इंटरनेट से
जुड़ी वैबसाइटों के मालिक अलग-अलग व्यक्ति, संस्थाएं, संगठन और सरकारें हैं. यह
अनेक नेटवर्कों का महा-नेटवर्क है. करोड़ों या अरबों नेटवर्कों से मिलकर यह काम
करता है. इसमें कई तरह की तकनीकें जुड़ी हैं, जिनका स्वामित्व अलग है. यह किसी
केन्द्रीय व्यवस्था के अंतर्गत काम भी नहीं करता. फिर भी इन सबको जोड़ने की एक
व्यवस्था है, जिसकी शुरूआत अमेरिका से और अमेरिकी सरकार के साधनों से हुई थी. इसकी
शुरूआत अमेरिका के डिफेंस रिसर्च प्रोजेक्ट्स एजेंसी (डारपा) ने देश के विभिन्न
विश्वविद्यालयों और रक्षा प्रयोगशालाओं में होने वाले रिसर्च की जानकारी को शेयर
करने के लिए एक नेटवर्क के रूप में की थी.
शुरू में यह
ई-मेल जैसी प्रणाली थी, जिसमें साइंटिस्ट एक-दूसरे से सवाल करते या उनके जवाब देते
थे. इसे तब एडवांस्ड रिसर्च प्रोजेक्ट्स एजेंसी नेटवर्क (अर्पानेट) कहा जाता था.
इसके पहले सन 1961 में मैसाच्युसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के ल्योनार्ड
क्लाइनरॉक ने 1961 में प्रकाशित एक शोध पत्र में पैकेट स्विचिंग सिद्धांत का
प्रतिपादन किया था, जिसके आधार पर इसकी अवधारणा 1964 में बनी और पहला संदेश 1969
में भेजा गया. धीरे-धीरे तकनीक विकसित होती गई. अब हर कम्पयूटर का एक आईपी एड्रेस
होता है. वैबसाइट का डोमेन नेम होता है.
यह एड्रेस तय
करने के लिए पहले इंटरनेट एसाइंड नम्बर्स अथॉरिटी (आईएएनए) बनाई गई , जिसे अमेरिकी
सरकार ने बनाया. अब इसके ऊपर एक और संस्था बन गई है, जिसका नाम है इंटरनेट कॉरपोरेशन
फॉर एसाइंड नेम एंड नम्बर्स (ICANN). इस प्रकार
परोक्ष रूप से नेट पर अमेरिकी सरकार का नियंत्रण है, पर यह नॉन प्रॉफिट प्राइवेट
संस्था है. वर्ल्ड वाइड वैब कंसोर्शियम है, कई प्रकार के सर्च इंजन हैं, वैब
स्टोरेज है. यह तकनीक विकसित होती जा रही है और उसके मुताबिक संस्थाएं बन रहीं है.
बैंकिंग, मार्केटिंग, शॉपिंग, मनोरंजन, विज्ञान-तकनीक वगैरह का नया संसार बन रहा
है. दुनिया के देशों में सायबर कानून बन रहे हैं.
फास्टैग
(FASTag) क्या है?
फास्टैग
भारत का इलेक्ट्रॉनिक टोल कलेक्शन सिस्टम है. इसका संचालन राष्ट्रीय राजमार्ग
प्राधिकरण (एनएचएआई) करता है. इस सिस्टम की शुरुआत 4 नवम्बर 2014 में अहमदाबाद और
मुम्बई के बीच स्वर्ण चतुर्भुज राजमार्ग पर हुई थी. जुलाई 2015 में
चेन्नई-बेंगलुरु राजमार्ग के टोल प्लाजा इसके सहारे भुगतान को स्वीकार करने लगे.
23 नवम्बर 2016 तक देश के राजमार्गों के 366 में से 347 टोल प्लाजा फास्टैग भुगतान
को स्वीकार कर रहे थे. अब इस साल दिसम्बर से देश के सभी टोल प्लाजा पर
इलेक्ट्रॉनिक टोल कलेक्शन शुरू करने की योजना है.
सिक्योरिटी चेक के एक्स-रे स्कैनर
ये एक्स-रेमशीनें स्वास्थ्य की जाँच करने वाली एक्स-रे
मशीनों से फर्क होती हैं. ये मशीनें कई तरह की चीजों की अलग-अलग पहचान के लिए बनाई
जाती हैं, केवल हड्डियों की पहचान के लिए नहीं. सिद्धांततः सभी एक्स तरंगें एक तरह
की नहीं होतीं. इन मशीनों में कई तरह के एनर्जी लेवल की तरंगे छोड़ी जाती हैं.
जैविक वस्तुएं कम ऊर्जा वाली तरंगों को रोकती हैं, प्लास्टिक और धातु की वस्तुएं
अलग-अलग तरह की तरंगों को रोकती हैं. सामान जब इस मशीन के भीतर से गुजरता है तो कई
तरह के फिल्टरों के मार्फत उसकी एक्स-रे तस्वीर बनती है, जिससे पता लग जाता है कि
भीतर क्या है?
प्याज को 4,000 साल पहले अफगानिस्तान, उज्बेकिस्तान और
ताजिकिस्तान के इलाके में उगाया गया. भारत में इसका आगमन सम्भवतः मुसलमानों के
आगमन के काफी पहले हो चुका था. प्राचीन भारतीय चिकित्सकों चरक, वाग्भट्ट और
सुश्रुत ने इसके चिकित्सकीय गुणों का वर्णन किया है, पर इसे सम्मान की दृष्टि से
नहीं देखा गया. इसका कारण शायद इसकी गंध थी. सन 629 से 645 के बीच भारत यात्रा पर
आए चीनी यात्री ह्वेनत्सांग ने लिखा है कि भारत में कई जगह उन्होंने देखा कि प्याज
खाने वाले को शहर में आने नहीं देते थे. तीखी गंध के कारण लम्बे समय तक अंग्रेजों
को भी प्याज पसंद नहीं आया. सन 1350 में फैली प्लेग के दौरान देखा गया कि प्याज के
व्यापारी बीमारी से बचे रहे. इसके बाद अंग्रेजों ने प्याज को स्वीकार किया.
प्रभात खबर अवसर में प्रकाशित
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