा लगभग 100 मिलीमीटर प्रति घंटा की दर से होती है। कुछ ही मिनट में 2 सेंटी मीटर से अधिक वर्षा हो जाती हैजिस कारण भारी तबाही होती है। 

मौसम विज्ञान के अनुसार जब बादल भारी मात्रा में पानी लेकर आसमान में चलते हैं और उनकी राह में कोई बाधा आ जाती हैतब वे अचानक फट पड़ते हैंयानी संघनन बहुत तेजी से होता है। इस स्थिति में एक सीमित इलाके में कई लाख लीटर पानी एक साथ पृथ्वी पर गिरता हैजिसके कारण उस क्षेत्र में तेज बहाव वाली बाढ़ आ जाती है। भारत के संदर्भ में देखें तो हर साल मॉनसून के समय नमी को लिए हुए बादल उत्तर की ओर बढ़ते हैंहिमालय पर्वत एक बड़े अवरोधक के रूप में इसके सामने पड़ता है। इसके कारण बादल फटता है।

पहाड़ ही नहीं कभी गर्म हवा का झोंका ऐसे बादल से टकराता है तब भी उसके फटने की आशंका बढ़ जाती है।उदाहरण के तौर पर 26 जुलाई 2005 को मुंबई में बादल फटे थेतब वहां बादल किसी ठोस वस्‍तु से नहीं बल्कि गर्म हवा से टकराए थे।
भारत में चंदन के पेड़ कहाँ पाए जाते हैं?

भारतीय चंदन का संसार में सर्वोच्च स्थान है। इसका आर्थिक महत्व भी है। यह पेड़ मुख्यत: कर्नाटक के जंगलों में मिलता है तथा देश के अन्य भागों में भी कहीं-कहीं पाया जाता है। भारत के 600 से लेकर 900 मीटर तक कुछ ऊँचे स्थल और मलयद्वीप इसके मूल स्थान हैं। वृक्ष की आयुवृद्धि के साथ ही साथ उसके तनों और जड़ों की लकड़ी में सुगंधित तेल का अंश भी बढ़ने लगता है। इसकी पूर्ण परिपक्वता में 60 से लेकर 80 वर्ष तक का समय लगता है। इसके लिए ढलवाँ जमीनजल सोखने वाली उपजाऊ चिकनी मिट्टी तथा 500 से लेकर 625 मिमी। तक वार्षिक वर्षा की आवश्यकता होती है।

दिल्ली का इंडिया गेट क्यों और कब बनाया गया था?

नई दिल्ली के राजपथ पर स्थित 43 मीटर ऊँचा द्वार है व भारत का राष्ट्रीय स्मारक है। यह सर एडविन लुटियन द्वारा डिजाइन किया गया था। इसकी बुनियाद ड्यूक ऑफ कनॉट ने 1921 में रखी थी और 1931 में तत्कालीन वायसरॉय लॉर्ड इरविन ने इसका उद्घाटन किया। मूल रूप से इस स्मारक का निर्माण उन 70,000 ब्रिटिश भारतीय सेना के सैनिकों की स्मृति में हुआ था जो प्रथम विश्वयुद्ध और अफ़ग़ान युद्धों में शहीद हुए थे। उनके नाम इस स्मारक में खुदे हुए हैं। यह स्मारक लाल और पीले बलुआ पत्थरों से बना हुआ है ।

शुरु में इंडिया गेट के सामने अब खाली चंदवे के नीचे जॉर्ज पंचम की एक मूर्ति थी, लेकिन बाद में अन्य ब्रिटिश दौर की मूर्तियों के साथ इसे कॉरोनेशन पार्क में हटा दिया गया। भारत की स्वतंत्रता के बाद, इंडिया गेट पर भारतीय सेना के अज्ञात सैनिक का स्मारक मकबरे भी बनाया गया। इसे अमर जवान ज्योति के रूप में जाना जाता है। सन 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के शहीद सैनिकों की स्मृति में यहाँ एक राइफ़ल के ऊपर सैनिक की टोपी सजाई गई है जिसके चार कोनों पर सदैव अमर जवान ज्योति जलती रहती है। इसकी दीवारों पर हजारों शहीद सैनिकों के नाम खुदे हैं।


राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में प्रकाशित

Sunday, December 10, 2017

जीडीपी और जीवीए क्या एक हैं?

पिछले कुछ वर्षों से आर्थिक विकास की दर के आकलन के लिए ग्रॉस वैल्यू एडेड (जीवीए) का इस्तेमाल होने लगा है. साधारण शब्दों में कहा जाए तो जीवीए से किसी अर्थ-व्यवस्था के किसी खास अवधि में सकल आउटपुट और उससे होने वाली आय का पता लगता है. यानी इनपुट लागत और कच्चे माल का दाम निकालने के बाद कितने के सामान और सर्विसेज का उत्पादन हुआ. मोटे तौर पर जीडीपी में सब्सिडी और टैक्स निकालने के बाद जो आंकड़ा मिलता है, वह जीवीए होता है. 

जीडीपी से आर्थिक उत्पादन की जानकारी मिलती है. यानी कि इसमें निजी खपत, अर्थव्यवस्था में सकल निवेश, सरकारी निवेश, सरकारी खर्च और शुद्ध विदेशी व्यापार (निर्यात और आयात का फर्क) शामिल होता है. जीवीए से उत्पादक यानी सप्लाई साइड से होने वाली आर्थिक गतिविधियों का पता चलता है जबकि जीडीपी में डिमांड या उपभोक्ता की नजर से तस्वीर नजर आती है. जरूरी नहीं कि दोनों ही आंकड़े एक से हों क्योंकि इन दोनों में नेट टैक्स के ट्रीटमेंट का फर्क होता है. 

उपादान लागत या स्थायी लागत (फैक्टर कॉस्ट) के आधार पर जीडीपी का मतलब होता है कि औद्योगिक गतविधि में-वेतन, मुनाफे, किराए और पूँजी-यानी विभिन्न उपादान के मार्फत सकल प्राप्ति. इस लागत के अलावा उत्पादक अपने माल की बिक्री के पहले सम्पत्ति कर, स्टाम्प ड्यूटी और पंजीकरण शुल्क वगैरह भी देता है. जीडीपी में ये सब शामिल होते हैं, जीवीए में नहीं. जीवीए में वह लागत शामिल होती है, जो उत्पाद को बेचने के पहले लगी थी. 

इनमें बेहतर कौन है? 

जीवीए से मिलने वाली सेक्टरवार ग्रोथ से नीति-निर्माताओं को यह फैसला करने में आसानी होगी कि किस सेक्टर को प्रोत्साहन की जरूरत है. कुछ लोगों का मानना है कि जीवीए अर्थव्यवस्था की स्थिति जानने का सबसे सही तरीका है क्योंकि सिर्फ ज्यादा टैक्स कलेक्शन होने से यह मान लेना सही नहीं होगा कि उत्पादन में तेज बढ़ोतरी हुई है. ऐसा बेहतर कंप्लायंस या ज्यादा कवरेज की वजह से भी हो सकता है और इससे असल उत्पादन की गलत तस्वीर मिलती है. 

जीवीए से हर सेक्टर के उत्पादन आँकड़ों की अलग तस्वीर मिलती है. यह अर्थ-व्यवस्था की बेहतर तस्वीर बताता है. जीडीपी का आँकड़ा तब अहम साबित होता है जब अपने देश की तुलना दूसरे देश की अर्थव्यवस्था से करनी होती है. इसमें दोनों देशों की आय की तुलना की जाती है. सही तस्वीर जानने के लिए दोनों के विस्तार में जाना चाहिए. 

10 दिसम्बर को मानवाधिकार दिवस क्यों मनाते हैं?

दूसरे विश्व युद्ध की विभीषिका ने दुनियाभर को झुलसा डाला था. युद्ध खत्म होने के बाद दुनिया ने मानवाधिकारों के बारे में सोचना शुरू किया. 10 दिसम्बर, 1948 को ‘संयुक्त राष्ट्र महासभा’ ने सार्वभौमिक मानवाधिकार घोषणा पत्र जारी कर पहली बार मानवाधिकार व मानव की बुनियादी मुक्ति की घोषणा की थी. इसके बाद सन 1950 में संयुक्त राष्ट्र ने हर साल 10 दिसम्बर को विश्व मानवाधिकार दिवस मनाने का निश्चय किया. किसी भी इंसान की ज़िंदगी, आज़ादी, बराबरी और सम्मान का अधिकार है-मानवाधिकार.

श्रीलंका किन विदेशी शासकों के अधीन रहा?

श्रीलंका में पहले पुर्तगाली आए. उन्होंने 1517 में कोलम्बो के पास अपना दुर्ग बनाया. उस वक्त कैंडी और जाफना पर स्थानीय राजाओं का राज था. 1630 में डच (नीदरलैंड) लोगों ने पुर्तगालियों पर हमला बोला और कुछ इलाके पर अपना राज कायम कर लिया. 1638 में स्थानीय राजा ने पुर्तगालियों से लड़ने के लिए डच ईस्ट इंडिया कम्पनी के साथ एक संधि की. अंततः 1656 में कोलम्बो भी डच अधिकार में आ गया. उधर भारत में प्रवेश कर चुके अंग्रेजों का ध्यान श्रीलंका की तरफ गया. उन्होने डच इलाकों पर अधिकार करना आरंभ कर दिया. 1800 आते-आते तटीय इलाकों पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया. सन 1818 में अंतिम राज्य कैंडी के राजा ने भी आत्मसमर्पण कर दिया और सम्पूर्ण श्रीलंका पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया. वहाँ भारत की तरह लम्बा स्वतंत्रता संग्राम नहीं चला, पर बीसवीं सदी के शुरू में एक शान्तिपूर्ण राजनीतिक आन्दोलन शुरू हो गया. भारत की आजादी के बाद 4 फरवरी 1948 को श्रीलंका भी आजाद हो गया.
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मुद्रा योजना क्या है?

प्रधानमंत्री मुद्रा योजना मुद्रा बैंक के तहत एक भारतीय योजना है जिसकी शुरुआत प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 8 अप्रैल 2015 को नई दिल्ली में की थी. मुद्रा शब्द माइक्रो यूनिट्स डेवलपमेंट एंड रिफाइनेंस एजेंसी का संक्षिप्त रूप है. इस योजना के तहत 10 लाख रूपये तक का लोन प्रदान किया जाना है. देश में नए उद्यमियों के रूप में छोटे संगठनों, कम्पनियों और स्टार्ट अप्स की संख्या बढ़ रही है. इन्हें सूक्ष्म इकाई माना जाता है. यह महसूस किया गया है कि इन इकाइयों में वित्तीय समर्थन में कमी है. यदि इन्हें वित्तीय सहायता प्रदान की जाए तो उनका विकास हो सकता है.

मुद्रा बैंक के तहत तीन श्रेणियां है -शिशु ,किशोर और तरुण. शिशु शुरूआती श्रेणी है. वे सभी व्यापार जो अभी– अभी शुरू हुए है और लोन के लिए देख रहे है इस श्रेणी में आते है. इस श्रेणी में 50,000 रूपये तक का लोन दिया जाएगा. इसमें ब्याज दर 10 से 12 % तक की रेंज में है. किशोर श्रेणी उनके लिए है जिन्होंने अपना कारोबार शुरू किया है और अब वह प्रतिष्ठित हो रहा है. इस श्रेणी में आने वाली यूनिट्स के लिए 50,000 रूपये से लेकर 5 लाख रूपये तक का लोन देने का प्रावधान है. ब्याज दर 14 से 17% तक की रेंज में है. तरुण श्रेणी के अंतर्गत सभी छोटे कारोबार जो स्थापित हो कर प्रतिष्ठित हो गए हैं। इन्हें 10 लाख रूपये तक का लोन दिया जा सकता है. ब्याज दर 16 % से शुरू होती है.

धरती कभी धूमकेतु की पूँछ से गुजरे तो क्या होगा?

खास बात यों तो कुछ नहीं होगी. अलबत्ता हमें आकाश में आतिशबाजी का नजारा देखने को जरूर मिलेगा. इसकी वजह धूमकेतु की वह धूल होगी जो धरती के वातावरण से रगड़ खाकर जलेगी. वैसे ही जैसे उल्काओं के टकराने से होता है. धूमकेतुओं को लेकर तमाम तरह की बातें उड़ाई जाती रहीं हैं. मसलन 18 मई 1910 को प्रसिद्ध हेली धूमकेतु को धरती और सूरज के बीच से होकर गुजरना था. उस परिघटना के पहले से अखबारों में खबरें छपने लगीं कि इसकी पूँछ में सायनोजेन नाम की जहरीली गैस होगी. उस गैस से बचाव के लिए औषधि की ईजाद भी कर ली गई और ये गोलियाँ खूब बिकीं. वास्तव में जब धूमकेतु गुजरा तो बहुत से लोगों को नजर भी नहीं आया, क्योंकि सूरज की ओर देखना आसान नहीं होता.

कांटे-चम्मच का आविष्कार कैसे हुआ?

काँटे और चम्मच का इस्तेमाल एक साथ शुरू नहीं हुआ. शुरू में चाकू और काँटे का इस्तेमाल हुआ शिकार के लिए. इंसान ने खाने की शुरुआत हाथ से ही की थी. मांसाहारी समाजों में शूल और त्रिशूल के छोटे रूप फॉर्क की जरूरत गोश्त को थाली में रोकने के लिए हुई. चम्मच का आविष्कार पत्थर युग में हुआ. सीपियों की मदद लेते-लेते इंसान को पत्थर की चम्मच बनाने का विचार आया होगा. बाद में लकड़ी की चम्मचें भी बनीं.

कीड़े-मकोड़े पानी पर बिना डूबे कैसे चलते रहते हैं?



आमतौर पर कीड़ों का वजन इतना कम होता है कि वे पानी के पृष्ठ तनाव या सरफेस टेंशन को तोड़ नहीं पाते. पानी और दूसरे द्रवों का एक गुण है जिसे सरफेस टेंशन कहते हैं. इसी गुण के कारण किसी द्रव की सतह किसी दूसरी सतह की ओर आकर्षित होती है. पानी का पृष्ठ तनाव दूसरे द्रवों के मुकाबले बहुत ज्यादा होता है. इस वजह से बहुत से कीड़े मकोड़े आसानी से इसके ऊपर टिक सकते हैं. इन कीड़ों का वजन पानी के पृष्ठ तनाव को भेद नहीं पाता. सरफेस टेंशन एक काम और करता है. पेन की रिफिल या कोई महीन नली लीजिए और उसे पानी में डुबोएं. आप देखेंगे कि पानी नली में काफी ऊपर तक चढ़ आता है. पेड़ पौधे ज़मीन से पानी इसी तरीके से हासिल करते है. उनकी जड़ों से बहुत पतली पतली नलियां निकलकर तने से होती हुई पत्तियों तक पहुंच जाती हैं. सन 1995 में प्रतिमाओं के दूध पीने की खबर फैली थी. वस्तुतः पृष्ठ तनाव के कारण चम्मच का दूध पत्थर की प्रतिमा में ऊपर चढ़ जाता था. इसे लोगों ने प्रतिमाओं का दूध पीना घोषित कर दिया.

अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के जज कैसे नियुक्त होते हैं?

इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (ICJ)में 15 जज होते हैं, जिनमें से प्रत्येक का कार्यकाल 9 साल का होता है. सदन में निरंतरता बनाए रखने के लिए हरेक तीन साल में एक तिहाई सदस्य नए आते हैं. इसके लिए इनका चुनाव होता है. चुनाव संयुक्त राष्ट्र महासभा और सुरक्षा परिषद मिलकर करती हैं. प्रत्याशी को दोनों सदनों में स्पष्ट बहुमत मिलना चाहिए. कई बार एक बार में पूरा बहुमत नहीं मिलता तो मतदान के कई दौर होते हैं. किसी सदस्य का निधन होने या उनके त्यागपत्र देने के बाद भी सीट खाली होने पर चुनाव होता है. चुनाव न्यूयॉर्क में महासभा का सत्र होने पर होते हैं, जो हर साल शरद में होता है.

इन दिनों पाँच सीटों के लिए चुनाव चल रहा है. चार जजों का चुनाव हो चुका है. पाँचवें स्थान के लिए भारत के दलबीर भंडारी और ब्रिटेन के क्रिस्टोफर ग्रीनवुड के बीच मुकाबला है. ग्यारह दौर के मतदान के बाद भी फैसला नहीं हो पाया है. महासभा में दलबीर भंडारी को बहुमत मिला है और सुरक्षा परिषद में ब्रिटिश प्रत्याशी को. अगले कई दौर तक मतदान चल सकता है. फिर भी फैसला नहीं हुआ तो दोनों सदनों के तीन-तीन प्रतिनिधि बैठकर गतिरोध तोड़ने का प्रयास करेंगे. (इन पंक्तियों के प्रकाशन के बाद ब्रिटेन ने अपने प्रत्याशी का नाम वापस ले लिया और भारतीय प्रतिनिधि दलबीर भंडारी चुन लिए गए).
एनजीटी क्या है?

राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (नेशनल ग्रीन ट्रायब्यूनल)एक विशिष्ट न्यायिक संस्था है जो पर्यावरणीय विवादों के निपटारे के लिए बनाई गई है. संसद से पारित राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण अधिनियम, 2010 के तहत इसकी स्थापना हुई. सन 2010 में स्थापना के बाद से यह न्यायाधिकरण देश के महत्वपूर्ण पर्यावरण-रक्षक के रूप से उभर कर सामने आया है. यह एक नई अवधारणा थी, क्योंकि इसके पहले दुनिया में न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया ने ही पर्यावरण से जुड़े मसलों के लिए विशेष अदालतें बनाईं थीं. इसके हस्तक्षेप के कारण उद्योगों और कॉरपोरेट हाउसों को मिलने वाली त्वरित अनुमतियों पर लगाम लगी है. खनन और प्राकृतिक साधनों के अंधाधुंध दोहन पर रोक लगी है. सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश लोकेश्वर सिंह पंटा इसके पहले अध्यक्ष थे और 20 दिसम्बर 2012 से जस्टिस स्वतंत्र कुमार इसके अध्यक्ष हैं. एनजीटी का स्वतंत्र स्वरूप इसकी खासियत है. इसे नियमों-कानूनों का उल्लंघन करने वालों को सज़ा, उन पर जुर्माना लगाने और प्रभावित लोगों को मुआवजे का आदेश देने का अधिकार है. सज़ा का यह अधिकार काफी व्यापक है. सश्रम कारावास जैसी सख्त सज़ा भी सुना सकता है.

दुनिया का पहला बल्ब कितनी देर तक जला था?

हम जानते हैं कि पहला बल्ब टॉमस अल्वा एडीसन ने बनाया था. उन्होंने इस बल्ब में मोटे सूती धागे का फिलामेंट बनाया था, तो जलने के बाद कार्बन में बदल गया था. यह बल्ब 19 अक्तूबर, 1879 में जलना शुरू हुआ था. यह लगातार रोशनी देता रहा और कुल मिलाकर 48 घंटे और 40 मिनट तक इसने रोशनी दी और 21 अक्तूबर, 1879 को इसका फिलामेंट टूट गया और यह बुझ गया. बाद वाली तारीख इसके आविष्कार की तारीख मानी जाती है.

क्या बल्ब का आविष्कार वास्तव में एडीसन ने किया था?

वास्तव में एडीसन निर्विवाद रूप से इसके आविष्कारक नहीं हैं. इसके एक और दावेदार है ब्रिटिश वैज्ञानिक जोसफ स्वान. जोसफ स्वान ने गंधक के तेजाब में डूबे सूती धागे के फिलामेंट से एक बल्ब ब्रिटेन के न्यूकैसल में दिसम्बर 1878 में जलाकर दिखाया था. यानी एडीसन के बल्ब के करीब दस महीने पहले. एडीसन ने आरोप लगाया कि स्वान ने उनके विचार को चुराकर यह आविष्कार किया है. यह मामला अदालत में गया. मुकदमा काफी लम्बा चला. स्वान के पास लड़ने के लिए पैसा नहीं था. उन्होंने एडीसन से समझौता कर लिया और एडीसन एंड स्वान इलेक्ट्रिक कम्पनी बनी. यह कम्पनी एडीसन के पैसे से बनी थी और इसे एडीस्वान नाम से भी जाना जाता है।


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इंटरनेट का मालिक कौन है?

इंटरनेट से जुड़ी वैबसाइटों के मालिक अलग-अलग व्यक्ति, संस्थाएं, संगठन और सरकारें हैं. यह अनेक नेटवर्कों का महा-नेटवर्क है. करोड़ों या अरबों नेटवर्कों से मिलकर यह काम करता है. इसमें कई तरह की तकनीकें जुड़ी हैं, जिनका स्वामित्व अलग है. यह किसी केन्द्रीय व्यवस्था के अंतर्गत काम भी नहीं करता. फिर भी इन सबको जोड़ने की एक व्यवस्था है, जिसकी शुरूआत अमेरिका से और अमेरिकी सरकार के साधनों से हुई थी. इसकी शुरूआत अमेरिका के डिफेंस रिसर्च प्रोजेक्ट्स एजेंसी (डारपा) ने देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों और रक्षा प्रयोगशालाओं में होने वाले रिसर्च की जानकारी को शेयर करने के लिए एक नेटवर्क के रूप में की थी.
शुरू में यह ई-मेल जैसी प्रणाली थी, जिसमें साइंटिस्ट एक-दूसरे से सवाल करते या उनके जवाब देते थे. इसे तब एडवांस्ड रिसर्च प्रोजेक्ट्स एजेंसी नेटवर्क (अर्पानेट) कहा जाता था. इसके पहले सन 1961 में मैसाच्युसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के ल्योनार्ड क्लाइनरॉक ने 1961 में प्रकाशित एक शोध पत्र में पैकेट स्विचिंग सिद्धांत का प्रतिपादन किया था, जिसके आधार पर इसकी अवधारणा 1964 में बनी और पहला संदेश 1969 में भेजा गया. धीरे-धीरे तकनीक विकसित होती गई. अब हर कम्पयूटर का एक आईपी एड्रेस होता है. वैबसाइट का डोमेन नेम होता है.
यह एड्रेस तय करने के लिए पहले इंटरनेट एसाइंड नम्बर्स अथॉरिटी (आईएएनए) बनाई गई , जिसे अमेरिकी सरकार ने बनाया. अब इसके ऊपर एक और संस्था बन गई है, जिसका नाम है इंटरनेट कॉरपोरेशन फॉर एसाइंड नेम एंड नम्बर्स (ICANN). इस प्रकार परोक्ष रूप से नेट पर अमेरिकी सरकार का नियंत्रण है, पर यह नॉन प्रॉफिट प्राइवेट संस्था है. वर्ल्ड वाइड वैब कंसोर्शियम है, कई प्रकार के सर्च इंजन हैं, वैब स्टोरेज है. यह तकनीक विकसित होती जा रही है और उसके मुताबिक संस्थाएं बन रहीं है. बैंकिंग, मार्केटिंग, शॉपिंग, मनोरंजन, विज्ञान-तकनीक वगैरह का नया संसार बन रहा है. दुनिया के देशों में सायबर कानून बन रहे हैं.
फास्टैग (FASTag) क्या है?
फास्टैग भारत का इलेक्ट्रॉनिक टोल कलेक्शन सिस्टम है. इसका संचालन राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) करता है. इस सिस्टम की शुरुआत 4 नवम्बर 2014 में अहमदाबाद और मुम्बई के बीच स्वर्ण चतुर्भुज राजमार्ग पर हुई थी. जुलाई 2015 में चेन्नई-बेंगलुरु राजमार्ग के टोल प्लाजा इसके सहारे भुगतान को स्वीकार करने लगे. 23 नवम्बर 2016 तक देश के राजमार्गों के 366 में से 347 टोल प्लाजा फास्टैग भुगतान को स्वीकार कर रहे थे. अब इस साल दिसम्बर से देश के सभी टोल प्लाजा पर इलेक्ट्रॉनिक टोल कलेक्शन शुरू करने की योजना है. 
सिक्योरिटी चेक के एक्स-रे स्कैनर
ये एक्स-रेमशीनें स्वास्थ्य की जाँच करने वाली एक्स-रे मशीनों से फर्क होती हैं. ये मशीनें कई तरह की चीजों की अलग-अलग पहचान के लिए बनाई जाती हैं, केवल हड्डियों की पहचान के लिए नहीं. सिद्धांततः सभी एक्स तरंगें एक तरह की नहीं होतीं. इन मशीनों में कई तरह के एनर्जी लेवल की तरंगे छोड़ी जाती हैं. जैविक वस्तुएं कम ऊर्जा वाली तरंगों को रोकती हैं, प्लास्टिक और धातु की वस्तुएं अलग-अलग तरह की तरंगों को रोकती हैं. सामान जब इस मशीन के भीतर से गुजरता है तो कई तरह के फिल्टरों के मार्फत उसकी एक्स-रे तस्वीर बनती है, जिससे पता लग जाता है कि भीतर क्या है?
प्याज को 4,000 साल पहले अफगानिस्तान, उज्बेकिस्तान और ताजिकिस्तान के इलाके में उगाया गया. भारत में इसका आगमन सम्भवतः मुसलमानों के आगमन के काफी पहले हो चुका था. प्राचीन भारतीय चिकित्सकों चरक, वाग्भट्ट और सुश्रुत ने इसके चिकित्सकीय गुणों का वर्णन किया है, पर इसे सम्मान की दृष्टि से नहीं देखा गया. इसका कारण शायद इसकी गंध थी. सन 629 से 645 के बीच भारत यात्रा पर आए चीनी यात्री ह्वेनत्सांग ने लिखा है कि भारत में कई जगह उन्होंने देखा कि प्याज खाने वाले को शहर में आने नहीं देते थे. तीखी गंध के कारण लम्बे समय तक अंग्रेजों को भी प्याज पसंद नहीं आया. सन 1350 में फैली प्लेग के दौरान देखा गया कि प्याज के व्यापारी बीमारी से बचे रहे. इसके बाद अंग्रेजों ने प्याज को स्वीकार किया.  
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Tuesday, November 21, 2017

जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी हिंसा

J&K Fatalities in Terrorist Violence 1988 - 2017

'
Incidents
Civilians
Security Force Personnel
Terrorists
Total
1988
390
29
1
1
31
1989
2154
79
13
0
92
1990
3905
862
132
183
1177
1991
3122
594
185
614
1393
1992
4971
859
177
873
1909
1993
4457
1023
216
1328
2567
1994
4484
1012
236
1651
2899
1995
4479
1161
297
1338
2796
1996
4224
1333
376
1194
2903
1997
3004
840
355
1177
2372
1998
2993
877
339
1045
2261
1999
2938
799
555
1184
2538
2000
2835
842
638
1808
3288
2001
3278
1067
590
2850
4507
2002
NA
839
469
1714
3022
2003
NA
658
338
1546
2542
2004
NA
534
325
951
1810
2005
NA
521
218
1000
1739
2006
NA
349
168
599
1116
2007
NA
164
121
492
777
2008
NA
69
90
382
541
2009
NA
55
78
242
375
2010
NA
36
69
270
375
2011
NA
34
30
119
183
2012
NA
16
17
84
117
2013
NA
20
61
100
181
2014
NA
32
51
110
193
2015
NA
20
41
113
174
2016
NA
14
88
165
267
2017
NA
54
71
185
310
Total*
47234
14792
6345
23318
44455


Data till Nov 12.2017
                                                  Fatalities in Terrorist Violence - 2017*

 
Civilians
Security Force Personnel
Terrorist
Total
January
3
0
13
16
February
3
9
11
23
March
4
1
11
16
April
5
5
8
18
May
10
10
17
37
June
3
15
30
48
July
10
1
27
38
August
5
14
25
44
September
5
4
18
27
October
5
8
18
31
November
1
4
7
12
Total
54
71
185
310
*Data till November 12, 2017
Source: South Asia TerrorismPortal 
http://www.satp.org/satporgtp/countries/india/states/jandk/data_sheets/annual_casualties.htm
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