बादल फटना, बारिश का एक चरम रूप है। इस घटना में बारिश के
साथ कभी-कभी गरज के साथ ओले भी पड़ते हैं। सामान्यत: बादल फटने के कारण सिर्फ कुछ
मिनट तक मूसलधार बारिश होती है लेकिन इस दौरान इतना पानी बरसता है कि क्षेत्र में
बाढ़ जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है। बादल फटने की घटना अमूमन पृथ्वी से 15
किलोमीटर की ऊंचाई पर घटती है। इसके कारण होने वाली वर्षा लगभग 100 मिलीमीटर प्रति
घंटा की दर से होती है। कुछ ही मिनट में 2 सेंटी मीटर से अधिक वर्षा हो जाती है, जिस कारण भारी तबाही होती है।
मौसम विज्ञान के अनुसार जब बादल भारी मात्रा में पानी लेकर
आसमान में चलते हैं और उनकी राह में कोई बाधा आ जाती है, तब वे अचानक फट पड़ते हैं, यानी संघनन बहुत तेजी से
होता है। इस स्थिति में एक सीमित इलाके में कई लाख लीटर पानी एक साथ पृथ्वी पर
गिरता है, जिसके कारण उस क्षेत्र में
तेज बहाव वाली बाढ़ आ जाती है। भारत के संदर्भ में देखें तो हर साल मॉनसून के समय
नमी को लिए हुए बादल उत्तर की ओर बढ़ते हैं।हिमालय पर्वत एक बड़े अवरोधक
के रूप में इसके सामने पड़ता है। इसके कारण बादल फटता है।
पहाड़ ही नहीं कभी गर्म हवा का झोंका ऐसे बादल से टकराता है
तब भी उसके फटने की आशंका बढ़ जाती है।उदाहरण के तौर पर 26 जुलाई 2005 को मुंबई
में बादल फटे थे, तब वहां बादल किसी ठोस वस्तु
से नहीं बल्कि गर्म हवा से टकराए थे।
भारत में चंदन के पेड़ कहाँ पाए जाते हैं?
भारतीय चंदन का संसार में सर्वोच्च स्थान है। इसका आर्थिक महत्व भी है। यह पेड़ मुख्यत: कर्नाटक के जंगलों में मिलता है तथा देश के अन्य भागों में भी कहीं-कहीं पाया जाता है। भारत के 600 से लेकर 900 मीटर तक कुछ ऊँचे स्थल और मलयद्वीप इसके मूल स्थान हैं। वृक्ष की आयुवृद्धि के साथ ही साथ उसके तनों और जड़ों की लकड़ी में सुगंधित तेल का अंश भी बढ़ने लगता है। इसकी पूर्ण परिपक्वता में 60 से लेकर 80 वर्ष तक का समय लगता है। इसके लिए ढलवाँ जमीन, जल सोखने वाली उपजाऊ चिकनी मिट्टी तथा 500 से लेकर 625 मिमी। तक वार्षिक वर्षा की आवश्यकता होती है।
दिल्ली का इंडिया
गेट क्यों और कब बनाया गया था?
नई दिल्ली के राजपथ
पर स्थित 43 मीटर ऊँचा द्वार है व भारत का राष्ट्रीय स्मारक है। यह सर एडविन
लुटियन द्वारा डिजाइन किया गया था। इसकी बुनियाद ड्यूक ऑफ कनॉट ने 1921 में रखी थी
और 1931 में तत्कालीन वायसरॉय लॉर्ड इरविन ने इसका उद्घाटन किया। मूल रूप से इस
स्मारक का निर्माण उन 70,000 ब्रिटिश भारतीय सेना के सैनिकों की स्मृति में हुआ था
जो प्रथम विश्वयुद्ध और अफ़ग़ान युद्धों में शहीद हुए थे। उनके नाम इस स्मारक में
खुदे हुए हैं। यह स्मारक लाल और पीले बलुआ पत्थरों से बना हुआ है ।
शुरु में इंडिया गेट
के सामने अब खाली चंदवे के नीचे जॉर्ज पंचम की एक मूर्ति थी, लेकिन बाद में अन्य
ब्रिटिश दौर की मूर्तियों के साथ इसे कॉरोनेशन पार्क में हटा दिया गया। भारत की
स्वतंत्रता के बाद, इंडिया गेट पर भारतीय सेना के अज्ञात सैनिक का स्मारक मकबरे
भी बनाया गया। इसे अमर जवान ज्योति के रूप में जाना जाता है। सन 1971 के
भारत-पाकिस्तान युद्ध के शहीद सैनिकों की स्मृति में यहाँ एक राइफ़ल के ऊपर सैनिक
की टोपी सजाई गई है जिसके चार कोनों पर सदैव अमर जवान ज्योति जलती रहती है। इसकी
दीवारों पर हजारों शहीद सैनिकों के नाम खुदे हैं।
Very informative post, specially the history of India Gate was unknown to me.
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