पिछले कुछ वर्षों से आर्थिक विकास की दर के आकलन के लिए ग्रॉस वैल्यू एडेड (जीवीए) का इस्तेमाल होने लगा है. साधारण शब्दों में कहा जाए तो जीवीए से किसी अर्थ-व्यवस्था के किसी खास अवधि में सकल आउटपुट और उससे होने वाली आय का पता लगता है. यानी इनपुट लागत और कच्चे माल का दाम निकालने के बाद कितने के सामान और सर्विसेज का उत्पादन हुआ. मोटे तौर पर जीडीपी में सब्सिडी और टैक्स निकालने के बाद जो आंकड़ा मिलता है, वह जीवीए होता है.
जीडीपी से आर्थिक उत्पादन की जानकारी मिलती है. यानी कि इसमें निजी खपत, अर्थव्यवस्था में सकल निवेश, सरकारी निवेश, सरकारी खर्च और शुद्ध विदेशी व्यापार (निर्यात और आयात का फर्क) शामिल होता है. जीवीए से उत्पादक यानी सप्लाई साइड से होने वाली आर्थिक गतिविधियों का पता चलता है जबकि जीडीपी में डिमांड या उपभोक्ता की नजर से तस्वीर नजर आती है. जरूरी नहीं कि दोनों ही आंकड़े एक से हों क्योंकि इन दोनों में नेट टैक्स के ट्रीटमेंट का फर्क होता है.
उपादान लागत या स्थायी लागत (फैक्टर कॉस्ट) के आधार पर जीडीपी का मतलब होता है कि औद्योगिक गतविधि में-वेतन, मुनाफे, किराए और पूँजी-यानी विभिन्न उपादान के मार्फत सकल प्राप्ति. इस लागत के अलावा उत्पादक अपने माल की बिक्री के पहले सम्पत्ति कर, स्टाम्प ड्यूटी और पंजीकरण शुल्क वगैरह भी देता है. जीडीपी में ये सब शामिल होते हैं, जीवीए में नहीं. जीवीए में वह लागत शामिल होती है, जो उत्पाद को बेचने के पहले लगी थी.
इनमें बेहतर कौन है?
जीवीए से मिलने वाली सेक्टरवार ग्रोथ से नीति-निर्माताओं को यह फैसला करने में आसानी होगी कि किस सेक्टर को प्रोत्साहन की जरूरत है. कुछ लोगों का मानना है कि जीवीए अर्थव्यवस्था की स्थिति जानने का सबसे सही तरीका है क्योंकि सिर्फ ज्यादा टैक्स कलेक्शन होने से यह मान लेना सही नहीं होगा कि उत्पादन में तेज बढ़ोतरी हुई है. ऐसा बेहतर कंप्लायंस या ज्यादा कवरेज की वजह से भी हो सकता है और इससे असल उत्पादन की गलत तस्वीर मिलती है.
जीवीए से हर सेक्टर के उत्पादन आँकड़ों की अलग तस्वीर मिलती है. यह अर्थ-व्यवस्था की बेहतर तस्वीर बताता है. जीडीपी का आँकड़ा तब अहम साबित होता है जब अपने देश की तुलना दूसरे देश की अर्थव्यवस्था से करनी होती है. इसमें दोनों देशों की आय की तुलना की जाती है. सही तस्वीर जानने के लिए दोनों के विस्तार में जाना चाहिए.
जीडीपी से आर्थिक उत्पादन की जानकारी मिलती है. यानी कि इसमें निजी खपत, अर्थव्यवस्था में सकल निवेश, सरकारी निवेश, सरकारी खर्च और शुद्ध विदेशी व्यापार (निर्यात और आयात का फर्क) शामिल होता है. जीवीए से उत्पादक यानी सप्लाई साइड से होने वाली आर्थिक गतिविधियों का पता चलता है जबकि जीडीपी में डिमांड या उपभोक्ता की नजर से तस्वीर नजर आती है. जरूरी नहीं कि दोनों ही आंकड़े एक से हों क्योंकि इन दोनों में नेट टैक्स के ट्रीटमेंट का फर्क होता है.
उपादान लागत या स्थायी लागत (फैक्टर कॉस्ट) के आधार पर जीडीपी का मतलब होता है कि औद्योगिक गतविधि में-वेतन, मुनाफे, किराए और पूँजी-यानी विभिन्न उपादान के मार्फत सकल प्राप्ति. इस लागत के अलावा उत्पादक अपने माल की बिक्री के पहले सम्पत्ति कर, स्टाम्प ड्यूटी और पंजीकरण शुल्क वगैरह भी देता है. जीडीपी में ये सब शामिल होते हैं, जीवीए में नहीं. जीवीए में वह लागत शामिल होती है, जो उत्पाद को बेचने के पहले लगी थी.
इनमें बेहतर कौन है?
जीवीए से मिलने वाली सेक्टरवार ग्रोथ से नीति-निर्माताओं को यह फैसला करने में आसानी होगी कि किस सेक्टर को प्रोत्साहन की जरूरत है. कुछ लोगों का मानना है कि जीवीए अर्थव्यवस्था की स्थिति जानने का सबसे सही तरीका है क्योंकि सिर्फ ज्यादा टैक्स कलेक्शन होने से यह मान लेना सही नहीं होगा कि उत्पादन में तेज बढ़ोतरी हुई है. ऐसा बेहतर कंप्लायंस या ज्यादा कवरेज की वजह से भी हो सकता है और इससे असल उत्पादन की गलत तस्वीर मिलती है.
जीवीए से हर सेक्टर के उत्पादन आँकड़ों की अलग तस्वीर मिलती है. यह अर्थ-व्यवस्था की बेहतर तस्वीर बताता है. जीडीपी का आँकड़ा तब अहम साबित होता है जब अपने देश की तुलना दूसरे देश की अर्थव्यवस्था से करनी होती है. इसमें दोनों देशों की आय की तुलना की जाती है. सही तस्वीर जानने के लिए दोनों के विस्तार में जाना चाहिए.
दूसरे विश्व युद्ध की विभीषिका ने दुनियाभर को झुलसा डाला था. युद्ध खत्म होने के बाद दुनिया ने मानवाधिकारों के बारे में सोचना शुरू किया. 10 दिसम्बर, 1948 को ‘संयुक्त राष्ट्र महासभा’ ने सार्वभौमिक मानवाधिकार घोषणा पत्र जारी कर पहली बार मानवाधिकार व मानव की बुनियादी मुक्ति की घोषणा की थी. इसके बाद सन 1950 में संयुक्त राष्ट्र ने हर साल 10 दिसम्बर को विश्व मानवाधिकार दिवस मनाने का निश्चय किया. किसी भी इंसान की ज़िंदगी, आज़ादी, बराबरी और सम्मान का अधिकार है-मानवाधिकार.
श्रीलंका किन विदेशी शासकों के अधीन रहा?
श्रीलंका में पहले पुर्तगाली आए. उन्होंने 1517 में कोलम्बो के पास अपना दुर्ग बनाया. उस वक्त कैंडी और जाफना पर स्थानीय राजाओं का राज था. 1630 में डच (नीदरलैंड) लोगों ने पुर्तगालियों पर हमला बोला और कुछ इलाके पर अपना राज कायम कर लिया. 1638 में स्थानीय राजा ने पुर्तगालियों से लड़ने के लिए डच ईस्ट इंडिया कम्पनी के साथ एक संधि की. अंततः 1656 में कोलम्बो भी डच अधिकार में आ गया. उधर भारत में प्रवेश कर चुके अंग्रेजों का ध्यान श्रीलंका की तरफ गया. उन्होने डच इलाकों पर अधिकार करना आरंभ कर दिया. 1800 आते-आते तटीय इलाकों पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया. सन 1818 में अंतिम राज्य कैंडी के राजा ने भी आत्मसमर्पण कर दिया और सम्पूर्ण श्रीलंका पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया. वहाँ भारत की तरह लम्बा स्वतंत्रता संग्राम नहीं चला, पर बीसवीं सदी के शुरू में एक शान्तिपूर्ण राजनीतिक आन्दोलन शुरू हो गया. भारत की आजादी के बाद 4 फरवरी 1948 को श्रीलंका भी आजाद हो गया. प्रभात खबर अवसर में प्रकाशित
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